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विमर्श

दिल्ली किसान आंदोलन के 9 महीने पूरे, आंदोलकारी योद्धा अपना हक लेकर ही लौटेंगे अपने खेत

Janjwar Desk
26 Aug 2021 2:37 PM IST
Farmers Movement : मुस्तैदी से करनी होगी अपनी जीत की रक्षा, पूंजीपतियों के लिए नीतियां बनाना सरकार का मुख्य लक्ष्य
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Farmers Movement : मुस्तैदी से करनी होगी अपनी 'जीत' की रक्षा, पूंजीपतियों के लिए नीतियां बनाना सरकार का मुख्य लक्ष्य

संयुक्त किसान मोर्चे ने 26-27 अगस्त को भारत की जनता के सभी हिस्सों की साँझा कन्वेंशन बुलाया हैं। इसमें नये आह्वानो के मंसूबे बनेगे। इसके बाद 5 सितम्बर (को मुजफ्फरनगर, उत्तरप्रदेश) में एसकेएम की विराट रैली होगी....

अशोक ढवले का विश्लेषण

जनज्वार। दिल्ली के चारों तरफ सीमाओं पर किसान पिछले नौ महीनों से बैठे है और किसान विरोधी तीन काले कानूनों का विरोध कर रहे हैं। हाल फ़िलहाल में किसानो द्वारा कई बड़ी राष्ट्रव्यापी कार्यवाहियां हुई हैं, जिनमें हज़ारों किसानों ने भागेदारी की है। किसानों द्वारा इस दौरान महत्वपूर्ण दिवसों को भी मनाया गया।

26 मई की ऐतिहासिक देशव्यापी कार्रवाई के जरिए लाखों लोगों ने की मोदी निजाम की लानत-मलानत

26 मई, 2021 के दिन को इतिहास में हमेशा एक ऐसे दिन के रूप में याद किया जाएगा, जिस दिन संयुक्त किसान मोर्चा (एस के एम) के झंडे तले दिल्ली के बॉर्डरों पर और पूरे देश में चल रहे किसानों के ऐतिहासिक संघर्ष के प्रति मोदी के नेतृत्ववाली भाजपा-आर एस एस सरकार के क्रूर तथा हृदयहीन रवैए की भर्त्सना करने के लिए मनाए गए काला झंडा दिवस कार्रवाई में देश भर में लाखों लोगों ने भागीदारी की।

26 मई को इस अभूतपूर्व किसान संघर्ष को छः महीने पूरे हुए थे। छः महीने पहले इसी दिन 26 नवंबर को मजदूर वर्ग ने शानदार अखिल भारतीय हड़ताल की थी और इसी दिन मोदी के नेतृत्ववाली भाजपा-आर एस एस सरकार भी अपने सात वर्ष पूरे कर रही थी, जो आजादी के बाद की भारत की सबसे विनाशकारी सरकार साबित हुयी है।

गत 21 मई को एसकेएम ने प्रधानमंत्री को एक कड़ा पत्र भेजा, जिसमें उसने मांग की कि सरकार किसानों के साथ बातचीत फिर से शुरू करे। इस पत्र में एस के एम ने चेतावनी दी थी कि अगर ऐसा नहीं हुआ, तो संघर्ष को और तेज किया जाएगा।

काला झंडा दिवस मनाने और मोदी सरकार के पुतले जलाने के आह्वान का पालन करते हुए देश भर में दसियों हजार स्थानों पर इन कार्रवाइयों का आयोजन किया गया और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और गुजरात से लेकर गुवाहाटी तक और इससे आगे भी लाखों लाख परिवारों ने काला झंडा दिवस मनाया।

देश के हर राज्य में, गांवों और बस्तियों में इन कार्रवाइयों के आयोजन की हजारों-हजार तस्वीरें तथा वीडियो संयुक्त किसान मोर्चा, किसान संघर्ष समन्वय समिति, अखिल भारतीय किसान सभा तथा अन्य किसान तथा मजदूर संगठनों की सोशल मीडिया साइटों पर सुबह से ही आने लगे थे। पुतला दहन के वीडियोज में खासतौर से लोगों का रोष सामने आ रहा था। लाखों लाख घरों, दुकानों, वाहनों, ट्रैक्टरों तथा ट्रॉलियों पर विरोधस्वरूप काले झंडे फहराए गए। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर दिन भर इस आंदोलन के समर्थन में अनेकानेक हैशटैग ट्रैंड होते रहे।

