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विमर्श

Iran Hijab Protest: ईरान में महसा अमीनी की शहादत, एक साहसी लोकप्रिय विद्रोह की शुरुआत

Janjwar Desk
2 Nov 2022 11:21 AM GMT
Iran Hijab Protest: ईरान में महसा अमीनी की शहादत, एक साहसी लोकप्रिय विद्रोह की शुरुआत
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Iran Hijab Protest: ईरान में महसा अमीनी की शहादत, एक साहसी लोकप्रिय विद्रोह की शुरुआत

Iran Hijab Protest: 16 सितंबर को ईरान की नैतिक पुलिस के हाथों तेहरान में एक युवा कुर्द महिला, जीना महसा अमिनी (उम्र 22) की पुलिस हिरासत में मौत हो गई।13 सितंबर को उसकी गिरफ्तारी तेहरान में शहीद हागनी एक्सप्रेस वे में धार्मिक नैतिक पुलिस द्वारा की गई थी।

तुहिन की टिप्पणी

Iran Hijab Protest: 16 सितंबर को ईरान की नैतिक पुलिस के हाथों तेहरान में एक युवा कुर्द महिला, जीना महसा अमिनी (उम्र 22) की पुलिस हिरासत में मौत हो गई।13 सितंबर को उसकी गिरफ्तारी तेहरान में शहीद हागनी एक्सप्रेस वे में धार्मिक नैतिक पुलिस द्वारा की गई थी। उसका कारण बताया गया कि उसने हिजाब पहनने के लिए बनाए कानून का कथित उल्लंघन किया था। वह ईरान के पश्चिम के इराकी सीमा से लगे कुर्द हिस्से साघेज शहर की रहने वाली थी।

तब से, ईरान में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं और जो बंद होने का नाम नहीं ले रहे; ईरान के धार्मिक सरकार के जुल्मों सितम के बावजूद।ये प्रदर्शन शुरू तो हुए ईरान के अल्पसंख्यक राष्ट्रीयता वाले कुर्द प्रांत में, लेकिन बहुत जल्द ईरान के सभी बड़े और छोटे शहरों में दिन-रात सड़कों पर अलग अलग तरीके से लड़ाकू प्रदर्शन शुरू हो गए जो चार सप्ताह बाद भी जोर शोर से जारी है । दुनिया के बहुतेरे देशों में कुर्द वामपंथी विद्रोही महिलाओं के नारे "जिन,जियान,आजादी" (महिला,जीवन,आजादी) गूंज रहे हैं। ये नारा सबसे पहले 8 मार्च,2006 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर क्रांतिकारी कुर्द महिलाओं ने लगाया था।

ईरान में सड़कों पर प्रदर्शनकारियों का दबदबा तमाम किस्म के दुष्प्रचार और दमन के बावजूद कायम है। जीना अमिनी की मृत्यु ने फिर से पूरे देश में एक क्रांतिकारी उत्तेजना की आग को प्रज्वलित कर दिया है, जो लंबे समय से जनता के बीच सुलग रही थी। महिलाओं,युवा/विद्यार्थियों के द्वारा महिलाओं के खिलाफ धार्मिक पि त्रसत्तात्मक प्रतिबंधों के खिलाफ और अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में शुरू हुए इस विद्रोह में मजदूरों और आम जनता के जुड़ जाने से ईरान का मौजूदा विद्रोह अभूतपूर्व रूप ले चुका है।

इतिहास खुद को दुहरा रहा है-

1852 में 35 वर्षीय महिला अधिकार कार्यकर्ता ताहिरीह घोराटोलें को तेहरान में तत्कालीन शासकों द्वारा उसके तथाकथित धर्मविरोधी होने और हिजाब न पहनने के कारण मृत्युदंड दिया गया था।उसके अंतिम वाक्य थे"तुम लोग मुझे जल्दी से जल्दी जैसा तुम चाहे मार सकते हो] मगर तुम लोग महिलाओं की मुक्ति को नहीं रोक सकते"। करीब 170 साल बाद उसी शहर में 22 वर्षीय माहसा जीना अमीनी नामक कुर्द युवती की मौत इस्लामिक धार्मिक शासकों का कोपभाजन बनने से हुई।इस मामले में इतिहास की पुनरावृति हुई है कि दोनों महिलाओं ने पितृसत्ता और धार्मिक तानाशाही के गठबंधन को चुनौती दी या शासकों को इन महिलाओं से डर लगा।

