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विमर्श

Human Rights abuse के मामले में हमेशा रूस और चीन के साथ ही खड़ा दिखता है मोदीमय भारत

Janjwar Desk
16 Dec 2021 9:02 AM GMT
Human Rights abuse के मामले में हमेशा रूस और चीन के साथ ही खड़ा दिखता है मोदीमय भारत
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(जनता को महंगाई, बेरोजगारी और दूसरी समस्याओं में डुबोकर मंदिरों की यात्रा में व्यस्त मोदी सरकार)

Human Rights Abuse : मानवाधिकार, पर्यावरण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मुद्दे पर मोदीमय भारत हमेशा रूस और चीन के साथ ही खड़ा दिखता है, चीन और रूस अपने निरंकुश शासकों के लिए जाने जाते हैं....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

Human Rights Abuse : संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council) में पिछले एक वर्ष के लगातार प्रयासों के बाद एक प्रस्ताव लाया गया था, जिसके अनुसार जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा और शांति के लिए बड़े खतरे के तौर पर मान्यता दी जाए (UN resolution on casting climate change as a threat to international peace and security)। इसकी चर्चा और मांग संयुक्त राष्ट्र (United Nation) में वर्ष 2007 से लगातार की जाती रही है, और वर्ष 2009 में ऐसे प्रस्ताव के समर्थन में सामान्य सभी में सहमती भी बनी थी। मूल रूप से नाइजर और आयरलैंड द्वारा तैयार किये गए इस प्रस्ताव पर सुरक्षा परिषद में मतदान कराया गया। इस समय भारत समेत इसके 15 सदस्य हैं, जिनमें से 12 से प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, शेष तीन देशों में से चीन मतदान से अनुपस्थित रहा, और भारत और रूस ने प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया।

मानवाधिकार, पर्यावरण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मुद्दे पर मोदीमय भारत हमेशा रूस और चीन के साथ ही खड़ा दिखता है। चीन और रूस अपने निरंकुश शासकों के लिए जाने जाते हैं, जाहिर है इस समय हमारे देश के शासकों का चाल, चरित्र और चेहरा भी निरंकुश ही है, जहां चोर ही कोतवाल की भूमिका निभाते हैं और जनता अनाथ है। सरकार जनता को महंगाई, बेरोजगारी और दूसरी समस्याओं में डुबोकर मंदिरों की यात्रा में व्यस्त है और असंख्य कैमरों के बीच निर्जन नदी में निर्लज्ज डूबकी का तमाशा दिखा रही है। कुछ मामलों में तो हमारा देश चीन और रूस से भी नीचे पहुँच चुका है, पर सरकार और मेनस्ट्रीम मीडिया लाशों के ढेर को विकास का तमाशा बता रही है।

जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के सन्दर्भ में भारत मोदी काल के शुरू से ही दोगली नीति अपनाता रहा है, और अभी ग्लासगो में संपन्न कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज के 26 वें सत्र (COP26 at Glasgow) में भी भारत ने अंतिम समय पर अपनी शातिर चाल से अनेक गंभीर मसलों को अधिवेशन के अंत में प्रकाशित किये जाने वाले समझौते में शामिल नहीं होने दिया। इसमें एक बड़ा मसला कोयले के उपयोग को ख़त्म करने से सम्बंधित था – मूल समझौते में कोयले के उपयोग को ख़त्म करने के बारे में लिखा गया था, पर अंतिम समय में भारत, चीन और रूस ने इसे कोयले के कम उपयोग में बदल दिया।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UN Human Rights Council) ने 8 अक्टूबर को मानवाधिकार में स्वच्छ, स्वस्थ्य और सतत पर्यावरण के अधिकार को जोड़ने वाले एक प्रस्ताव को पारित करने के लिए मतदान किया गया था, जिसे 43 देशों की सहमति मिली। शेष चार देश – भारत, चीन, जापान और रूस – मतदान से अनुपस्थित रहे। हाल में ही 12 अक्टूबर को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के स्थापना दिवस के अवसर पर पीएम मोदी ने कहा था कि "भारत आत्मवत सर्वभूतेषु के महान आदर्शों, संस्कारों और विचारों को लेकर चलने वाला देश है। आत्मवत सर्वभूतेषु यानि जैसा मैं हूं वैसे ही सब मनुष्य हैं - मानव-मानव में, जीव-जीव में भेद नहीं है"।

इसी दिन, यानि 8 अक्टूबर को ही, प्रस्ताव संख्या 48/14 पर भी मतदान कराया गया था। इसे मार्शल आइलैंड ने तैयार किया था और इसमें मानवाधिकार परिषद् में एक विशेषज्ञ के नियुक्ति की मांग थी जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से मानवाधिकार हनन पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर सके। इस प्रस्ताव के मतदान में भी भारतीय प्रतिनिधि अनुपस्थित रहे। इस प्रस्ताव के समर्थन में 42 मत, विरोध में 1 मत और 4 देश अनुपस्थित रहे। रूस ने विरोध में मत डाला और भारत, चीन, जापान और एरिट्रिया ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। मानवाधिकार परिषद् में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से मानवाधिकार हनन का आकलन करने वाले विशेषज्ञ की नियुक्ति तीन वर्षों के लिए की जायेगी।

बीजिंग में जनवरी 2022 में शीतकालीन ओलंपिक्स (Beijing Winter Olympics 2022) का आयोजन किया जाने वाला है। इन दिनों दुनियाभर में इसके बहिष्कार की चर्चा है। चीन में मानवाधिकार हनन और चीन द्वारा हांगकांग में दमन के विरुद्ध अनेक देश इसका पूरी तरह से या फिर राजनैयिक स्तर पर बहिष्कार करने का ऐलान कर रहे हैं। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा इसके राजनैयिक बहिष्कार की घोषणा कर चुके है। अनेक यूरोपीय देश इसके पूर्ण बहिष्कार की योजना बना रहे हैं। इस बीच कुछ दिनों पहले ही भारत ने इन खेलों के समर्थन की घोषणा की है, आश्चर्य यह है कि चीन के विरुद्ध बड़ी-बड़ी बातें करने वाले सभी नेता खामोश हैं। कुछ दिनों पहले ही रूस ने भी इन खेलों का समर्थन किया है, और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने स्वयं इसमें शामिल होने की हामी भरी है।

यदि आप मोदीमय भारत की चीन और रूस भक्ति का सटीक आकलन करें तो जाहिर होगा कि ये तीनों ही देश मानवाधिकार हनन और पर्यावरण विनाश के पर्यायवाची बन चुके हैं। अंतर यह है कि, चीन और रुस कथनी और करनी में एक हैं, जबकि भारत के शासक बहुरुपिया से भी बदतर हो चले हैं।

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