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विमर्श

Child Psychology and Crimes : बच्चे 'मोबाइल' के रूप में एक ऐसी गाड़ी चला रहे जिनका 'ना स्टेयरिंग उनके हाथ में-ना ब्रेक'

Janjwar Desk
26 April 2022 2:30 PM GMT
Child Psychology and Crimes : बच्चे मोबाइल के रूप में एक ऐसी गाड़ी चला रहे जिनका ना स्टेयरिंग उनके हाथ में ना ब्रेक
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Child Psychology and Crimes : बच्चे 'मोबाइल' के रूप में एक ऐसी गाड़ी चला रहे जिनका 'ना स्टेयरिंग उनके हाथ में ना ब्रेक'

Child Psychology and Crimes : मैं जब ये बातें लिख रहा हूं तो मुझे एक मनोविशेषज्ञ के तौर पर न देखकर उस व्यक्ति के तौर पर देखें, जो एक लंबे समय से शिक्षा के क्षेत्र में खास तौर पर उस एक खास आयु वर्ग के बच्चों के बीच हौसला और हुनर बढ़ाने का काम रहा है और समाज के बच्चों को काफी समय से देखने और समझने की कोशिश कर रहा है...

बच्चों में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति पर वरिष्ठ शिक्षाविद् अनंत गंगोला का आलेख

Child Psychology and Crimes : झारखंड (Jharkhand) के खूंटी जिले (Khunti District) के तोरपा प्रखंड (Torpa Block) से एक हैरान करने वाली हृदयविदारक घटना सामने आयी है। खबरों के मुताबिक यहां एक विवाह समारोह में छोटे से आपसी विवाद के बाद आधा दर्जन नाबालिगों (Minors) ने सबक सिखाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से 10 साल की एक मासूम बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया।

इस घटना की सूचना मिलने के बाद पुलिस ने उन सभी आरोपियों को बालसुधार गृह भेज दिया है। इस खबर पर जब जनज्वार की ओर से एक विशेषज्ञ के तौर पर प्रतिक्रिया देने को कहा गया तो पहले मैं घटना के बारे में जानकर स्तब्ध रह गया, फिर मैंने एक जिम्मेदार नागरिक और समाज का सेवक होने के नाते अपनी बात रखने की हामी भरी।

मैं जब ये बातें लिख रहा हूं तो मुझे एक मनोविशेषज्ञ के तौर पर न देखकर उस व्यक्ति के तौर पर देखें, जो एक लंबे समय से शिक्षा के क्षेत्र में खास तौर पर उस एक खास आयु वर्ग के बच्चों के बीच हौसला और हुनर बढ़ाने का काम रहा है और समाज के बच्चों को काफी समय से देखने और समझने की कोशिश कर रहा है।

पहले बच्चों तक सूचना पहुंचने के सीमित थे साधन

हमारे समाज में बच्चों तक सूचनाएं कैसे पहुंचती हैं? इस सवाल पर अगर हम विचार करें तो पाते हैं कि कुछ समय पहले तक बच्चों को सूचनाएं जिन स्रोतों से मिलती थीं, उसके सिर्फ दो-तीन माध्यम ही होते थे। इनमें से पहला था परिवार, जो यह तय करता था कि बच्चों को कौन सी सूचनाएं उपलब्ध करायी जाएं और कौन सी नहीं। उस दौरान परिवार यह ध्यान रखता था कि बच्चे की उम्र और परिवेश क्या है। यह एक पारंपरिक समझ पर आधारित बात थी।

दूसरा, बच्चे अपने मित्रों से सीखते और सुनते थे। यह बच्चे उन्हीं के आसपास के और उसी तरह की आबोहवा में पढ़े-लिखे और बड़े होने वाले बच्चे थे।

तीसरा था बच्चों का स्कूल। स्कूल वह पहली जगह होती थी जहां बच्चों में ज्ञान का औपचारिक प्रवेश शुरू होता था। यहां गौर करने वाली बात है कि विद्यालयों में जो पढ़ाया जाता है, वह पाठ्यक्रम में उम्र के अनुसार बड़े ध्यान से सोच विचारकर शामिल कराया जाता है। तमाम विद्वान बैठकर बच्चों के लिए पाठ्यक्रम तैयार करते हैं।

पहले दूरदर्शन (Doordarshan) भी सूचनाओं के प्रसारण का एक और बड़ा माध्यम होता था। वहां भी काफी सोच समझकर किसी तरह के प्रोग्राम प्रसारित किए जाते थे। जो कार्यक्रम बच्चों के लिए नहीं होते थे वे देर रात को प्रसारित किए जाते थे।