कोविड महामारी की दूसरी घातक लहर के बावजूद ऐसी जबर्दस्त देशव्यापी कार्रवाई हुयी, जो अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है। महामारी के मद्देनजर खुद आयोजकों ने बड़ी केंद्रीकृत जनलामबंदियों के खिलाफ आगाही कर दी थी। आयोजकों ने आह्वान किया था कि लोग अपने आपको गांवों तथा बस्तियों तक ही सीमित रखें। लोगों ने भी सब जगह कोविड के तमाम प्रोटोकोलों का पालन करने का पूरा ख्याल रखा।

एसकेएम ने काला झंडा दिवस मनाने का आह्वान किया था, जिसे केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, 12 प्रमुख विपक्षी राजनीतिक पार्टियों और अनेकानेक वर्गीय संगठनों तथा जन संगठनों ने अपना समर्थन दिया था। इनमें अखिल भारतीय किसान सभा (एआइकेएस), सीटू, अखिल भारतीय खेतमजदूर यूनियन (एआइएडब्लूयू), जनवादी महिला समिति, जनवादी नौजवान सभा (डीवाइएफआइ) तथा छात्र संगठन एसएफआइ भी शामिल थे।

किसानों, खेत मजदूरों, मजदूरों, मध्यवर्गीय कर्मचारियों, छात्रों, महिलाओं, युवाओं, व्यापारियों, प्रोफेशनलों, बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों तथा पत्रकारों ने भारी उत्साह तथा दृढ़ निश्चय के साथ इन विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया। इन विरोध प्रदर्शनों में मोदी निजाम के खिलाफ जनता का जायज रोष जबर्दस्त ढ़ंग से सामने आ रहा था।

काला झंडा दिवस दिल्ली के बॉर्डरों - सिंधू, टीकरी, गाजीपुर, शाहजहांपुर तथा पलवल - पर टेंटों तथा ट्रॉलियों पर काले झंडे फहराकर मनाया गया। इस मौके पर मोदी सरकार के पुतले जलाए गए। विरोध प्रदर्शन स्थलों पर किसानों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है और हजारों की तादाद में और लोग शामिल हो गए हैं।

दिल्ली के बॉर्डरों पर लाखों किसानों के दृढ़ निश्चय का सार्वभौम रूप में अभिनंदन हुआ। इस सुदीर्घ विशाल संघर्ष ने एक विश्व रिकॉर्ड बनाया है। किसानों ने कड़कड़ाती ठंड, बारिश और चिलचिलाती गर्मी के बावजूद छः माह लंबा संघर्ष चलाया है। यह संघर्ष चलाते हुए उन्होंने भारी दमन सहा है और भाजपा-आरएसएस तथा उनके दलालों के कुत्सा प्रचार को भी झेला है।

इस 26 मई को संयोग से बुद्ध पूर्णिमा भी थी। सच्चाई, शांति तथा अहिंसा इस समय देश में जारी किसान आंदोलन के भी प्रमुख मूल्य और सिद्धांत हैं। पूरे देश के साथ ही साथ दिल्ली बॉर्डरों पर भी समुचित ढंग से बुद्ध पूर्णिमा मनायी गयी।

नयी दिल्ली स्थित अखिल भारतीय किसान सभा, अखिल भारतीय खेतमजदूर यूनियन तथा एसएफआइ के केंद्रीय कार्यालयों में भी काले झंडे फहराए गए और मोदी सरकार के पुतले जलाए गए।

26 जून को देशभर ने मनाया 'खेती बचाओ, लोकतंत्र बचाओ' दिवस

26 जून को पूरे देश में हजारों स्थानों पर लाखों किसानों तथा मजदूरों ने 'खेती बचाओ-लोकतंत्र बचाओ' दिवस मनाया। 26 जून का यह दिन 1975 में तत्कालीन कांग्रेसी निजाम द्वारा थोपी गयी इमरजेंसी की 46वीं बरसी का भी था। इस वर्ष लोगों ने भाजपा निजाम की मौजूदा अघोषित इमरजेंसी की निंदा की। अभूतपूर्व किसान संघर्ष ने भी इस दिन अपने सात माह पूरे कर लिए।

संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के 26 जून के आह्वान को केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच और खेतमजदूरों, युवाओं, महिलाओं, छात्रों, व्यापारियों आदि के अनेक संगठनों ने अपना सक्रिय समर्थन दिया था। इस दिन की लामबंदी एक माह पहले 26 मई की उस लामबंदी को भी पार कर गयी, जब किसान संघर्ष के छ: महीने पूरे होने और मोदी निजाम के विनाशकारी शासन के सात वर्ष पूरे होने पर, देशव्यापी काला झंडा दिवस मनाया गया था। बहरहाल, 26 मई की कार्रवाइयां कोरोना की दूसरी घातक लहर के बावजूद आयोजित की गयी थीं। लेकिन इस बार स्थिति थोड़ी राहतवाली थी।

26 जून को देशभर में तकरीबन सभी राजभवनों (राज्यपाल आवासों) के बाहर विशाल प्रदर्शनों का आयोजन किया गया और देश के राष्ट्रपति को संबोधित एसकेएम के ज्ञापन की प्रतियां राज्यपालों या उनके प्रतिनिधियों को सौंपी गयी। अनेक भाजपा शासित राज्यों में राज्यपालों द्वारा रैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था और मीटिंगों की इजाजत नहीं दी गयी थी।

मोदी निजाम के खिलाफ किसानों का गुस्सा ऐसा था कि जिला कलेक्ट्रेटों और तहसील/ब्लॉक कार्यालयों के समक्ष और यहां तक कि अनगिनत गांवों तक में सैकड़ों रैलियों तथा प्रदर्शनों का आयोजन किया गया था।

ऐसा तकरीबन सभी प्रमुख राज्यों में हुआ -- उत्तर भारत में जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तरप्रदेश तथा उत्तराखंड में; दक्षिण भारत में केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना में; मध्य भारत में मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में; पूर्वी-भारत में पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, असम, त्रिपुरा तथा मणिपुर में और पश्चिमी भारत में राजस्थान, गुजरात तथा महाराष्ट्र में। इन सभी राज्यों की सैकड़ों तस्वीरें इस संघर्ष की सफलता की गवाह हैं। स्थान के अभाव में इन कार्रवाइयों का राज्यवार ब्यौरा यहां नहीं दिया जा सकता है।

सीटू, अखिल भारतीय खेतमजदूर यूनियन, जनवादी महिला समिति, डीवाइएफआइ, एसएफ आइ और जाहिर है कि अखिल भारतीय किसान सभा की इकाइयों ने भी, देश भर में इस संघर्ष को शानदार रूप से सफल बनाने में प्रमुख भूमिका अदा की। अखिल भारतीय केंद्र और अनेक राज्यों में 26 जून की कार्रवाइयों की तैयारियों के सिलसिले में, इन संगठनों के नेताओं की बहुत अच्छी समन्वय बैठकें हुई थीं।

देश भर के मुख्यधारा के प्रिंट तथा इलेक्ट्रोनिक मीडिया को मजबूर होकर इस संघर्ष का उल्लेख करना पड़ा। जाहिर है कि सोशल मीडिया ने तो इसे व्यापक रूप से प्रचारित किया ही था।

इस दिन चंडीगढ़ में दो सबसे बड़ी कार्रवाइयों का आयोजन किया गया, जब दो विशाल मार्च -- जिनमें से हरेक 7-8 किलोमीटर लंबा था -- चंडीगढ़ के दो राजभवनों पर आयोजित किए गए। पंजाब के मार्च में करीब 25,000 लोग शामिल थे, तो हरियाणा वाले में करीब 15,000 लोग शामिल थे।

अखिल भारतीय किसान सभा (एआइकेएस) ने एसकेएम, एआइकेएससीसी, केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के सभी घटक संगठनों और देश भर के दूसरे तमाम जनसंगठनों को 26 जून के 'खेती बचाओ, लोकतंत्र बचाओ' संघर्ष को जबर्दस्त ढ़ंग से सफल बनाने के लिए दिल से बधाइयां दी हैं। उसके बयान में कहा गया है कि "जब तक इस कार्पोरेटपरस्त, जनविरोधी, तानाशाह, सांप्रदायिक तथा फासीवादी मोदी निजाम पर जीत हासिल नहीं कर ली जाती, तब तक देश भर में और ज्यादा ताकत के साथ संघर्ष जारी रहेगा।"

