केवल म्यांमार में ही सेना ने नहीं किया है तख्तापलट | Military Coup is increasing and world is watching silently
केवल म्यांमार में ही सेना ने नहीं किया है तख्तापलट | Military Coup is increasing and world is watching silently
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
Military Coup is increasing and world is watching | सिलेंटलीइस वर्ष 24 जनवरी को अफ्रीका महाद्वीप के देश, बुर्किना फासो (Burkina Faso), में चुनी सरकार को हटा कर सेना ने शासन की बागडोर संभाल ली| लेफ्टिनेंट कर्नल पॉल हेनरी डमिबा (Lt. Col. Paul-Henri Damiba) की अगवाई में सेना ने विद्रोह करते हुए राष्ट्रपति रौश कबोरे (President Roch Kabore) को अपदस्थ कर नजरबन्द कर दिया है| इसके बाद से अफ्रीकन यूनियन (African Union) ने बुर्किना फासो की सहायता बंद कर दी है और इसे यूनियन से बाहर कर दिया है| पिछले वर्ष, यानि 2021 में अफ्रीका के चार देशों – चाड, माली, गिनी और सूडान (Chad, Mali, Guinea & Sudan) में सेना द्वारा चुनी गयी लोकतांत्रिक सरकारों को अपदस्थ कर सेना ने सत्ता संभाला था| पिछले वर्ष 1 फरवरी के दिन एशिया में म्यांमार में सेना ने लोकतांत्रिक सरकार से सत्ता छीनी Military Coup in Myanmar) थी, और इसके बाद अफ़ग़ानिस्तान में चुनी गयी सरकार को गिराकर एक हिंसक गिरोह ने सत्ता हथिया ली|
म्यांमार के बाद दुनिया के देशों की सेना और हिंसक गिरोहों ने इतना तो समझ लिया है कि अब प्रजातंत्र की आवाज उठाने वाला कोई नहीं है| अमेरिका और यूरोप के देशों के लिए यूक्रेन की सीमा पर रूसी सेना का जमावड़ा तो समाचार बना सकता है, पर अफ्रीकी और एशियाई देशों के प्रति प्रजातंत्र की रट लगाने वाले सभी देश उदासीन हो चुके हैं| दूसरी तरफ यमन में सऊदी अरब और इथियोपिया के टाइग्रे क्षेत्र में पड़ोसी देश एरिट्रिया बार बार हमले कर रहा है और इसमें लगातार निर्दोष नागरिक मारे जा रहे हैं पर दुनिया खामोश है|
दुनिया में स्थिरता लाने के लिए स्थापित किया गया, संयुक्त राष्ट्र, तो अब दुनिया को अस्थिर बनाने में संलग्न है| इसका एक उदाहरण हाल में ही संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार मामलों की विशेष अधिकारी ने दिया है| डॉ नोएलीन हेय्ज़ेर, (Dr Noeleen Heyzer, UN Special Envoy to Myanmar) जो संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार मामलों की विशेष अधिकारी है, ने हाल में ही न्यूज़ एशिया नामक टेलीविज़न चैनल पर इंटरव्यू देते हुआ कहा कि म्यांमार में आन्दोलनकारी लोकतंत्र समर्थकों को सेना के साथ सत्ता के बटवारे पर विचार करना चाहिए| इस वक्तव्य के बाद जाहिर है, संयुक्त राष्ट्र म्यांमार में सेना को ही मान्यता देता है और चुनावों द्वारा चुनी गयी सरकार से उसका कोई सरोकार नहीं है|