महसा के भाई ने कहा कि वे तेहरान के नहीं हैं और शहर के कायदे कानून से ठीक से वाकिफ नहीं थे।लेकिन फिर भी तेहरान की धार्मिक नैतिक पुलिस ने मह्सा को अपमानित किया और यातना देकर मार डाला। हॉस्पिटल में डॉक्टरों ने कहा कि उनका"ब्रेन डेड" हो चुका है और दिल में धक्का लगा है।ईरान की धार्मिक सरकार ने कहा कि वह पहले से गंभीर बीमारी से पीड़ित थी इसी से उसकी मृत्यु हो गई है।लेकिन महसा के परिवार और दोस्तों ने इसे झूठा करार दिया और कहा कि उसे कोई बीमारी नहीं थी।

कुर्द कौन हैं-

असल में महसा अमीनी ईरानी नाम है। महसा का कुर्दिश नाम" जीना" है।जीना का कुर्द भाषा में अर्थ जीवन है।कुर्द एक अल्पसंख्यक राष्ट्रीयता है जो ईरान,इराक, टर्की और सीरिया में बसे हुए हैं।जिस तरह हमारे देश में कश्मीरी राष्ट्रीयता के लोगों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना कर सारे मौलिक अधिकारो के लिए जद्दोजहद करने पर मजबूर कर दिया गया है वैसे ही कुर्दों को उपरोक्त चारों देशों में बदहाल स्थिति रखा गया है।जिसके खिलाफ कुर्दिस्तान वामपंथी आंदोलन विशेषकर महिलाएं लगातार सक्रिय हैं।हाल ही में टर्की और समीप के देशों के कुर्द क्षेत्रों में बहुत ज्यादा सक्रिय "कुर्दिस्तान विमेंस लिबरेशन मूवमेंट" से जुड़ी नगिहान अकारसेल शहीद हो गई हैं।उन्हे टर्की की फासिस्ट एर्डोगन सरकार ने मार डाला। कुर्दिस्तान विमेंस लिबरेशन मूवमेंट,साम्राज्यवाद तथा उसके देशीय दलाल कॉरपोरेट घरानों व धार्मिक फासिस्ट सरकार के साथ साथ धार्मिक पितृसत्तात्मक कट्टरपंथी/आतंकवादी आइसिस के खिलाफ जीवन मरण का संघर्ष चला रही हैं। आइसिस के आतंकी जिन्हे अल कायदा और तालिबान की तरह अमेरिकी साम्राज्यवाद ने पैदा किया है,कुर्द महिला वामपंथी छापामारों से बहुत डरते रहे हैं।इन बहादुर वामपंथी महिला क्रांतिकारियों के सशस्त्र प्रतिरोध के चलते कुछ सालों पूर्व आइसिस(इस्लामिक स्टेट्स) के हाथों से "रोझावा" को मुक्त किया गया था,जो एक इतिहास बन चुका है।

विद्रोह क्यों फैला-

पहली नज़र में, विरोध गुस्से के एक स्वतःस्फूर्त विद्रोह की तरह लगता है। लेकिन इसका एक लंबा इतिहास है। पिछले साल पहले से ही 55 से 130 प्रतिशत तक की मुद्रास्फीति लोगों के लिए असहनीय होती जा रही थी, और कई संघर्ष के अनुभव वाले श्रमिक कारखानों में संगठित हो रहे थे। मार्च 2021 से मार्च 2022 तक, इस्पात संयंत्रों , तेल, गैस, पेट्रोकेमिकल जैसे औद्योगिक क्षेत्रों से 4000 श्रमिकों के संघर्ष हुए थे।जिसमें हफ़्ट टेपे में गन्ना श्रमिकों से लेकर ट्रक ड्राइवरों, नर्सों और शिक्षकों तक संघर्ष में शामिल हुए थे।विरोध प्रदर्शनों में ट्रेड यूनियन की मांगें उठाई गईं, साथ ही कारखानों, शैक्षणिक संस्थानों और बुनियादी शहरी सेवाओं के निजीकरण ,मंहगाई और बेरोजगारी के खिलाफ मांगों को भी उठाया जा रहा है।