22 जुलाई से 9 अगस्त तक किसान संसद

राजधानी में संसद के निकट, जंतर-मंतर पर समांतर किसान संसद के सफल आयोजन के साथ, 22 जुलाई से 9 अगस्त तक, संसद के मॉनसून सत्र के सभी कामकाजी दिनों में चलने जा रहा संसद पर किसानों का विरोध भी चला।

संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने इस विरोध प्रदर्शन के दौरान हर रोज जंतर-मंतर पर 200 प्रदर्शनकारियों से किसान संसद का आयोजन करने का फैसला लिया। इससे पहले, एसकेएम की 9 सदस्यीय समन्वय समिति ने दिल्ली के पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक बैठक की। बैठक में इस विरोध प्रदर्शन को व्यवस्थित, अनुशासित तथा शांतिपूर्ण ढ़ंग से अंजाम देने के लिए जरूरी कदम तय किए गए।

प्रदर्शनकारी अपने पहचान पत्रों के साथ हर रोज सिंघू बॉर्डर से रवाना हुए। इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि पंजाब तथा हरियाणा के अलावा तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात तथा राजस्थान से किसानों के जत्थे इस कार्रवाई में शामिल हुए। इसके अलावा 26 जुलाई तथा 9 अगस्त को महिला किसानों के विशेष मार्च आयोजित किए गये, जिनमें पूर्वोत्तर के राज्यों समेत भारत भर की महिला किसानों तथा नेताओं के बड़े-बड़े जत्थे शामिल हुए।

इसी बीच बब्बू मान, अमितोज मान, गुल पनाग जैसे लोकप्रिय पंजाबी कलाकारों ने सिंघू बॉर्डर पर किसानों तथा स्थानीय लोगों के समक्ष अपनी प्रस्तुतियां दीं। इन कलाकारों ने किसान आंदोलन को अपना पूर्ण समर्थन दिया और तमाम नागरिकों से अपील की कि वे किसानों के समर्थन में खड़े हों। जाने-माने अर्थशास़्त्री रंजीत सिंह घुम्मन भी टीकरी बॉर्डर आए और उन्होंने किसानों को संबोधित किया और उनके आंदोलन के लिए अपने समर्थन का इजहार किया।

पहले 4 तथा 5 अगस्त को किसान संसद ने भारत सरकार द्वारा उत्पादन की लागत की गणनाओं से संबंधित मौजूदा स्थिति पर चर्चा की, जहां अनेक लागतों को दबा दिया जाता है। किसान संसद ने इस तथ्य की कड़ी निंदा की कि मोदी सरकार एमएसपी की घोषणा करने के लिए लागत की अवधारणाओं का कपटपूर्ण ढ़ंग से इस्तेमाल करती है। सी-2+50% के फार्मूले का इस्तेमाल करने की बजाय सरकार ए-2+ एफएल (परिवार के श्रम) का फार्मूला इस्तेमाल करती है, जो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों का उल्लंघन है। ऐसी अनेक कृषि पैदावारें हैं, जिनके लिए किसी तरह का कोई एमएसपी घोषित ही नहीं किया जाता है, जबकि हर किसान के लिए ऐसी एमएसपी की गारंटी की व्यवस्था बनाए बिना एमएसपी की घोषणा करना बेमानी है।

किसान संसद ने भारत सरकार को यह निर्देश देते हुए एक प्रस्ताव पारित किया कि वह फौरन संसद में एक ऐसा विधेयक पेश करे जो लागत गणनाओं के मामले में हो रहे मौजूदा अन्याय, एमएसपी के फार्मूले और गारंटीशुदा एमएसपी के लागू होने की मांगों को पूरी तरह संबोधित करे। ऐसे विधेयक के तहत तमाम कृषि पैदावारें तथा तमाम किसान कवर होने चाहिए। इस प्रस्ताव में स्वामीनाथन आयोग की दूसरी अनेक प्रगतिशील सिफारिशों को लागू करने की भी मांग की गयी थी। गत 5 अगस्त को पारित इस प्रस्ताव का अमली हिस्सा इस प्रकार है :

