निष्पक्ष पत्रकारिता न्यू इंडिया में सबसे खतरनाक पेशा है | Fair Reporting is most dangerous profession in India |
निष्पक्ष पत्रकारिता न्यू इंडिया में सबसे खतरनाक पेशा है | Fair Reporting is most dangerous profession in India |
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
Fair Reporting is most dangerous profession in India | इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राजीव सिंह (Justice Rajiv Singh of Allahabad High Court) ने सरकार के प्रति वफादारी दिखाते हुए लखीमपुर खेरी (Lakhimpur Kheri) में किसानों को अपनी जीप से कुचलने वाले मोदी सरकार में गृह राज्य मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा (Ashish Mishra) को जमानत पर रिहा कर दिया है| आशीष मिश्रा की गाडी से कुचले जाने वालों में एक स्थानीय पत्रकार रमन कश्यप (Raman Kashyap) भी थे, जो मौके पर रिपोर्टिंग करने गए थे| जज साहब को गाडी में बैठे तीन लोगों की भीड़ द्वारा हत्या तो दिखी, पर आशीष मिश्र के खिलाफ सबूत नहीं दिखे| जज साहब ने हरेक तरीके से अपने आकाओं का साथ दिया है, फैसला उन्होंने कई दिन पहले सुरक्षित रखा था, पर उसका ऐलान ठीक उस दिन किया जब उत्तर प्रदेश में पहले चरण के मतदान कराये जा रहे थे| इसके बाद भी हमारे प्रधानमंत्री जी उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था का गुणगान करते हैं, जाहिर है उनके समय में गुजरात में आम लोगों के दमन के जो किस्से कहे जाते हैं, पूरी तरह सही लगते हैं| मृतक पत्रकार रमन कश्यप के भाई ने इस फैसले को सरकार के दबाव में दिया गया फैसला बताया है|
जिस तरह से रमन कश्यप को पत्रकारिता करते हुए गाडी से कुचलकर मार डाला गया, ठीक उसी तरह रिपोर्टिंग के दौरान 5 फरवरी को ओडिशा के कालाहांडी जिले (Kalahandi District) में आईईडी विस्फोट (IED Blast) से स्थानीय उड़िया समाचारपत्र के पत्रकार रोहित बिस्वाल (Rohit Biswal) की मृत्यु हो गयी| ओडिशा में इन दिनों पंचायती राज के चुनाव चल रहे हैं, और कालाहांडी में प्रतिबंधित माओवादी (CPI Maoist) के सदस्य लोगों को इन चुनावों से दूर रहने का आह्वान कर रहे हैं| इससे सम्बंधित कुछ पोस्टर कालाहांडी जिले के दमबा कर्लाखूंटा (Damba Karlakhunta) क्षेत्र में लगाए गए थे| रोहित बिस्वाल को जब यह खबर मिली तब वे उसकी रिपोर्टिंग करने पोस्टर तक चले गए, और पोस्टर के ठीक नीचे विस्फोटक सामग्री रखी थी, जिसपर पैर पड़ते ही जोरदार धमाका हुआ और बिस्वाल की मृत्यु हो गयी| स्थानीय पुलिस के अनुसार विस्फोटक सामग्री रखने का काम माओवादियों ने किया है, जबकि उनके प्रतिनिधियों के अनुसार यह सब प्रशासन-प्रायोजित (State-sponsored) रहता है|
बीजेपी शासित राज्यों में चुनावों के समय निष्पक्ष या सही तस्वीर पेश करने वाले पत्रकारों को अपना काम करने से रोका जाता है, और इसमें प्रशासन, सरकारी तंत्र और पुलिस सभी शामिल रहते हैं| हाल में ही वरिष्ठ पत्रकार और जनज्वार (Janjwar) के सम्पादक अजय प्रकाश (Ajay Prakash) जब उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के क्षेत्र की चुनाव रिपोर्टिंग के लिए जब गाडी से जा रहे थे, तब बरेली रोड पर एआरटीओ (ARTO) ने उनसे बदतमीजी की और गाडी को चुनाव ड्यूटी में शामिल करने का फरमान देने लगे| अजय प्रकाश द्वारा उनकी बात नहीं मानने पर एआरटीओ ने जबरन गाडी छीन लिया, स्थानीय पुलिस को बुलाया और अपराधियों जैसा व्यवहार किया| पुलिस उन्हें एआरटीओ के साथ उधम सिंह नगर के थाना पुलभट्टा ले गयी, मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया और एआरटीओ के कहने पर अनेक धाराओं में ऍफ़आईआर दर्ज की| लगभग 9 घंटे तक अपराधियों की तरह थाने में बिठाए रखने के बाद उन्हें छोड़ा गया| यह एक उदाहरण है, जिससे पता चलता है कि बीजेपी शासित राज्यों में निष्पक्ष सूचना का प्रसार किस तरह से सरकारी तंत्र का दुरूपयोग कर रोका जाता है, और निष्पक्ष पत्रकारों से अपराधियों जैसा व्यवहार किया जाता है|
