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विमर्श

Asaduddin Owaisi गोलीकांड का फायदा उठाने में लगी BJP, दोनों ओर के कट्टरपंथी चहककर बना रहे माहौल

Janjwar Desk
4 Feb 2022 12:29 PM GMT
Asaduddin Owaisi की गाड़ी पर गोलीकांड का फायदा उठायेगी BJP, आक्रामक हिन्दू युवा वोट मिलेंगे पार्टी को
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 Owaisi की गाड़ी पर गोलीकांड का फायदा उठायेगी BJP

Asaduddin Owaisi : मुसलमानों की एकता के सामने भाजपा हिन्दुओं की एकता की अपनी राजनैतिक ज़मीन को और ज़्यादा ज़ोरदारी से हासिल कर लेती है....

हिमांशु कुमार का विश्लेषण

Asaduddin Owaisi : ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की गाड़ी पर गोली लगने की खबर है। उनका कहना है कि उनकी गाड़ी पर तीन या चार राउंड गोली चलाई गई, जिसमें किसी को कोई चोट नहीं आई। पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है जिनका सम्बन्ध भाजपा से बताया जा रहा है। इस तरह की घटना होना किसी भी लोकतान्त्रिक समाज के लिए शर्मनाक है, लेकिन क्या यह एक सामान्य आपराधिक घटना है या किसी राजनीतिक खेल का हिस्सा है यह समझने की भी ज़रुरत है।

ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की गाड़ी पर गोलियां किसी की जान लेने के मकसद से नहीं चलाई गई हैं, यह लगता है। गोलियां सर या सीने की ऊंचाई पर न चलाकर पाँव की ऊंचाई पर गाड़ी के निचले हिस्से में लगी हुई हैं। इस गोलीबारी का समय उत्तर प्रदेश के आने वाले चुनाव हैं इसलिए इसे चुनावी राजनीति पर असर डालने की घटना के रूप में लिया जा रहा है। सवाल यह है कि इस गोलीबारी से फायदा किस किस को हो सकता है और इसका नुकसान किसको होगा।

इस समय उत्तर प्रदेश में एआईएमआईएम पार्टी (AIMIM) चुनाव लड़ रही है। इससे पहले इस पार्टी ने बिहार बंगाल और गुजरात में चुनाव लड़ा। बिहार में इस पार्टी को कुछ सीटें मिलीं, लेकिन बंगाल में इसको सफलता नहीं मिली। ओवेसी की पार्टी मुसलमानों की धर्म के आधार पर एकता के नाम से बनी है। इस पार्टी की चुनावों में उपस्थिति से भाजपा को स्वाभिक रूप से फायदा होता है।

मुसलमानों की एकता के सामने भाजपा (BJP) हिन्दुओं की एकता की अपनी राजनैतिक ज़मीन को और ज़्यादा ज़ोरदारी से हासिल कर लेती है। इसलिए सियासी हलकों में इस तरह की चर्चा भी चलती है कि ओवैसी को भाजपा ही अपने विपक्ष के रूप में विकसित कर रही है। इससे भाजपा को खुद को हिन्दुओं की पार्टी साबित करके चुनावी फायदा उठाने का मौका मिलता है।

इस गोलीबारी से एआईएमआईएम को फायदा होगा। इसके समर्थक जो मुख्यतः मुस्लिम युवा हैं उन्हें अपने नेता के उनके लिए अपनी जान जोखिम में डालकर उनके हितों के लिए लड़ने का सन्देश जाएगा। इससे बाड़ पर अनिश्चय की स्थिति में बैठे मुसलमान मतदाता को ओवैसी की तरफ आने का एक कारण मिलेगा और इनके वोटों में इजाफा हो सकता है।

इसका लाभ भाजपा को भी होगा उसकी मुसलमानों के प्रति नफरत भड़का कर हिन्दू हितों की रक्षा की पुरानी राजनीति को नयी खाद पानी मिलेगी और वह भी आक्रामक हिन्दू युवा को अपने साथ जोड़ने में कुछ सफलता पा सकती है।

लेकिन इसका नुकसान किसे होगा वह समझने की ज़रूरत है। इस घटना का नुकसान सीधे सीधे समाजवादी पार्टी कांग्रेस और गैर भाजपाई पार्टियों को होगा। यूपी में मुसलमान वोटर गैर भाजपा दलों को वोट देता आया है। असलियत यह है कि मुसलमानों ने कभी भी धर्म आधारित राजनीति को समर्थन नहीं दिया है। बल्कि मुसलमानों ने हमेशा धर्मनिरपेक्ष दलों को वोट दिया है। अब इस घटना के बाद अगर मुसलमान वोट धर्म निरपेक्ष दलों से हट कर ओवैसी के पाले में गिरता है तो धर्म निरपेक्ष दलों के वोट कम हो जायेंगे और भाजपा के हिन्दू वोट पक्के रहेंगे तो भाजपा की जीत पक्की हो जायेगी।

