सरकार के ही आंकड़ों में देश की 58 फीसदी आबादी मुफ्त अनाज के सहारे, मगर PM मोदी कर रहे गरीबी दूर होने का दावा
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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
PM Modi claims that poverty is reduced and income has increased after 2014. अगले वर्ष के लोकसभा चुनावों से पहले चाँद तक पहुँचने, नया संसद भवन जहां फिल्म शो आयोजित किये जा रहे हैं, भव्य राम मंदिर, दुनिया के बड़े नेताओं के दिल्ली आगमन और तमाम मंदिरों के कोरिडोर का हवाला देकर सत्ता और मेनस्ट्रीम मीडिया यह साबित कर देगी कि देश पूरी तरह से स्वर्ग बन चुका है और यहाँ अब कोई भी समस्या नहीं है।
किसी को आश्चर्य नहीं होगा कि देश की भूखी, बेरोजगार, हिन्दू-मुस्लिम आग में झुलसती, मणिपुर समेत पूरे पूर्वोत्तर में हिंसा का शिकार होती, सामाजिक तानाबाना खोती, पुलिस की ज्यादतियों को झेलती और पूंजीपतियों की बंधक बनती जनता फिर से इसी सत्ता को पहले से भी भारी बहुमत से वापस सत्ता सौप दे। हम सभी भारत के नागरिक एक अनोखी नींद में सो चुके हैं जिसमें सत्ता-प्रायोजित केवल सुनहरे सपने हैं – शायद इसलिए हम जागना ही नहीं चाहते। वर्ष 2014 के बाद से देश में सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि हरेक बेरोजगार, हरेक भूखा और हरेक जुल्म का शिकार आदमी भी मोदीमय हो चुका है। जाहिर है ऐसे में सत्ता के शिखर पर बैठे लोग बस जनता को गुमराह ही कर रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों के दौरान सत्ता ने सबसे अधिक गुमराह महंगाई और चीन के संदर्भ में ही किया है। हाल में ही राहुल गांधी ने जब चीन द्वारा भारत की जमीन हड़पने की बात की तो बीजेपी के सभी मंत्री-संतरी ने इसका जवाब देने के बजाय यह कहा कि राहुल गांधी को चीन से इतना लगाव क्यों है। जिस समय इस लगाव की बात की जा रही थी लगभग उसी समय प्रधानमंत्री मोदी चीन के राष्ट्रपति से वार्ता कर रहे थे।
बताया गया कि यह वार्ता सीमा विवाद और दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने से सम्बंधित थी। सीमा विवाद पर दोनों देशों की सेनायें भी अंतहीन वार्ता कर रही हैं। प्रश्न तो यह है कि जब चीन ने भारत की जमीन हड़पी ही नहीं है तो हरेक स्तर पर अंतहीन वार्ता किस विषय पर चल रही है। इस बार तो समय रहते प्रधानमंत्री और चीन राष्ट्रपति के बीच की वार्ता की खबर फ़ैल गयी, वर्ना पिछले वर्ष बाली में आयोजित जी20 सम्मलेन के दौरान दोनों नेताओं में द्विपक्षीय वार्ता हुई थी तो इसे महीनों तक गोपनीय रखा गया था।
चीन के साथ तो भारत के अनोखे रिश्ते की सबसे बड़ी मिसाल गलवान वैली में सैनिकों की झड़प के समय ही स्पष्ट हो गया था – जहां हमारे सैनिकों की मौत के बाद भी प्रधानमंत्री ने पूरी दुनिया को बताया था कि हमारे क्षेत्र में न कोई आया और ना ही कोई घुसपैठ हुई। चीन जैसा हाल महंगाई और गरीबी का भी है।
21 अगस्त को मध्य प्रदेश रोजगार मेला को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी में देश को बताया कि वर्ष 2014 के बाद से देश में तेजी से गरीबी कम हुई है। यदि आप अभी तक दुनिया को बीजेपी या फिर मेनस्ट्रीम मीडिया के आईने में बनते प्रतिबिम्ब को ही सही नहीं मानते हैं, तो क्या आप इस दावे पर भरोसा कर पायेंगे। हमारे देश की आबादी लगभग 140 करोड़ है, और इसमें से लगभग 81 करोड़ आबादी को अत्यधिक गरीब बताकर मोदी सरकार मुफ्त अनाज बाँट कर जिन्दा रख रही है। जाहिर है, सरकारी आंकड़ों में ही अत्यधिक गरीबी से जूझती आबादी 81 करोड़, यानी लगभग 58 प्रतिशत तो है ही, फिर भी हम गरीबी दूर करने का दावा कर इतरा रहे हैं।
अभी हाल में ही सरकार द्वारा बताया गया है कि जुलाई के महीने में मुद्रास्फीति दर 7.44 प्रतिशत थी, जो पिछले 15 महीनों में सबसे अधिक है। जाहिर है, सरकार प्रत्यक्ष तौर पर नहीं पर आंकड़ों में तो यह स्वीकार करती है कि महंगाई बढ़ती जा रही है और जब महंगाई बढ़ती जा रही है तो फिर गरीबी कम कैसे हो सकती है। वैसे महंगाई की मार झेलने के लिए आंकड़ों की जरूरत नहीं पड़ती, सब इसकी मार झेलते हैं, पर देश की जनता की मानसिक हालत यह हो गयी है कि आज भी मोदी जी भाषण देते हुए हवा में हाथ लहराकर अपने अंदाज में कह दें कि महंगाई कम हुई है कि नहीं – तो जनता एक सुर में महंगाई कम होने की बात कहेगी।
