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विमर्श

दुनिया में 550 से अधिक ऐसे गैजेट्स का किया जा रहा इस्तेमाल, जिससे कर्मचारियों-श्रमिकों और आम जनता की हो सकती है जासूसी

Janjwar Desk
13 Feb 2023 5:11 AM GMT
दुनिया में 550 से अधिक ऐसे गैजेट्स का किया जा रहा इस्तेमाल, जिससे कर्मचारियों-श्रमिकों और आम जनता की हो सकती है जासूसी
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दुनिया में 550 से अधिक ऐसे गैजेट्स का किया जा रहा इस्तेमाल, जिससे कर्मचारियों-श्रमिकों और आम जनता की हो सकती है जासूसी

हम आज के दौर में एक खतरनाक दौर में जी रहे हैं, जहां हमारे मस्तिष्क में उपजे विचार भी कोई और पता कर सकता है तो दूसरी तरफ ऐसे उपकरण भी हैं, जिनसे हमारे मस्तिष्क को और हमारे विचारों को नियंत्रित किया जा सकता है, हमारी सोच को बदला जा सकता है...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Spying your brainwaves is the new normal of autocracy and capitalist world. दुनिया में जितनी आर्थिक असमानता है उसमें सर्वाधिक योगदान स्विट्ज़रलैंड के दावोस में स्थित वर्ल्ड इकनोमिक फोरम का है। यहाँ दुनिया के नेताओं और पूंजीपतियों की सालाना बैठक में पिकनिक वाले माहौल में सत्ता जनता को और पूंजीपति अपने श्रमिकों को गुलाम बनाने पर चर्चा करते हैं। इसका नतीजा पूरी दुनिया पर दिख रहा है, निरंकुश सत्ता का दायरा बढ़ रहा है और पूरी दुनिया में श्रमिकों के अधिकार छीने जा रहे हैं। यहाँ विकास और उत्पादकता बढाने के नाम पर क्रूर और दमन के तरीकों पर चर्चा की जाती है।

पिछली सालाना बैठक के दौरान ड्यूक यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर नीता फराहन्य ने दुनिया के नेताओं के सामने एक शोधपत्र प्रस्तुत किया था, जिसमें मानव मस्तिष्क की जासूसी के लिए न्यूरोटेक्नोलॉजी के वर्तमान उपयोग का दायरा बढाने पर चर्चा की गयी थी। जासूसी के सन्दर्भ में आजकल चीन के बैलून या फिर हवा में उड़ते अनआईडेंटीफाईड ऑब्जेक्ट की खूब चर्चा की जा रही है, बड़े-बड़े लेख प्रकाशित किये जा रहे हैं और दुनियाभर ने नेताओं के वक्तव्य आ रहे हैं।

इससे पहले पूरी दुनिया में पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर की भी खूब चर्चा की गयी। पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं के जासूसी की खबरें भी आती हैं। हाल में ही जासूसी का जिन्न दिल्ली में भी प्रकट हुआ था, पर जब श्रमिकों के जासूसी की बात आती है तब कोई चर्चा नहीं होती।

प्रोफ़ेसर नीता फराहन्य के अनुसार दुनियाभर के उद्योगों, बहुराष्ट्रीय घरानों के कार्यालयों और पूंजीवादी समाज में श्रमिकों को ऐसा सेंसर पहनाने का चलन बढ़ गया है जो मालिकों या फिर उनके चुनिन्दा अधिकारियों को यह खबर पहुंचाता है कि कौन सा श्रमिक थक गया है, पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहा है या फिर उसे नींद आ रही है। दरअसल इन सेंसर से श्रमिकों के मस्तिष्क के भीतर के इलेक्ट्रिकल इम्पल्स को पढ़ा जाता है। सीधे शब्दों में इसे मस्तिष्क की जासूसी कहा जा सकता है।

पूंजीवाद इसे लम्बे समय तक और खतरनाक काम करने वाले श्रमिकों, जैसे ड्राईवर या फिर खानों के भीतर काम करने वाले श्रमिकों की सुरक्षा कवच बताता है, पर दरअसल इसका उपयोग केवल उत्पादकता बढाने और श्रमिकों के आपसी मुलाकातों को कम करने के लिए किया जाता है। श्रमिकों की आपसी मुलाकातें कम करने का फायदा यह है कि इससे उनकी समस्याएं उजागर नहीं होतीं और फिर उनकी एसोसिएशन नहीं बन पाता।

प्रोफ़ेसर नीता फराहन्य ने ऐसे ही एक सेंसर के नए प्रारूप को प्रस्तुत किया है, जिसे किसी को पहनाकर या फिर उसके कपड़ों में स्थापित करने के बाद दूर बैठकर भी आप यह जान सकते हैं कि उसके मस्तिष्क में क्या चल रहा है। जाहिर है, इसे किसी में भी स्थापित कर मस्तिष्क की पूरे जासूसी की जा सकती है। प्रोफ़ेसर नीता फराहन्य ने दुनियाभर के नेताओं और पूंजीपतियों के बीच अपने भाषण में आगाह किया है कि यदि इस उपकरण का गलत उपयोग किया गया तो निश्चित तौर पर यह दुनिया में दमन का सबसे घातक हथियार साबित होगा, क्योंकि ऐसी प्रोद्योगिकी का व्यापक इस्तेमाल किया जाता है।

यहाँ यह जानना आवश्यक है कि इस समय दुनिया में 550 से अधिक ऐसे उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है जिससे कर्मचारियों, श्रमिकों या फिर आम जनता की जासूसी की जा सकती है। हरेक कर्मचारी के सामने एक लैपटॉप जो रखा रहता है, वह भी जासूसी का एक प्रकार ही है। आपने कितने समय कम्यूटर के सामने बिताया, कंप्यूटर पर क्या किया, कौन सी साईट देखी... बॉस को सब पता होता है।

इसी तरह हमारा स्मार्टफ़ोन भी हमारी जासूसी करता रहता है। गूगल दुनिया में सबसे बड़ा जासूस है। सड़कों, कार्यालयों, बाजारों में लगे कैमरे भी जासूसी ही करते हैं। ये सभी उपकरण, जनता की सुरक्षा के नाम पर स्थापित किये जाते हैं, पर इससे जनता सुरक्षित नहीं होती, अपराध कम नहीं होते और न ही भ्रष्टाचार कम होता है। पेगासस को भी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बताया गया था, हरेक देश की सत्ता ने इसका उपयोग भी किया, पर केवल विरोधियों की जासूसी के लिए। दुनिया में कहीं भी इससे राष्ट्रीय सुरक्षा में मदद मिली हो, ऐसा कोई सबूत ही नहीं है।

जाहिर है हम आज के दौर में एक खतरनाक दौर में जी रहे हैं – जहां हमारे मस्तिष्क में उपजे विचार भी कोई और पता कर सकता है तो दूसरी तरफ ऐसे उपकरण भी हैं, जिनसे हमारे मस्तिष्क को और हमारे विचारों को नियंत्रित किया जा सकता है, हमारी सोच को बदला जा सकता है।

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