म्यांमार के संविधान के अनुसार सेना सत्ता में बड़ी भागीदारी निभाती है, लगभग 25 प्रतिशत संसद सदस्य सेना द्वारा मनोनीत किये जाते हैं और वित्त और सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय भी सेना के पास ही रहते हैं| अपदस्थ प्रधानमंत्री आंग सु की के समय भी यही व्यवस्था थी| संयुक्त राष्ट्र ने इस व्यवस्था को बदलने की वकालत के बदले सेना को ही जायज ठहरा दिया है और उसके द्वारा लगातार किये जा रहे नरसंहारों को सही बता दिया है| पिछले कुछ वर्षों के दौरान संयुक्त राष्ट्र की ही अनेक रिपोर्ट म्यांमार की सेना को नरसंहार का दोषी ठहरा चुकी है और अब यही संस्था सुझाव दे रही है कि घोषित नरसंहारी ही शासन में काबिज रहेंगें और यदि लोकतंत्र समर्थक चाहें तो नरसंहारियों के साथ थोड़ी सी सत्ता बाँट सकते हैं|
डॉ नोएलीन हेय्ज़ेर के वक्तव्य के बाद म्यांमार और दुनियाभर के 250 से अधिक मानवाधिकार संगठनों ने एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी कर इस वक्तव्य की तीखी भर्त्सना की है और कहा है कि मानवाधिकार और लोकतंत्र को कुचलने वालों को संरक्षण देने में संयुक्त राष्ट्र प्रमुख भूमिका निभा रहा है| ऐसे वक्तव्य दुनिया को बदलने की क्षमता रखते हैं क्योंकि इससे हरेक उस शासक को बल मिलेगा जो निरंकुश है या फिर गैरकानूनी तरीके से सत्ता पर काबिज है|
म्यांमार में सत्ता में बैठी सेना अब लोकतंत्र समर्थकों के आन्दोलनों को कुचलने के लिए वायुसेना के लड़ाकू विमानों और घातक मिसाइलों का इस्तेमाल कर रही है| अनुमान है कि सत्ता पलट के बाद से लगभग 1400 लोकतंत्र समर्थक या फिर निर्दोष नागरिक सेना द्वारा मारे जा चुके हैं और सेना द्वारा लड़ाकू विमानों द्वारा हमले के बाद 4 लाख से अधिक नागरिक विस्थापित हो चुके हैं और लगभग 20,000 नागरिक देश छोड़कर दूसरे देशों में शरणार्थी की तरह शरण ले रहे हैं| अब तो सेना आन्दोलनकारियों की तलाश में घरों में आग लगा रही है, हाल में ही सेना ने 5 गाँव के 2200 से अधिक घरों को आग के हवाले कर दिया| म्यांमार में 110 से अधिक पत्रकार जेलों में बंद हैं और हाल में ही तीन पत्रकारों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया था जहां पुलिस की बर्बरता के बाद तीनों की मौत हो गयी| सेना द्वारा ल्क्तंत्र समर्थकों के सोशल मीडिया अकाउंट को भी ब्लाक किया जा रहा है और ऐसा अबतक 20000 से अधिक अकाउंट के साथ किया जा चुका है| दूसरी तरफ जनता गरीबी और भूखमरी से बेहाल है – वर्ष 2017 तक देश की कुल आबादी में से 24.8 प्रतिशत आबादी गरीब थी, पर अब या आंकड़ा 46.3 प्रतिशत तक पहुँच गया है|
अफ्रीका में कुछ दशक पहले तक सेना द्वारा तख्तापलट एक सामान्य घटना थी, पर पिछले दो दशकों से इसमें कमी आ गयी थी| वर्ष 1960 से 2000 के बीच औसतन प्रतिवर्ष 4 देशों में तख्तापलट की घटनाएं होती थीं, पर इसके बाद वर्ष 2019 तक यह संख्या 2 पर पहुँच गयी थी, पर पिछले वर्ष फिर से यह संख्या 4 तक पहुँच गयी है| माली में मई में, गिनी ने सितम्बर में और सूडान में अक्टूबर में सेना द्वारा तख्तापलट किया गया| संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अफ्रीका में सेना द्वारा तख्तापलट को एक महामारी बताते तो हैं, पर संयुक्त राष्ट्र की तरफ से इसे रोकने का कोई प्रयास नजर नहीं आता|