कृत्रिम प्रकाश के प्रदूषण से जलवायु परिवर्तन पर संकट, बर्बाद हो रहा बिजली की खपत का लगभग 35 प्रतिशत
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
वैज्ञानिक लम्बे समय से बता रहे हैं कि अत्यधिक कृत्रिम प्रकाश भी एक तरह का प्रदूषण है। इससे रात में आसमान में तारे दिखने बंद हो जाते हैं, उपग्रहों से रात में पृथ्वी का चित्र लेने में बाधा पड़ रही है और साथ ही बिजली की बर्बादी भी हो रही है। पर, हाल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार इस प्रकाश प्रदूषण का मानव के साथ ही जीव-जन्तुओं पर भी व्यापक असर पड़ रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह असर इतना व्यापक है कि अब प्रकाश प्रदूषण को भी जलवायु परिवर्तन, तापमान बृद्धि और प्रजातियों के विनाश जैसी समस्याओं के समकक्ष रखने की जरूरत है।
पहले बिजली का उपयोग केवल घरों को रोशन करने के लिए किया जाता था, फिर बाद में सड़कें, सार्वजनिक स्थल, बड़े कार्यालय और भवन, स्टेडियम, उद्योग, ऐतिहासिक स्थल, नदी का किनारा, समुद्र का किनारा और बाजार में भी रातभर बिजली जली रहती है। अब तो शहरों को रात में भी दिन जैसा प्रकाश में डुबोने की होड़ लग गई है। प्रकाश की तीव्रता भी बढ़ती जा रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है – जब हम सडकों से, रेलगाड़ी से या वायुयान से यात्रा करते हैं तब आसमान में फ़ैली रोशनी से हम यह अनुमान लगा लेते हैं कि अब कोई शहर आने वाला है। कहीं भी प्रकाश आसमान में फ़ैलाने के लिए नहीं किया जाता, फिर भी यह वायुमंडल में फैलता है, और यही प्रकाश प्रदूषण है। प्रकाश के प्रभाव का उदाहरण भी हमारे सामने सामान्य तौर पर आता है। बारिश के मौसम में कीट-पतंगे प्रकाश के चारो-तरफ उड़ते हैं और सुबह तक जलते बल्ब की गर्मी से मर जाते हैं। प्रकाश प्रदूषण के कारण कीटों की अनेक प्रजातियाँ विलुप्तीकरण के कगार पर हैं।
मानव निर्मित प्रकाश का दायरा और तीव्रता प्रतिवर्ष 2 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सटर के वैज्ञानिकों के अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन का जैसा व्यापक असर पड़ रहा है, वैसा ही व्यापक असर प्रकाश प्रदूषण का भी है। इससे जन्तुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियों में हॉर्मोन के स्तर पर परिवर्तन आ रहे हैं, प्रजनन चक्र अनियमित होता जा रहा है, व्यवहार बदल रहा है और शिकारियों की चपेट में आसानी से आ रहे हैं। जिस तरह प्रकाश में मनुष्यों को सोने में दिक्कत आती है, उसी तरह पूरे जीवजगत पर प्रभाव पड़ रहा है। पृथ्वी पर जीवन में दिन और रात के अँधेरे का व्यापक प्रभाव है और पूरे जीवजगत का विकास इसी आधार पर हुआ है।
इस अध्ययन को जर्नल ऑफ़ नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन के नए अंक में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन का आधार प्रकाश प्रदूषण का जीवजगत पर पड़ने वाले प्रभावों से सम्बंधित दुनियाभर में प्रकाशित 126 शोधपत्र हैं। इसके अनुसार प्रकाश प्रदूषण का सबसे गहरा प्रभाव कीट जगत पर पड़ रहा है। यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि दुनियाभर में जीव जगत में विलुप्तीकरण का सबसे अधिक खतरा कीट-पतंगों को ही है। बहुत सारे कीट केवल रात में उड़ते हैं और अपनी गतिविधियों के दौरान अनेक फूलों का परागण करते हैं। जब ये कीट परागण नहीं करते तो फिर फसलों का उत्पादन या फिर वनस्पतियों का विस्तार प्रभावित होता है। दूसरी तरफ, अनेक कीट सडकों के किनारे की रोशनी के चारों-तरफ रातभर उड़ते हुए बल्ब की गर्मी में झुलस कर मर जाते हैं।
