Bihar mein bhoochaal : BJP का सरेंडर या JDU को सबक सिखाने की है तैयारी, क्या करेंगे नीतीश कुमार?
Bihar mein bhoochaal : अहम सवाल - BJP की सरेंडर या JDU को सबक सिखाने की है तैयारी, क्या करेंगे नीतीश कुमार
बिहार में सियासी भूचाल पर धीरेंद्र मिश्र का विश्लेषण
Bihar mein bhoochaal : दो दिन पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) के एक फैसले से वहां की राजनीति में भूचाल की स्थिति है। जेडीयू ( JDU ) प्रमुख के इस रुख से भाजपा ( BJP ) या आरजेडी ( RJD ) का जो होगा सो होगा, लेकिन नीतीश कुमार की ये चाल उनके लिए कम खतरनाक नहीं है। ऐसा इसलिए कि राजनीति हमेशा दोधारी तलवार की तरह होती है। अगर दांव उल्टा पड़ा, तो हमेशा की तरह एक नाव को छोड़कर दूसरे नाव में सवार होने की सुशासन बाबू की शातिर फितरत उनकी राजनीति का अंत भी कर सकता है। ऐसा इसलिए कि भाजपा जरूर इस घटना से हड़बड़ाहट में है, लेकिन आरजेडी को बहुत जल्दी नहीं है। यानि आरजेडी इस बार अपनी शर्तों पर जेडीयू प्रमुख को समझौता करने के लिए मजबूर करेगी।
ये बात अलग है कि आरजेडी विधायक दल की बैठक कुछ देर बाद होनी है। वहीं जेडीयू विधायक दल की बैठक 11 बजे होगी। इस बैठक के बाद आरजेडी का रुख सामने आने वाला है। उसी के अनुरूप बिहार की सीएम अपना अगला रुख तय करेंगे। इस बीच गठबंधन दरकने से पहले अमित शाह ने नीतीश कुमार के मिजाज को ठंडा करने के लिए फोन किया और खुलकर सियासी मुद्दों पर बातचीत की है। बातचीत क्या हुई है, ये अभी सामने नहीं आई है, लेकिन तय है कि शाह ने नीतीश कुमार से ये जरूर कहा होगा कि आप जल्दबाजी में एनडीए गठबंधन छोड़ने का फैसला न लें। आपसी तालमेल से मामले को सुलझा लिया जाएगा। अब नीतीश इस पर क्या फैसला लेते हैं ये तो आज दोपहर बाद ही खुलकर सामने आयेगा या यूं कहें कि जेडीयू विधायक दल की बैठक के बाद बिहार के सीएम के रुख से पता चल जाएगा।
वहीं जेडीयू और आरजेडी विधायक दल की बैठक के बीच बिहार में भाजपा भी एक्टिव हो गई है। सोमवार को डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद के आवास पर एक अहम बैठक हुई। इस बैठक में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के अलावा बिहार भाजपा के कई वरिष्ठ नेता मौजूद रहे। खास बात ये है कि जेडीयू और आरजेडी की बैठक से पहले भाजपा ने ये अहम बैठक की है। यहां पर इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि संजय जायसवाल रविवार देर शाम दिल्ली पहुंचे थे। आनन-फानन में वे सोमवार को दिल्ली से वापस लौटे। पटना पहुंचते ही अगली रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया। दरअसल, जब से खबर आई है कि जेडीयू एनडीए से अलग होकर महागठबंधन के साथ जा सकती है, तब से भाजपा नेतृत्व एक्शन मोड में है। लगातार भाजपा नेता बैठक कर रहे हैं। सोमवार को बिहार भाजपा के अध्यक्ष संजय जायसवाल और डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद के बीच 6 घंटे के अंतराल में दो बार मीटिंग हुई। माना जा रहा है कि दोनों नेताओं के बीच बिहार की वर्तमान राजनीतिक हालत पर चर्चा हुई।
जल्दी में क्यों है नीतीश कुमार
