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विमर्श

LIC IPO : UPA सरकार के 2G घोटाले जैसा ही है LIC का IPO घोटाला, सरकारी खजाने को लगेगा करोड़ों का चूना

Janjwar Desk
3 May 2022 6:51 AM GMT
LIC IPO : UPA सरकार के 2G घोटाले जैसा ही है LIC का IPO घोटाला, सरकारी खजाने को लगेगा करोड़ों का चूना
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LIC IPO : UPA सरकार के 2G घोटाले जैसा ही है LIC का IPO घोटाला, सरकारी खजाने को लगेगा करोड़ों का चूना

LIC IPO Scam : 2जी घोटाले में जहां स्पेक्ट्रम के लाइसेंस कम दरों पर देकर सरकारी खजाने को चूना लगाया गया और जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बाद में रद्द किया, वहीं भारत की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी का अनुमानित मूल्य कम कर केवल 1.1 गुना दाम पर शेयर जारी किए गए हैं

सौमित्र रॉय का विश्लेषण

LIC IPO Scam : ईद के अगले दिन यानी बुधवार को भारत का सबसे बड़ा भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी (LIC) का आईपीओ (IPO) आने वाला है। इसके जरिए केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की 5.40 लाख करोड़ के अनुमानित मूल्य की कंपनी में अपनी 3.5% हिस्सेदारी बेचेगी, जो कि 22.22.1375 करोड़ शेयरों के रूप में 4 मई को 902-949 रुपए के प्राइस बैंड में बिकेंगे। इससे केंद्र सरकार (Center) को 21008 करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद है। केंद्र सरकार एलआईसी के पॉलिसी शेयर होल्डर्स को प्रति शेयर 60 रुपए और खुदरा निवेशकों, कर्मचारियों को 40 रुपए का डिस्काउंट भी देगी।

एलआईसी का आईपीओ यूपीए सरकार (UPA Govt) के 2जी घोटाले जैसा ही है। 2जी घोटाले (2G Scam) में जहां स्पेक्ट्रम के लाइसेंस कम दरों पर देकर सरकारी खजाने को चूना लगाया गया और जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बाद में रद्द किया। वहीं भारत की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी (Life Insurance Company) का अनुमानित मूल्य कम कर केवल 1.1 गुना दाम पर शेयर जारी किए गए हैं। इससे सरकारी खजाने को 26 से 36 हजार करोड़ रुपए का चूना लगने वाला है।

5.40 लाख करोड़ रुपए के अनुमानित मूल्य वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एलआईसी के शेयरों के दाम कंपनी के अनुमानित मूल्य (EV) से केवल 1.1 गुना ही तय किए गए हैं। पहले यह माना जा रहा था कि केंद्र सरकार शेयरों के दाम करीब 2.5 से 3 गुना रखेगी। इससे प्रति शेयर भाव 2133 से 2559 रुपए के बीच होते और अगर सरकार अपनी प्रारंभिक योजना के मुताबिक ही 3.5% की जगह 5% हिस्सेदारी बेचती तो उसे 67456 करोड़ से 80928 करोड़ रुपए प्राप्त होते।

हालांकि सरकार ने ऐसा नहीं किया और प्रति शेयर कंपनी के अनुमानित मूल्य से 1.1 गुना ही तय किया। यह देखते हुए कि भारत की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी, जिसका न्यू बिजनेस प्रीमियम (NBP) बाजार में 61.4% की हिस्सेदारी है और जबकि इसकी सबसे नजदीकी प्रतिस्पर्धी कंपनी की हिस्सेदारी केवल 9.16% है, केंद्र सरकार की यह सबसे बड़ी भूल साबित होने वाली है।

किसके दबाव में वित्त मंत्री ने लिया यह फैसला?

मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) अंतरराष्ट्रीय निवेशकों (Investors) की इन बातों में उलझ गईं कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण हालात विपरीत हैं, इसलिए सरकार को कंपनी के अनुमानित मूल्य का केवल 1.1 गुना मूल्य ही प्रति शेयर निर्धारित करना चाहिए। इससे पहले एलआईसी से कहीं छोटी निजी जीवन बीमा कंपनियों ने अनुमानित मूल्य के ढाई से 3 गुना अधिक कीमत पर अपने शेयर बेचने का आवेदन किया था।

बीते 23 अप्रैल को एलआईसी के बोर्ड ने विनिवेश की योजना को 5% से 3.5% की सीमा तक घटाने का फैसला लिया। कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि बोर्ड ने वित्त मंत्री के दबाव में यह फैसला लिया, जबकि केंद्र सरकार ने विनिवेश से 78 हजार करोड़ जुटाने का लक्ष्य रखा है।

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि आखिरी वित्त मंत्री किसके दबाव में आईं और क्या उनके कहने पर ही एलआईसी का अनुमानित मूल्य कम किया गया और उसे केवल 1.1 गुना रखा गया? इसी से जुड़ा एक और सवाल यह भी पैदा होता है कि सिर्फ निवेशकों को लुभाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की देश की सबसे बड़ी जीवन बीमा निगम का मूल्य कम किया जाना देशहित में है ?

6 महीने में कैसे बदल गई एलआईसी की वैल्यू ?

पहले माना जा रहा था कि सरकार एलआईसी (LIC) के अनुमानित मूल्य 13 से 15 लाख करोड़ के हिसाब से आईपीओ जारी करेगी। बताया जाता है कि एलआईसी का वैल्यूएशन करने वाली कंपनी मिलीमेन ने सरकारी प्रतिभूतियों, कंपनी के पास मौजूद प्राइम लोकेशन की संपत्तियों को वैल्यूएशन में नहीं जोड़ा। इस तरह करीब 5.8 बिलियन डॉलर यानी लगभग 4.5 लाख करोड़ यूं ही छोड़ दिए गए। सेंट्रल इंडिया ट्रेड यूनियन की अध्यक्ष के. हेमलता कहती हैं कि एलआईसी की वैल्यू 38 लाख करोड़ रुपए है और कंपनी के 29 करोड़ पॉलिसी धारक हैं।

एलआईसी का अनुमानित मूल्य मार्च 2021 में महज 96 हजार करोड़ रुपए आंका गया। फिर सरकार ने मिलीमैन कंपनी को आंकलन का ठेका दिया, जिसने पहले निजी क्षेत्र की दो बड़ी जीवन बीमा कंपनियों- आईसीआईसीआई और एचडीएफसी (ICICI And HDFC) का वैल्यूएशन किया था। सितंबर 2021 में, यानी केवल 6 महीने में ही एलआईसी की वैल्यू बदलकर 5.40 लाख करोड़ हो गई। ऐसा इसलिए मुमकिन हुआ, क्योंकि सरकार ने एलआईसी के पॉलिसी होल्डर्स के अधिकार छीनकर उन्हें शेयर होल्डर बना दिया।

सरकार के इस पूरे खेल के दो दुष्परिणाम हुए हैं। एक तो इससे सरकार को मिलने वाला राजस्व घट गया और सरकारी खजाने को नुकसान हुआ और दूसरा पॉलिसी होल्डर्स के अधिकार घटने से कंपनी का मुनाफा अब निजी निवेशकों के हाथों में जाएगा, जिनकी कोई भूमिका एलआईसी को खड़ा करने में नहीं रही।

यूपीए के 2जी घोटाले जैसा ही घोटाला क्यों ?

यूपीए सरकार के कार्यकाल में 2जी स्पेक्ट्रम के लाइसेंस पहले आओ, पहले पाओ की नीति के तहत 1700 करोड़ रुपए प्रति लाइसेंस के आधार पर बांटे गए, जिन्हें बाद में 4500 करोड़ रुपए प्रति लाइसेंस के हिसाब से बेच दिया गया। इस तरह सरकार को प्रति लाइसेंस 2800 करोड़ रुपए का चूना लगा था। विपक्ष ने इस मामले में सरकार पर 70 हजार करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाया था। कुछ इसी तरह का मामला एलआईसी के आईपीओ में भी नजर आ रहा है।

केंद्र की बीजेपी सरकार (BJP Govt) को इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि आखिर किन वजहों और किनके फायदे के लिए एलआईसी का अनुमानित मूल्य कम रखा गया। यह सवाल इसलिए जरूरी है, क्योंकि अगले पांच साल में सरकार को एलआईसी में अपनी 25% तक हिस्सेदारी बेचनी है। देश को कई अहम मौकों पर आर्थिक तंगी से बचाने वाली कंपनी एलआईसी को यूं औने-पौने दाम पर बेच देना देशहित में तो बिल्कुल नहीं है।

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