प्रधानमंत्री जी ने गरीबी कम करने के दावे का सन्दर्भ नीति आयोग की एक रिपोर्ट को बताया था, जिसके अनुसार पिछले 5 वर्षों के दौरान 13.5 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से ऊपर उठ गयी। नीति आयोग की यह रिपोर्ट पांचवें नेशनल फॅमिली हेल्थ सर्वे 2019-2021 के आधार पर तैयार की गयी थी। जाहिर है, इस सर्वे के आंकड़े वर्ष 2021 तक के थे, और इसमें से 70 प्रतिशत से अधिक आंकड़े वर्ष 2020 के कोविड19 के दौर से पहले एकत्रित किये गए थे। यह सभी जानते हैं कि कोविड 19 के बाद से देश की अर्थव्यवस्था अब तक इससे पहले के स्तर तक नहीं पहुँची है, इसलिए इस दौर में गरीबी कम होने की बात ही बेमानी लगती है। दूसरी तरफ यह सर्वेक्षण देश की आबादी की तुलना में बहुत छोटे हिस्से के सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किया जाता है – इस सर्वेक्षण के दौरान महज 8.25 लाख लोगों की जानकारी जुटाई गयी थी।
प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण में यह भी बताया कि देश के लोगों की आमदनी वर्ष 2014 के बाद से तेजी से बढी है। वर्ष 2014 में औसत भारतीय की आमदनी 4 लाख रुपये थी, जो अब बढ़कर 13 लाख रुपये हो गयी है। ये आंकड़े जितने रंगीन सपने दिखाते हैं, उतना ही वास्ताविकता को छुपाते भी हैं। देश की यही बढ़ती अर्थव्यवस्था आर्थिक असमानता बढ़ा रही है, और यह असमानता हमारे देश में सबसे अधिक है। पर, प्रधानमंत्री इन आंकड़ों को कुछ इस तरह प्रस्तुत करते हैं मानों सबके पास 13 लाख रुपये पहुँच गए हों।
इसी वर्ष जनवरी में ऑक्सफेम इंडिया ने दावोस में एक रिपोर्ट रिलीज़ की थी, जिसका शीर्षक था – सर्वाइवल ऑफ़ द रिचेस्ट: द इंडिया स्टोरी। यह रिपोर्ट हमारे देश में आर्थिक असमानता के आंकड़ों द्वारा आर्थिक विकास और तथाकथित प्रजातंत्र को बेनकाब करती है। इसके अनुसार आर्थिक सन्दर्भ में देश में सबसे ऊपर की 5 प्रतिशत आबादी के पास देश की 60 प्रतिशत सम्पदा है, जबकि सबसे नीचे की 50 प्रतिशत आबादी के पास सम्मिलित तौर पर महज 3 प्रतिशत सम्पदा है। वर्ष 2012 से 2021 के बीच देश की संपदा में जितनी बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी, उसमें से 40 प्रतिशत से अधिक सबसे अमीर 1 प्रतिशत आबादी के हिस्से में आया, जबकि सबसे गरीब 50 प्रतिशत आबादी को इसका 3 प्रतिशत हिस्सा ही मिला।
हमारे देश में वर्ष 2020 में कुल 102 अरबपति थे, पर वर्ष 2022 में इनकी संख्या बढ़कर 166 तक पहुँच गयी। देश के सबसे अमीर 100 लोगों के पास सम्मिलित तौर पर 54.12 लाख करोड़ रुपये की संपदा है, यह राशि हमारे देश के वार्षिक केन्द्रीय बजट से डेढ़ गुना ज्यादा है। दूसरी तरफ देश में भूखे, बेरोजगार और महंगाई की मार झेलती आबादी लगातार बढ़ती जा रही है। वर्ष 2018 में देश में 19 करोड़ भूखे लोग थे, जिनकी संख्या वर्ष 2022 तक 35 करोड़ तक पहुँच गयी। केंद्र सरकार के आंकड़ों में भी देश में भुखमरी बढ़ती जा रही है। पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि देश में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की कुल मौतों में से 65 प्रतिशत का कारण भूख और कुपोषण है।
देश के सबसे अमीर 10 लोगों की कुल संपदा वर्ष 2020 में 27.52 लाख करोड़ रुपये के समतुल्य थी, पर वर्ष 2021 में इस संपदा में 32.8 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गयी। यह ऐसा दौर था जब देश के आबादी कोविड 19 के दौर में भूख और बेरोजगारी झेल रही थी। वर्ष 2020 से नवम्बर 2022 के बीच देश के अरबपतियों की कुल सम्पदा में 121 गुना बृद्धि दर्ज की गयी, यानि हरेक दिन इस संपत्ति में लगभग 3608 करोड़ रुपये बढ़ते गए। इसी दौर में देश में गरीबों की संख्या सर्वाधिक, यानि 22.89 करोड़, थी। देश की सबसे अमीर 10 प्रतिशत आबादी के पास कुल संपदा में से 80 प्रतिशत संपदा है, जबकि सबसे अमीर 30 प्रतिशत आबादी के पास 90 प्रतिशत सम्पदा है।
प्रधानमंत्री मोदी पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का ख़्वाब भी दिखा रहे हैं, जाहिर है इसे वे अगले चुनावों में भुनाने की पूरी कोशिश करेंगे, पर सबसे बड़ा सवाल यह है क्या देश की जनता अपनी भूख, गरीबी, बेरोजगारी और दमन को समझती है, या फिर सत्ता और मीडिया द्वारा दिखाए जा रहे रंगीन सपनों की दुनिया में ही रहना पसंद करती है।