Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

अभिव्यक्ति की गुलामी के मामले में मोदी का न्यू इंडिया बना विश्वगुरु, अमेरिका को पछाड़ हासिल किया पहला स्थान

Janjwar Desk
20 July 2021 1:59 PM IST
अभिव्यक्ति की गुलामी के मामले में मोदी का न्यू इंडिया बना विश्वगुरु, अमेरिका को पछाड़ हासिल किया पहला स्थान
x

(ट्विटर की ट्रांसपरेंसी रिपोर्ट के अनुसार सरकारी स्तर पर ट्विटर की कोई विशेष पोस्ट हटाने के आदेश के मामले भी मोदीमय न्यू इंडिया दुनिया में दूसरे स्थान पर है)

अभिव्यक्ति की जिस कदर सरकारी गुलामी से मोदीमय न्यू इंडिया में जूझ रहा है, वही हालात अमेरिका के भी हैं, पर ऐसा कतई नहीं है। हमारे देश में केंद्र सरकार सीधा यूजर्स की पहचान कर ट्विटर से सरकारी स्तर पर ही उसकी जानकारी मांगती है....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

जनज्वार। ट्विटर हरेक वर्ष दो बार ट्रांसपरेंसी रिपोर्ट प्रकाशित करता है। इस रिपोर्ट में बहुत सारी जानकारी के साथ ही यह भी बताया जाता है कि किस देश की सरकार ने ट्विटर से कितने यूजर्स की जानकारी माँगी और कितने मैसेज को हटा देने का फरमान जारी किया। ट्विटर इस रिपोर्ट को वर्ष 2012 से लगातार प्रकाशित कर रहा है, और सरकार द्वारा यूजर्स की जानकारी माँगने के सन्दर्भ में अमेरिका लगातार पहले स्थान पर रहा है। इसी जुलाई के शुरू में ट्विटर की नई ट्रांसपरेंसी रिपोर्ट आयी है, जिसमें जुलाई 2020 से दिसम्बर 2020 तक के आंकड़े हैं। इस रिपोर्ट में पहली बार भारत ने अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए पहला स्थान हासिल किया है। निश्चय ही अभिव्यक्ति की गुलामी के सन्दर्भ में मोदी जी के राज में तथाकथित न्यू इंडिया विश्वगुरु बन गया है।

इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष जुलाई से दिसम्बर के बीच ट्विटर को दुनियाभर की सरकारों द्वारा यूजर्स की जानकारी माँगने से सम्बंधित कुल 14561 आदेश मिले, जो 51584 एकाउंट्स से सम्बंधित थे। इसमें से लगभग 25 प्रतिशत, कुल 3615 आदेश अकेले भारत सरकार द्वारा दिए गए। अमेरिका की हिस्सेदारी महज 22 प्रतिशत ही रही। जनवरी से जून 2020 की तुलना में भारत सरकार द्वारा ट्विटर यूजर्स की जानकारी माँगने के आदेशों में जुलाई से दिसम्बर के बीच 38 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी आंकी गयी।

आंकड़ों से ऐसा पता चलता है कि अभिव्यक्ति की जिस कदर सरकारी गुलामी से मोदीमय न्यू इंडिया में जूझ रहा है, वही हालात अमेरिका के भी हैं, पर ऐसा कतई नहीं है। हमारे देश में केंद्र सरकार सीधा यूजर्स की पहचान कर ट्विटर से सरकारी स्तर पर ही उसकी जानकारी मांगती है, जबकि अमेरिका में सरकार कोई जानकारी नहीं मांगती। वहां विभिन्न न्यायालयों में चल रहे मुकदमों में जब न्यायाधीश को ऐसी किसी जानकारी की आवश्यकता महसूस होती है, तब ट्विटर को जानकारी देने के लिए न्यायिक आदेश भेजा जाता है।

ट्विटर की ट्रांसपरेंसी रिपोर्ट के अनुसार सरकारी स्तर पर ट्विटर की कोई विशेष पोस्ट हटाने के आदेश के मामले भी मोदीमय न्यू इंडिया दुनिया में दूसरे स्थान पर है, केवल जापान हमसे आगे है। भारत के बाद इस सूचि में रूस, तुर्की और दक्षिण कोरिया हैं। ट्विटर को दुनिया भर से 131933 एकाउंट्स से कुल 38524 सामग्री/जानकारी हटाने के आदेश मिले, जिसमें से 6971 आदेश अकेले भारत से थे। जनवरी से जून 2020 की तुलना में भारत सरकार द्वारा ट्विटर यूजर्स के अकाउंट से जानकारी हटाने के आदेशों में जुलाई से दिसम्बर के बीच 151 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी आंकी गयी।

