Indian Media : चटक रहा है चौथा स्तम्भ, WhatsApp यूनिवर्सिटी से पहले समाज में जहर घोलने का काम कर रही मुख्यधारा की मीडिया
(अब सामाजिक कुरीति बन गया है मीडिया देखना - पढ़ना)
उत्तराखंड से हिमांशु जोशी की टिप्पणी
Indian Media : आपके सामने जो परोसा जा रहा है दरअसल वही बवाल की जड़ है पर आप जानकर भी अनजान हैं और ऐसी बातों से मुंह फेर लेते हैं, जबकि यही छोटी-छोटी बातें आपके गले की फांस बनी हुई हैं।
पिछले कुछ सालों में हमने वाट्सएप यूनिवर्सिटी का भयंकर प्रभाव भारतीय इंटरनेट उपभोक्ताओं में देखा गया है। देश के पहले सीडीएस (Gen Bipin Rawat) की दुःखद मृत्यु के बाद एक खास वर्ग द्वारा सुनियोजित तरीके से वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार को फेक न्यूज़ बना कर घेरा जा रहा है, जिसका उनके द्वारा सोशल मीडिया पर विरोध भी किया जा रहा है।
मीडिया के ज़रिए खेला जा रहा यह भयंकर खेल हमने भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में पहले कभी नही देखा। आज भारतीय पत्रकारिता आज जहां भी है उसके पीछे उसका गौरवशाली इतिहास खड़ा है, जिसने देश को आज़ाद कराया और सामाजिक कुरीतियों को दूर भगाया पर दुर्भाग्य से अब मीडिया को पढ़ना- देखना ही सामाजिक कुरीति बन गया है। इन सबके बीच मीडिया के अस्तित्व की रक्षा के लिए बनी संस्थाओं का लगातार मूकदर्शक बन यह तमाशा देखना इसका प्रमुख कारण है।
इन्हीं संस्थाओं की विफलता दिखाने के लिए यहां सबसे पहले आपके लिए कुछ खबरें साझा की गई हैं, इन्हें ध्यान से पढ़िए। फिर आपको मीडिया की ही कुछ ऐसी तस्वीर दिखाई जाएगी जो यह साबित करती हैं कि वाट्सएप यूनिवर्सिटी से पहले मुख्यधारा की मीडिया ही समाज में ज़हर घोलने का काम कर रही है।
पहली ख़बर - स्टेटिस्टा रिसर्च डिपार्टमेंट द्वारा प्रकाशित 20 सितंबर, 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 के दौरान भारत में दहेज हत्या के मामले लगभग सात हजार दर्ज किए गए।
दूसरी ख़बर- कोरोना का नया वेरिएंट ओमीक्रोन तेजी से फैल रहा है। भारत में भी इसने सेंध लगा दी है, इसकी तेज रफ्तार देख तीसरी लहर आने का डर सताने लगा है। कुछ एक्सपर्ट्स तो इसकी बात भी करने लगे हैं, उनका कहना है कि तीसरी लहर अगले साल के शुरू के महीनों में पीक पर होगी। पहले भी तीसरी लहर आने की बात एक्सपर्ट्स करते रहे हैं।
तीसरी ख़बर- कोविड-19 महामारी के दौर में भी देश की शीर्ष-500 कंपनियों की पूंजी 68 फीसदी बढ़ी है। हुरून ने बृहस्पतिवार को जारी सूची में बताया कि शेयर बाजार में सूचीबद्ध शीर्ष-500 कंपनियों की पूंजी 2020-21 में 90 लाख करोड़ रुपये बढ़ी और कुल नेटवर्थ 228 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया। हुरून के मुताबिक, बीते साल 200 कंपनियों का बाजार मूल्यांकन दोगुने से भी ज्यादा बढ़ा है।
इन खबरों से आपको दहेज़ हत्या की गम्भीरता, तीसरी लहर के खौफ़ और आम आदमी त्रस्त तो उद्योगपति मस्त का पता चलता है। अब आज के मुख्य समाचार पत्रों के पहले पृष्ठ में प्रकाशित इन खबरों में ज़रा फ़िर से नज़र घुमाइए।
