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विमर्श

क्या भारत की जीवनरेखा समझी जाने वाली भारतीय रेल की मोदी सरकार अनौपचारिक रूप से हत्या कर चुकी है?

Janjwar Desk
3 Dec 2020 11:36 AM GMT
क्या भारत की जीवनरेखा समझी जाने वाली भारतीय रेल की मोदी सरकार अनौपचारिक रूप से हत्या कर चुकी है?
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मोदी सरकार ने जुलाई में 151 ट्रेनों के माध्यम से 109 मूल-गंतव्य मार्गों पर यात्री ट्रेनें चलाने के लिए कंपनियों को आवेदन करने के लिए कहा, इसने नई दिल्ली और मुंबई में रेलवे स्टेशनों सहित रेलवे स्टेशनों के आधुनिकीकरण के लिए निवेशकों को आमंत्रित किया है....

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण

पूरे देश का खजाना लूटकर दो गुजराती व्यापारियों की तिजौरी में डालने का जो आसुरिक संकल्प प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ले चुके हैं, उसी का नतीजा है कि डेढ़ सौ सालों से जो रेल भारतीय जनता के लिए जीवनरेखा बनी हुई थी, उसकी मोदी सरकार ने कोरोना के प्रहसन के बहाने अनौचारिक रूप से हत्या कर दी है। भारत के नागरिकों से प्रतिशोध लेने का कोई अवसर मोदी सरकार गंवाना नहीं चाहती।

रेलवे को बेचने का काम विरोध के बगैर करने के लिए हजारों रेलगाड़ियों का परिचालन बंद कर दिया गया और चंद रेलगाड़ियों को स्पेशल का नाम देकर चलाते हुए आम लोगों की जेब काटने का सिलसिला शुरू किया गया है। ऐसी स्पेशल ट्रेन में न्यूनतम किराया पांच सौ रूपये है। हर तरह की रियायतों को समाप्त कर दिया गया है। पूंजीपतियों को रेल बेचने के चक्कर में मोदी सरकार ने करोड़ों गरीबों के परिवहन के साधन को ही खत्म करने का निश्चय कर लिया है। कोई और देश होता तो ऐसी साजिश के खिलाफ जनता अब तक सड़क पर उतर गई होती, लेकिन आठ महीने से हजारों ट्रेनों का परिचालन ठप होने पर भी कोरोना का आतंक फैलाकर मोदी सरकार ने इस मुद्दे को चर्चा से ही गायब कर रखा है। पालतू मीडिया भी बनारस में देव दिवाली पर डीजे की धुन पर झूमते मोदी का प्रसारण करने में व्यस्त नजर आता रहा है।

इस बीच ब्लूमबर्ग के हवाले से बताया गया है कि नरेंद्र मोदी सरकार निजी कंपनियों को यात्री किराए तय करने की अनुमति देगी। वीके यादव, रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा, 'निजी खिलाड़ियों को अपने तरीके से किराए तय करने की स्वतंत्रता दी गई है।" उन्होंने कहा, "वातानुकूलित बसें और विमान भी उन मार्गों पर चलते हैं, और उन्हें किराया निर्धारित करने से पहले ध्यान में रखना होगा।'

यादव ने कहा कि एल्सटॉम एसए, बॉम्बार्डियर इंक, जीएमआर इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और अदानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड ऐसी कुछ कंपनियां हैं, जिन्होंने इन परियोजनाओं में रुचि दिखाई है।

मोदी सरकार ने जुलाई में 151 ट्रेनों के माध्यम से 109 मूल-गंतव्य मार्गों पर यात्री ट्रेनें चलाने के लिए कंपनियों को आवेदन करने के लिए कहा। इसने नई दिल्ली और मुंबई में रेलवे स्टेशनों सहित रेलवे स्टेशनों के आधुनिकीकरण के लिए निवेशकों को आमंत्रित किया है। हालांकि, इससे पहले मार्च में, लॉकडाउन लागू होने से पहले, रेल मंत्री पीयूष गोयल ने राज्यसभा में कहा था कि केंद्र सरकार के पास वर्तमान या भविष्य में रेलवे के निजीकरण की कोई योजना नहीं है क्योंकि यह लोगों की संपत्ति है।

