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विमर्श

भारत में मीडिया सेंसरशिप पर अमेरिकी ट्रेड कमीशन की रिपोर्ट | American Trade Commission highlights Media Censorship in India

Janjwar Desk
1 Feb 2022 8:56 PM IST
भारत में मीडिया सेंसरशिप पर अमेरिकी ट्रेड कमीशन की रिपोर्ट | American Trade Commission highlights Media Censorship in India
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भारत में मीडिया सेंसरशिप पर अमेरिकी ट्रेड कमीशन की रिपोर्ट | American Trade Commission highlights Media Censorship in India

American Trade Commission highlights Media Censorship in India | अमेरिका के इन्टरनेशनल ट्रेड कमीशन (American International Trade Commission) ने हाल में ही अमेरिका की कंपनियों द्वारा भारत में कारोबार करने में आने वाली अडचनों से सम्बंधित रिपोर्ट में मीडिया सेंसरशिप (Media Censorship), विशेष तौर पर डिजिटल सेंसरशिप (Digital Censorship) को सबसे बड़ी अड़चन बताया है|

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

American Trade Commission highlights Media Censorship in India | अमेरिका के इन्टरनेशनल ट्रेड कमीशन (American International Trade Commission) ने हाल में ही अमेरिका की कंपनियों द्वारा भारत में कारोबार करने में आने वाली अडचनों से सम्बंधित रिपोर्ट में मीडिया सेंसरशिप (Media Censorship), विशेष तौर पर डिजिटल सेंसरशिप (Digital Censorship) को सबसे बड़ी अड़चन बताया है| इसके अनुसार भारत में मीडिया के लगभग हरेक क्षेत्र में सेंसरशिप का दायरा बढ़ता जा रहा है और इसके लिए ऐसे कानूनों का सहारा लिया जा रहा है जो दुनिया में कहीं नहीं हैं| इन क्षेत्रों में फिल्म, टीवी, सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्म पर विडियो स्टीमिंग, सभी शामिल हैं| इस रिपोर्ट में लगातार इन्टरनेट बंद रखने और डिजिटल मीडिया में विदेशी पूंजी निवेश की अधिकतम सीमा का उदाहरण भी प्रस्तुत किया गया है और इसके साथ ही कहा गया है कि इन कदमों से भारत में काम करने वाली अमेरिकी कंपनियों को नुकसान पहुँच रहा है|

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह से ट्विटर के वरिष्ठ अधिकारियों के गिरफ्तारी का नाटक रचा गया था, तो दूसरी तरफ दुनिया भर में सरकारों द्वारा गूगल समेत दूसरी माइक्रोब्लोगिंग साइट्स (Micro-blogging sites) से किसी कंटेंट को हटाने का अनुरोध किया जाता है, उसमें भारत की सरकार सबसे अग्रणी है| इन सारे कानूनी दावपेंच के अलावा अनेक मामलों में मीडिया पर डाले गए पोस्ट के कारण शारीरिक हिंसा, उत्पीडन इत्यादि का सामना भी करना पड़ता है, जिसके बारे में शिकायतों के बाद भी सरकार कुछ नहीं करती|

मीडिया सेंसरशिप के मामले में हमारा तथाकथित न्यू इंडिया चीन, रूस, इंडोनेशिया, वियतनाम और टर्की के साथ खड़ा है} सबसे अधिक और सबसे कठोर सेंसरशिप चीन में की जाती है| हमारे देश में भी मीडिया से जुड़े लगभग हरेक साधन पर सेंसरशिप है – इसमें टीवी कार्यक्रम, पब्लिशिंग, फिल्म्स और सभी ऑन-लाइन सर्विसेज शामिल हैं| अमेरिकी कम्पनियां सोशल मीडिया और स्टीमिंग सर्विसेज (Steaming services) में सबसे आगे हैं| रिपोर्ट के अनुसार सेंसरशिप दो तरीके से की जाती है – एक तो कानून की धौंस दिखाकर और दूसरी उत्पीडन और ताकत की धौंस दिखाकर|

भारत में अभिव्यक्ति की आबादी को कुचलने के लिए अब अनेक कानूनों का सहारा लिया जाता है, जिसमें इंडियन पीनल कोड, आईटी एक्ट, डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट, महामारी एक्ट और जम्मू और कश्मीर रीआर्गेनाईजेशन एक्ट प्रमुख हैं| सिनेमा पर नियंत्रण के लिए सिनेमेटोग्राफी एक्ट है| भारत सरकार इन्टरनेट को अभिव्यक्ति की आजादी ख़त्म करने के लिए एक घातक हथियार की तरह इस्तेमाल करती है| फेसबुक द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 के दौरान देश में अलग-अलग जगहों पर इसे करीब 90 बंदी का सामना करना पड़ा, यदि सभी जगह के बंदी के समय को जोड़ें तो बंदी का कुल समय 17 महीने के बराबर था| सरकार अपनी ताकत और क़ानून की धौंस दिखाकर दिखाकर इन्टरनेट, वेबसाइट, वेबपेज और यहाँ तक कि चुनिन्दा यूजर के अकाउंट को भी बंद करा देती है| सरकार का दबाव साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा है| वर्ष 2018 में देश में वेबसाइट, वेबपेज और चुनिन्दा यूजर के अकाउंट को बंद करने के कुल 2799 मामले थे, जिनकी संख्या वर्ष 2020 में बढ़कर 9849 तक पहुँच गयी| वर्ष 2021 में लागू किये गए नए आएटी रूल्स को सरकार ने अभिव्यक्ति की आजादी के साथ प्रचारित किया, पर सेंसरशिप का और अभिव्यक्ति की आजादी कुचलने का यह एक स्पष्ट उदाहरण है|