ईरान में पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतों की भूमिका-

मध्य पूर्व विशेषकर ईरान , तेल की प्रचुरता के कारण साम्राज्यवादियों का सरगना अमरीका और अन्य पश्चिमी ताकतों के निशाने पर रहा है।1953 में ईरान की संसद(मजलिस) द्वारा निर्वाचित देश के 35 वें प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्देघ जो की लोकप्रिय थे और साम्राज्यवाद विरोधी भूमिका में थे को अमरीकी और ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने प्रतिक्रांति के जरिए सत्ता से अपदस्थ कर दिया।मोसद्देग ,ब्रिटिश तेल निगम"एंग्लो अमेरिकन ऑइल कंपनी(AIOC)" के दस्तावेजों का ऑडिट करने जा रहे थे। उनके नेतृत्व में ईरानी संसद मजलिस ने ईरान की तेल संपदा के राष्ट्रीयकरण के पक्ष में मतदान किया था।ब्रिटेन ने तब ईरान के तेल का विश्व व्यापी बहिष्कार की मुहिम चलाई और ब्रिटिश नियंत्रित "अबादान ऑयल रिफाइनरी" पर प्रभुत्व के लिए ईरान के खिलाफ सैनिक कार्यवाही करने की पहल की थी।ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल और अमेरिकी राष्ट्रपति ईसनहावर मिलकर मोसद्देक सरकार को गिराने की लगातार कोशिश कर रहे थे। अंत में सीआईए और ब्रिटिश इंटेलिजेंस एमआई 5 ने मिलकर TPAJAX प्रोजेक्ट के तहत मोसद्देघ का तख्ता पलट किया। सीआईए ने मोसद्देग विरोधी प्रदर्शन करवाए।प्रतिक्रांति के बाद उन्हें सैनिक अदालत ने गिरफ्तार किया और तीन साल की कैद की सजा दी।उनके अधिकांश देशभक्त समर्थकों को या तो जेल में डाला गया या मार डाला गया। प्रतिक्रांति के बाद जनरल फजलुल्लाह जहेदी ने सत्ता शाह रजा पहलवी को सौंप दी।इस तरह प्रजातंत्र का गला घोंट कर साम्राज्यवादी ताकतों ने ईरान में राजतंत्र की स्थापना की।पहलवी वंश के अमरीकी पिट्ठू शाह का निरंकुश शासन छब्बीस वर्ष तक चला।अगस्त 2013 में अमरीकी सरकार ने ईरान में हुई 1953 की प्रतिक्रांति में अपनी भूमिका को स्वीकार किया।अमरीकी सरकार की रिपोर्ट में यह माना गया कि अमेरिकी विदेश नीति के तहत प्रशासन के सर्वोच्च स्तर के आदेश से उस समय सीआईए ने ईरानी राजनीतिज्ञों,सैनिक अधिकारियों को बड़े पैमाने पर घुस दिया और मोसद्देघ विरोधी माहौल बनाने के निमित्त प्रचार प्रसार में पैसा पानी की तरह खर्च किया गया।

1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के होने तक शाह रजा पहलवी का शासन एक घोर जनविरोधी तानाशाही जुल्मी दौर था।जहां पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देश को लूटने की खुली छूट दे दी गई और जनसंघर्षों /अभिव्यक्ति की आजादी को कुचल दिया गया।ईरान के वामपंथी दलों और फिदायीन उल मुल्क जैसे साम्राज्यवाद,सामंतवाद,पूंजीवाद विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं को बड़े पैमाने पर मार डाला गया या तेहरान की बदनाम जेल/यातनागृह सेविन में तड़पने के लिए छोड़ दिया गया ।ये वही जेल"सेविन" है जहां दो दिन पहले भीषण आग लगी थी और कई कैदी मारे गए थे या गंभीर रूप से घायल हुए थे। इनमे ज्यादातर वे कैदी थे जो महजा अमीनी की शहादत के बाद विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।

