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विमर्श

Labour Laws In India : 8 घंटे काम, 8 घंटे आराम और 8 घंटे मनोरंजन के ऐतिहासिक अधिकार पर मोदी सरकार का कुठाराघात

Janjwar Desk
3 May 2022 3:30 AM GMT
Labour Laws In India : 8 घंटे काम, 8 घंटे आराम और 8 घंटे मनोरंजन के एतिहासिक अधिकार पर मोदी सरकार का कुठाराघात
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Labour Laws In India : 8 घंटे काम, 8 घंटे आराम और 8 घंटे मनोरंजन के एतिहासिक अधिकार पर मोदी सरकार का कुठाराघात

Labour Laws In India : मोदी सरकार 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' में अपनी रैंकिग में दुनिया के 10 शीर्ष देशों में शामिल होने के नाम पर 29 श्रम कानूनों को समाप्त कर उनके स्थान पर 4 श्रम संहिताएं ले आयी है....

मुनीष कुमार का विश्लेषण

Labour Laws In India : 1886 में श्रमिकों के एतिहासिक संघर्ष व कुबार्नियों के दम पर 8 घंटे का कार्य दिवस का अधिकार दुनिया के मजदूरों ने हासिल किया था। जिसके परिणामस्वरुप भारत में बने श्रम कानूनों (Labour Laws In India) में मजदूरों को 8 घंटे के कार्य दिवस का कानूनी अधिकार हासिल हुआ था। मोदी सरकार (Modi Govt) ने मजदूरों के 8 घटे के कार्य दिवस के इस कानूनी अधिकार को श्रम कानूनों में परिवर्तन कर खत्म कर दिया है तथा मजदूरों को मिले नाम मात्र के अधिकारों को भी छीन लिया है।

भारत में पूंजी निवेश (Investment In India) को बढ़ाने के लिए मोदी सरकार 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' (Ease Of Doing Business) में अपनी रैंकिग में दुनिया के 10 शीर्ष देशों में शामिल होने के नाम पर 29 श्रम कानूनों को समाप्त कर उनके स्थान पर 4 श्रम संहिताएं ले आयी है।

इन श्रम संहिताओं के माध्यम से न केवल मालिकों को श्रमिकों के निर्मम शोषण का कानूनी अधिकार दे दिये गये हैं बल्कि इनके माध्यम से सूचना के अधिकार कानून व न्यायपालिका पर भी हमला किया है। आपात स्थिति में श्रम कानूनों को तब्दील करने का जो अधिकार सरकार के पास था, अब यह अधिकार सरकार कोे हमेशा के लिए मिल चुका है।

असंगठित क्षेत्र के मजदूरों (गिग वर्कर आदि) के कल्याण के लिए 1-2 प्रतिशत टर्नओवर टैक्स के रुप में वसूले जाने वाले खर्च को किस तरह से खर्च किया जाएगा इसके बारे में कोई भी स्पष्टता इन 4 श्रम संहिताओं में नहीं है।

भारत में विभीन्न पेशों में लगे श्रमिकों की संख्या 48 करोड़ से भी अधिक है। जिसमें से मात्र 2.75 करोड़ श्रमिक ही (कुल श्रमिकों को मात्र 6 प्रतिशत) संगठित क्षेत्र में है। साफ है कि श्रम कानूनों के दायरे में आने वाले मात्र 6 प्रतिशत श्रमिकों को देश के श्रम कानूनों के अंतर्गत न्यूनतम वेतन, नियमित नौकरी व सामाजिक सुरक्षा हासिल थी। अब इस पर मोदी सरकार ने सुनियोजित तरीके से कुठाराघात कर दिया है।

भारत का पूंजीपति वर्ग व बहुराष्ट्रीय निगम (Capatalists Class And Multinational Corporation) नहीं चाहते हैं कि उन्हें देश के मजदूर-कर्मचारियों कोे श्रम कानूनों के तहत वेतन, नियमित नौकरी व सामाजिक सुरक्षा देनी पड़े। वे मजदूरों से मनचाहे तरीके से काम लेना चाहते हैं। वे 'हायर एंड फायर' का कानूनी अधिकार चाहते हैं। वे चाहते हैं कि उद्योग, सेवा व कृषि में श्रमिकों की मेहनत से पैदा हुए मूल्य का और अधिक हिस्सा इनकी तिजोरियों में डाले जाने पर कोई भी रोक टोक न हो।

उनकी इस चाहत को पूरा करने का काम अब केन्द्र की मोदी सरकार कर रही है। मोदी सरकार द्वारा लाए गये 4 श्रम संहिताओं को देखकर लगता हैं कि ये चारों श्रम संहिताएं जनता के द्वारा चुनी गयी सरकार ने नहीं बल्कि देश के कोरपोरेट घराने व बहुर्राष्ट्रीय निगमों ने या उनकी प्रबन्धन कमेटी ने तैयार की हैं।

सरकार देश के 29 श्रम कानूनों के स्थान पर 4 श्रम संहिताएं- मजदूरी संहिता, औद्यौगिक संबंध संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता व उपजीविकाजन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दिशा संहिता लकरे आयी है।

मजदूरी संहिता के द्वारा मोदी सरकार ने श्रमिकों को मिले 8 घंटे के कार्य दिवस के एतिहासिक अधिकार को ही खत्म कर दिया है। मालिकों के लिए श्रमिकों से 12 घंटे काम करवाने को कानूनी जामा पहना दिया है।

