2014 के बाद से चुनाव आयोग समेत सभी संवैधानिक संस्थाएं अपना अस्तित्व खोकर हो चुकी हैं सत्ता की गुलाम और दलाल, आदर्श चुनाव संहिता बस एक मजाक
file photo
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Model Code of Conduct for elections are just a joke – the ECI should remove it from its website. चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के लिए एक आदर्श चुनाव संहिता है। पहले, चुनाव की तिथि की घोषणा के बाद बहुत सारे सरकारी काम और आयोजन आदर्श चुनाव संहिता के कारण रोक दिए जाते थे, और कोई भी उम्मीदवार कम से कम सीना तानकर इसकी अवमानना नहीं करता था, पर वर्ष 2014 के बाद से चुनाव आयोग समेत सभी संवैधानिक संस्थाएं सत्ता की गुलाम/दलाल हो गयी हैं और अपना स्वतंत्र अस्तित्व ही खो चुकी हैं।
हमारे प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और सत्ता से जुड़े दूसरे नेता लगातार आदर्श चुनाव संहिता की मीडिया कैमरे के सामने सरेआम धज्जियां उड़ाते हैं, पर चुनाव आयोग बस तमाशा देखता है। चुनाव आयोग को यह सब केवल विपक्षी उम्मीदवारों में ही नजर आता है। चुनावों के समय सत्ता से जुड़े नेताओं की हरकतें और भाषा सुनकर यही महसूस होता है कि शायद चुनाव आयोग के अधिकारियों को चुनाव संहिता के बारे में कुछ पता ही नहीं है, या फिर इन्हें हिदायत डी गयी है कि सत्तापक्ष की धांधलियों पर आन्क्खें बंद रखनी है और केवल विपक्षी उम्मीदवारों पर ही कार्यवाही करनी है। इस सन्दर्भ में देश में वर्ष 2014 के बाद के आयोजित चुनावों को देखें तो इतना तो स्पष्ट होता है कि देश में चुनावों में लगातार होती अनियमितताओं और धांधलियों का सबसे बड़ा दोषी चुनाव आयोग स्वयं है।
चुनाव आयोग की वेबसाइट, hindi.eci.gov.in के अनुसार तथाकथित आदर्श चुनाव संहिता के अंतर्गत चुनावी उम्मीदवारों और राजनैतिक दलों के लिए सामान्य आचरण निम्नलिखित हैं -
1. कोई दल या अभ्यर्थी ऐसी किसी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जिससे भिन्न जातियों और धार्मिक या भाषायी समुदायों के बीच विद्यमान मतभेद अधिक गंभीर हो सकते हैं या परस्पर नफ़रत हो सकती है या तनाव पैदा हो सकता है।
2. यदि राजनीतिक दलों की आलोचना की जाए, तो यह उनकी नीतियों और कार्यक्रमों, गत रिकॉर्ड और कार्य तक ही सीमित रखी जाएगी। दलों और अभ्यर्थियों को अन्य दलों के नेताओं या कार्यकर्ताओं की सार्वजनिक गतिविधियों से असंबद्ध निजी जीवन के सभी पहलुओं की आलोचना करने से बचना होगा। असत्यापित आरोपों या मिथ्या कथन के आधार पर अन्य दलों या उनके कार्यकर्ताओं की आलोचना करने से बचना होगा।
3. मत प्राप्त करने के लिए जाति या संप्रदाय की भावनाओं के आधार पर कोई अपील नहीं की जाएगी। मस्जिदों, चर्चों, मंदिरों और पूजा के अन्य स्थलों को निर्वाचन प्रचार के मंच के रूप में प्रयुक्त नहीं किया जाएगा।