अप्रैल से दिसंबर 1979 के बीच ईरान में तानाशाह शाह रजा पहलवी विरोधी संघर्ष ने जोर पकड़ा और जनता प्रजातंत्र के लिए सड़कों पर उतर आई।इस विद्रोह में कम्युनिस्ट भी सक्रिय थे।यही वह समय था जब निर्वासित धार्मिक नेता अयातुल्लाह खोमेनी यूरोप से निर्वासन से लौट आए और विद्रोह की कमान संभाल ली।शाह विरोधी विद्रोह सफल होने के बाद खोमैनी ने ईरान को इस्लामिक गणराज्य घोषित कर दिया,लोगों की जनवादी आकांक्षाओं को कुचल दिया गया और वामपंथी व जनवादी ताकतों का सफाया किया जाने लगा।ईरान के इस्लामिक गणराज्य ने धार्मिक शासन कायम करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खारिज करते हुए लोगों पर विशेषकर महिलाओं पर तमाम किस्म की पाबंदियां लगाईं।यही वह समय था जब सलमान रशदी के उपन्यास "शैतान की आयतें" पर इस्लाम विरोधी होने का आरोप लगाकर अयातुल्लाह खोमैनी ने उनका सर काटने का फरमान जारी किया था।इस्लामिक क्रांति के बाद पश्चिमी देशों के साथ ईरान ने अपने रिश्ते खत्म कर दिए।अमेरिका सहित पश्चिमी ताकतों ने राजतंत्र के खात्मे को अपना पराजय माना।अमरीका तब से लेकर आज तक ईरान के खिलाफ आर्थिक और कूटनैतिक प्रतिबंध लगाता रहा है।अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने तेहरान के अमेरिकी दूतावास के बंधक राजनयिकों को छुड़ाने के लिए एयरबोर्न ऑपरेशन करने का प्रयास किया लेकिन मरुस्थल में फाइटर प्लेन के क्रैश होने के कारण वह असफल हो गया।

अमेरिकी साम्राज्यवाद ने ईरान में अपना आधार खोने के बाद ईरान पर नियंत्रण कायम करने के लिए मध्य पूर्व में और सहयोगियों को तलाशने का काम शुरू किया।1980 में इराक में सद्दाम हुसैन के नेतृत्व में बाथ सोशलिस्ट पार्टी का शासन मजबूत हो रहा था।सद्दाम को भी मध्य पूर्व में अपना प्रभाव बढ़ाना था।सद्दाम सुन्नी बहुल इराक के पक्षधर थे तो ईरान शिया बहुल था।सद्दाम , ईरान की शिया क्रांति से असुरक्षित महसूस कर रहे थे।ईरान से जब उनकी प्रतिद्वंदिता तेज हो गई तो अमेरिकी साम्राज्यवाद ने उसी साल छिड़े ईरान-इराक युद्ध में सद्दाम का पक्ष लिया ।ईरान- इराक युद्ध 8 सालों तक चला जिसमें दोनों देशों को नुकसान पहुंचा।लेकिन ईरान ज्यादा क्षतिग्रस्त हुआ।इसके बाद तो दजला और फराद नदियों में बहुत पानी बह गया।सद्दाम के उत्तरोत्तर ताकतवर होने ,कुवैत पर कब्जा करने,अमरीका समेत पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतों का कोपभाजन बनने और साम्राज्यवादियों द्वारा सद्दाम हुसैन और इराक को तबाह करने का मंजर दुनिया ने अगले तीस सालों में देखा है।तेल और मध्य पूर्व में अपनी हुकूमत कायम करने के लिए इराक,लीबिया,सीरिया,अफगानिस्तान आदि देशों को कैसे साम्राज्यवाद ने मध्य युग में धकेल दिया इसे पूरी दुनिया ने देखा है।

बराक ओबामा जब अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु संधि हुआ था और अमरीका समेत पश्चिमी देशों द्वारा ईरान पर लगाए आर्थिक प्रतिबंध को हटाने और ईरान को राहत प्रदान करने की बात हुई थी।मगर डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने उस समझौते को रद्द कर दिया और फिर से ईरान को आतंकवादी देश कहना शुरू किया।

