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विमर्श

Dowry System India : भारत के किस राज्य और जाति में लिया जाता है सबसे ज्यादा दहेज, जानिए Dowry System का पूरा इतिहास

Janjwar Desk
15 Dec 2021 9:09 AM GMT
इतिहास में पावन हुआ करता था दहेज, लेकिन अंग्रेजों के जमाने से बदला रूप आज भी जारी है
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Dowry System India | भारत का शायद ये एकमात्र ऐसा शब्द है जिसके मायने हर इंसान के लिए अलग-अलग हो जाते हैं। किसी के लिए ये शब्द चेहरे पर खुशी ला देता है तो वही किसी के माथे पर शिकन लाने के लिए काफी है।

मोना सिंह की रिपोर्ट

Dowry System India | भारत का शायद ये एकमात्र ऐसा शब्द है जिसके मायने हर इंसान के लिए अलग-अलग हो जाते हैं। किसी के लिए ये शब्द चेहरे पर खुशी ला देता है तो वही किसी के माथे पर शिकन लाने के लिए काफी है। यही एक ऐसा शब्द है जिसके लिए खुशी में हवाई फायरिंग की जाती है तो इसी के लिए किसी की जान भी ले ली जाती है। यानी दहेज का कौन और कैसे इस्तेमाल करता है। ये कहना मुश्किल है। लेकिन जो एक बात सबसे स्पष्ट और साफ है, वो ये है कि इसके केंद्र में सिर्फ और सिर्फ धन यानी पैसा है।

लेकिन दहेज की जब शुरुआत हुई तब ऐसा नहीं था। इसलिए आज जानेंगे कि आखिर दहेज की शुरुआत कैसे हुई। इसका इतिहास क्या है। और अब देश में किस हिस्से में इसकी प्रथा सबसे ज्यादा है। क्या पढ़े-लिखे राज्यों में इसका प्रचलन ज्यादा है या फिर कम साक्षर राज्यों में दहेज को ज्यादा बढ़ावा दिया जा रहा है।

दहेज का इतिहास

दहेज पुराने समय में लड़की को उसके माता-पिता द्वारा दिया गया उपहार होता था। लेकिन आज के समय में ये मांग कर लिया जाता है ,उपहार स्वरूप नहीं। आइए जानते हैं ,प्राचीन काल में दहेज का स्वरूप क्या था।

वैदिक काल और मध्यकाल में स्वरूप

अथर्ववेद के अनुसार उत्तर वैदिक काल में दहेज,' वहतु प्रथा' के रूप में प्रचलित था। लेकिन यह लड़के वालों की मांग के अनुसार नहीं दिया जाता था। बल्कि लड़की वालों पर निर्भर करता था, कि वे क्या वस्तु देना चाहते हैं।

वहीं, मध्य काल में दहेज स्त्री धन के रूप में जाना जाने लगा। इस समय भी लड़की के पिता के ऊपर कोई दबाव नहीं होता था। या विदाई के समय एक रिवाज की तरह शुरू हो गया था। बेटी विदा करते वक्त कुछ निश्चित चीजें देनी ही होती थी।

आधुनिक काल में दहेज बना दानव

आधुनिक काल में दहेज मांग कर लिया जाने लगा। 11वीं शताब्दी के पहले दहेज प्रथा जैसी किसी रीति का अस्तित्व नहीं था। अगर मां-बाप की इकलौती संतान बेटी होती थी ,तो सारी संपत्ति बेटी की होती थी। अगर बेटा और बेटी दोनों हो तो बेटी को जायदाद का चौथा हिस्सा मिलता था। दहेज प्रथा ने कुरीति का रूप भारत में अंग्रेजों के आगमन के बाद लिया।

ब्रिटिश सरकार के नियमानुसार बेटी का माता पिता की जायदाद में कोई हिस्सानहीं था।बेटी माता पिता की संपत्ति की उतराधिकारी नहीं हो सकती थी। यहीं से लड़कियों के शोषण की शुरुआत हुई ब्रिटिश शासन के खत्म होने तक यह प्रथा कुरीति का रूप धारण कर चुकी थी।ब्रिटिश शासन खत्म होने के बाद भारत सरकार ने दहेज प्रथा रोकने के लिए कई कानून बनाए हैं ।

