पैसे बचाने हैं तो कैशलेस पेमेंट नहीं 'कैश' का करें इस्तेमाल, कैश से पेमेंट करने वाले करते हैं अपेक्षाकृत कम खर्च !
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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
If you want to save money – use cash and feel pain of paying after every payment. दुनियाभर की सरकारें “कैशलेस” पेमेंट को बढ़ावा दे रही हैं। भारत में तो प्रधानमंत्री मोदी शुरू से ही “कैशलेस” अर्थव्यवस्था को प्रचारित करते रहे हैं। अब तो बहुत सारी जगहों पर कैश से पेमेंट ली ही नहीं जाती। ऐसे में दुनियाभर में कैश खतरे में है, पर दूसरी तरफ कैशलेस नए सिरे से आर्थिक असमानता पैदा कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया में हाल में ही संसद सदस्य एंड्रू गी ने संसद में एक प्रस्ताव चर्चा के लिए प्रस्तुत किया है, जिसके तहत सभी व्यापारियों को कैश स्वीकार करना अनिवार्य होगा और ऐसा नहीं करने पर भारी जुर्माना का प्रावधान किया जाए।
टेक्नोलॉजी में विकास के साथ ही पेमेंट के तरीकों में बहुत तेजी से बदलाव हुआ है। अब तमाम कार्ड्स हैं, फ़ोन, स्मार्टवाचेज और इन्टरनेट बैंकिंग की सुविधा है। बहुत जगहों पर अभी खरीदिये और बाद में पेमेंट कीजिये की सुविधा भी उपलब्ध है। इन सबके बीच पहले पेमेंट का अकेला माध्यम, कैश, अब प्रभावहीन हो चला है। कोविड-19 के दौर के बाद तो कैश का चलन बहुत कम रह गया है। दूसरी तरफ भारत समेत पूरी दुनिया में बेरोजगारी, गरीबी और महंगाई ने सामान्य आबादी के हाथ में खर्च करने लायक बहुत कम मुद्रा को छोड़ा है, ऐसे में खर्चे को कम करना ही एकमात्र विकल्प है।
ऑस्ट्रेलिया के एडीलेड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने हाल में ही सामान्य आबादी द्वारा किस माध्यम से पेमेंट किया जाता है और पेमेंट के माध्यमों का कुल खर्चे पर प्रभाव का विस्तृत आकलन किया है और अपने अध्ययन को जर्नल ऑफ़ रिटेलिंग में प्रकाशित किया है। इस अध्ययन के अनुसार, यदि खर्च कम करना है तो हमें कैश का सहारा लेना पड़ेगा। 17 देशों में पेमेंट के तरीकों पर किये गए 71 शोधपत्रों के विश्लेषण और 11000 प्रतिभागियों द्वारा किये गए पेमेंट के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि कैश से पेमेंट करने वाले लोग अपेक्षाकृत कम खर्च करते हैं। कैश के साथ अपने पैसे वाली भावना काम करती है, जबकि कैशलेस पेमेंट में यह भावना नदारद रहती है।
इस अध्ययन के निष्कर्ष आम लोगों के खर्चे और उनकी अर्थव्यवस्था से जुड़े हैं, इसलिए इस अध्ययन पर ध्यान देने की जरूरत है। पर पूंजीवाद और स्टॉक मार्किट के नशे में डूबी व्यवस्था आम आदमी के बारे में कब सोचती है? राहुल गांधी ने मोदी सरकार और शेयर मार्किट के गठबंधन पर गंभीर सवाल उठाये हैं और इसे सबसे बड़ा घोटाला करार दिया है। आज तक मोदीतंत्र में जैसा सवाल उठाने पर होता है, वैसा ही इस बार भी हुआ। मोदीतंत्र में किसी भी गंभीर सवाल का जवाब नहीं मिलता, उल्टा कोई बीजेपी प्रवक्ता या फिर केन्द्रीय मंत्री निहायत ही बेवकूफी भरे लहजे में इस सम्बन्ध में एक लम्बी प्रेस कांफ्रेंस करता है, जिसमें उठाये गए किसी प्रश्न का जवाब नहीं मिलता पर किसी तरह राहुल गांधी की छवि को बिगाड़ने का प्रयास किया जाता है। अब तो इसमें भी आश्चर्य नहीं होता कि मेनस्ट्रीम दरबारी मीडिया का भी यही प्रयास होता है कि मोदी सरकार से प्रश्न पूछने वाले की छवि धूमिल की जाए।