गोयल रेल मंत्रालय के कामकाज पर चर्चा का जवाब दे रहे थे। रेलवे की संभावित बिक्री के बारे में सांसदों द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए, गोयल ने कहा था कि ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। भारत में व्यावसायिक ट्रेन यात्रा की शुरूआत वर्ष 1853 में हुई थी जिसके बाद वर्ष 1900 में भारतीय रेलवे तत्कालीन सरकार के अधीन आ गई थी। भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा सहयोग इसी क्षेत्र का रहा है।

साल 1925 में बॉम्बे से कुर्ला के बीच देश की पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन चलाई गई। वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के पश्चात् भारत को एक पुराना रेल नेटवर्क विरासत में मिला मगर पूर्व में विकसित लगभग 40 प्रतिशत रेल नेटवर्क पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। तब रेलवे के विकास के लिए कुछ लाइनों की मरम्मत की गई और कुछ नई लाइनें बिछाई गई ताकि जम्मू व उत्तर-पूर्व भारत के कुछ क्षेत्रों को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ा जा सके। 1952 में रेल नेटवर्क को आधुनिक रूप से मजबूत और विकसित बनाने के लिए जोन में बदलने का निर्णय लिया गया और रेलवे के कुल 6 जोन अस्तित्व में आए। उस समय में रेलवे संबंधी जरूरतों को विदेशों से पूरा किया जाता था परंतु देश ने जैसे-जैसे विकास किया रेलवे संबंधी जरूरतों की पूर्ति भी देश के अंदर से ही होने लगी और भारतीय रेल उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर दौड़ती चली गई।

नए दौर और रेलवे पर बढ़ते दबाव के चलते 2003 में रेलवे जोन की संख्या को बढ़ाकर 12 कर दिया गया और समय के साथ-साथ अन्य मौकों पर रेलवे जोन्स की संख्या बढ़ते हुए 17 हो गई। अब मोदी सरकार भस्मासुर की तरह इस गौरवशाली संपत्ति को तबाह करने में जुट गई है।

निजी कंपनियों का मुख्य उद्देश्य पैसा कमाने का होता है और रेलवे का भी वे अपने मुनाफे के लिए ही प्रयोग करेंगी। सुख-सुविधाओं के बदले किराए में अनाप-शनाप बढ़ोत्तरी देखने को मिलेगी, जिससे कि गरीब लोगों के लिए रेल यात्रा काफी महंगी और दूभर हो जाएगी। भारतीय समाज का एक तबका यात्रा के लिए केवल रेलवे पर निर्भर हैं। निजीकरण से वे इसको भी खो देंगे।

सबसे बड़ी बात ये भी है इतने बड़े रेलवे क्षेत्र का परिचालन किसी एक निजी कंपनी द्वारा नहीं की जा सकती और अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग हाथों में सौंपना रेलवे को काट-काट कर बेचने के बराबर होगा। साथ-साथ ही एकरूपता की कमी भी खलेगी। किसी दुर्घटना के वक्त जिम्मेवारी कौन लेगा, जब अपने-अपने क्षेत्रों का हवाला देकर सब पल्ला झाड़ लेंगे। आखिर मार उस आम गरीब आदमी पर पड़ेगी जो अन्य माध्यम से यात्रा कि स्थिति में नहीं होगा।

निजीकरण के ठेकेदार अपना मुनाफा देखेंगे। जहां केवल गरीब तबका ही रेल यात्रा करता होगा वो मार्ग बंद कर दिए जाएंगे क्योंकि उनसे उनको पैसा नहीं आ रहा होगा और इस कदम से ऐसे हिस्सों में रहने वाले लोग परिवहन की सुविधा से वंचित होंगे। इसका उदाहरण हाल ही में सामने आया जब निजी क्षेत्र की तरफ से चलाई गई सबसे पहली रेल तेजस का परिचालन बंद कर दिया गया।

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