एक धारणा जो भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ लोगों के बीच यह है कि ईरान में हो रहा हिजाब और धार्मिक पाबंदियों के खिलाफ विद्रोह,पश्चिमी देशों के द्वारा भड़काया जा रहा है।इतना जरूर है कि ईरान में हो रहे प्रदर्शनों का समाचार पश्चिमी मीडिया अपने हितों के लिए अच्छी तरह प्रचारित कर रही है लेकिन यह सोचना कि सब कुछ अमेरिका करवा रहा है वास्तविकता से मुंह मोड़ना है।अगर आंदोलन में व्यापक जनता जिसमें आक्रोशित महिलाएं अगुआई कर रही हैं शामिल नहीं होती तो विद्रोह इतने बड़े जंगल के आग की तरह नहीं फैलता और इतने दिनों तक नहीं टिकता।

भारत के संघी फासीवादी ताकतों की भूमिका-

भारत के साथ ईरान के दोस्ताना संबंध रहे हैं।संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान व अमेरिका के लाए प्रस्ताव के खिलाफ ईरान ने हमेशा भारत का साथ दिया है। चाबहार बंदरगाह और ईरान भारत तेल पाइप लाइन पर ईरान से हुए समझौते के बावजूद ,अमेरिकी साम्राज्यवाद के दबाव में फासिस्ट मोदी सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ में ईरान का समर्थन नहीं किया , न ही उससे तेल खरीदा और न ही अमेरिका द्वारा ईरान के खिलाफ अन्यायपूर्ण कार्रवाई का ये कभी विरोध करती है।

ईरान के हिजाब विरोधी और महिला अधिकारों के लिए हो रहे प्रदर्शनों से भारत का फासिस्ट संघ परिवार और कॉरपोरेट गोदी मीडिया,हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की उनकी अल्पसंख्यक विरोधी मुहिम के लिए मुफीद मान रहे हैं।लेकिन वे ये भूल जाते हैं कि ईरान के महिलाओं और आम जनता का आंदोलन , धार्मिक कट्टरपंथ व फासीवाद के खिलाफ है तथा औरतों के पक्ष में समानाधिकार और आजादी का आंदोलन है।इस आंदोलन से यह ध्वनि उभरी है कि महिलाओं को यह अधिकार होना चाहिए कि वे क्या पहने,क्या खाएं और अपना जीवन कैसे बिताएं।इस लिहाज़ से साम्राज्यवाद के जूनियर पार्टनर और भारतीय जनता के दुश्मन नंबर एक संघी मनुवादी फासिस्ट ताकतों को महिलाओं के बारे में कुछ भी बोलने का कोई अधिकार नहीं है।क्योंकि सबसे बड़े महिला विरोधी और महिलाओं के खिलाफ यौन अत्याचारों में शीर्ष पर रहने वाले आरएसएस,भाजपा के नेता , संघी गुंडे/दंगाई और इनके घनिष्ठ मित्र बलात्कारी हत्यारे ढोंगी बाबा राम रहीम ,आशाराम बापू जैसे लोग ही हैं।

अब क्या-

इन संघर्षों से वह शक्ति विकसित हुई जो आज के जन-विद्रोह को देशव्यापी विस्तार देती है, उनको निरंतरता प्रदान करती है और धार्मिक पितृसत्तात्मक शासन के खिलाफ उनके प्रतिरोध को निर्देशित करती है। "लोगों का कहना है कि बस अब अति हो गई है! श्रमिक वर्ग हड़तालें कर रहा है, महिलाएं सड़कों पर हैं, शिक्षक व पेंशनभोगी महीनों से लड़ रहे हैं, । हर कोई गरीबी,बेरोजगारी, मुद्रास्फीति, भूख और उत्पीड़न से भरे असहनीय जीवन के खिलाफ लड़ रहा है। विरोध स्पष्ट संकेत देते हैं कि कुर्द और ईरान के अन्य सभी समुदायों के लोग बड़ी एकजुटता के साथ एक साथ खड़े हैं।" ऐसा ईरान की अंतरराष्ट्रीय लड़ाकू महिला आंदोलन की कार्यकर्ता ईरानी जमान मसूदी कहती हैं।

जीना महसा अमीनी की मौत की खबर को सबसे पहले ईरान की पत्रकार निलोफर हमीदी ने ट्विटर पर उजागर किया था।22सितंबर को पुलिस ने उनके घर छापा मारकर उनके लिखने का सारा सामान जब्त किया और उन्हें गिरफ्तार कर जेल के तन्हाई सेल में डाल दिया है।उनके वकील मुहम्मद अली ने ट्विटर पर यह जानकारी दी है।

