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विमर्श

भ्रष्ट विभागों नहीं भ्रष्ट कर्मचारियों की सूची जनता के सामने एक्सपोज कर सरकार बढ़ा सकती है भ्रष्टाचारमुक्ति की तरफ सार्थक कदम !

Janjwar Desk
14 Jan 2025 9:17 PM IST
भ्रष्ट विभागों नहीं भ्रष्ट कर्मचारियों की सूची जनता के सामने एक्सपोज कर सरकार बढ़ा सकती है भ्रष्टाचारमुक्ति की तरफ सार्थक कदम !
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प्रतीकात्मक तस्वीर

राजेश पाठक की टिप्पणी

Corruption in India : भ्रष्टाचार का संबंध आचरण से है, इसलिए इस कुप्रथा को महज कानून-निर्माण कर रोका या नियंत्रित नहीं किया जा सकता। इस दुष्प्रवृत्ति पर अंकुश हम लोगों की सोच में आवश्यक बदलाव लाकर ही लगा सकते हैं। कारण स्पष्ट है, क्योंकि ऐसा नहीं है कि देश की आजादी के बाद इस कुप्रथा के उन्मूलन के लिए नियमों एवं कानूनों के निर्माण नहीं हुए। इसके निवारण के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग गठित हुए, समितियां बनीं एवं अन्य भ्रष्टाचार निरोधक दस्तों का गठन हुआ फिर भी भ्रष्टाचार का ग्राफ नीचे न गिरकर ऊंचा ही उठता चला गया और आज समाज, राज्य एवं देश की स्थापित व्यवस्था का अभिन्न अंग बन गया। वजह एक नहीं अनेक हैं, परंतु कुछ वजह ऐसी हैं जो अमूमन दृष्टिगोचर होती हैं जिस पर वैज्ञानिक सोच व प्रबंधन की आवश्यकता है। यहां वैज्ञानिक सोच व प्रबंधन का प्रयोग सरकार के डेलिवरी मेकेनिजम पर किया जाना आवश्यक प्रतीत होता है।

भ्रष्टाचार के निवारण के लिए जहां एक ओर सरकारी क्रियाकलापों में वैज्ञानिक सोच व प्रबंधन का प्रयोग जरूरी है, वहीं दूसरी ओर समय एवं परिस्थितियों के अनुरूप सरकार के अभिकरणों में कुछ ढांचागत एवं विचारगत परिवर्तन एवं प्रयोग की भी आवश्यकता है।

उपर्युक्त तत्वों के आलोक में यह जरूरी है कि सरकार की सेवा प्रदायी तंत्र को विकसित करना होगा। विभिन्न विभागों द्वारा जनता को प्रदत्त की जाने वाली सेवाओं की समयसीमा का निर्धारण एवं उसके उल्लंघन होने पर संबंधित कर्मियों के ऊपर जिम्मेदारी तय कर कठोर अनुशासनात्मक एवं अन्य आवश्यक कार्रवाई का प्रावधान तय करना होगा। गौरतलब है कि सरकार के विभिन्न विभागों को राइट टू सर्विसेस एक्ट के दायरे में ले आया गया है तथापि इसमें और भी बहुत कुछ किया जाना शेष है। मसलन प्रत्येक विभाग के लिए एक पृथक मोनिटरिंग सेल हो जो सेवाओं के समुचित, सम्यक व ससमय निष्पादन के लिए सचेत हों।

इसी संदर्भ में दूसरी ओर यह भी व्यवस्था की जानी चाहिए कि जिन लोगों को निर्धारित समय सीमा के बहुत पहले अपने कार्यों के निष्पादन की आकांक्षा एवं आवश्यकता है तो उसके निष्पादन हेतु लोग कुछ अतिरिक्त शुल्क प्रदान कर सेवाएं प्राप्त कर सकें। ऐसी व्यवस्था जहां एक ओर भ्रष्टाचार पनपने में अवरोध का काम करेंगी, वहीं दूसरी ओर सरकार की आय में यथोचित वृद्धि लाएगी, जिसे वह प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्षतः जनोपयोगी कार्यों के निबटारे में उपयोग में ला सकती है।