दरअसल, पिछले दो दशक से ज्यादा समय से बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) सियासी बंदर की तरह आठ से 10 फीसदी वोट के बल पर सीएम बनते नजर आये हैं। 2003 में पहली बार सीएम सात दिनों के लिए बने। उसके बाद भाजपा के सहयोग से 2005 और 2010 में सीएम बने। 2015 में विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने जीतनराम मांझी को कमजोर नेता मानकर सीएम बनाया। पीएम मोदी को चुनौती देने की कोशिश की, लेकिन मांझी को सीएम बनाना उन्हें उल्टा पड़ गया। उस समय सियासी नजाकत को समझते हुए उन्होंने आनन-फानन में लालू के सामने सरेंडर कर दिया। लालू यादव ने भी पूर्व सहयोग के मान-सम्मान का ख्याल रखते हुए महागठबंधन तैयार किया और नीतीश के साथ बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में भाजपा को सियासी मात देने के लिए मैदान में उतर गए। महागठबंधन को सफलता मिली और लालू यादव ने सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद नीतीश कुमार को सीएम बनाया। उसी लालू को गच्चा देकर नीतीश कुमार ने 2017 में भाजपा के साथ गठबंधन किया और रातोंरात एनडीए गठबंधन का नेता बन फिर से सीएम बन गए। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में एनडीए गठबंधन की जीत हुई, लेकिन नीतीश कुमार बड़े भाई की भूमिका से छोटे भाई की भूमिका में आ गए। भाजपा ने अपने पक्ष में माहौल न देखते हुए बड़ी पार्टी होने के बावजूद नीतीश कुमार को सीएम बनाया लेकिन छोटा बनना नीतीश को हजम नहीं हुआ। तभी से बिहार सरकार में साथ होते हुए भी नीतीश कुमार खुद को सहज महसूस नहीं कर रहे हैं।
इस बीच चिराग पासवान को आगे कर छोटा भाई बनाने की भाजपा की राजनीति, अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू विधायकों को अपने पाले में करने का खेल, आरसीपी सिंह को भाजपा की ओर से बिहार का शिंदे बनाने की मुहिम को देखते हुए नीतीश कुमार को लग गया कि अब भाजपा उनकी भी विदाइ करने के मूड में है। नीतीश को ये भी पता है कि इससे पहले पंजाब में अकाली दल को भी भाजपा सियासी पटखनी दे चुकी है। अब उनकी ही बारी है। हाल की अमित शाह का पटना दौरा और बिहार में भाजपा के विस्तार की मुहिम को लेकर छेड़े गए अभियान के बाद से नीतीश कुमार सकते में हैं। उन्हें अब डर सताने लगा है कि भाजपा नेतृत्व चाहे कुछ भी कहे उनका बोरिया-बिस्तर समेटने की तैयारी, वो कर चुके हैं। इसी डर ने नीतीश कुमार को परेशान कर रखा है। यही वजह है कि भाजपा उन्हें पटखनी दे उससे पहले वो आरजेडी को साथ लेकर गठबंधन तोड़ने पर आमदा हैं।
BJP क्यों नहीं ले पा रही दो टूक फैसला
दूसरी तरफ भाजपा बड़ा भाई होने के नाते अब बिहार में हर हाल में सीएम का पद चाहती है लेकिन भाजपा की मजबूरी ये है कि वो बिहार में सियासी दलबदल की घटना को अंजाम देने में अभी तक सफल नहीं हो पाई है। न तो जेडीयू के दो तिहाई नेता को भाजपा तोड़ पाने में सक्षम है और न ही आरजेडी के विधायकों। भाजपा के समर्थक दोनों पार्टियों में विधायक हैं, लेकिन दल-बदल कानून के तहत भाजपा जरूरी संख्या तोड़ने कामयाब नहीं है। ऐसा न कर पाने की वजह से भाजपा अपना सीएम चाहते हुए नहीं बना पा रही है। इसके बावजूद भाजपा का प्रयास जारी है। इस बात को लेकर जेडीयू और भाजपा गठबंधन के बीच समय-समय पर सियासी बवाल भी सामने आते रहे हैं।
हालांकि, भाजपा के पास विकल्पों की कमी नहीं है। जेडीयू का एक बड़ा खेमा आरजेडी के साथ जाने के पक्ष में अभी नहीं दिख रहा है। कई नेताओं के बयान आ चुके हैं, जिसमें वे एनडीए की सरकार को खतरा नहीं बता रहे हैं। ऐसे में अगर नीतीश कुमार एक बार फिर पाला बदलने की कोशिश करते हैं तो असली खेल शुरू हो सकता है। आरसीपी सिंह भले ही पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं, लेकिन संगठन में उनकी पकड़ मजबूत है। नीतीश कुमार के प्रभाव के कारण अभी पाले के विधायक खुलकर सामने नहीं आ रहे। अंदरखाने में बगावत के बीज फूटने लगे हैं। अभी छोटे-छोटे स्तरों पर इस्तीफों का दौर शुरू