Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

म्यांमार : दुनिया से दफ़न हो गया लोकतंत्र, पूंजीपतियों का एक पिकनिक स्थल बनकर रह गया संयुक्त राष्ट्र

Janjwar Desk
12 April 2021 1:30 PM GMT
म्यांमार : दुनिया से दफ़न हो गया लोकतंत्र, पूंजीपतियों का एक पिकनिक स्थल बनकर रह गया संयुक्त राष्ट्र
x
दुनिया की खामोशी से उत्साहित म्यांमार की सेना पहले से भी बड़े पैमाने पर नरसंहार करने लगी है। अब आन्दोलनकारियों के साथ ही सेना के निशाने पर डॉक्टर और दूसरे स्वास्थ्यकर्मी भी हैं, जो घायल नागरिकों का इलाज कर रहे हैं, या उनके लिए ऐम्बुलेंस का इंतजाम कर रहे हैं.....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

म्यांमार की सेना हरेक दिन लोकतंत्र का जनाजा निकाल रही है, और यह साबित कर रही है कि दुनिया के लिए लोकतंत्र और प्रजातंत्र जैसे शब्द अब विलुप्त को चुके हैं और संयुक्त राष्ट्र अब केवल पूंजीपतियों और सत्तालोभी शासकों का एक पिकनिक स्थल बन कर रह गया है। म्यांमार में पिछले ढाई महीने से सेना अपने भारी-भरकम हथियार लेकर शांतिपूर्ण आन्दोलन कर रही जनता को मार रही है, नरसंहार कर रही है और पूरी दुनिया खामोश है| इस दौर में ब्रिटेन को छोड़कर कोई भी देश, जिसमें अमेरिका भी शामिल है, म्यांमार के बारे में ना तो कोई सार्थक वक्तव्य दे रहा है और ना ही किसी प्रतिबन्ध की बात कर रहा है।

दुनिया की खामोशी से उत्साहित म्यांमार की सेना पहले से भी बड़े पैमाने पर नरसंहार करने लगी है। अब आन्दोलनकारियों के साथ ही सेना के निशाने पर डॉक्टर और दूसरे स्वास्थ्यकर्मी भी हैं, जो घायल नागरिकों का इलाज कर रहे हैं, या उनके लिए ऐम्बुलेंस का इंतजाम कर रहे हैं। 9 अप्रैल तक लगभग 620 आन्दोलनकारी मारे जा चुके हैं और सेना ने कम से कम 6 डोक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को या तो गोलियों से भून दिया या फिर हिरासत में यातनाएं देकर मार डाला। म्यांमार में फरवरी से शुरू हुए आन्दोलन के समर्थन में सबसे पहले सरकारी अस्पतालों के डोक्टर ही उतारे थे, जाहिर है सेना इनसे बदला लेना चाहती है।

लगभग हरेक दिन सेना अनेक सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में मार्च करती है और यदि कहीं भी इलाज कराते आन्दोलनकारी मिलते हैं तो सेना घायल आन्दोलनकारी के साथ ही इलाज कर रहे या देखभाल कर रहे स्वास्थ्यकर्मी को भी उठाकर ले जाती है और जेल में बंद कर देती है। मानवाधिकार के लिए काम करने वाली संस्था, राह वाला, के अनुसार अब तो डोक्टरों को सेना लगातार निशाना बना रही है और बड़ी संख्या में स्वास्थ्यकर्मी जेलों में डाले जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के सिक्यूरिटी कौंसिल ने भी म्यांमार की सेना द्वारा स्वास्थ्य कर्मियों को निशाना बनाकर हमले की कार्यवाही को रोकने को कहा है। फरवरी से अबतक सेना और पुलिस की कार्यवाही से 43 बच्चों की मृत्यु हो चुकी है, इनमें 5 वर्ष तक के बच्चे भी शामिल हैं।

अनेक विशेषज्ञों के अनुसार म्यांमार अब दूसरा सीरिया बनाने की राह पर है। वर्ष 2011 से सीरिया गृहयुद्ध की आग में झुलस रहा है और विश्व समुदाय ने उसे अपने हाल पर छोड़ दिया है। गृहयुद्ध में अब तक 5 लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और लगभग डेढ़ करोड़ नागरिक देश छोड़कर दूसरे देशों में विस्थापितों की जिन्दगी बिता रहे हैं। सीरिया के नाम पर अमेरिका और रूस में लगातार तनातनी बनी रहती है जिसके कारण गृहयुद्ध पहले से अधिक भयानक होता जा रहा है। म्यांमार में अभी तक जनता शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रही है और इसके जवाब में सेना और पुलिस गोलियां चला रही है| अनेक खबरों के अनुसार अब जनता भी एकजुट होकर सशस्त्र संघर्ष की तैयारी कर रही है| दूसरी तरफ म्यांमार की अनेक जनजातियाँ भी सेना के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष और गोरिल्ला युद्ध का ऐलान करने वाली हैं।

म्यांमार में यदि गृहयुद्ध होता है तब यह बरसों चलता रहेगा क्योंकि अमेरिका वहां के नागरिकों का समर्थन करेगा और जरूरत पडी तो उन्हें हथियार भी देगा, तो दूसरी तरफ पड़ोसी देश चीन नरसंहार में सेना की मदद कर रहा होगा। पूरी दुनिया इन दिनों ऐसे ही चल रही है। प्रसिद्द लेखक जॉर्ज ओरवेल की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक है, नाइनटीन एट्टीफोर (1984)| यह पुस्तक 1949 में प्रकाशित की गयी थी और इसमें बताया गया था की 1984 तक दुनिया तीन ध्रुवों में बंटी होगी – अमेरिका, सोवियत संघ और चीन। सोवियत संघ का विघटन हो चुका है, पर इस पुस्तक में जितनी बातें 1984 के बारे में बताई गईं थीं, सभी बातें अब 2021 में साबित होती दिख रहीं हैं।

ये तीनों ही देश दुनिया को अस्थिर बनाने में लगे हैं| उदाहरण भी सामने हैं – इसे महज संयोग कह कर टाला नहीं जा सकता है कि जिस समय रूस उक्रेन में अपनी सेना भेजता है, ठीक उसी समय चीन ताइवान के ऊपर अपने वायु सेना की पैरेड कराता है| जानकारों का कहना है कि रूस और चीन का हरेक कदम एक-दूसरे को पहले से पता होता है| दरअसल रूस और चीन एक साथ इस तरह के कदम उठा कर अमेरिका के जो बाईडेन प्रशासन को परख रहे हैं की दुनिया में मानवाधिकार बहाल करने के लिए वे कितनी दूर तक जा सकते हैं| फिलहाल तो, दुनिया में हरेक जगह मानवाधिकार हनन का सिलसिला चल रहा है ऐसे में क्या वर्ष 2021 जॉर्ज ओरवेल का 1984 साबित होगा?

Next Story

विविध