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विमर्श

Capitalism In India : नव उदारवाद तथा फासीवाद का जन संगठनों संस्थाओं और स्वैच्छिक संस्थाओं पर हमला

Janjwar Desk
14 Jan 2022 12:11 PM GMT
Capitalism In India : नव उदारवाद तथा फासीवाद का जन संगठनों संस्थाओं और स्वैच्छिक संस्थाओं पर हमला
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(नव उदारवाद तथा फासीवाद का जन संगठनों संस्थाओं और स्वैच्छिक संस्थाओं पर हमला)

Capitalism In India : अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों की मदद से मुनाफाखोर पूंजीपतियों ने विकासशील देशों की सरकारों पर यह दबाव बनाना शुरू किया कि आप लोगों को अब पैसा तभी मिलेगा जब आप गरीबों को सब्सिडी के रूप में पैसा देना बंद करोगे....

हिमांशु कुमार का विश्लेषण

Capitalism In India : आप सबको वो दौर ज़रूर याद होगा जब आपने उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण (Liberalization, Globalization and Privatization) शब्द पहली बार सुने थे। उसी दौर में कुछ और शब्द भी समाचारों का हिस्सा होते थे। वे शब्द थे डंकल प्रस्ताव , गैट समझौता, डब्ल्यूटीओ आईएमएफ, विश्व बैंक वगैरा वगैरा।

ये उस दौर में प्रचिलित हुए शब्द थे जब नव उदारवाद (Neo-Liberalism) हमारी ज़िन्दगी में भारी उथल पुथल मचाने जा रहा था। आगे जाकर यह शब्द हमारी राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था (Economy) के भयानक बदलावों के कारण बने। शब्दों की बहुत गहराई में जाए बिना हम आसान तरीके से यह समझने की कोशिश करेंगे कि असल में इस दौर का क्या मतलब था ?

इस दौर के शुरू होने से पहले ज्यादातर देशों की सरकारें लोक कल्याणकारी सरकारें होती थीं। सरकारों का मुख्य काम अपनी जनता के लिए मुफ्त शिक्षा, मुफ्त इलाज, मुफ्त सड़कें, सस्ती बिजली, गरीबों के लिए सस्ता अनाज, महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों के लिए विशेष कार्यक्रम चलाना होता था। सरकारें इसके लिए टैक्स से हुई सरकारी आय में से सरकार गरीबों के लिए सब्सिडी देती थी। लोगों को रोज़गार के अवसर देने के लिए सरकारी कामकाज किये जाते थे।

दुनिया में उपनिवेशवाद खत्म हो चुका था। यूरोप के देश फ़्रांस ब्रिटेन आदि देशों के उपनिवेश अब आज़ाद हो गये थे। लेकिन इन देशों में लूट का माल जमा कर चुके व्यापारी और कम्पनियां अब अन्तर्राष्ट्रीय राजनैतिक षड्यंत्रों तख्तापलट करवाने, शासनाध्य्क्षों की हत्याएं करवाने उन देशों में खदानें तेल आदि पर कब्ज़े ज़माने में लग गयीं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के रूप में अपराधी माफिया भ्रष्ट राजनैतिक सत्ताएं मिल कर नव उपनिवेशवाद के दौर में दुनिया को धकेल रही थीं। जहां अब शासन सत्ता हथिया कर नहीं बल्कि उस देश की अर्थव्यवस्था पर काबू कर के किया जा रहा था।

इस सबके चलते पूंजीवाद काफी मज़बूत हो चला था। पूंजीपतियों का कब्ज़ा दुनिया की अनेकों सरकारों पर हो चुका था। अब यह पूंजीपति सारी दुनिया में अपना व्यापार फैला कर बड़ा मुनाफा कमाना चाहते थे। इन पूंजीवादी ताकतों ने विश्व बैंक आईएमएफ और डब्ल्यूटीओ जैसे संगठनों पर कब्ज़ा कर लिया था। यह वे संगठन थे जो दुनिया के गरीब और विकासशील देशों को उनकी विकास परियोजनाओं के लिए पैसा कर्जे के रूप में देते थे।

इन अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों की मदद से मुनाफाखोर पूंजीपतियों ने विकासशील देशों की सरकारों पर यह दबाव बनाना शुरू किया कि आप लोगों को अब पैसा तभी मिलेगा जब आप गरीबों को सब्सिडी के रूप में पैसा देना बंद करोगे, सिर्फ रोज़गार देने के लिए चलाये जाने वाले लोक कल्याणकारी काम बंद करोगे, श्रम कानून समाप्त करो उन्हें इस तरह का बनाओ जिससे व्यापारियों को कोई परेशानी ना हो, विदेशी कंपनियों को आपके देश में व्यापार करने देने के लिए अपने कानूनों में खुली छूट दो, विदेशी बैंकों को अपने देश में आने के लिए छूट दो।

