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विमर्श

राष्ट्रीय मुद्दा : बस्तर आदिवासियों की ऐसी युद्धभूमि जहां बेटे अपने ही परिजनों पर तान रहे 'सरकार' की बंदूक

Janjwar Desk
18 Dec 2021 3:00 PM GMT
लक्ष्मी के मन में ऐसा गुस्सा भरा कि वह अब आस पास के आदिवासियों को अन्याय के खिलाफ लड़ने में मदद करती है और अब वह उस पूरे इलाके की जैसे माँ ही बन गई है।
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(गोमपाड़ गाँव में सत्याग्रह कर इंसाफ मांग रहे आदिवासी)

Bastar : सरकार के इरादे बिलकुल साफ हैं। भविष्य में बस्तर के खनिजों को कार्पोरेट को सौंपते समय जब आदिवासी जल जंगल जमीन को बचाने के लिए संघर्ष करेगा तो इन्हीं आदिवासियों के बच्चे सरकार की तरफ से अपने ही लोगों पर गोलियां चलाएंगे....

हिमांशु कुमार का विश्लेषण

Bastar : दस दिसम्बर को सोनी सोरी गोमपाड़ गई थीं। वहाँ सिंगारम गाँव से भी लोग आये थे। अन्य गावों से आये हुए हजारों आदिवासी भी वहाँ शामिल थे। सोनी सोरी लौट कर आ गई हैं लेकिन आदिवासी अभी भी वहां बैठे हुए हैं। यह आदिवासी गोमपाड़ गाँव में एक सत्याग्रह कर रहे हैं जिसमें इनकी मांग इन्साफ की है। इस धरने में मुख्य वक्ता लक्ष्मी थी। लक्ष्मी वही महिला है दो साल पहले जिसकी बेटी हिड़में के साथ सिपाहियों ने बलात्कार कर के मार डाला था और उसकी लाश को नक्सलियों वाली वर्दी पहना दी थी।

इसका पता इस बात से चला कि लाश में गोलियों के छेद थे लकिन वर्दी में एक भी सुराख नहीं था। हिड़में की माँ लक्ष्मी हाईकोर्ट गई। पुलिस ने अपने बचाव में कहा कि लक्ष्मी तो हिड़में की माँ ही नहीं है। लक्ष्मी ने डीएनए जांच की मांग की लेकिन कोर्ट वगैरह छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को इतना भी सीरियसली नहीं लेते कि उनकी मांग पर डीएनए टेस्ट कराते घूमें तो जज साहब ने पुलिस की बात मान ली और मुकदमा खारिज कर दिया।

इस अन्याय ने लक्ष्मी के मन में ऐसा गुस्सा भरा कि वह अब आस पास के आदिवासियों को अन्याय के खिलाफ लड़ने में मदद करती है और अब वह उस पूरे इलाके की जैसे माँ ही बन गई है।

गोमपाड़ में सिर्फ हिड़में को ही नहीं मारा गया। पिछले पांच सालों में यहाँ तीस आदिवासियों की हत्या की जा चुकीं हैं। सन 2009 में इस गाँव में सोलह आदिवासियों को सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन ने मार डाला था जिनमें से ज्यादातर को तलवार से मारा गया था। इस घटना में एक डेढ़ साल के बच्चे सुरेश की उँगलियाँ भी सिपाहियों ने काट दी थीं। सुरेश की माँ और आठ साल की मौसी और नाना नानी को भी पुलिस ने तलवारों से काट डाला था।सोनी सोरी उस सुरेश से भी मिली।

इसके अलावा इस घटना की गवाह सोढ़ी संभो से भी सोनी सोरी की मुलाकात हुई जिसके पाँव में गोली मार दी गई थी। सोढ़ी संबो को हम लोग सन् 2009 में दिल्ली इलाज के लिए ले गये थे। मारे गये लोगों के परिवारवाले भी दिल्ली गये थे। सुप्रीम कोर्ट में मामला डाला गया था। बाद में सोढ़ी संभो और इन सभी आवेदकों का पुलिस ने अपहरण कर लिया था। इसी मामले में सरकार ने कहा था कि हिमांशु कुमार नक्सल समर्थक हैं तो सर्वोच्च न्यायलय ने सरकार को लताड़ लगाईं थी और कहा था यह माओवादी समर्थक वाली झूठी कहानियां हमें मत सुनाओ। बहरहाल अभी भी यह मामला सर्वोच्च न्यालय में लम्बित है।

इसी कार्यक्रम में सिंगारम गांव के लोग भी आये थे। सिंगारम में अट्ठारह आदिवासियों को लाइन में खड़ा करके गोली से उड़ा दिया गया था। इस घटना में चार लड़कियों की भी हत्या की गई थी। जब अरुंधती राय ने दंतेवाडा के तत्कालीन एसपी से पूछा तो उन्होंने कहा था मैडम बताइये मारी गई लड़की के पास डेटाल और पट्टियां कहाँ से आई, जरूर वह नक्सलियों का इलाज करती थी आपको और कौन सा सबूत चाहिए उसके नक्सली होने का।

इस घटना के बारे में अरुंधती राय ने एक लेख भी लिखा था। इस घटना को भी हम हाईकोर्ट में ले गये थे। इस घटना को छत्तीसगढ़ विधानसभा में उठाने के कारण तीस कांग्रेसी विधायकों को निलम्बित कर दिया गया था। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मुठभेड़ को फर्ज़ी घोषित किया था लेकिन अभी तक तक हाईकोर्ट ने इस पर कोई फैसला नहीं दिया है।

इसके अलावा वेच्चापाड़ में भी आदिवासी धरने पर बैठे हैं। वहाँ के बारे में मैं पहले कई बार लिख चुका हूँ। वहाँ दो लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया और फिर जेल में डाल दिया गया, कई आदिवासियों की हत्या की गई। उस गाँव के लोगों को लेकर मैं दिल्ली आया था और जेएनयु में एक बड़ी जन सुनवाई हुई थी। इसके अलावा सिल्गेर और अबूझमाड में भी आदिवासी सत्याग्रह पर बैठे हुए हैं।

दूसरी तरफ सरकार अपने हथियार बंद सैनिकों की नई नई टुकड़ियां तैयार कर रही है। नियमित पुलिस के अलावा डीआरजी के नाम पर सलवा जुडूम के एसपीओ को भर्ती किया गया है। हांलाकि सुप्रीम कोर्ट ने इनसे हथियार वापस लेने का आदेश दिया था लेकिन भाजपा सरकार ने महज उनका नाम बदला दिया था। कांग्रेस सरकार भी उसे जारी रखे हुए है। अभी बस्तर फाइटर के नाम से आदिवासियों की नई टुकड़ी में भर्ती जारी है।

सरकार के इरादे बिलकुल साफ हैं। भविष्य में बस्तर के खनिजों को कार्पोरेट को सौंपते समय जब आदिवासी जल जंगल जमीन को बचाने के लिए संघर्ष करेगा तो इन्हीं आदिवासियों के बच्चे सरकार की तरफ से अपने ही लोगों पर गोलियां चलाएंगे।

ऐसा पहली बार नहीं होगा सरकार हमेशा से ऐसा ही करती है। गरीब को गरीब से लड़वाकर अमीर का फायदा सरकारों का पुराना तरीका रहा है। कुछ भी हो लेकिन इतना साफ है कि बस्तर की ज़मीन और आसमान कुछ समय बाद और ज्यादा लाल होने वाला। जमीन आदिवासियों के खून से लाल होगी और ज़मीन लोहे के खदानों से उड़ने वाली धुल से।

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