सरकारी तंत्र के दुरूपयोग में बीजेपी सरकार का सबसे भरोसेमंद हथियार है इनकम टैक्स और ईडी (ED) की छापेमारी| सरकार के विरोध में बोलने वालों पर यह छापेमारी जरूर की जाती है, दरअसल इन विभागों का अब यही काम ही रह गया है| इन विभागों के अधिकारियों को यह राजनीति में प्रवेश का एक आसान रास्ता नजर आता है| 10 फरवरी को वरिष्ठ पत्रकार और सरकार और अंधभक्तों के हमेशा निशाने पर रहने वाली, राणा अय्यूब (Rana Ayyub), के ठिकानों पर एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट द्वारा छापेमारी की गयी| यह छापेमारी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद निवासी और अंधभक्त विकास सांकृत्यायन (Vikas Sankrityayan, founder of Hindu IT Cell) द्वारा सितम्बर 2021 में दर्ज ऍफ़आईआर के आधार पर की गयी है, जिसमें राणा अय्यूब पर मनी लाऊंडरिंग (Money Laundering) के आरोप जड़े गए थे| राणा अय्यूब के अनुसार सारे आरोप बेबुनियाद हैं और वे बार बार सारे आरोपों के जवाब तथ्यों के साथ देती रहीं हैं, और उनके पास विदेशों से कोई पैसा नहीं आता| फ़िलहाल राणा अय्यूब और उनके परिवार के सभी बैंक अकाउंट और संपत्ति को अटैच कर दिया गया है|
इसी महीने 4 फरवरी को कश्मीर में प्रतिष्ठित पत्रकार और सम्पादक फहद शाह (Fahad Shah) को पुलिस ने जेल में डाल दिया है| उन्होंने वर्ष 2011 में एक लोकप्रिय वेब न्यूज़ पोर्टल "कश्मीरवाला" स्थापित किया था, और यह इस समय कश्मीर का एकलौता समाचार माध्यम है जो निष्पक्ष पत्रकारिता करता है| पुलिस ने उनपर देशद्रोह और यूएपीए (UAPA and Sedation) की संगीन धाराएँ लगाईं हैं और कहा है कि फहद शाह आतंकवाद को बढ़ावा देते थे और फेक न्यूज़ का प्रसार करते थे| पिछले 2 वर्षों से अनेकों पत्रकारों पर पुलिस ने देशद्रोह और यूएपीए की धाराएं लगाईं हैं, उन्हें जेल में बंद किया है पर किसी भी ऍफ़आईआर के साथ कोई सबूत नहीं लगाया जाता कि कौन सी खबर आतंकवाद बढ़ा रही है या फिर खबर का कौन सा हिस्सा फेक न्यूज़ है| वहां, बस पुलिस यह देखती है कि उसकी ज्यादतियों और नरसंहारों के विरुद्ध कौन लिख रहा है – यही पुलिस, प्रशासन और केंद्र सरकार की नजर में आतंकवाद और देशद्रोह बन जाता है| फिर उन्हें जेल में बंद कर दिया जाता है और सालों साल बिना किसी सुनवाई के उन्हें बंद रखा जाता है|
पिछले महीने ही कश्मीरवाला से जुड़े एक पत्रकार सजाद डार (Sajad Dar) को पुलिस ने जेल में बंद किया है| सजाद डार ने अनेक खोजी लेख लिखे थे, जिसमें बताया गया था कि पुलिस आतंकवादियों के नाम पर स्थानीय निर्दोष नागरिकों को मुठभेड़ के नाम पर मार रही थी| इन लेखों को फहद शाह ने कश्मीरवाला में प्रकाशित किया था| फहद शाह एक प्रतिष्ठित पत्रकार हैं और उन्हें वर्ष 2021 में ह्यूमन राइट्स प्रेस अवार्ड भी मिल चुका है|
मोदी जी के तथाकथित न्यू इंडिया के अमृत काल में निष्पक्ष और सरकार से सवाल करने वाले पत्रकारों को खामोश करने की पूरी तैयारी है, और इस तैयारी में सरकार का सबसे बड़ा हथियार मेनस्ट्रीम मीडिया है, जो पत्रकारों और जनता के मुद्दों के बदले दिन-रात सरकार चालीसा का जाप करती है| इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि हमारा देश प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में म्यांमार और अफ़ग़ानिस्तान से भी नीचे के पायदान पर है|