4. सभी दल और अभ्यर्थी ऐसी सभी गतिविधियों से ईमानदारी से परहेज करेंगे जो निर्वाचन विधि के अधीन "भ्रष्ट आचरण" एवं अपराध हैं जैसे कि मतदाताओं को घूस देना, मतदाताओं को डराना-धमकाना, मतदाताओं का प्रतिरूपण, मतदान केंद्रों से 100 मीटर की दूरी के अंतर्गत प्रचार करना, मतदान समाप्त होने के लिए निर्धारित समय के समाप्त होने वाले 48 घंटों की अवधि के दौरान सार्वजनिक सभाएं आयोजित करना और मतदाताओं को मतदान केन्द्रों तक ले जाने और वापस लाने के लिए परिवहन और वाहन उपलब्ध कराना।
5. हर व्यक्ति के शांतिपूर्ण और बाधारहित घरेलू जीवन के अधिकार का सम्मान किया जाएगा, फिर चाहे राजनीतिक दल और अभ्यर्थी उनकी राजनीतिक राय या गतिविधियों से कितने भी अप्रसन्न हों। किसी भी परिस्थिति में उनकी राय अथवा गतिविधियों के खिलाफ विरोध जताने के लिए व्यक्तियों के घर के सामने प्रदर्शन आयोजित करने या धरना देने का सहारा नहीं लिया जाएगा।
6. कोई भी राजनीतिक दल या अभ्यर्थी अपने अनुयायियों को किसी भी व्यक्ति की अनुमति के बिना उसकी भूमि, भवन, परिसर की दीवारों इत्यादि पर झंडा लगाने, बैनर लटकाने, सूचना चिपकाने, नारा लिखने इत्यादि की अनुमति नहीं देगा।
7. राजनीतिक दलों और अभ्यर्थियों द्वारा यह सुनिश्चित किया जाएगा कि उनके समर्थक अन्य दलों द्वारा आयोजित सभाओं और जुलूसों में बाधा खड़ी नही करेंगे या उन्हें भंग नहीं करेंगे। किसी राजनैतिक दल के कार्यकर्ता या समर्थक अन्य राजनीतिक दल द्वारा आयोजित सार्वजनिक सभा में मौखिक या लिखित रूप में सवाल पूछकर या अपने दल के पर्चे बाँटकर बाधा उत्पन्न नहीं करेंगे। किसी दल द्वारा उन स्थानों के आसपास जुलूस न निकाला जाए जहाँ अन्य दल की सभाएं आयोजित हो रही हैं। किसी दल के कार्यकर्ता अन्य दल के कार्यकर्ताओं द्वारा लगाए गए पोस्टर नहीं हटाएंगे।
इन सभी बिन्दुओं को पढ़ने पर स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री, सभी केन्द्रीय मंत्री, बीजेपी के तथाकथित स्टार प्रचारक और सभी बीजेपी उम्मीदवार इस आदर्श चुनाव संहिता की धज्जियां उड़ाते हैं, इसमें जिस आचरण को नहीं करने को कहा गया है – बीजेपी उसी आचरण को अपना हथियार बनाकर चुनावों में उतरती है। धार्मिक उन्माद को खुले आम बढ़ावा देना, मंदिरों में घूमना, सामुदायिक हिंसा को फैलाना, विपक्षी नेताओं, विशेष तौर पर गांधी परिवार के सदस्यों पर व्यक्तिगत आक्षेप करना, दूसरे दलों के सभाओं और जुलूसों में हिंसा करना, जय श्री राम का नारा लगाना, झूठी और भ्रामक खबरें फैलाना, निर्वाचन विधि के अंतर्गत निर्धारित भ्रष्ट आचरण की खुले आम अवहेलना करना – यही तो बीजेपी की चुनावी रणनीति है।
निर्वाचन विधि के अंतर्गत भ्रष्ट आचरण के सबसे बड़े पुरोधा तो स्वयं प्रधानमंत्री है, जो चुनाव शुरू होने के 48 घंटे के प्रचार नहीं करने की अवधि में कभी मन की बात, सभी अख़बारों में पूरे-पूरे पेज के अनेक विज्ञापन, कभी केदारनाथ तो कभी किसी राज्य में तथाकथित करोड़ों की सौगात लेकर और मीडिया के कैमरामैनों की पूरी टोली लेकर निकलते हैं। वैसे भी, देश में ग्राम पंचायत से लेकर लोक सभा तक के हरेक चुनावों में बीजेपी स्थानीय उम्मीदवारों के नाम पर या पार्टी की नीतियों पर नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर ही वोट मांगती है – इस लिहाज से चुनावों में आदर्श चुनाव संहिता की अवहेलना या फिर देश की सभी छोटी-बड़ी समस्याओं के लिए प्रधानमंत्री मोदी कहीं न कहीं जिम्मेदार तो हैं।