औद्यौगिक संबंध संहिता में मोदी सरकार ने नियोक्ताओं को मजदूर व कर्मचारियों को नौकरी से निकाले जाने की खुली छूट दे दी हैं। श्रम संबंध संहिता में इस बात का प्रावधान कर दिया गया है कि मालिक किसी भी व्यक्ति को जब चाहे नौकरी से हटा सकता है। नौकरी से हटाने के लिए नियोक्ता को श्रमिक/कर्मचारी को एक महीने की नोटिस पे तथा श्रमिक/कर्मचारी ने जितने वर्ष काम किया है उतने वर्ष की ग्रेच्युटी देनी होगी। महिलाओं से रात की पाली में काम लेने का भीे कानूनी जामा पहना दिया गया है। हड़ताल के लिए 60 दिन के कानूनी नोटिस की बाध्यता कर दी गयी है। यदि 50 प्रतिशत से अधिक कर्मचारी छुट्टी लेते हैं जो इसे भी हड़ताल मानकर कार्यवाही करने का प्रावधान कर दिया गया है।

नियोक्ता चाहे तो श्रमिक को ग्रेच्युटी के अधिकार वंचित कर सकता है। उपद्रवी आचरण अथवा हिंसात्मक कार्यवाही के नाम पर ग्रेच्युटी के अधिकार को भी मालिक द्वारा खत्म कर दिये जाने का प्रावधान कर दिया गया है।

भविष्य निधि (PF) की राशि को 12 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया है। नियोक्ताओं को जो प्रतिमाह श्रमिकों के पीएफ खाते में उनके वेतन की12 प्रशितत राशि जमा करनी पड़ती थी उसे नियाक्ताओं के पक्ष में कम करके 10 प्रतिशत कर दिया गया है। सरकार ने सामाजिक सुरक्षा संहिता में इस बात का प्रावधान भी रख है कि सरकार की आर्थिक संकट के नाम पर पीएफ को पूर्णतः समाप्त भी कर सकती है। हड़ताल या छुट्टी के दिन बीमार या दुर्घटनाग्रस्त श्रमिक से ईएसआईसी के अंतर्गत मिलने वाले लाभ को भी खत्म कर दिया गया है।

सुरक्षा मानकों को लेकर भी श्रमिकों के साथ खिलवाड् किया गया है तथा दुर्घटना होने की स्थिति में श्रमिकों का न्यायालय जाने का रास्ता भी बंद कर दिया गया है। सामाजिक सुरक्षा संहिता में कहा गया है कि ऐसी दुर्घटना या रोग के लिए न्यायालय में नुकसानी के लिए कोई वाद न चल सकेगा, यदि इस अध्याय के प्रावधानों के अनुसार दुघर्टना या बीमारी के सम्बन्ध में नियोक्ता व कर्मचारी के बीच में कोई समझौता किया गया है। जिसका सीधा सा मतलब है कि नौकरी देते वक्त नियोक्ता कर्मचारी को इस अनुबंध के लिए बाध्य करेगा कि दुर्घटना या बीमारी होने पर कर्मचारी न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाएगा और दुघर्टना, बीमारी या मृत्यु होने पर सामाजिक सुरक्षा संहिता के तहत मुआवजा प्राप्त करेगा।

औद्योगिक संबंध संहिता के माध्यम में सरकार ने अपने हाथों में असीमित अधिकार ले लिए हैं। इसकी धारा 39 का उपयोग करके सरकार किसी उद्योग या उद्योगों के समूह को इस अध्याय के नियमों से सशर्त अथवा बिना शर्त के छूट दे सकेगी। इसकी धारा 96 का इस्तेमाल करके सरकार किसी भी श्रम कानून को बदल सकती है या समाप्त कर सकती है। ऐसा करने के लिए सरकार को संसद में विधेयक लाने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी।

इन श्रम संहिताओं के द्वारा सरकार ने न्यायपालिका से भी ऊपर की हैसियत प्राप्त कर ली है। इसकी धारा 55 के अंतर्गत श्रम न्यायलयों के स्थान पर औद्यौगिक न्यायधिकरण व राष्ट्रीय औद्यौगिक न्यायधिकरण के गठन का प्रावधान किया गया है। जिसमें कहा गया है कि सरकार न्यायधिकरण के फैसले को स्थगित कर सकती है। इतना ही नहीं जो मामले इन श्रम संहिता के अंतर्गत आते हैं उनमें सिविल न्यायालय के दरवाजे मजदूरों के लिए बंद कर दिये गये हैं।

सरकार ने सूचना के अधिकार कानून को भी भोथरा बनाने का काम किया है। इस कोड की धारा 61 में कहा गया है कि श्रम विभाग व न्यायालय की कार्यवाहियों में दाखिल जानकारी फर्म या कम्पनी की लिखित सहमति के बगैर प्रकट नहीं की जाएगी। इसके उल्लंघन पर 1 माह की सजा व जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

इन 4 श्रम संहिताओं के आने बाद देश में अब श्रम कानून जैसी कोई चीज नहीं बची है। सबकुछ सरकार की मंशा पर निर्भर हो गया है। और देश की सरकार मजदूरों की नहीं बल्कि देश के कोरपोरेट व बहुराष्ट्रीय निगमों की आवाज ही सुनती है और उन्हीं की सलाह से उन्हीं के मुनाफे व धन-दौलत को बढ़ाने का काम कर रही है।

(लेखक समाजवादी लोकमंच के संयोजक हैं।)

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