किसान बिल का खामियाजा भुगत रही आम जनता, आलू-प्याज गोदाम में सड़ रहे लेकिन आसमान छू रही कीमत
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
'बहुत हुई मंहगाई की मार, अब की बार मोदी सरकार' के पोस्टर देश भर में लगाकर मतदाताओं की आंखों में धूल झोंकते हुए मोदी सरकार जबसे सत्ता में आई है, अस्वाभाविक मंहगाई को बढ़ावा देते हुए लोगों को खून के आंसू रोने के लिए मजबूर करती रही है। मोदी के भक्त भले ही फर्जी राष्ट्रवाद और मुस्लिम विद्वेष की पट्टी आंखों पर बांधकर अभी भी मंहगाई को कोई मुद्दा नहीं मान रहे हैं, लेकिन देश की अधिकतर जनता मंहगाई से त्राहि-त्राहि कर रही है।
कोरोना काल में कमाई के साथ ही जमा-पूंजी से भी हाथ धो बैठे आम आदमी की जिंदगी अब तक पटरी पर आ नहीं पाई है कि महंगाई ने एक बार फिर से कोहराम मचा दिया है। घरेलू गैस, पेट्रोल और डीजल जैसी रोजमर्रा की चीजों के आसमान छूते दामों से जूझ रहे लोगों के लिए दो वक़्त के भोजन का इंतजाम भी कठिन होता जा रहा है। बीते दिनों दाल, रिफाइन सहित अन्य परचून की कीमतें जहां 20 से 25 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं, वहीं सब्जियों के दाम दोगुने से भी ज्यादा हो गए हैं। ऐसे में लोगों को समझ नहीं आ रहा कि वे क्या खाएं और क्या न खाएं।
आलू के गोदाम भरे पड़े हैं, फिर भी खुदरा आलू 50 से 60 रुपये किलो तक बिक रहा है। उधर, प्याज की कीमत 100 रुपये तक पहुंच गई है। नये किसान कानून के मुताबिक, अब सरकार इसकी निगरानी नहीं करेगी कि किसने कितना स्टॉक जमा किया है। इससे कालाबाजारी आसान हो गई है। आलू और प्याज के दाम में आग लगी है। पिछले दिनों तीन कृषि विधेयक पास किए गए थे। कहा गया कि किसानों के हित में हैं। धान की फसल अभी अभी तैयार हुई है। धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी घोषित किया गया है। लेकिन किसान कौड़ियों के भाव धान बेचने को मजबूर हैं।
अलग अलग खबरों का सार यही है कि ये महंगाई नहीं है। ये कालाबाजारी के जरिये जबरन थोपी गई महंगाई है। आलू और प्याज के बढ़े दामों का किसानों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है। बिचौलिये ये माल उड़ा रहे हैं। नारे में कहा जा रहा है कि हम बिचौलियों को हटा रहे हैं, लेकिन असल में बिचौलिये चांदी काट रहे हैं। सब्जी और दालों के आसमान छूते दामों से लोगों के घरों का बजट बिगड़ चुका है। एक ओर जहां त्योहारों की तैयारी चल रही है तो दूसरी ओर आवश्यक वस्तुओं के बढ़ते दामों ने सर्दी के मौसम में भी लोगों के माथे पर पसीना ला दिया है। हालत यह हैं कि लोगों की थाली से चटनी और सलाद गायब हो चुका है।
दालों के साथ ही आलू और प्याज की बढ़ती कीमतों के कारण यह आम आदमी की पहुंच से दूर होती जा रही हैं। लॉकडाउन के दौरान भी लोगों को सब्जी और दालें खरीदने में इतनी परेशानी नहीं हुई जितनी लोगों को अब हो रही है। सब्जी और दालों की आसमान छूती कीमतों ने गरीबों ही नहीं अच्छे-अच्छे घरों का बजट बिगाड़ दिया है। महानगरों में बैठे बड़े व्यापारी भंडारण कर वायदा बाजार में इनकी कीमतों को बढ़ाते हैं।