सरकारों ने यही किया भी। लेकिन इसके साथ कुछ और भी घटित होना शुरू हो गया। पूंजीवाद को जब दुनिया भर में फैलना था तो वह स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के सिद्धांतों के आधार पर नहीं फ़ैल रहा था। बल्कि वह अमेरिका और यूरोप यानी पश्चिमी देशों की सैन्य ताकत के सहारे फ़ैल रहा था।

सैन्य सहारे को दुनिया के तेल के ठिकानों और खनिजों के ठिकानों पर कब्ज़ा करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था। इसके लिए अमेरिका और पश्चिमी नव उपनिवेशवादी शक्तियां सीआईए आदि की मदद से एक ऐसे शत्रु के निर्माण में जुटी हुई थीं जिसका हव्वा खड़ा करके वे दुनिया भर में अपनी फौजें भेज सकें ताकि उन इलाकों पर कब्ज़ा करने के बाद वहाँ अपनी मनचाही कंपनियों को वहां के तेल और खनिजों को लूटने के लिए मौका दिया जा सके।

सीआईए ने नारको नारको फंडिंग और इस्लामिक रेडिकलाईजेशन का अपना प्रोजेक्ट शुरू किया, ओसामा जैसे आधुनिक अमेरिकी नागरिक को अफगानिस्तान भेजा गया उसे बड़े पैमाने पर अमेरिकी पैसा, हथियार और गोला बारूद दिया गया। उसके सहारे सोवियत रूस समर्थित राष्ट्रपति नजीब की हत्या करवाई गई। अल कायदा और तालिबान खड़े किये गये। फिर दुनिया भर में प्रचार किया गया कि मुसलमान आतंकवादी हैं। इस्लामोफोबिया का हव्वा खड़ा किया गया। इसके दमन के नाम पर अमेरिकी हथियार बेचे गये। अमेरिकी फौजों को तेल और खनिज बहुल इलाकों में तैनात करके खूब लम्बे समय तक लूटा गया।

भारत में भी यही सब दोहराया गया। भारत में भी उसी समय मुस्लिम आतंक का हव्वा खड़ा किया गया। भटकल, आज़मगढ़ मालेगांव, हैदराबाद जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों को आतंक के अड्डे के रूप में बताया जाने लगा,अजीबोगरीब नाम वाले काल्पनिक जिहादी संगठन समाचार पत्रों और टीवी की न्यूज़ का मुख्य विषय बनने लगे फिल्मों में मुसलमानों की छवि आतंकवादियों की बनाकर पेश करे जाने का लम्बा दौर चला। हजारों मुस्लिम नौजवानों को फर्जी मामलों में जेलों में सड़ने के लिए ठूंस दिया गया। बाद में उनमें से ज़्यादातर बेक़सूर साबित हुए और बरसों बाद रिहा हुए।

इसी सब की आड़ में विदेशी पूंजी भारत में अपने कदम जमा रही थी। स्पेशल इकोनोमिक ज़ोन के नाम पर जमीनों पर कब्ज़े किये जा रहे थे। विदेशी पूँजी को मीडिया, रिटेल व्यापार, निर्माण और खनन में आने की मंजूरियां दी जा रही थीं। भारत का बजट अब विश्व बैंक और आईएमएफ निर्धारित करने लगे थे। मजदूरों के हक़ खत्म किये जाने लगे थे। किसानों की फसलों पर मुनाफाखोरों का कब्ज़ा हो रहा था। बीज कम्पनियां टर्मिनेटर बीज और कीट नाशक के नाम पर खेती की अर्थव्यवस्था पर काबू कर रही थीं। आदिवासी इलाकों में ज़मीनों पर कब्ज़े करने के लिए अर्ध सैनिक भेजे जाने लगे थे।

इस दौर में इस सबके खिलाफ बहुत सारे सामाजिक कार्यकर्ता, जन संगठन और संस्थाएं खडी हो गयीं । इन संस्थाओं ने मुसलमानों के इस दमन के खिलाफ सरकारों को अदालतों में घसीटा। जीएम सीड उदारीकरण, विश्व बैंक के खिलाफ जन आन्दोलन खड़े किये गये, आदिवासियों की ज़मीनें हडपने के खिलाफ अभियान खड़े किये गये।

इस सबसे पूंजीवादी ताकतों को बहुत अडचनें हुई । कई जगह ये लोग अपना व्यापार शुरू नहीं कर पाए । इनके मुनाफे पर बुरा असर पड़ा। इस सब से निपटने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेलों में डाला गया । इस मुनाफाखोर अर्थव्यवस्था के खिलाफ लिखने बोलने वाले अर्थशास्त्रियों पत्रकारों को विकास विरोधी वामपंथी और अर्बन नक्सली कहा गया।

इसी के साथ साथ जन संगठनों और संस्थाओं पर नकेल कसने के लिए गृह मंत्रालय पुलिस और प्रशासन ने मिलकर कार्यवाहियां शुरू की। इन कार्यवाहियों का पारिणाम क्या हुआ। यह क्या कार्यवाहियां हैं। इसके बारे में हम अगले लेख में चर्चा करेंगे।

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