क्या है दहेज कानून

1961 में पहला कानून बना था। इसके अनुसार 5 साल की सजा और 15000 का जुर्माना हो सकता है। आईपीसी की धारा-498ए के अनुसार लड़की को दहेज के लिए प्रताड़ित करने पर सजा या जुर्माना दोनों हो सकता है। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498 के दुरुपयोग को रोकने के लिए निर्देश जारी किए। जिनके अंतर्गत पहले पुलिस मामले की पड़ताल करेगी ,कि दर्ज की गई शिकायत सही है या नहीं तभी गिरफ्तारी हो सकेगी।

यदि शादी के 7 साल के अंदर विवाहिता की असामान्य मौत होती है। तो उसकी मौत का जिम्मेदार ससुराल वालों को ठहराया जाएगा। दहेज प्रताड़ना साबित होने पर परिवार को धारा 304 बी के तहत 7 वर्ष की सजा उम्रकैद हो सकती है ।

आईपीसी की धारा-406 के अंतर्गत पति या ससुराल वाले यदि लड़की को स्त्रीधन सौंपने से मना करते हैं, तो उन्हें 3 वर्ष की सजा हो सकती है, या सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है। दहेज निरोधक कानून की धारा 3 के तहत दहेज लेना भी अपराध है जिसके तहत5 वर्ष की सजा का प्रावधान है।

क्या कहती है दहेज पर विश्व बैंक की रिपोर्ट

कुछ समय पहले विश्व बैंक द्वारा भारत में दहेज लेने और देने पर किए गए शोध से चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। विश्व बैंक के शोधकर्ताओं ने 1960 से 2008 तक ग्रामीण भारत में हुई 40000 शादियों पर शोध करके एक रिपोर्ट तैयार की है।

इस रिपोर्ट के अनुसार 1961 में दहेज प्रथा को गैरकानूनी घोषित करने के बावजूद 95% शादियों में दहेज लिया गया। ये रिपोर्ट भारत के 17 राज्य में रहने वाली भारत की 96% आबादी पर स्टडी करके रिपोर्ट तैयार की गई है। भारत की ज्यादातर आबादी गांव में रहती है इसकी ग्रामीण भारत पर शोध किया गया है।

इस रिपोर्ट के अनुसार दहेज प्रथा की वजह से घरेलू हिंसा और पीड़ितों की मौत का आंकड़ा भी बढा है। साल 1975 से पहले और 2000 के बाद मुद्रास्फीति की वजह से कुल दहेज उल्लेखनीय रूप से स्थिर था।

विश्व बैंक के शोधकर्ताओं की टीम के अर्थशास्त्री एस.अनुकृति निशीथ प्रकाश और सुंगोह क्वोन, ने शादी के दौरान लिए गया,और दिए गए पैसों, समान और तोहफों, की कीमत की जानकारियां जुटाई, और कुल दहेज का आकलन करने के लिए दोनों परिवारों द्वारा खर्च किए गए पैसों का अंतर निकाला।

उन्होंने पाया कि दूल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन के परिवार को दिए गए तोहफों की कीमत यदि 5000 थी, तो दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे के परिवार को दिए गए तोहफों की कीमत 32000 रुपये थी। दोनों का अंतर यानी औसत वास्तविक दहेज 27000 था। जो दूल्हे के परिवार द्वारा खर्च की गई रकम से कई गुना ज्यादा था। दहेज में परिवार की आय का बड़ा हिस्सा खर्च होता है। 2007 में ग्रामीण भारत में कुल दहेज वार्षिक आय का 14%था। यानी परिवार की सालाना आय का 14% दहेज मैं खर्च हो जाता है। दहेज के कम या ज्यादा होना अलग-अलग परिवारों की आय और व्यय पर निर्भर करता है। लेकिन वर्तमान में विश्व बैंक के पास भी ऐसा कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।