हुआ है। भाजपा के पास अपने 77 विधायक हैं। सबसे बड़ा विधानसभा अध्यक्ष का पद उनके पास है, जिस पर विजय कुमार सिन्हा जैसे नेता बैठे हुए हैं। उनके पास आचार समिति की वो अनुशंसा है जिस पर फैसला लेकर बाजी पलट सकते हैं। आचार समिति की अनुशंसा के आधार पर बजट 2021 के दौरान 23 मार्च को बिहार विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ था, के आरोप में आरजेडी के 17 विधायकों की कुर्सी जा सकती है। अगर इनकी सदस्यता गई तो बिहार विधानसभा में आरजेडी और सहयोगियों के सदस्यों की संख्या 97 रह जाएगी।
BJP का क्या हो सकता है अगला कदम
आरजेडी और कांग्रेस के भी कई विधायक दोबारा नीतीश कुमार के नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं दिख रहे। इसका भाजपा लाभ उठा सकती है। भाजपा इन विक्षुब्धों को साधने में जुटी है। आरसीपी सिंह ने अगर कोई खेल किया तो बिहार में राजनीति अचानक से पलटने के भी आसार हैं। इन तमाम पहलुओं को नीतीश कुमार भी बखूबी जानते हैं और बारीकी से परख रहे हैं। 2015 में उन्होंने आरजेडी के साथ मिलकर 17 महीने की सरकार चलाई थी। तब के हालातों को भी फिर से देखने की कोशिश हो रही है। भाजपा पर वे सीधा आरोप भी नहीं लगा सकते हैं, क्योंकि मामला उनके पार्टी के भीतर का है। महागठबंधन तोड़ने की वजह सरकार में उनकी पूछ का खत्म होना और राबड़ी आवास सत्ता का केंद्र बनना था। नीतीश को इस बात का भी डर सता रहा है कि गठबंधन तोड़ने का एक विपरीत संदेश कार्यकर्ताओं में जा सकता है।
जातीय समीकरण बिगड़ने के आसार
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का आधार वोट बैंक ओबीसी और महादलित रहे हैं। करीब 8 से 10 फीसदी वोट शेयर के साथ वे जिस खेमे में शिफ्ट होते हैं, सरकार उसकी बन जाती है। लेकिन, आरसीपी सिंह के खिलाफ नोटिस और उनके इस्तीफे ने नालंदा या यूं कहें तो दक्षिणी बिहार के ओबीसी वोट बैंक को एक बड़ा संदेश दे दिया है। जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष ललन सिंह जिस भूमिहार जाति से आते हैं उसने दो साल पहले बिहार चुनाव में खुलकर नीतीश कुमार का विरोध किया था। कई स्थानों पर नोटा, कांग्रेस या लोजपा उम्मीदवार को वोट देने की खबर सामने आई थी। ऐसे में उनके स्तर से आरसीपी पर जिस प्रकार का हमला किया गया है, उसका भी अगल संदेश जाता दिख रहा है। जेडीयू विधायक दल की आज की बैठक में नीतीश कुमार मन टटोलने की कोशिश करेंगे। वे जानने का प्रयास करेंगे कि आरसीपी सिंह पर कार्रवाई को लेकर उनकी क्या सोच है। उसी आधार पर नीतीश कुमार अंतिम फैसला लेंगे।
RJD के मन में क्या है
इस बार आरजेडी और जेडीयू गठबंधन होने पर तेजस्वी यादव नंबर दो की कुर्सी नहीं चाहते। पिछले दो साल से मामला यहीं पर आकर अटका हुआ है। आरजेडी और उनके सहयोगी दल भी भविष्य की सरकार में अपनी मजबूत दावेदारी चाहते हैं। गृह विभाग से लेकर शिक्षा, पथ निर्माण, वित्त, वाणिज्य, उद्योग और श्रम संसाधन, ग्रामीण विकास और ग्रामीण कार्य विभाग तक पर आरजेडी की ओर से दावेदारी है। इसमें से अधिकांश विभाग लंबे समय से जेडीयू के पाले में है। मामला यहां भी फंसता दिख रहा है। अगर तेजस्वी अपनी रणनीति पर अड़े रहे तो जेडीयू को पाला बदलने से हासिल कुछ खास नहीं होगा। इस बीच अमित शाह ( Amit Shah ) ने नीतीश कुमार से फोन पर बातचीत कर तत्काल उनकी अहम और असुरक्षा भाव को थामने की कोशिश कर दी है। अब गेंद नीतीश कुमार के पाले में है। वहीं आरजेडी भी इस बार जेडीयू से हाथ मिलाने से पहले मंथन में जुटी है। उसने भी अभी अपना पत्ता पूरी तरह से नहीं खोला है।