रिपोर्ट के अनुसार मीडिया में विदेशी पूंजी निवेश की सीमा भी एक बड़ी बाधा है| टीवी मीडिया में यह सीमा 49 प्रतिशत तक है, पर डिजिटल और प्रिंट मीडिया में इसकी सीमा महज 26 प्रतिशत ही है| वर्ष 2020 में केंद्र सरकार द्वारा सेंसरशिप के 5 स्पष्ट उदाहरण हैं| 8 मई 2020 को न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने सरकार के कोविड 19 से निपटने के मामले में लापरवाही से सम्बंधित एक विस्तृत रिपोर्ट अपनी साईट पर प्रकाशित की थी, जिसे सरकारी दबाव के बाद कुछ घंटों बाद ही हरेक जगह से हटा दिया गया| 29 मई को न्यूज़18 ने नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉ श्रीनिवास राजकुमार के हवाले से एक खबर दिखाई थी, जिसमें इस संस्थान में स्वास्थ्य कर्मियों को दिए गए पीपीई किट की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठाये गए थे| इस खबर को कुछ घंटों बाद ही हटा दिया गया और इसके बदले ठीक उल्टी खबर प्रसारित की जाने लगी जिसके अनुसार इस संस्थान में पीपीई किट की गुणवत्ता को लेकर अफवाह फैलाई जा रही है| यह मामला यही ख़त्म नहीं हुआ था, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने डॉ श्रीनिवास राजकुमार को भी नौकरी से बर्खास्त कर दिया|

वर्ष 2020 के दौरान प्रसिद्ध इतिहासकार और शिक्षाविद रामचंद्र गुहा के लेखों की एक श्रृंखला हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित की जा रही थी| इसके तहत 18 अप्रैल को हिंदुस्तान टाइम्स ने इस श्रृंखला का लेख नहीं प्रकाशित किया था, यह लेख प्रधानमंत्री मोदी के प्रिय प्रोजेक्ट, सेंट्रल विस्टा, से सम्बंधित था| इस बारे में सम्पादक ने कहा कि उन्होंने लेख को प्रकाशित करने की स्वीकृति दी थी, पर समाचार पत्र प्रबंधन ने इस लेख को रोक दिया| हिंदुस्तान टाइम्स में ही 8 दिसम्बर को निति आयोग के सीईओ अमिताभ कान्त के चर्चित बयान - भारत में बहुत अधिक लोकतंत्र है, इसलिए तेजी से विकास नहीं हो पाता – पर आधारित खबर वेबसाइट पर प्रकाशित की गयी, जिसे कुछ समय बाद ही हटा दिया गया, और दूसरी खबर उसके स्थान पर लगा दी गयी, जिसमें अमिताभ कान्त मीडिया को धिक्कार रहे थे कि उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया जाता है| कश्मीर में 29 और 30 अगस्त को मुहर्रम के मौके पर ताजिया वाले जुलुस पर सुरक्षा बलों और स्थानीय पुलिस ने पैलेट गन का व्यापक इस्तेमाल किया था, इस खबर को चन्द राष्ट्रीय समाचार पत्रों और बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित किया गया था| पर, कश्मीर में इस खबर को प्रकाशित करने पर पाबंदी थी, इसलिए इस खबर को कश्मीर के किसी भी समाचार पत्रों में या किसी न्यूज़ वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं किया गया था|

वर्ष 2014 से ठीक पहले तक मोदी जी बड़े जोर शोर से कहा करते थे, सूचना के प्रचार-प्रसार में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए, पर प्रधानमंत्री बनते ही तथ्यात्मक सूचना के प्रसार में स्वयं सबसे बड़ी बाधा बन गए| हमारी सरकार को किसी भी मौके पर इन्टरनेट के बंदी की लत लग चुकी है, अब तो कई बार बिना किसी कारण के ही इन्टरनेट की बंदी कर दी जाती है| इन्टरनेट बंदी का केवाल सामाजिक प्रभाव ही नहीं है, बल्कि व्यापक आर्थिक प्रभाव भी है| टॉप10वीपीएन नामक संस्था इन्टरनेट बंदी के आर्थिक पहलुओं का आकलन करती है| इसके अनुसार इन्टरनेट बंदी के कारण वर्ष 2021 में दुनिया को 5.5 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा – सबसे अधिक आर्थिक नुकसान म्यांमार को, इसके बाद नाइजीरिया को, फिर भारत को उठाना पड़ा है| वर्ष 2020 में दुनिया की लगभग 27 करोड़ आबादी इन्टरनेट बंदी से प्रभावित हुई, जबकि वर्ष 2021 में यह संख्या लगभग 49 करोड़ आबादी तक पहुँच गयी|

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