मोबाइल और इंटरनेट के आने से बिना सेंसरशिप बच्चों को मिल रही हर तरह की जानकारी

मगर आज की तारीख में केबल टीवी (Cable TV), इंटरनेट और मोबाइल के आ जाने से सूचनाओं का विस्फोट ही हुआ है। इस कड़ी में अब ओटीटी प्लेटफार्म (OTT Platform) भी जुड़ गए हैं। अब हर किसी के पास मोबाइल (Mobile Phone) और उसमें इंटरनेट (Internet) उपलब्ध है। सूचना और ज्ञान बिना किसी सेंसरशिप के बच्चों के पास पहुंच रहा है। उसमें ऐसा कोई सिस्टम ही नहीं है कि वह बच्चे की उम्र देखकर उसी हिसाब से फिल्टर कर सामग्री दिखाए।

यह बड़ा ही रोचक माध्यम बन गया है बच्चों के बीच। हम देख सकते हैं कि परिवार में भी बच्चे माता-पिता से अधिक महत्व अपने मोबाइल फोन को ही देने लगे हैं। माता-पिता बच्चों को अपनी सुविधानुसार मोबाइल (Mobile) उपलब्ध करा देते हैं। मोबाइल का जितना सकारात्मक उपयोग हो सकता है उतना ही नकारात्मक उपयोग भी हो सकता है, बल्कि हो भी रहा है। समाज में आज कल छोटी उम्र के बच्चे ऐसी घटनाओं को अंजाम दे रहे है जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं और इस सबकी जड़ में है कि वह सूचनाओ के सागर में बिना किसी रोकटोक के गोता लगाने मे सक्षम हैं।

​बच्चे जो भी देखते हैं उसे प्रयोग में लाना चाहते हैं

पर क्या सही है? क्या गलत? यह तय करने की क्षमता बच्चों के पास नहीं है। किसी भी सामग्री को देखने के लिए उसका जजमेंट करने की क्षमता नहीं है। बच्चों में एक कॉमन बात है और वह है जिज्ञासा। बच्चे जिज्ञासु होते हैं। बच्चों के पास जितनी सूचनाएं भी जाती है वह उसे प्रयोग में भी लाना चाहते हैं।

मान लीजिए बच्चा किसी को सिगरेट पीते हुए देखता है तो वह खुद भी उसे ट्राई करना चाहता है। वह यह जज नहीं कर पाता है कि यह गलत है। ऐसी ही कुछ चीजें अपराध की श्रेणी में भी आती हैं। आज की तारीख में यह एक बहुत बड़ी सामाजिक विडंबना है कि बच्चे एक ऐसी गाड़ी चला रहे हैं, जिसका न तो स्टेयरिंग उनके हाथ में है, और न ही ब्रेक उनके हाथ में है। सिर्फ एक्सेलेरेटर उनके पास है।

झारखंड में नाबालिगों द्वारा 10 साल की बच्ची के साथ जघन्य वारदात की जो घटना सामने आयी है, ऐसी ही तमाम घटनाएं देशभर में सामने आती रहती हैं, बल्कि इन घटनाओं में दिनोंदिन इजाफा हो रहा है। कुल मिलाकर आज बच्चों के पास वैसी सूचनाएं उपलब्ध हैं जो उनकी उम्र के अनुसार उनके लिए कतई उपयुक्त नहीं हैं।

मैं बच्चों में हौसला और हुनर बढ़ाने का काम कर रहा हूं। वर्तमान समय में शिक्षा में हौसला बढ़ाने के काम को लगातार इग्नोर किया जा रहा है। बच्चों में शिक्षा और हुनर दोनों बढ़ाने का काम सांमजस्य बिठाकर किया जाना चाहिए। कक्षा में जाकर बच्चों के कंधे झुक जाएं या कक्षा में जाकर बच्चे का दिल टूट जाए, उसका मनोबल गिर जाए यह सही नहीं है।

-लेखक वरिष्ठ शिक्षाविद् हैं और 30 वर्षों से अधिक समय से स्कूली बच्चों के बीच कार्य कर कर रहे हैं। 15 वर्षों से अधिक समय तक वे अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के साथ भी जुड़े रहे हैं। उन्होंने बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में शिक्षा के क्षेत्र में जमीनी स्तर पर व्यापक योगदान दिया है। फिलहाल वह शिक्षा के क्षेत्र में ही हौसला और हुनर बढ़ाने के लिए काम करने वाली संस्था रूट ब्रिज से जुड़े हुए हैं।

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