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विमर्श

Gahan Hai Yah Andhkara Review: खूब नाम कमाएगी 'गहन है यह अन्धकारा'

Janjwar Desk
26 Dec 2021 8:14 PM IST
Gahan Hai Yah Andhkara Review: खूब नाम कमाएगी गहन है यह अन्धकारा
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Gahan Hai Yah Andhkara Review: खूब नाम कमाएगी 'गहन है यह अन्धकारा'

Gahan Hai Yah Andhkara Review: समुद्र की लहरों की तरह ही किताब भी भावनाओं के उतार चढ़ाव से भरी पड़ी है, किताब पढ़ते ऐसा लगता है मानो लेखक पाठकों को 'अश्विन' की कैरम बॉल फेंक रहे हैं। इस लघु उपन्यास को एक बार पढ़, आप अमित श्रीवास्तव को फिर से जरूर पढ़ना चाहेंगे।

Gahan Hai Yah Andhkara Review: समुद्र की लहरों की तरह ही किताब भी भावनाओं के उतार चढ़ाव से भरी पड़ी है, किताब पढ़ते ऐसा लगता है मानो लेखक पाठकों को 'अश्विन' की कैरम बॉल फेंक रहे हैं। इस लघु उपन्यास को एक बार पढ़, आप अमित श्रीवास्तव को फिर से जरूर पढ़ना चाहेंगे।

हिंदी के प्रोफेसर प्रसिद्ध कवि शिरीष कुमार मौर्य ने पुस्तक की शुरुआत में लेखक एवं पुस्तक का परिचय दिया है। लेखक ने पुस्तक की शुरुआत में ही उसे पुलिस विभाग की बुनियाद को समर्पित कर दिया है, जो उनके एक पुलिस अधिकारी होते हुए भी ज़मीन से जुड़े रहने का परिचायक है। 'अज्ञेय' की फांसी रचना पाठकों को एक पशोपेश में डाल किताब की शुरुआत में पहुंचा देती है।

एक गरीब परिवार, हत्या, पुलिस और उसकी तफ्तीश के इर्द-गिर्द बुनी गई यह कहानी आपको पुरानी हिंदी फिल्मों की याद दिलाती है। अब यहां लेखक की लेखन कला का कायल होना बनता है जब एक मर्डर से शुरू होने के बावजूद 'एक्सट्रा करिक्यूलर' और 'सिज़्मोग्राफ' जैसे शब्दों का प्रयोग कर किताब को शुरुआत से ही 'सेंटर फ़्रेश' की तरह फ़्रेश रखा गया है। आगे पढ़ते हुए एक कवि 'सीओ' के साथ किताब का जो खाका लेखक द्वारा बुना गया है, उसका एक शब्द छोड़ने पर भी ऐसा महसूस होता है कि आप कुछ ज़रूरी पीछे छोड़ कर जा रहे हैं।कहानी में 'सिस्टम' पर भी तीखे तीर चलाए जा रहे हैं, पर उन तीरों से बने जख्मों को लेखक बखूबी ढकते चले गए हैं।

वकीलों पर की गई बात हो या मिश्रा जी से जुड़ा किस्सा, लेखक ने अपनी किताब से यह कोशिश की है कि वह एक स्पीकर की तरह पाठकों को सब कुछ सुना, समझा जाएं। किताब सोलह हिस्सों में बंटी हुई है और हर हिस्सा पढ़ आपको अपनी आंखों के सामने यह महसूस होने लगेगा कि आपके सामने किसी नाटक का मंचन चल रहा है, एक दृश्य खत्म पर्दा गिरा फिर पर्दा हटा और नया दृश्य शुरू।

लेखक का 'एफएएस' की फुल फॉर्म का बताना कुछ नया सा है, फोन और टीवी के आगमन की जो तस्वीर याद दिलाई गई है वो मन में बस जाती है। किताब पढ़ते ऐसा लगने लगता है जैसे आप लगातार किन्हीं ताबड़तोड़ खतरनाक व्यंग्यात्मक लेखों को पढ़ रहे हैं। किताब में पुलिस की कार्यप्रणाली और बदहाल व्यवस्थाओं पर भी प्रकाश डाला गया है तो पत्रकारिता की समस्या को भी हल्के से छू लिया गया है।

'रीढ़ का दर्द उसी को होता है जिसने अपनी रीढ़ बचा रखी है' , 'उनके पसीने में कुछ नमक अभी बाक़ी था', 'महकमा अब सैल्यूट ठोकने से सरकाने तक खिसक आया है' जैसी पंक्तियों को पढ़ यह लगने लगता है कि आप किसी बेहतरीन साहित्यिक रचना को पढ़ रहे हैं। ईमानदारों और भ्रष्टों की कैटेगरी बांट लेखक पाठकों को हंसाना चाहते हैं या उन्हें गम्भीर मुद्रा में लाना चाहते हैं यह समझ नही आता पर किताब आपको खुद से बांधे रख आगे बढ़ती है।

यह कहानी ज्यादा लंबी नही है और शायद कुछ पन्नों में ही सिमट जाती पर इस सच्ची घटना की काल्पनिक दास्तान से जुड़े घटनाक्रमों को लिखते हुए लेखक ने जिस तरह की भाषा शैली का प्रयोग किया है, यह शैली पाठकों को हिंदी के बेहतरीन लेखकों को पढ़ने की फीलिंग भी देने में कामयाब होती है।

उदाहरण के लिए 'सीओ साहब ने दाहिना हाथ जेब में डाला और बाएं हाथ को हवा में उठा-उठा कर उनको वही दिया जो वो जनता को दिया करते हैं। आश्वासन।' इन पंक्तियों को पढ़ते पाठक अपने मन में एक चित्र बना लेंगे।

वहीं जिस तरह से 'ब', 'भ', 'न', 'ण' के बारे में विस्तार से बात करी गई है ,उन्हें पढ़ पाठक इनका उच्चारण 'डू इट योरसेल्फ' थ्योरी पर करने लगेंगे। किताब पूरी तरह से पाठकों को खुद से बांधे रखने के लिए लिखी गई है और पाठक इसे पढ़ते ऊबे न , इसके लिए लेखक ने किताब में ऐसे पेंच कसे कि पाठक क़िताब छोड़ नही पाएंगे।

शीर्षक और आवरण चित्र पर भी बात कर ली जाए

किताब का शीर्षक उसकी कहानी के अनुसार बिल्कुल फिट बैठता है क्योंकि किताब में जो मुद्दा उठाया गया है उस अंधकार की हाल फिलहाल प्रकाश में तब्दील होने की कोई उम्मीद नज़र नही आती। विजय सिंह का आवरण चित्र भी किताब को लेकर जिज्ञासा बढ़ाने में कामयाब रहा है। हिंदी के लेखकों और ओरिजनल कंटेंट की भारी कमी के इस दौर में इस किताब को ऑर्डर कर पढ़ लेना तो बनता ही है।

किताब- गहन है यह अन्धकारा

लेखक- अमित श्रीवास्तव @TaravAmit

मूल्य- 450 रुपए

प्रकाशक- राधाकृष्ण प्रकाशन

समीक्षक - हिमांशु जोशी @Himanshu28may

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