Funeral of Democracy : धार्मिक उन्माद को ही लोकतंत्र समझने लगी जनता, नई परिभाषा गढ़ने में व्यस्त प्रधानमंत्री
(पीएम मोदी का दो दिवसीय वाराणसी दौरा समाप्त)
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
Funeral of Democracy : एक महान लोकतांत्रिक परंपरा वाले धर्मनिरपेक्ष देश का प्रधानमंत्री (Narendra Modi) हिन्दू भगवानों और देवताओं के मंदिरों में, तिलक लगाए हुए मीडिया के कैमरों के सामने जयकारा लगाते हुए लोकतंत्र की नई परिभाषा गढ़ने में व्यस्त है। चमत्कार तो यह है कि अब जनता भी इसे ही और धार्मिक उन्माद को ही लोकतंत्र समझने लगी है। इन सबके बीच अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने लोकतंत्र पर शिखर सम्मलेन का आयोजन किया (Democracy Summit) और इस आयोजन के बीच न्यूयॉर्क में मानवाधिकार कार्यकर्ता (Human Right Activtists) इसे लोकतंत्र की शवयात्रा बता रहे थे। रूस, चीन के साथ ही पाकिस्तान ने भी इसका बहिष्कार किया। ताइवान (Taiwan) को चीन के भारी विरूद्ध के बीच बड़े तामझाम से इस सम्मलेन में वक्ता के तौर पर बुलाया गया था, पर लोकतंत्र की हालत तो देखिये – ताइवान की मंत्री के संबोधन के समय विडियो लिंक हटा लिया गया और केवल ऑडियो चलता रहा।
दरअसल ताइवान (Taiwan) की मंत्री ने एक ऐसा नक्शा दिखाया था, जिसमें चीन और ताइवान के लोकतंत्र के सन्दर्भ में रंग अलग थे। इस महत्वाकांक्षी शिखर सम्मलेन के पहले दिन ही दुनियाभर के मानवाधिकार से सम्बंधित गैर-सरकारी सिविल सोसाइटीज की संस्था सिविकस मोनिटर (CIVICUS Monitor) ने दुनिया में लोकतंत्र के हालात पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें लोकतंत्र की शवयात्रा की विस्तार से चर्चा है।
इस रिपोर्ट में दुनिया के देशों को लोकतंत्र के सन्दर्भ में 5 वर्गों में बांटा गया है – जीवंत, संकीर्ण, बाधित, कुचला हुआ और अलोकतंत्र (Open, Narrowed, Obstructed, Repressed and Closed)। सिविकस मोनिटर दुनिया के 197 देशों के लोकतंत्र की पड़ताल कर हरेक वर्ष रिपोर्ट प्रकाशित करता है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत का लोकतंत्र कुचला हुआ और अमेरिका का लोकतंत्र बाधित है।
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के महज 41 देशों में जीवंत लोकतंत्र है – इन देशों में दुनिया की महज 3.1 प्रतिशत आबादी बसती है। कुल 39 देशों में 8.3 प्रतिशत आबादी के साथ संकीर्ण लोकतंत्र है, 43 देशों में 18.4 प्रतिशत आबादी के साथ बाधित लोकतंत्र, दुनिया के 49 देशों में 44.7 प्रतिशत आबादी के साथ कुचला हुआ लोकतंत्र और शेष 25 देशों में 25.4 प्रतिशत आबादी पूरी तरह से अलोकतांत्रिक व्यवस्था में रहती है। लोकतंत्र कुचलने के लिए सरकारें सबसे अधिक विरोधी आवाजों को जेल में बंद करने का काम करती हैं, इसके अतिरिक्त धमकी, कानून का गैर-कानूनी इस्तेमाल, उत्पीडन, ह्त्या, प्रेस की आवाज कुचलना, सेंसरशिप, सुरक्षा बलों का अत्यधिक उपयोग, और आन्दोलनों को कुचलने का काम भी सरकारें कर रही हैं।
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के इतिहास में पहली बार दुनियाभर की सरकारों ने वैश्विक महामारी को नियंत्रित करने के नाम पर लोकतंत्र की खूब धज्जियां उड़ाईं हैं। कोविड 19 को ही सरकारों ने जनता के विरुद्ध एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया – नतीजा सबके सामने है, स्वास्थ्य विज्ञान में तमाम प्रगति के बाद भी किसी भी वैश्विक महामारी की तुलना में कोविड 19 से अधिक लोग मारे गए, और आज भी मारे जा रहे हैं।