रातभर तेज प्रकाश झेलने वाले वनस्पतियों में फूल खिलने का फल लगने का समय बदल जाता है। लम्बी दूरी तय करने वाले प्रवासी पक्षियों पर भी प्रकाश प्रदूषण का व्यापक असर होता है। रात में ये पक्षी शहरों की रोशनी से चकमा खाकर अपना रास्ता भटक जाते हैं, या फिर शहरों की इमारतों से टकराकर मर जाते हैं। समुद्री कछुवे भी सागर तट के रिसोर्ट के प्रकाश से आकर्षित होकर उसकी तरफ जाते हैं और फिर भूख-प्यास से मर जाते हैं या वन्यजीवों के तस्करों की गिरफ्त में आ जाते हैं। सभी जन्तुवों में रात की रोशनी के प्रभाव से मेलाटोनिन नामक हार्मोन का उत्सर्जन प्रभावित होता है। यही हार्मोन शरीर में निद्रा-चक्र को नियंत्रित करता है। रात में अत्यधिक प्रकाश के कारण निशाचर के साथ ही अन्य जंतुओं का व्यवहार भी बदलने लगता है। इसके प्रभाव से पक्षी सुबह जल्दी चहकने लगते हैं और रात में निकालने वाले चूहे या अन्य जानवर बाहर कम समय के लिए निकलते हैं।
जून 2016 में प्रकाशित किये गए एक अध्ययन के अनुसार दुनिया की एक-तिहाई से अधिक आबादी अब रात के आसमान में आकाश-गंगा नहीं देख पाती। अमेरिका की 80 प्रतिशत से अधिक और यूरोप की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी ने कभी आसमान में आकाशगंगा को नहीं देखा है। इसका एकमात्र कारण प्रकाश प्रदूषण है, जिसके कारण अब रात के आसमान में बहुत सारे खगोलीय पिंड दिखना बंद हो चुके हैं। अनुमान है कि प्रकाश प्रदूषण के कारण कुल बिजली की खपत का लगभग 35 प्रतिशत बर्बाद हो रहा है, और बिजली उत्पादन को ही जलवायु परिवर्तन का मुख्य जिम्मेदार माना जाता है। प्रदूषण के इस स्वरुप के प्रभावों का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि रात में कीटों द्वारा की जाने वाली परागण प्रक्रिया में लगभग 62 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। कुछ कोरल रीफ की प्रजातियों के प्रजनन प्रक्रिया के लिए चाँद की रोशनी अनिवार्य है, पर अब चाँद की रोशनी मानव निर्मित प्रकाश से दब जाती है, इसलिए इन प्रजातियों का प्रजनन प्रभावित हो रहा है।
प्रकाश प्रदूषण के तीन मुख्य कारण है – बिना ढके प्रकाश के स्त्रोत, प्रकाश का अवांछित अतिक्रमण और शहरी सडकों और भवनों का प्रकाश। वायु प्रदूषण, विशेष तौर पर पार्टिकुलेट मैटर की वायु में अधिक सांद्रता भी प्रकाश प्रदूषण में सहायक है। कोहरे या धूमकोहरा की स्थिति में प्रकाश दूर तक फैलता नजर आता है और इस कारण प्रकाश प्रदूषण बढ़ता है। जर्नल ऑफ़ नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार प्रकाश प्रदूषण का असर पूरे जीव जगत पर पद रहा है, इसमें सूक्ष्मजीव, अरीढ़धारी जंतु, रीढ़धारी, मनुष्य और वनस्पति सभी शामिल हैं। कुछ प्रजातियों में इनका लाभदायक असर भी स्पष्ट हो रहा है। कुछ वनस्पतियों में प्रकाश प्रदूषण के असर से बृद्धि दर में तेजी देखी जा रही है, और चमगादड़ों की कुछ प्रजातियों का दायरा बढ़ रहा है।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सटर के एनवायर्नमेंटल सस्टेनेबिलिटी इंस्टिट्यूट के प्रोफ़ेसर केविन गास्तों की अगुवाई में यह अध्ययन किया गया है। इनके अनुसार प्रकाश पर्दूषण के भयानक और व्यापक प्रभावों को देखते हुए अब आवश्यक हो गया है कि इसे भी जलवायु परिवर्तन जैसी प्रमुखता दी जाए। आजकल सडकों और सार्वजनिक स्थलों पर जिस सफ़ेद प्रकाश वाले एलईडी लैम्पों का प्रचलन बढ़ा है, उनसे भले ही बिजली की बचत होती हो पर वे जंतु जगत के लिए पहले के लैम्पों से अधिक खतरनाक हैं। सफ़ेद प्रकाश में सूर्य के प्रकाश की तरह अनेक वेवलेंग्थ की किरणों का समावेश रहता है इसकिये यह प्रकाश जंतु जगत को अधिक प्रभावित करता है।