फिर बढ़े दामों में बाजार में लाते हैं। साथ ही बीते दिनों सरकार की ओर से किसानों के लिए लाए कृषि बिल के विरोध में महाराष्ट्र सहित अन्य दलहन के बड़े उत्पादक प्रदेशों के किसानों ने मंडियां बंद करा दीं। अवैध भंडारण, जमाखोरी और सरकार का जमाखोरी पर नियंत्रण न होने से दामों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। जिसके चलते लोगों को अपने परिवार के लिए दो वक्त के भोजन की व्यवस्था करना मुश्किल हो रहा है।
पिछले दिनों केंद्र सरकार के द्वारा देश के किसानों के हितों को दर किनार कर पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने की मंशा से किसान बिल लाए गए। ये बिल केवल कॉर्पोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने का जरिया है। इससे मंडी व्यवस्था खत्म होगी और व्यापारियों की मनमानी बढेगी। आवश्यक वस्तु संशोधन अध्यादेश से कालाबाजारी रोकने के लिए बनाए गए एसेंशियल एक्ट 1955 का अस्तित्व समाप्त हो गया है व जमाखोरी तथा काला बाजारी बढ गई है, जिसका सीधा फायदा पूंजीपतियों को मिल रहा है। यह मोदी सरकार का किसान विरोधी काला कानून है। इन बिलों के लागू होने पर कंपनियां किसानों की जमीन पर खेती करेंगी व किसान को मजदूर के रूप में कार्य करना पडेगा। इन बिलों से जो तबाही भविष्य में होने वाली है उसके संकेत भयावह मुनाफाखोरी के रूप में अभी मिलने लगे हैं।
आलू, प्याज, टमाटर, अरहर, उड़द समेत सभी दालें और सरसों समेत सभी तिलहन से भंडारण की सीमा हट गई है। अब इन वस्तुओं का ज्यादा भंडारण करने पर जुर्माना नहीं होगा, जेल नहीं होगी। सरकार ने आवश्यक वस्तुओं की सूची से इन्हें हटा दिया है। 22 सितंबर को आवश्यक वस्तु अधिनियम 2020 राज्यसभा में पास हुआ, जिसके बाद 27 सितंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बिल पर हस्ताक्षर कर दिए और ये नया कानून पूरे देश में लागू हो गया। आम लोगों के उपयोग में लाई जाने वाली वस्तुएं उपभोक्ताओं को सही रेट पर मिलती रहें इसलिए सरकार उन्हें आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट में रखती है।
1955 में बने आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के जरिए सरकार 65 साल से इन वस्तुओं की बिक्री, उत्पादन और आपूर्ति को नियंत्रित करती आ रही थीं, लेकिन अब ये खुले बाजार के हवाले है। कृषि उत्पादों जैसे अनाज, खाद्य तेल, तिलहन दाल, प्याज और आलू कि डी-रेगुलेट कर दिया है यानि अब सरकार इनके बाजार भाव में भी हस्ताक्षेप नहीं करेगी।
कोरोना के दौरान सरकार ने मास्क और सैनेटाइजर की अंधाधुंध बढ़ती कीमतों को इसी कानून के जरिए नियंत्रित किया था। उस दौरान 10 रुपए वाला मास्क 150 और 100 मिलीलीटर की सैनेटाइजर की शीशी 100 से 200 रुपए तक पहुंच गई थी। जिसके केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने इन चीजों के रेट तय कर दिए थे।
आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट में डीजल पेट्रोल से लेकर गेहूं, चावल, गुड़, चीनी, ड्रग्स (दवाएं) केमिकल, फर्टीलाइजर आदि भी शामिल हैं। सरकार इस लिस्ट में समय समय पर बदलाव करती है। जो चीजें लिस्ट में आ जाती हैं सरकार उनके भंडारण और आपूर्ति की लिमिट तय कर देती है। तय लिमिट से ज्यादा भंडारण होने पर जुर्माना, जेल और कंपनी, संस्थान पर कार्रवाई की जाती है।