अतः यहां यह आवश्यक है कि वैसे लोग जो या तो सक्षम हैं या फिर विभिन्न कारणों से अतिशीघ्र किसी प्रमाण पत्र के निर्गत होने की आशा करते हों, उन्हें कुछ अतिरिक्त शुल्क भुगतानोपरांत उक्त सेवा प्रदान की जानी चाहिए। इसके लिए आवश्यक यह भी है कि मानव संसाधनों को गुणात्मक एवं परिमाणात्मक रूप से समुन्नत करने के साथ-साथ कानूनों के निर्माण में इस सीमा तक सतर्कता बरतनी होगी, जिसमें सरकारी सेवकों को स्वविवेकाधिकार का कम-से-कम प्रयोग करना पड़े, संकटकालीन परिस्थितियों को छोड़कर। नियम व कानून सुस्पष्ट एवं कम-से-कम चुनौती योग्य हों।

सामान्यतः यह दृष्टिगोचर होता है कि सरकार की जो एजेंसियां अस्तित्व में हैं वह संवेदनशील नहीं रह पातीं। एक उदाहरण से इसे भलीभांति समझा जा सकता है। मान लीजिए किसी पर्यवेक्षकीय पदाधिकारी को किसी योजना के क्रियान्वयन एवं उसकी जांच हेतु आदेश दिया जाता है। वे सरकारी वाहन की अनुपलब्धता की स्थिति में अपने वाहन का उपयोग कर एवं उस वाहन पर होने वाले व्यय को अपने ऊपर अधिरोपित कर जांच संबंधी कार्य को संपन्न करते हैं। परंतु उन्हें समुचित वाहन भत्ता प्राप्त नहीं होता है। फलतः वे अपने आचरण के प्रति समुचित न्याय करने में कभी-कभी चूक कर बैठते हैं जो किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार जैसी प्रवृतियों को प्रश्रय देती है। यह एक छोटा उदाहरण मात्र है। फलतः यह आवश्यक है कि इस ओर सरकार का घ्यान आकृष्ट होने से भ्रष्टाचार के सहायक तत्वों से निबटा जा सकता है।

इतना ही नहीं, सरकारी कर्मियों एवं पदाधिकारियों के सेवाओं में चयन से संबंधित वर्तमान भर्ती प्रणाली भी दोषपूर्ण है जो किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार को बढा़वा देती है। दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में लोक सेवा आयोगों में सदस्यों एवं अध्यक्षों का चयन विवादित एवं चयनित सदस्यों में संवेदनशीलता एवं पारदर्शिता की कमी पाई जाती है।

सरकार को चाहिए कि संवैधानिक प्रावधानों का समुचित ध्यान रखते हुए हरसंभव प्रयास यह हो कि आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का चयन उच्च छवि वाले व्यक्तियों के बीच से हो जो विवादास्पद व्यक्तित्व धारण न करते हों। कार्यपालक एवं अन्य पदाधिकारियों के चयन के लिए भर्ती प्रणाली को समय-समय पर आवश्यकतानुसार संशोधित एवं कौशल युक्त करना होगा, ताकि संवेदनशील, कर्मठ एवं क्रियाशील व्यक्तियों का सेवाओं हेतु चयन हो सके।

इसके लिए भर्ती के लिए ली जाने वाली परीक्षाओं में भूगोल, गणित, इतिहास, भौतिकी आदि विषयों के साथ-साथ परीक्षा के पाठयक्रमों में नैतिक आचरण, उच्च मनोबल, मानवीय संवेदना, जीवन दर्शन आदि से संबंधित विषयों का समावेश होना बाध्यकारी हो। ऐसा होने से पदधारी जब कोई गलत कार्य या अपनी शक्ति या पद के दुरूपयोग करने की बात मन में लाए भी तो उनकी संवेदना, नैतिक आचरण आदि उन पर हावी हो जाये।