'थ्रिलिंग अंदाज़ में कीजिए एक नई शुरुआत 'शीर्षक के साथ देश में सर्वाधिक बिकने वाले समाचार पत्रों में से एक 'हिंदुस्तान' ने किस तरह अपने मुखपृष्ठ पर दूल्हा-दुल्हन के कपड़े पहने मॉडलों के साथ बाइक का विज्ञापन शान से छापा है। नई शुरुआत का अर्थ सीधे तौर पर विवाह के दौरान बाइक से शुरूआत करने को लेकर है और हमें यह पता है कि भारतीय समाज में इस नई शुरुआत के लिए बाइक कैसे दी जाती है। शायद विज्ञापन छापने वाले और छपवाने वाले इस बात से अनजान हैं । और तो और इन अखबारों पर नियंत्रण रखने के लिए बनाई गई संस्था भी शायद इससे बेख़बर है। चलिए एक समाचार पत्र का मुखपृष्ठ और देख लीजिए।
कोरोना से होने वाली मौतों और लाशों के ढेर को भुला जिस तरह से 'तीसरी लहर का डर' शीर्षक दे कपड़े बेचे जा रहे हैं,वह शर्मनाक है। आम आदमी के डर को भुनाने का यह एक सीना चौड़ा कर दिखाया गया उदाहरण है बाक़ी लुकाछिपी कर अपनी सम्पत्ति बढ़ाए जाने की खबर आप पहले ही पढ़ चुके हैं। संस्थाएं बनी तो हैं पर करती क्या हैं!
प्रेस को मज़बूत और उस पर नजर रखने के लिए भारत में बहुत से संस्थाएं बनाई गई हैं। इसमें से एक सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक का कार्यालय भी है।
इसे आम तौर पर आरएनआई के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना प्रथम प्रेस आयोग 1953 की सिफारिश पर प्रेस एवं पुस्तक पंजीयन अधिनियम 1867 में संशोधन करके की गई थी। RNI का कार्य यह सुनिश्चित करना है कि समाचारपत्र प्रेस और पुस्तक पंजीयन अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत प्रकाशित किए जाते हैं ।
समाचारपत्र पंजीयन(केन्द्रीय) नियम, 1956 के अनुसार समाचारपत्र के प्रकाशन के 48 घंटे के भीतर अंक की एक प्रति प्रेस पंजीयक को डाक अथवा मेसेंजर द्वारा भेजी जाती है, फिर भी शायद उनकी नज़र ऐसी खबरों पर नही पड़ती।
भारतीय प्रेस परिषद के द्वारा भी पत्रकारिता के आचरण के मानक बनाए गए हैं पर शायद ही टीवी पर लड़ते-झगड़ते एंकर , ऐसे विज्ञापन छापने वाले समाचार पत्र इन आचरण को मानते हैं। इन संस्थाओं के लिए आने वाली विज्ञप्तियों पर कभी नज़रे दौड़ाई हैं!
सचिन से फुटबॉल खिला लीजिए, मेसी से क्रिकेट! शायद दोनों की फैन फॉलोइंग खुद कम होती जाएगी। यही हाल मीडिया से जुड़ी संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर आने वाली विज्ञप्तियों का होता है। जहां मीडिया क्षेत्र से जुड़े योग्य व्यक्तियों को लिया जाना चाहिए, वहां 'किसी भी विषय से ग्रेजुएट' उम्मीदवारों को मौका दिया जाता है और देश की मीडिया को मजबूत बनाने की जिम्म्मेदारी सौंप दी जाती हैं।
मीडिया क्षेत्र में शोध की बुरी हालत भी किसी से छुपी नही है। लोकतंत्र के तीन स्तम्भ जब कमज़ोर हो रहे हैं तब उसके चौथे स्तम्भ की ही जिम्म्मेदारी है कि वह डटा रहे पर इस हाल में कब तक किसी को नही पता।