यानी इस घटना का लाभ ओवैसी से भी ज्यादा भाजपा को होगा। यूपी में चूंकि मुसलमान किसी भी सीट पर बहुमत में नहीं है इसलिए उन का सिर्फ मुस्लिम वोटों के भरोसे चुनाव जीतना वैसे भी असम्भव है। इसलिए इस पूरी घटना के राजनैतिक असर का विश्लेषण तो यही बताता है कि इस घटना से सबसे ज़्यादा फायदा भाजपा को होगा। इसलिए इसे एक सोचे समझे गए समय पर सोच समझ कर की गई चुनावी राजनीति को प्रभावित करने के मकसद से की गई कार्यवाही माना जा रहा है।

उत्तर प्रदेश विधान सभा का यह चुनाव भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह चुनाव ना सिर्फ भाजपा की यूपी में वापसी तय करेगा, बल्कि यह इस पार्टी की अगले आम चुनावों में केंद्र में भी वापसी का फैसला करेगा। एक कहावत के मुताबिक़ दिली की गाडी पर उसी का कब्ज़ा होता है जिसका उत्तर प्रदेश पर कब्ज़ा होता है। इसके अलावा योगी आदित्यनाथ खुद को मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हैं। योगी समर्थक सोशल मीडिया पर इस तरह का अभियान चलाये हुए हैं, लेकिन यदि उत्तर प्रदेश विधानसभा का यह चुनाव भाजपा हार

जाती है तो योगी का राजनैतिक सफर यहीं पर खत्म हो सकता है, इसलिए योगी किसी भी सूरत में चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। योगी के पुराने आपराधिक कृत्यों के मद्देनज़र इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

उत्तर प्रदेश में पिछले पांच साल मुसलमानों के लिए भयानक सपने की तरह बीते हैं। भाजपा द्वारा मुसलमान उम्मीदवारों को टिकिट ना देना। योगी आदित्यनाथ का मुस्लिम विरोध का इतिहास और उनका सत्ता पर आ जाना ही काफी नहीं था। इसके बाद सीएए एनआरसी कानूनों के विरोध में हुए आन्दोलन पर ओवेसी ने जिस शत्रुता और क्रूरता से हमला किया जिसमें चुन चुन कर मुस्लिम युवाओं को मारना जेलों में डालना उनके घरों पर बुलडोज़र चलाना और कुर्की के आदेश निकाल देना कोर्ट के आदेश भी ना मानना।

इस सब ने मुसलमान नौजवानों के मन में अपने अस्तित्व के लिए एक भय पैदा किया। इसी दौरान राम मन्दिर पर आये फैसले ने मुसलमानों के मन में असुरक्षा को और भी बढ़ाया। इस पर किसी भी धर्मनिरपेक्ष दल ने विरोध नहीं व्यक्त किया, बल्कि सभी दलों ने बढ़ चढ़कर यह दिखाने की कोशिश की कि उन्हें हिन्दुओं की ज्यादा चिंता है और इस फैसले का स्वागत किया, जबकि कानूनी दृष्टी से यह फैसला अवैध था। क्योंकि मुकदमा उस बारे में था ही नहीं जिस बारे में फैसला दिया गया।

बाद में उस जज को राज्यसभा में भेज कर भाजपा ने अपना सन्देश साफ़ कर भी दिया कि यह फैसला दिलवाने में भाजपा का हाथ था इससे भाजपा के वोटर और भी बढ़ गये। लेकिन सपा बसपा कांग्रेस परशुराम की मूर्तियाँ लगाने ब्राह्मण सम्मलेन करवा कर और मन्दिर निर्माण में अपना समर्थन दिखा कर भाजपा की खींची गई राजनैतिक लाइन पर घिसटते नज़र आये।

उत्तर प्रदेश का मुस्लिम मतदाता अपने सम्मान और वजूद के लिए संघर्ष कर रहा है। वह इस चुनाव में अपने बूते अपना सियासी वजूद बनाने की हैसियत में भले ही ना हो लेकिन वह बाकी लोगों का खेल बनाने और बिगाड़ने की हालात में ज़रूर है।

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