अ. भारत सरकार को यह निर्देश दिया जाता है कि वह फौरन एक ऐसा विधेयक पेश करे, जिसमें निम्नलिखित आवश्यक तत्व शामिल हों और भारतीय संसद को यह निर्देश दिया जाता है कि वह इसे पारित करे :

-- जो उत्पादन की सर्वसमावेशी लागत सी-2 के ऊपर कम से कम 50 फीसद के हिसाब से लाभकारी मूल्य दे, जैसी कि राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिश है। इसके अलावा फसलों के विषम पैटर्नों को संबोधित करने के लिए कुछ कृषि वस्तुओं के लिए सी-2+50% से ज्यादा एमएसपी दे।

-- जो लागत के उन घटकों को भी हिसाब में लें, जिनकी इस वक्त गलत गणना की जा रही है और जिन्हें दबाया जा रहा है। इसके साथ ही साथ जो उन सर्वेक्षणों में सुधार करें, जिन पर रमेशचंद कमेटी रिपोर्ट के लागत अनुमानों के अनुसार पंहुचा गया है।

-- इस तरह के विधेयक में ऐसा संस्थानगत आर्किटैक्चर शामिल हो, जो सभी किसानों के लिए लाभकारी एमएसपी को एक सच्चाई बनाने के लिए जरूरी है।

ब. भारत सरकार तथा जहां जरूरी हो, राज्य सरकारों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे 'किसान' की परिभाषा को अमल में लाने, कृषि भूमि के अधिग्रहण को रोकने, सभी किसानों के लिए पेंशन का प्रावधान करने, सभी किसानों को हर तरह के जोखिम आदि के लिए सार्वभौम, प्रभावी तथा समुचित फसल बीमा मुहैया कराने तथा आपदा मुआवजा दिए जाने से संबंधित, राष्ट्रीय किसान आयोग (स्वामीनाथन आयोग) की रिपोर्ट की सभी प्रगतिशील सिफारिशों को फौरन लागू करें।

विपक्ष के सांसद पंहुचे किसान संसद

संसद का मॉनसून सत्र गत 19 जुलाई से शुरू हुआ। विपक्षी सांसदों ने संसद के दोनों सदनों में उन मुद्दों को उठाया, जिन मुद्दों को किसान आंदोलन पिछले कई महीने से उठा रहा है। संसद भवन किसान आंदोलन के नारों से गूंज रहा था। जो नारे बुलंद किए गए, वे उन नागरिकों के थे, जो विभिन्न क्षेत्रों में सरकार के कानूनों तथा उसकी नीतियों के जनतंत्रविरोधी तथा असंवैधानिक हमलों का सामना कर रहे हैं।

विपक्षी सांसदों ने सभी किसानों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी करने के अलावा सरकार से तीन किसान विरोधी कृषि कानूनों तथा चार मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को निरस्त करने, बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेने और ईंधन की कीमतों को कम से कम आधा करने की मांग की।

गत 6 अगस्त तो विभिन्न विपक्षी राजनीतिक पार्टियों के सांसद किसान संसद पंहुचे। विशेष रूप से तैयार की गयी विजिटर्स गैलरी में बैठकर उन्होंने किसान संसद की कार्रवाई देखी-सुनी। मीडिया को दी गयी अपनी बाइट्स में इन सांसदों ने कहा कि वे अपनी मांगों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को अपना पूर्ण समर्थन देते हैं। ये सांसद कांग्रेस, डीएमके, आरजेडी, सीपीआइ (एम), सीपीआइ, आरएसपी, शिव सेना, टीएमसी, आइयूएमएल आदि विभिन्न विपक्षी राजनीतिक पार्टियों से संबंधित थे। किसान संसद के अध्यक्ष ने, भारतीय संसद के इन सांसदों को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद दिया।

दूसरी ओर किसान संसद ने यह भी नोट किया कि बीजेडी, टीआरएस, वाइएसआरसीपी, एआइएडीएमके, टीडीपी और जेडी (यू) जैसी पार्टियां, किसानों के खिलाफ विभिन्न विधेयकों पर संसदीय बहसों में हिस्सा ले रही हैं। एसकेएम ने उनके इन जनविरोधी रुखों के लिए उन्हें आगाह किया।

