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विमर्श

आग लगाने वालों को अग्निशमन विभाग का जिम्मा, दुनियाभर में मानवाधिकार की निगरानी करेंगे ये देश

Janjwar Desk
2 Nov 2020 9:29 AM GMT
आग लगाने वालों को अग्निशमन विभाग का जिम्मा, दुनियाभर में मानवाधिकार की निगरानी करेंगे ये देश
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यूएन वाच नामक संस्था के अनुसार इस समय मानवाधिकार काउंसिल के अधिकतर सदस्य ऐसे है, जिनका चयन मानवाधिकार काउंसिल में नहीं बल्कि मानवाधिकार हनन काउंसिल, यदि कोई होती तो उसके लिए आसानी से किया जा सकता है......

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

अपने 75 वर्ष पूरे होते-होते संयुक्त राष्ट्र सामान्य जनता के लिए अपना पूरा महत्त्व खो चुका है, अब यह उन देशों की धरोहर बन गया है जो जनता का दमन करते हैं और मानवाधिकार का खुलेआम हनन करते हैं। ऐसे देश दुनिया की नज़रों में अपने आप को निर्दोष साबित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की सम्बंधित संस्थाओं के सदस्य पद पर पहुँच जाते हैं। दुनिया में भारत, रूस, चीन, पाकिस्तान, मेक्सिको और क्यूबा जैसे देश मानवाधिकार हनन के मामले में अग्रणी हैं और ये सभी देश संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संरक्षण से जुडी संस्था ह्यूमन राइट्स काउंसिल के सदस्य के रूप में भी हैं और ऐसे देशों को सदस्य बनाने के लिए बड़ी संख्या में अन्य देश भी समर्थन करते हैं।

हाल में ही वर्ष 2021 से 2023 तक के लिए ह्यूमन राइट्स काउंसिल के सदस्यों के चुनाव में चीन, पाकिस्तान, रूस, मेक्सिको और क्यूबा के अतिरिक्त बोलीविया, कोटे द आइवरी, फ्रांस, गैबन, मलावी, नेपाल, सेनेगल, यूक्रेन, यूनाइटेड किंगडम और उज्बेकिस्तान की जीत हुई है और ये देश दुनिया के मानवाधिकार की अब निगरानी करेंगें। भारत वर्ष 2019 से 2021 तक के लिए इसका सदस्य है। दुनिया में मानवाधिकार का क्यों अधिक से अधिक हनन किया जा रहा है, यह इन देशों की सूची से समझा जा रहा है। लगभग सभी मानवाधिकार संगठनों और कार्यकर्ताओं के अनुसार पिछले कुछ वर्षों के दौरान संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार काउंसिल अपनी गरिमा खो चुका है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान इसके अधिकतर चुने गए सदस्य स्वयं अपने देश में मानवाधिकार का खुलेआम हनन कर रहे हैं और अपने कारनामों पर पर्दा डालने और अपने विरुद्ध आवाज दबाने के लिए इस काउंसिल की सीट का उपयोग करते हैं।

संयुक्त राष्ट्र की सामान्य सभा में इन सीटों के लिए वोटिंग की जाती है। इसके 193 सदस्य हैं। ह्यूमन राइट्स काउंसिल में चुने गए सदस्यों को मिले मतों की संख्या से अनुमान लगाना आसान है कि दुनिया में मानवाधिकार शायद ही किसी की प्राथमिकता है। भारत में वर्ष 2014 के बाद मानवाधिकार पूरी तरह विलुप्त हो चुका है, इसे दुनिया जानती है, पर वर्ष 2018 में भारत का समर्थन कुल 193 देशों में से 188 देशों ने किया था। यह संख्या स्वयं यह साबित करती है कि भले ही भारत सरकार इसे अपनी बड़ी उपलब्धि बताती हो, पर मानवाधिकार की यह बड़ी हार थी।

इस बार के चुनावों में चीन में, हांगकांग में और ताइवान में लगातार खुलेआम मानवाधिकार हनन करने वाले चीन का समर्थन 139 देशों ने किया। रूस में सरकार के कट्टर विरोधियों को जहर देकर मार डाला जाता है, रूस दूसरे देशों में भी लोकतांत्रिक आन्दोलनों को कुचलने में संलग्न रहता है, फिर भी मानवाधिकार काउंसिल का सदस्य है और इसे 120 से अधिक देशों का समर्थन मिलता है। राहत की बात यह है कि सऊदी अरब जैसा देश भी इसके सदस्य बनने की होड़ में था, पर उसे केवल 90 वोट मिले और यह दौड़ से बाहर हो गया। मानवाधिकार काउंसिल की सदस्यता के लिए कम से कम 97 वोटों की दरकार होती है।

रूस, भारत, पाकिस्तान, मेक्सिको और चीन जैसे देश तो हरेक मौके पर मानवाधिकार हनन के एजेंडा को आगे बढाते हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के घोषणा पत्र 1325 के तहत युद्ध और गृहयुद्ध के क्षेत्रों में महिलाओं की सुरक्षा, महिलाओं पर होने वाली यौन हिंसा की रोकथाम और शान्ति समझौतों में उन्हें बराबरी का दर्जा देने की बातें कहीं गईं हैं। इस घोषणापत्र को लगभग 20 वर्ष हो चुके हैं, पर इसकी उपेक्षा अधिकतर देश करते हैं, फिर भी मानवाधिकार संगठन इसका सम्मान करते हैं और इनके अनुसार यह इस तरह का अकेला घोषणा पत्र है और जिसके आधार पर वे आवाज उठा सकते हैं। पर जिस दिन रूस मानवाधिकार काउंसिल का सदस्य चुना जा रहा था, ठीक उसी दिन सुरक्षा परिषद् में वह घोषणा पत्र 1325 में बदलाव का प्रस्ताव रख रहा था। हालांकि सुरक्षा परिषद् के दस सदस्यों ने अनुपस्थित रहकर इस प्रस्ताव को पारित नहीं होने दिया, पर इससे रूस की मानसिकता को आसानी से समझा जा सकता है।

यूएन वाच नामक संस्था के अनुसार इस समय मानवाधिकार काउंसिल के अधिकतर सदस्य ऐसे है, जिनका चयन मानवाधिकार काउंसिल में नहीं बल्कि मानवाधिकार हनन काउंसिल, यदि कोई होती तो उसके लिए आसानी से किया जा सकता है। मानवाधिकार कार्यकर्ता यंग जिंली के अनुसार मानवाधिकार काउंसिल को देखकर ऐसा लगता है मानो आग लगाने वालों को अग्निशमन विभाग में शामिल कर दिया गया हो। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि दुनियाभर में मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन किया जा रहा है, इसका कारण भी स्पष्ट है इसे बचाने की जिम्मेदारी ऐसे देशों के हाथ में है जिनके लिए मानवाधिकार कुछ भी नहीं है। जाहिर है, भारत, पाकिस्तान, चीन, मेक्सिको, क्यूबा और रूस जैसे देश मानवाधिकार हनन करना जानते हैं, उसे बचाना नहीं।

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