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विमर्श

पेंगुइन मोदी की छवि चमकाने वाली किताब 'एग्जाम वारियर्स' करेगा रिलांच, अरुंधती रॉय ने जताया कड़ा विरोध

Janjwar Desk
23 May 2021 4:12 AM GMT
पेंगुइन मोदी की छवि चमकाने वाली किताब एग्जाम वारियर्स करेगा रिलांच, अरुंधती रॉय ने जताया कड़ा विरोध
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कोविड 19 के दौर में पूरा देश गरीब हो गया, पूरी जनता गरीब होती गयी, पर चुनिंदा पूंजीपतियों की संपत्ति कई गुना बढ़ गई, जनता मरती रही और पूंजीपतियों द्वारा प्रायोजित मीडिया मोदी सरकार चालीसा का जाप करती रही....

सत्तालोभी सरकार, पूंजीपति और कॉर्पोरेट घरानों का कैसे है याराना बता रहे हैं वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय

जनज्वार। पूंजीवादी दुनिया में निरंकुश और सतालोभी सरकारों, पूंजीपतियों और कॉर्पोरेट घरानों का बड़ा गहरा याराना होता है, जो जनता का दमन कर आगे बढ़ता है। कोविड 19 के दौर में पूरा देश गरीब हो गया, पूरी जनता गरीब होती गयी, पर चुनिंदा पूंजीपतियों की संपत्ति कई गुना बढ़ गई। जनता मरती रही और पूंजीपतियों द्वारा प्रायोजित मीडिया सरकार चालीसा का जाप करती रही।

इतने के बाद भी जब प्रधानमंत्री की छवि धुंधली होने लगी, देशभर में जलती लाशों की चिताओं से उठाते धुंए द्वारा गिराने लगी तब कॉर्पोरेट घराना मोदी जी को आगे बढ़ाने सामने आने लगा। बड़े प्रकाशक पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया ने अचानक घोषणा की है कि महान लेखक नरेंद्र मोदी की पुस्तक एग्जाम वारियर्स (Exam Warriors) को नए कलेवर के साथ जल्दी फिर से बाजार में उतारा जाएगा।

यह पुस्तक पहली बार 2018 में प्रकाशित की गयी थी। हमारे देश में जहां परीक्षाओं का ठिकाना ही नहीं रहता, पिछले डेढ़ वर्ष से कोविड 19 के दौर में हरेक स्तर के विद्यार्थी अपनी परीक्षाओं को लेकर परेशान हैं, आज तक परीक्षा की कोई भी एक नीति देश में निर्धारित नहीं की गयी है – कुछ परीक्षाएं हो रही हैं, कुछ अचानक आगे बढ़ा दी जाती हैं और कुछ रद्द कर दी गईं हैं, फिर भी पता नहीं क्यों प्रधानमंत्री जी और पेंगुइन को यह लगता है कि मोदी जी विद्यार्थियों को परीक्षाओं के बारे में कारगर सुझाव दे सकते हैं? दरअसल, यह सारा खेल एक कॉर्पोरेट घराने के प्रसार है और एक निरंकुश शासक का दुष्प्रचार है – पर फायदे में दोनों रहेंगे।

अनेक प्रतिष्ठित लेखकों ने इसका प्रबल विरोध किया है, इन लेखकों में पेंगुइन में लगातार प्रकाशित होने वाले लेखक भी शामिल हैं। ख्यातिप्राप्त और अनेक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित लेखक पंकज मिश्र ने लंदन रिव्यू ऑफ़ बुक्स में पेंगुइन के चीफ एग्जीक्यूटिव को पत्र लिखकर कहा है कि इस कोविड 19 के दौर ने जिस राजनीतिज्ञ को बिलकुल ही नकारा साबित कर दिया हो, आखिर पेंगुइन उसके लिए प्रचार करना क्यों चाहता है?