15 अगस्त के स्वाधीनता दिवस को 'किसान मजदूर आजादी संग्राम दिवस' के रूप में मनाया गया। एसकेएम ने अपने तमाम घटकों द्वारा इस दिन तिरंगा मार्चों का आयोजन किया गया। इस दिन किसानों तथा मजदूरों द्वारा तहसील/ब्लॉक/जिला मख्यालयों पर या फिर निकटतम किसान मोर्चों तक ट्रैक्टर/मोटरसाइकिल/ साइकिल/बैलगाड़ी मार्चों का आयोजित किये गए। सभी वाहनों पर राष्ट्रीय झंडा फहराया गया।

9 अगस्त के संघर्ष में लाखों लोग शामिल

9 अगस्त का दिन सचमुच ही यादगार दिन था। वामपंथी आंदोलन की जीवंतता तथा दृढ़निश्चयता देश भर में पूरे शबाब पर थी। इस दिन दिवालिया भाजपा-आरएसएस निजाम तथा लुटेरी कार्पोरेट लॉबी के साथ उसके नापाक गठजोड़ से बने कार्पोरेट-हिंदुत्व गठजोड़ से 'भारत बचाओ' के नारे पर अखिल भारतीय किसान सभा, सीटू, अखिल भारतीय खेतमजदूर यूनियन, एडवा, डीवाइएफआइ तथा एसएफआइ जैसे वामपंथी वर्गीय तथा जनसंगठनों और अन्य प्रगतिशील शक्तियों द्वारा देश के 25 राज्यों के सैकड़ों जिलों में लाखों लोगों को लामबंद किया गया। 79 वर्ष पहले 1942 में इसी दिन घृणित ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासकों के खिलाफ महात्मा गांधी द्वारा दिए गए 'भारत छोड़ो' के नारे से पूरा देश गूंज उठा था।

इस विराट कार्रवाई ने, 9 अगस्त को ही सीटू, अखिल भारतीय किसान सभा तथा अखिल भारतीय खेतमजदूर यूनियन के आह्वान पर तीन वर्ष पहले, 2018 में आयोजित देशव्यापी जेल भरो संघर्ष की याद ताजा करा दी। उस कार्रवाई के फौरन बाद 5 सितंबर 2018 को इन तीनों वर्गीय संगठनों ने संसद पर दो लाख लोगों की विशाल रैली का आयोजन किया था। उस दिन राजधानी में हर तरफ लाल झंडे ही नजर आ रहे थे।

इस 9 अगस्त को उत्तर में जम्मू-कश्मीर से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश तथा दिल्ली तक, दक्षिण में केरल से तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना तक, पूर्व में त्रिपुरा से असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड तथा ओडिशा तक, पश्चिम में राजस्थान, गुजरात तथा महाराष्ट्र तक और मध्य क्षेत्र में मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ तक, हर जगह विशाल विरोध कार्रवाइयों का आयोजन किया गया। इन विरोध कार्रवाइयों में जेल भरो से लेकर चक्का जाम, सरकारी कार्यालयों का घेराव, रैलियां, प्रदर्शन तथा धरने, आदि विभिन्न तरह की कार्रवाइयां शामिल थीं।

मजदूरों, किसानों तथा खेत मजदूरों के साथ सभी धर्मों, जातियों तथा संप्रदायों की महिलाओं, युवाओं तथा छात्रों ने इन विशाल विरोध कार्रवाइयों में भाग लिया। उन्होंने सभी मोर्चों पर कार्पोरेट की शहप्राप्त फासीवादी तथा सांप्रदायिक मोदी सरकार की चौतरफा विफलता के लिए उस पर हमला बोला। देश भर से 9 अगस्त की कार्रवाइयों की सैकड़ों की संख्या में तस्वीरें अभी भी इन संगठनों के केंद्रीय कार्यालयों में पंहुच रही हैं।

लड़ाई जारी हैं। संयुक्त किसान मोर्चे ने 26-27 अगस्त को भारत की जनता के सभी हिस्सों की साँझा कन्वेंशन बुलाया हैं। इसमें नये आह्वानो के मंसूबे बनेगे। इसके बाद 5 सितम्बर (को मुजफ्फरनगर, उत्तरप्रदेश) में एसकेएम की विराट रैली होगी। लड़ाई आगे बढ़ेगी।

(लेखक किसान आंदोलन में शामिल देश के सबसे बड़े किसान संगठन अखिल भारतीय किसान सभा - AIKS के अध्यक्ष हैं।)

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