लोग अपना डर ​​खो रहे हैं। हजारों गिरफ्तारियों और अब तक करीब २०० मौतों( जिसमें 19 नाबालिग हैं )के साथ क्रूर दमन और हिंसा के बावजूद, महिलाएं और पुरुष, कार्यकर्ता, युवा लोग,कलाकार,मीडियाकर्मी, विद्यार्थी समुदाय, घृणास्पद धार्मिक तानाशाही वाले फासीवादी शासन के खिलाफ खड़े हैं। महिलाओं ने , पुलिस थानों, धार्मिक केंद्रों और सार्वजनिक कार्यालयों सार्वजनिक रूप से अपने हिजाब को उतार कर उसे आग के हवाले कर दिया।साथ ही पुरुष प्रधान समाज द्वारा सौंदर्य का एक मापदंड समझे जाने वाले नारी के लंबे बालों को महिलाओं ने सड़कों पर काट कर फेंक दिया। हाल ही में निका शकरीन ने खुलेआम हिजाब को उतारकर जलाया। उस दिन के बाद से वह लापता थी,दस दिन के बाद उसकी लाश मिली। नीका की मौत की खबर ने विद्रोह को और भड़का दिया।पश्चिम के कुर्द शहर"सानंदाज" में पुलिस गोलीचालन से कई नौजवानों की मौत हो गई। दोनों धार्मिक नेता ,इस्लामिक क्रांति के नेता अयातुल्लाह खोमैनी और वर्तमान के सर्वोच्च धार्मिक नेता रुहेल्ला खोमैनी के चित्र पर प्रदर्शनकारी कालिख पोत रहे हैं,जो अभी तक अविश्वसनीय बात थी।ईरान के वर्तमान राष्ट्रपति महोदय जब एक कॉलेज में गए तो छात्राओं ने उन्हें "गेट आउट" कहा।ईरान की नारियां पूरी दुनिया के नारियों का प्रतिनिधित्व करते हुए कह रही हैं कि महिलाओं के बारे में क्या सही क्या गलत है ये वे खुद तय करेंगी।पूंजीवादी,सामंती धार्मिक पितृसत्तात्मक समाज को कोई अधिकार नहीं कि वे ये तय करें की औरतें ये पहनें या ऐसे चलें।

"पितृसत्ता,साम्राज्यवाद,फासीवाद और धार्मिक कट्टरपंथ का नाश हो,ईरान में महिलाओं समेत आम जनता की आजादी,समान अधिकार और सच्चे जनवाद के लिए लड़ाई जिंदाबाद" नारे के आधार पर ICOR (कम्युनिस्ट और क्रांतिकारी संगठनों का अंतरराष्ट्रीय मंच) में शामिल चालीस से अधिक देशों(जिनमें भारत भी है)की क्रांतिकारी कम्युनिस्ट पार्टियों और क्रांतिकारी महिला संगठनों ने मिलकर ईरान की विद्रोही जनता को क्रांतिकारी सलाम के रूप में एकजुटता संदेश प्रेषित किया है।

अफगानिस्तान सहित दुनिया के चारों ओर आधी आबादी द्वारा, " जिन,जियान,आजादी"(नारी, जीवन, स्वतंत्रता) के नारों से आसमान गूंज रहा है ,ईरान में विद्रोही अपने विचारों को छुपाना अपनी शान के खिलाफ समझ रहे हैं । वे खुलकर धार्मिक फासीवादी राजसत्ता,पूंजीवाद/साम्राज्यवाद के खिलाफ सड़कों पर उमड़ रहे हैं। वे सच्चे जनवाद,बराबरी का अधिकार,शोषणहीन समाज और तमाम किस्म के जुल्मों से आजादी चाहते हैं और हकीकत है कि उनके विद्रोह से इस्लामिक धार्मिक शासक कांप रहे हैं, बहुत कुछ वैसा जैसा 1850 में कम्युनिस्ट घोषणापत्र की भूमिका में कहा गया था।

(लेखक क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच (कसम) के महासचिव हैं.)

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