भारत सरकार के इन आदेशों के स्तर का आकलन करने के लिए यह आंकड़ा महत्वपूर्ण है – ट्विटर ने दुनियाभर की सरकारों के आदेशों का औसतन 29 प्रतिशत अनुपालन किया, पर हमारे देश के लिए यह आंकड़ा महज 9.1 प्रतिशत ही है।

हमारे प्रधानमंत्री अभिव्यक्ति और मानवाधिकार की रक्षा के स्वयंभू मसीहा हैं और इंदिरा गांधी की जून 1975 से घोषित आपातकाल को लोकतंत्र का काला दिन लगातार बताते रहे हैं। अब, उनके राज में देश घोषित आपातकाल से अधिक बुरा दौर अघोषित आपातकाल झेल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने घोषित आपातकाल के दौर में क्या किया, यह कोई नहीं जानता – वैसे उनके चाय बेचने का किस्सा भी कोई नहीं जानता। पर, आपातकाल ख़त्म होने के बाद वर्ष 1978 में उन्होंने गुजराती में एक पुस्तक प्रकाशित की, संघर्षमां गुजरात। इसमें उन्होंने बताया है कि किस तरह उन्होंने अपनी वेशभूषा बार-बार बदल कर आपातकाल के पूरे 19 महीने भूमिगत जीवन व्यतीत किया, सरकार के विरुद्ध आदोलनकारियों को सहायता पहुंचाई और तत्कालीन सरकार द्वारा प्रतिबंधित साहित्य और पुस्तकों को गुजरात के साथ ही मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र तक पहुंचाया। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि यह सब उन्होंने लोकतंत्र, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी को बचाने के लिए किया। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि आज सत्ता के शीर्ष पर बैठे मोदी जी लोकतंत्र, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी पूरी तरह कुचल रहे हैं। पूरी दुनिया में लोकतंत्र के नाम पर जितने भी बड़े आन्दोलन हुए हैं, उसका ऐसा ही हश्र हुआ है।

इन्टरनेट पर नजर रखने वाली संस्था, असेस नाउ की एक रिपोर्ट के अनुसार इन्टरनेट पर पाबंदी लगाने के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे है। ऐसा कारनामा हमारा देश वर्ष 2018 से लगातार करता आ रहा है। कश्मीर में लोकतंत्र बहाली के नाम पर इंटरनेट बंद कर दिया जाता है, आन्दोलनकारी किसानों से बातचीत के दिखावे के बीच इन्टरनेट बंद कर दिया जाता है, सरकार प्रायोजित दिल्ली दंगों के नाम पर इन्टरनेट बंद कर दिया जाता है, और कभी-कभी तो बिना कारण ही डिजिटल इंडिया में यह कारनामा किया जाता है। वर्ष 2020 में दुनिया के 29 देशों में सरकारी स्तर पर 155 बार इन्टरनेट बंद किया गया, जिसमें से 70 प्रतिशत से भी अधिक, 109 बार हमारे देश में ही बाद किया गया। हमारे देश में इन्टरनेट बंदी का आलम यह है कि इस सूचि में दूसरे स्थान पर यमन है, जहां महज 6 बार ऐसी बंदी की गयी। पिछले वर्ष हमारे देश में कुल 8927 घंटे इन्टरनेट बंद किया गया, दूसरे स्थान पर म्यांमार है जहां 5160 घंटे की बंदी की गयी।

वर्ष 2014 से अभिव्यक्ति की सरकारी गुलामी से हम इस कदर घिर गए हैं कि इजराइल के एनएसओ ग्रुप द्वारा विकसित और दुनिया भर के निरंकुश और डरपोंक शासकों का चहेता निगरानी तंत्र पेगासस सॉफ्टवेयर की मदद से मोबाइल हैक करने की खबर भी कोई आश्चर्य नहीं पैदा करती। आश्चर्य इस तथ्य पर जरूर होता है कि इस सरकार ने केवल 40 पत्रकारों, राहुल गांधी समेत चन्द विपक्षी नेताओं, और कुछ वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ही जासूसी की। सरकार ने अपने दो मंत्रियों के साथ यह कारनामा कर अपने कलंक को भी धो डाला, जैसे हत्यारे खून के दाग धोते हैं।

सरकार तो पहले से ही लगातार सोशल मीडिया पर नजरें गडाए बैठी है और अपनी मर्जी से लोगों के अकाउंट बंद करा रही है और अपने पक्ष में ना होने वाले मैसेज को सोशल मीडिया साइट्स से हटवा रही है। कम से कम ट्विटर पर तो ऐसा ही किया जा रहा है। वर्ष 2017 से वर्ष 2019 तक सरकार लगभग 141 ट्विटर अकाउंट को बंद कराने/नियंत्रित करने के साथ-साथ कम से कम 10 लाख ट्वीट किये मैसेज को हटवा चुकी है। यह सभी ट्वीट कश्मीर के हालात से सम्बंधित थे। इसका खुलासा न्यू यॉर्क स्थित कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने किया था।

कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने आरोप लगाया था कि ट्विटर भारत सरकार के अघोषित सेंसरशिप में बड़ी भूमिका निभा रहा है। हालत यहाँ तक पंहुंच गयी है कि पिछले दो वर्षों के दौरान भारत में जितने ट्विटर अकाउंट पर पाबंदी लगाई गयी है और जितने मैसेज डिलीट किया गए हैं वह आंकड़ा पूरी दुनिया के सभी देशों की संख्या को जोड़ने के बाद की संख्या से भी बड़ा है। पूरी दुनिया में सरकारों के अनुरोध पर जितने मैसेज ट्विटर आधिकारिक तौर पर डिलीट करता है, उसमें से 51 प्रतिशत से अधिक भारत में किये जाते हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि सरकार वर्ष 2017 से ही कश्मीर की सारी खबरों को दबाती चली आ रही है। जिन लोगों के ट्विटर अकाउंट पर पाबंदी लगाई गयी है, उनमें से अधिकतर पाबंदी ऐसी है जिसमें मैसेज देश में नहीं देखा जा सकता।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बेर्क्मन क्लीन सेंटर में ट्विटर की गतिविधियों का गहन विश्लेषण किया जाता है। इसके अनुसार अगस्त 2017 से 2019 तक भारत सरकार ने ट्विटर अकाउंट बंद करने के या फिर मैसेज डिलीट करने के कुल 4722 अनुरोध/आदेश किये, इनमें से 131 अनुरोध स्वीकार कर इसपर कार्यवाही की गयी। कुल अनुरोध की तुलना में कार्यवाही वाले अनुरोध की संख्या कम लग सकती है, पर यहाँ यह जानना भी आवश्यक है कि एक ही अनुरोध में अनेक अकाउंट बंद करने के या फिर हजारों मैसेज डिलीट करने के बारे में कहा जाता है। इस अवधि की तुलना में वर्ष 2012 से जुलाई 2017 तक भारत सरकार ने ऐसे कुल 900 अनुरोध/आदेश किये, पर इसमें से महज एक अनुरोध पर ट्विटर ने कार्यवाही की। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के अनुसार, यह स्पष्ट है कि अगस्त 2017 के बाद एकाएक भारत सरकार ट्विटर को सेंसर करने लगी और इसमें ट्विटर ने भी सरकार का बखूबी साथ दिया।

इससे तो यही लगता है कि भले ही अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटाया गया हो पर इसकी तैयारी दो वर्ष पहले से की जा रही थी। मैसेक को ब्लाक करके कश्मीरियों की आवाज दबाई जा रही थी और उन्हें पूरे दुनिया से अलग-थलग किया जा रहा था। अनेक सोशल मीडिया विशेषज्ञों का मत है कि ट्विटर को भारत सरकार ने इसलिए चुना क्योंकि अधिकतर कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ता और स्थानीय मीडिया से जुड़े लोग ट्विटर के द्वारा ही एक दूसरे से जुड़े हैं और इसी के माध्यम से एक दूसरे तक सन्देश भेजते हैं।

संयुक्त राष्ट्र के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विशेषज्ञ डेविड काये ने इस सन्दर्भ में ट्विटर के सीईओ जैक डोरसे को पत्र भी लिखा था। इसमें कहा गया था कि पिछले कुछ वर्षों से भारत सरकार ने मीडिया के अघोषित सेंसरशिप का दायरा बढाने के बहुत प्रयास किये हैं और नए तरीके भी इजाद किये हैं। इन सबसे भारत में लोगों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सूचना तक पहुँच का अधिकार, समान विचारों वाले लोगों के समुदाय बनाने के अधिकार और कुल मिलाकर मौलिक अधिकारों का तेजी से हनन किया जा रहा है। उन्होंने पत्र में ट्विटर से पूछा था कि आप लोगों ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए बनाया है, फिर सरकारी अघोषित सेंसरशिप में आप कैसे भागीदार हो सकते हैं? जब सरकारें आप बहुत दबाव बनाती हैं तब क़ानून के दरवाजे तो खुले रहते हैं, यदि आप निष्पक्ष हैं तो निश्चित तौर पर आपको कानूनी रास्ता अपनाना चाहिए।

अभी हम संसद में दिखावे के लिए ही सही, पर अभिव्यक्ति की आजादी की बात करते है, पर सेंट्रल विस्टा वाले नए संसद भवन तक पहुंचते-पहुंचते हम अभिव्यक्ति की गुलामी पर चर्चा करेंगें और इन सबके बीच हमारे प्रधानमंत्री लोकतंत्र, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति पर प्रवचन देंगें और अभिव्यक्ति को विलुप्त कर चुका मीडिया इस प्रवचन को बार-बार प्रसारित करेगा।

Next Story

विविध