राहुल गांधी के प्रश्नों का जवाब देने आनन-फानन में पीयूष गोयल पहुंचे। मोदी मंत्रिमंडल में गोयल को भले ही प्रबुद्ध माना जाता हो, पर उनका बौद्धिक स्तर एक चाटुकार दरबारी से अधिक नहीं है। राहुल गाँधी के प्रश्न गंभीर थे और तथ्यों से भरपूर भी। बिना किसी तैयारी के और सत्ता की अकड़ के साथ बैठे गोयल लम्बे-लम्बे वाक्य बोलते चले गए, पर अंत तक राहुल गांधी के प्रश्नों का उत्तर के आसपास भी नहीं पहुंचे।
जब आप झूठ बोलने का प्रयास करते हैं, तब निश्चित तौर पर बेवकूफ नजर आते हैं और धाराप्रवाह बोल भी नहीं पाते। पीयूष गोयल बार-बार अपने ही शब्द जाल में फंसते रहे, जब शब्दों को संभालने की कोशिश करते, बुनियादी तथ्यों की गलती कर जाते। शेयर मार्केट पर बात करते गोयल को यह भी स्पष्ट नहीं था कि शेयर किसने खरीदे और किसने बेचे। इतना ही नहीं, मोदी जी के नेतृत्व में भारतीय अर्थव्यवस्था की दुनिया प्रशंसा करती है यह बार-बार बताने वाले पीयूष गोयल ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय स्टॉक मार्केट में विदेशियों की हिस्सेदारी और विदेशी निवेशकों का विश्वास भी कम हो रहा है।
मोदी जी और बड़बोले अमित शाह, दोनों ने चुनावी संबोधनों में 4 जून को शेयर बाजार में खरीदारी का आह्वान किया था। पीयूष गोयल ने बताया कि शेयर बाजार चढ़ता-उतरता रहता है, यहाँ तक तो सब ठीक लगता है पर पीयूष गोयल को यह भी बताना चाहिए कि इस बाजार के चढ़ने का ऐलान कई दिन पहले ही यदि किया जा सकता है तो फिर स्टॉक मार्किट और स्टॉक एक्सचेंज की जरूरत ही क्या है?
हाल में ही न्यूयॉर्क टाइम्स में भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रकाशित एक लेख में बताया गया है कि बहुत सारे विदेशी निवेशक भारत में अपना कारोबार बढ़ाना चाहते है और भारतीय स्टॉक मार्किट से जुड़ना चाहते हैं, पर देश में व्याप्त आर्थिक असमानता से उन्हें डर लगता है। इसमें यह भी बताया गया है कि देश की मोदी सरकार को अर्थव्यवस्था की जमीनी हकीकत पता ही नहीं है और इन लोगों का सारा ज्ञान और आंकड़े स्टॉक मार्किट से और देश की कुल अर्थव्यवस्था से पनपते हैं। जाहिर है ऐसे में सरकार को गरीब और मध्यम वर्ग के आर्थिक हालात का पता ही नहीं है, और आर्थिक असमानता लगातार बढ़ती जा रही है।
मोदी जी के राज में लोकतंत्र महज मोदीतंत्र रह गया है। देश का संविधान, अर्थव्यवस्था, क़ानून व्यवस्था और सारा सामाजिक तानाबाना – सब बस मोदी जी के इशारे पर चल रहे हैं, और इस मोदीतंत्र का मेनस्ट्रीम मीडिया खुला समर्थन कर रहा है। मोदीतंत्र में मोदी जी को ऐतिहासिक बताकर देश के इतिहास को बदनाम करने और बदलने का प्रयास तेजी से किया जा रहा है। सत्ता द्वारा आम आदमी को कुचलने का नया नाम विकास है।
संदर्भ:
1. Lachlan Schomburak, Alex Belli & Arvid O I Haffmann: Less Cash More Spalash? A Meta-analysis on the cashless effect; Journal of Retailing (20th May 2024), https://doi.org/10.1016/j.jretai.2024.05.003
2. Wall Street Lands on India, Looking for Profits It Can’t Find in China, The New York Times, 31st May 2024, https://www.nytimes.com/2024/05/31/business/india-foreign-investors.html