इसी प्रधानमंत्री के कारण देशभर की चिताओं से शवों के सामूहिक दाह संस्कार से उठता धुंआ पूरे देश में फ़ैल रहा है। एक ऐसे राजनीतिज्ञ को पेंगुइन क्यों एक लेखक के तौर पर प्रचारित करना चाहती है, जिसका अभिव्यक्ति की आजादी में भरोसा नहीं है, जो महज दुष्प्रचार और अफवाहों पर भरोसा करता है, जिसके शासन में सबसे अधिक जेल में ठूंसे गए और जो ऐसा देश चला रहा हो जहां पत्रकार दुनिया में सबसे अधिक असुरक्षित हों। उन्होंने रिपोर्टर्स विथआउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट का भी जिक्र किया है, जिसके अनुसार मोदी राज में पत्रकारों का पेशा दुनिया में सबसे अधिक असुरक्षित हो गया है। पंकज मिश्र ने यह भी लिखा है कि पेंगुइन के इस फैसले से स्वतंत्र विचारधारा वाले लेखक निश्चित तौर पर हतोत्साहित होंगे।

पेंगुइन के चीफ एग्जीक्यूटिव ने अपने जवाब में अनेक अंतर्विरोधी बातें कही हैं, पर यह स्पष्ट कर दिया है कि उनकी नजर में मोदी जी युवाओं के प्रेरणास्त्रोत हैं। उन्होंने जवाब देते हुए लिखा है कि उनकी कंपनी हरेक विचारधारा का स्वागत करती है। फिर लिखा है, पुस्तकें प्रकाशित करने या फिर पुनर्प्रकाशित करने का फैसला संपादकों का होता है, और वे अपने निर्णय के लिए स्वतंत्र हैं। यहाँ तक तो कुछ व्यापारिक दांवपेंच समझ में आते हैं और व्यापारिक हित भी, पर अंत में उन्होंने कहा कि मोदी जी युवाओं और विद्यार्थियों के प्रेरणास्त्रोत हैं। इस अंतिम वाक्य से पेंगुइन रैंडमहाउस बुक्स इंडिया की विचारधारा पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है।

प्रख्यात लेखिका और हाल में ही मोदी जी को पत्र लिखकर उनसे पद छोड़ने की मांग करने वाली अरुंधती रॉय ने भी पेंगुइन के इस फैसले का विरोध किया है। अरुंधती रॉय ने लिखा है, यदि उनके बस में हो तो मोदी जी के सभी भाषण, वक्तव्य और किताबें लेकर वे हिमालय की किसी ऐसी गुफा में छोड़ आयेंगी, जहां से उनका वापस आना असंभव हो। उन्होंने कहा है कि पेंगुइन को यह समझाना चाहिए की जिसकी खुद के शैक्षिक योग्यता पर लगातार सवाल उठते हों और जिन्हें छुपाने में न्यायालयों, विश्वविद्यालयों और चुनाव आयोग की मदद ले रहा हो, उसे ही पेंगुइन छात्रों का मददगार बनाने पर तुली है और उन्हें मुख्यधारा का लेखक साबित कर रही है। अरुंधती रॉय ने भी मोदी राज में अभिव्यक्ति की आजादी के लगातार हनन का मुद्दा उठाया है।

जिसे गरीबों का निवाला छीनकर और किसानों को जमीन से बेदखल कर सबसे ऊंची मूर्ति बनवाने का शौक हो, जो पूरा इतिहास जमींदोज कर आलीशान संसद भवन बनवा रहा हो, अपने लिए हवेली बनवा रहा हो, हजारों लाशों पर आत्मप्रशंसा में विभोर होकर बैठा हो, उसे मेनस्ट्रीम और बेस्ट-सेलर लेखक बनाने का लालच नहीं हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता।

यदि उन्हें विद्यार्थियों की फ़िक्र सही में होती तो प्रकाशन विभाग या फिर केंद्र सरकार के अधीन दूसरे प्रकाशन से पुस्तक प्रकाशित कर, शिक्षा विभाग द्वारा हरेक विद्यालय के पुस्तकालय तक भेजी जा सकती थी, पर तब जाहिर है एक इंटरनेशनल ब्रांड नहीं बनता। दूसरी तरफ पेंगुइन को देश के बड़े बाजार से मतलब है, अपने विस्तार से मतलब है।

मोदी जी को महान लेखक बनाकर जाहिर है पेंगुइन को अनेकों सरकारी लाभ मिलेंगे, टैक्स में छूट मिलेगी और दूसरे फायदे भी मिलेंगे। इन फायदों के बदले में सरकार यह तो सुनिश्चित कर ही सकती है की उनके विरुद्ध कोई पुस्तक नहीं प्रकाशित हो। इस पूरी प्रक्रिया में फायदा मोदी जी का और पेंगुइन दोनों का है – जनता तो मरने के लिए बनी है, मरती रहेगी, और निरंकुश शासक प्रवचन के लिए होते हैं, वे आत्मप्रशंसा में डूबे रहेंगे।

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