इस संदर्भ में यहां यह भी उल्लेखनीय है कि सरकार के चतुर्थ स्तम्भ एवं अन्य शोध एजेंसियों द्वारा भ्रष्ट विभागों की सूची समय-समय पर निकाली या प्रकाशित की जाती है। यह कितना हास्यास्पद है कि भ्रष्ट विभागों की सूची तो जारी हो जाती है, परंतु जिन भ्रष्ट कर्मियों के कारण संबंधित विभाग भ्रष्ट विभाग कहलाता है, उनकी सूची सरकार का कोई भी स्तम्भ प्रकाशित करने में रुचि नहीं दिखाता है।

यह भी प्रायः देखा जाता है कि 15 अगस्त, 26 जनवरी या अन्य ऐतिहासिक महत्व के अवसरों पर सरकारी कर्मियों को उत्कृष्ट कार्यों के लिए उन्हें सरकार द्वारा सम्मान प्रदान किया जाता है। इन अवसरों पर सरकार द्वारा अब इस बदली हुई परिस्थितियों में निकृष्ट कार्य करने वालों को भी सबसे निकृष्ट पदाधिकारी/कर्मचारी का पुरस्कार सार्वजनिक तौर पर वितरित किए जाने चाहिए। इस ढ़ंग के पुरस्कारों की घोषणा से अधिकांश कर्मचारी/पदाधिकारी अपने-अपने स्तर से इस पुरस्कार से दूर रहने के लिए हरसंभव अच्छा कार्य करने का प्रयास करेंगे, अन्यथा उनको इस पुरस्कार से नवाजा जाएगा। मेरा तो मानना है कि इस पुरस्कार की घोषणा मात्र से ही सरकारी एजेंसियों में खलबली मच जाएगी और वे हर संभव यह प्रयास करेंगे कि कार्यों के निष्पादन के दौरान उनके आचरण में कोई गिरावट न आने पाए।

उपर्युक्त संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार सरकार ‘आदर्श ग्राम’ की संकल्पना को कार्य रूप देने की बात सामान्यतः करती है, ठीक उसी प्रकार हर राज्य प्रत्येक वर्ष एक जिला, जिला प्रत्येक वर्ष एक प्रखंड एवं प्रखंड प्रत्येक वर्ष एक ग्राम पंचायत कार्यालय को ‘फ्री फ्राम करप्सन’ जैसे लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश करे एवं इस दिशा मे प्रयासरत रहे तो बातें बनती नजर आएंगी। इतना ही नहीं सरकार को इस दिशा में भी प्रयास करना चाहिए, जिससे कि एक ऐसा सर्वमान्य पदाधिकारी ढूंढ़ा जा सके जो भ्रष्ट आचरण से सर्वदा मुक्त रहा हो एवं अन्य लोगों को भ्रष्ट बनने से रोक सका हो, ताकि उसे ‘भ्रष्टाचार मुक्त कार्यालय का ब्रांड एम्बेसडर’ घोषित किया जा सके।

भ्रष्टाचार से मुक्ति की दिशा में एक और अभिनव प्रयोग किया जा सकता है, वह यह कि जब भी कार्यालय खुले सभी कर्मी अपनी कुर्सी के सामने टेबुल पर रखे विशेष शपथ पत्र को पढ़ें, जिसमें रिश्वत ने लेने और न देने की शपथ अंकित हो। शपथ की विषयवस्तु ऐसी हो जो शपथ लेने वालों को नैतिक आचरणयुक्त, मार्मिक, संवेदनशील एवं अनैतिक साधनों से प्राप्त धन-बल के प्रति अनिच्छा का भाव प्रदर्शित करे।

ऐसा कुछ होने से धीरे-धीरे ही सही, परंतु भ्रष्टाचार के विरूद्ध एक जमीन तैयार हो सकेगी जो भ्रष्ट व्यक्तियों के जमीर को ही सद्गुणों से भर देगी और जैसे-जैसे कोई व्यक्ति अनैतिक आचरणों से दूर होता जाएगा वैसे-वैसे वह व्यक्ति स्वमेव ईश्वर के सद्गुणों एवं राष्ट्रीयता की सोच के नजदीक होते चला जाएगा।

(राजेश पाठक झारखंड के गोड्डा में जिला सांख्यिकी पदाधिकारी हैं।)

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