महिलाओं के जिम्मे अवैतनिक घरेलू कार्य पर प्रधानमंत्री से अपील, 71000 लोगों ने ऑनलाइन याचिका को दिया समर्थन
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
सामान्य दिनों में भी भारत में अधिकतर घरों के सारे काम, बच्चो की देखभाल और बीमारों की तीमारदारी का काम महिलायें और लड़कियां ही अवैतनिक तौर पर करती थी। लेकिन उस समय माध्यम वर्ग और अमीर तबके में यह स्पष्ट नहीं होता था, क्योंकि अधिकतर घरों में काम करने वाली महरी कई काम निपटा जाती थी। लेकिन लॉकडाउन के दौर में जब काम करने वाली महरी भी नहीं आने लगी तब घर में रहने वाली महिलाओं का काम अचाना कई गुना बढ़ गया।
इससे सबसे अधिक प्रभावित कामकाजी महिलाएं रहीं, जिन्हें ऑफिस नहीं जाना था पर घर से ही काम करना था। ऐसी महिलाओं के जिम्मे घर का पूरा काम, बच्चों की देखभाल और बूढ़े और बीमार सदस्यों की तीमारदारी सबका बोझ एक साथ आ गया और साथ ही ऑफिस का काम भी निपटाना था। हाल में एक सर्वेक्षण के अनुसार कामकाजी महिला घर में रहते हुए एक घंटा भी लगातार ऑफिस का काम नहीं कर पातीं थीं, जबकि घर के पुरुष तीन घंटे से अधिक समय तक लगातार काम कर पाते थे।
ऐसी ही कामकाजी महिलाओं की आवाज प्रधानमंत्री तक पहुचाने का बीड़ा मुंबई की एक कामकाजी माँ, सुबर्ना घोष ने उठाया है। उन्होंने एक अपील के माध्यम से प्रधानमंत्री जी से आग्रह किया है कि वे अपने अगले राष्ट्र के नाम संबोधन में इस समस्या को उठायें और पुरुषों को घर के काम करने के लिए प्रेरित करें। यह एक पेटीशन है, जिसे वेबसाइट www.change.org पर देखा जा सकता है और इससे जुदा जा सकता है। अब तक लगभग 71000 लोग इस पेटीशन का समर्थन कर चुके हैं। इसमें लिखा गया है –
प्रिय प्रधानमंत्री जी,
'लॉकडाउन के बहाने से एक बात याद आया
घर-बंदी मर्दों को क्या किसी ने समझाया
घर का काम औरत का है, बोलकर उसने ठुकराया
जीडीपी की बात छोडो, अपनों ने भी भुलाया
तब सोचा क्यों न मोदी जी से बात चलायें
कि अगले स्पीच में मर्दों को यह याद दिलाएं
घर का काम हर दिन है सबका
लॉकडाउन में फिर काम क्यों बढ़ता
भागीदारी ही है जिम्मेदारी
क्या बराबरी नहीं इंडिया को प्यारी?'
'यदि श्री मोदी हमें एकजुट होकर मोमबत्ती जलाने और तालियाँ बजाने के लिए प्रेरित कर सकतें हैं, तब यह हरेक घर में महिलाओं से होने वाले भेदभाव जैसे अनुचित व्यवहार को सही करने के लिए भी प्रेरित कर सकते हैं।'
'मैं सुबर्ना, मुंबई की एक कामकाजी माँ हूँ। सभी लोग जिनके पास घर है, लॉकडाउन के दौरान घर में ही सिमट कर रह गए। ऐसे समय में घरों को चलाना और परिवार की देखभाल पहले से अधिक कठिन और स्पष्ट हो गया। कोविड 19 के दौर में त्वरित और बहुआयामी अनेक समस्याएं स्पष्ट हो रहीं हैं पर लॉकडाउन में महिलाओं द्वारा घरों के अवैतनिक कार्यों के लम्बे समय से चली आ रही लंबित समस्या को फिर से उजागर कर दिया।'
'लॉकडाउन के दौरान पूरे भारत में महिलाओं पर अवैतनिक घरेली कार्यों के असमान वितरण की सबसे ज्यादा मार पडी है। फिर भी, महिलाओं का कार्य अदृश्य रहता है और कोई भी असमानता की चर्चा नहीं करना चाहता है।'
'पुरुषों और स्त्रियों के बीच अवैतनिक घरेलु कार्यों के असमान वितरण को पहचानने और इसे दूर करने की जरूरत नई नहीं है। वर्ष 2014 के ओईसीडी डेवलपमेंट सेंटर पेपर के अनुसार भारत में दिनभर के घरेलू कार्यों में महिलाओं का योगदान 6 घंटे का और पुरुषों का महज 36 मिनट का रहता है।'
'मैं अपने पति और दो बच्चों के साथ रहती हूँ और घरेलू कार्य के असमान वितरण से परेशान हो चुकी हूँ। अधिकतर भारतीय घरों में महिलाओं पर काम के अत्यधिक बोझ का प्रभाव स्पष्ट है और कामकाजी महिलाओं के लिए तो यह दुहरा बोझ है।'
इस पेटीशन को यदि नजरअंदाज भी कर दें तब भी हमारे देश में घरेलू कार्यों के असमान वितरण की समस्या बहुत गंभीर है। वर्ष 2018 में इन्टरनेशनल लेबर ओर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन पुरुषों के 29 मिनट के काम की तुलना में महिलायें 312 मिनट काम करती हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह समय क्रमशः 32 मिनट और 291 मिनट है।
ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलायें प्रतिदिन तीन अरब घंटे का अवैतनिक कार्य करती हैं, और इसका अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि देश के जीडीपी में इसका समावेश नहीं किया जाता।