कुछ दिनों पहले ही लोकतंत्र पर एक दूसरी रिपोर्ट में भी यही तथ्य प्रस्तुत किये गए थे। 34 देशों के सरकारों के सहयोग से बना स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में स्थित इन्टरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्शन असिस्टेंस पिछले कुछ वर्षों से वार्षिक ग्लोबल स्टेट ऑफ़ डेमोक्रेसी रिपोर्ट (Annual Global State of Democracy Report by International Institute for Democracy & Election Assistant) प्रकाशित करता है, जिसमें दुनिया के लगभग 160 देशों में लोकतंत्र का विस्तृत विश्लेषण रहता है। यह विश्लेषण पिछले 50 वर्षों के लोकतांत्रिक पैमाने के आधार पर किया जाता है। दुखद तथ्य यह है कि लोकतंत्र के परदे से निरंकुश शासन चलाने वाले देशों की संख्या वास्तविक लोकतंत्र वाले देशों की संख्या से अधिक है, दुनिया की एक-चौथाई से अधिक आबादी इन देशों में रहती है, और पिछले 10 वर्षों में ऐसे देशों की संख्या में दुगने से भी अधिक की बृद्धि हुई है।
रिपोर्ट के अनुसार इन देशों में से महज 98 लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश हैं, यह संख्या किसी भी वर्ष की तुलना में सबसे कम है और इसमें भी अधिकतर देशों में लोकतंत्र का बस पर्दा है। दुनिया में 20 देशों, जिसमें रूस और तुर्की प्रमुख हैं, में हाइब्रिड शासन है और 47 में निरंकुश तानाशाही है। हाल में ही प्रकाशित वर्ष 2021 की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 70 प्रतिशत आबादी मरते लोकतंत्र या फिर निरंकुश तानाशाही की मार झेल रही है।
इससे पहले फरवरी 2021 में द इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट द्वारा प्रकाशित लोकतंत्र सूचकांक 2020 (Democracy Index by Economist's Intelligence Unit) की वैश्विक रैंकिंग में भारत दो स्थान फिसलकर 53वें स्थान पर पहुंच गया। द इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट (ईआईयू) ने कहा, लोकतांत्रिक मूल्यों से पीछे हटने और नागरिकों की स्वतंत्रता पर कार्रवाई को लेकर भारत पिछले साल की तुलना में दो पायदान फिसला है। इस सूचकांक में 167 देशों में से 23 को पूर्ण लोकतंत्र, 52 को त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र, 35 को मिश्रित शासन और 57 को सत्तावादी शासन के रूप में वर्गीकृत किया गया था। भारत को अमेरिका, फ्रांस, बेल्जियम और ब्राजील के साथ त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र के तौर पर वर्गीकृत किया गया था।
जाहिर है, पूरी दुनिया से लोकतंत्र के खात्में की साजिश चल रही है, पर भारत जैसे देशों में इसके खात्मे की दर कुछ ज्यादा ही तेज है। निर्वाचन आयोग के विज्ञापनों में लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया को एक महा-त्यौहार बताया गया है और मोदी जी लोकतंत्र को त्यौहार बताते है। सही मायने में चुनावों को ठीक से इन्ही दोनों ने समझा है। त्यौहार मतलब मौज-मस्ती, विदूषक का खेल, खिलौने और कुछ धन की बर्बादी। हमारे देश का चुनाव भी यही सब कुछ तो है। आजकल नेताओं के भाषण और रैलियाँ मौज-मस्ती ही तो है। अच्छे कपड़े पहने नेताओं का हवा में हाथ लहराकर विपक्ष को खुलेआम गालियां देना, अपशब्दों की बौछार करना, एक दूसरे को धमकी देना, झूठ बोलना, हेलीकोप्टर और वायुयानों में दिनभर घूमना, आधुनिक मौज मस्ती ही तो है। विदूषक जिस तरह के कारनामे करता है, और दृष्टि-भ्रम पैदा करता है, ठीक वैसे ही नेता जनता को सब्जबाग दिखाते हैं और जहां तहां धन, मदिरा या फिर साड़ियों की बौछार करते हैं। परम्परागत उत्सव और चुनावी उत्सव में बस अंतर झूठ का है, परम्परागत उत्सव में झूठ नहीं होता जबकि चुनावी उत्सव में कुछ सच नहीं होता – बस यही हमारा लोकतंत्र है।