भारत में शादियों पर खास रिपोर्ट

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में शादियों को लेकर मुख्य तथ्य भारत में सभी विवाह लगभग मोनोगेमस यानी एक स्त्री विवाह होते हैं। 1%से भी कम मामलों में तलाक संभव होता है। 1960 से 2005 के बीच 90% शादियां माता-पिता द्वारा चुने हुए रिश्ते में हुई। माता-पिता की वर - वधू , चुनने में अहम भूमिका होती है।

लगभग 90%विवाहित जोड़े विवाह पश्चात पति के परिवार के साथ रहते हैं। 85% महिलाओं की शादियां अपने गांव से बाहर होती है। लगभग 78.3% शादियां एक ही जिले में होती है। शोधकर्ताओं के अनुसार साल 2008 के बाद भी दहेज के भुगतान के पैटर्न में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं आया है।

इस धर्म और जाति दहेज प्रथा ज्यादा

वैसे तो भारत के सभी धर्मों में दहेज प्रथा प्रचलित है।लेकिन हाल के वर्षों में ईसाई धर्म और सिख धर्म में दहेज के खर्च में बढ़ोतरी देखी गई ,जो हिंदू और मुसलमानों की तुलना में ज्यादा थी। जबकि 1960 इन धर्मों में दहेज का खर्च हिंदुओं और मुसलमानों के बराबर था।

साल 2008 में सिख धर्म में औसत दहेज का खर्च ₹52000 था। और ईसाई धर्म में ₹48000। दहेज पर जाति का भी प्रभाव दिखता है। ऊंची जाति या सवर्णों में दहेज ज्यादा लिया दिया जाता है। जबकि एससी, एसटी और ओबीसी में ज्यादा दहेज लेना और देना इतना ज्यादा प्रचलित नहीं है।

इस राज्य में लिया जाता है सबसे ज्यादा दहेज

1970 के बाद केरल में दहेज में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज की गई। और हाल के वर्षों में भी केरल में औसत दहेज दूसरे राज्यों के मुकाबले ज्यादा रहा। दूसरे नंबर पर पंजाब का नाम आता है, जहां औसत दहेज में बढ़ोतरी दर्ज की गई ।उसके बाद हरियाणा और गुजरात में ज्यादा दहेज लेने और देने का प्रचलन है। जबकि उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र में पिछले कुछ सालों में औसत दहेज में कमी आई है। शोधकर्ताओं के अनुसार 1930 से 1975 में दहेज की पेमेंट में दोगुनी वृद्धि हुई है।और औसत दहेज 3 गुना ज्यादा बढ़ा है। 1975 के बाद दहेज में गिरावट आई ।

1950 से 1999 के बीच दहेज भुगतान का कुल मूल्य एक चौथाई ट्रिलियन डॉलर था।1960 में ग्रामीण क्षेत्र में औसत दहेज ₹18000 था, जो कि 1972 में बढ़कर 26000 हो गया। और 2008 आते-आते लगभग 38000 के पार हो गया।

पुराने जमाने में विवाह में दिए गए उपहार और गहनों को स्त्रीधन कह कर सम्मानित किया गया था। आज उसी को लालच के चादर में लपेटकर दहेज का भयानक रूप दे दिया गया है। हमारे समाज में सैकड़ों दहेज से संबंधित कहानियां और व्यक्ति हमें हमारे आस-पास ही मिल जाएंगे जरूरत है। नजर दौड़ाने की।

दहेज प्रथा की वजह से समाज में होने वाली हत्याएं हत्याओं की संख्या में भी वृद्धि हुई है। 2016 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार 2012 से 2014 के बीच दहेज की वजह से करीब 25000 महिलाओं की हत्या हुई, या उन्होंने आत्महत्या कर ली। वहीं, हर घंटे देश में एक महिला की दहेज हत्या हो रही है। ऐसे में हमें बिहार के इस जिले से सीख लेने की जरूरत है।

दरअसल, बिहार के मधुबनी और दरभंगा जिले के 32 गांव के संगठन बत्तीसगामा समाज ने पिछले 300 सालों से दहेज लेन-देन पर प्रतिबंध लगा रखा है। इन्हीं से सीख लेते हुए क्या हमारा समाज पूरे देश के लिए ऐसी पहल के लिए आगे नहीं आ सकता।

By Mona Singh

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