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर प्रदर्शित आदर्श चुनाव संहिता में सत्ताधारी दल के लिए जो आचरण बताये गए हैं, वे इस प्रकार हैं - केंद्र या राज्य या संबंधित राज्यों का सत्ताधारी दल यह सुनिश्चित करेगा कि इस वजह से शिकायत का अवसर न दिया जाए कि उन्होंने अपने निर्वाचन अभियान के प्रयोजनार्थ अपनी आधिकारिक स्थिति का उपयोग किया है और विशेष रूप से:–
1. (क) मंत्री अपने सरकारी दौरों को निर्वाचन संबंधी कार्यों के साथ नहीं जोड़ेंगे और साथ ही निर्वाचन संबंधी कार्यों के दौरान सरकारी मशीनरी या कर्मचारियों का उपयोग नहीं करेंगे।
(ख) सत्ताधारी दल के हित को बढ़ावा देने के लिए सरकारी विमानों, वाहनों सहित सरकारी परिवहन, मशीनरी और कर्मचारियों का उपयोग नहीं करेंगे;
2. निर्वाचन के संबंध में निर्वाचन सभाएं आयोजित करने के लिए मैदानों इत्यादि जैसे सार्वजनिक स्थानों और हवाई उड़ानों के लिए हेलीपैड्स के उपयोग पर किसी का एकाधिकार नहीं होगा। अन्य दलों और अभ्यर्थियों को उन्हीं नियमों और शर्तों पर ऐसे स्थानों और सुविधाओं का उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी जिन नियमों और शर्तों पर सत्ताधारी दल इनका उपयोग करता है;
3. विश्राम गृहों, डाक बंगलों या अन्य सरकारी आवासों पर सत्ताधारी दल या उसके अभ्यर्थी का एकाधिकार नहीं होगा और अन्य दलों और अभ्यर्थियों को निष्पक्ष ढंग से इन आवासों का उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी किन्तु कोई भी दल या अभ्यर्थी इन आवासों (उसके अंतर्गत मौजूद परिसरों सहित) का उपयोग अभियान कार्यालय के रूप में या निर्वाचन प्रचार के प्रयोजनार्थ कोई सार्वजनिक सभा आयोजित करने के लिए नहीं करेगा या ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी;
4. सार्वजनिक राजकोष की लागत पर समाचार पत्रों और अन्य मीडिया में विज्ञापन प्रकाशित करने और निर्वाचन अवधि के दौरान पक्षपातपूर्ण कवरेज के लिए राजनीतिक समाचारों की सरकारी मास मीडिया का दुरुपयोग और सत्ताधारी दल की संभावनाओं को बढ़ाने की दृष्टि से उनकी उपलब्धियों के संबंध में प्रचार करने से सावधानीपूर्वक बचेंगे;
5. मंत्री और अन्य प्राधिकारी आयोग द्वारा निर्वाचनों की घोषणा के समय से विवेकाधीन निधियों से अनुदानों/भुगतानों की संस्वीकृति प्रदान नहीं करेंगे; और
6. आयोग द्वारा निर्वाचनों की घोषणा के समय से, मंत्री और अन्य प्रधिकारी -
(क) किसी भी रूप में कोई वित्तीय अनुदान या इससे संबंधित प्रतिज्ञाओं की घोषणा नहीं करेंगे; या
(ख) किसी भी प्रकार की परियोजनाओं या योजनाओं का शिलान्यास इत्यादि नहीं रखेंगे (सरकारी कर्मचारियों के अलावा); या
(ग) सड़कों के निर्माण, पेय जल की सुविधाओं के प्रावधान इत्यादि का कोई वचन नहीं देंगे; या
(घ) सरकारी, सार्वजनिक उपक्रमों इत्यादि में कोई तदर्थ नियुक्ति नहीं करेंगे जिससे मतदाताओं पर सत्ताधारी दल के पक्ष में प्रभाव पड़ता हो।
नोट : आयोग किसी निर्वाचन की तारीख घोषित करेगा, जो उस तारीख से आम तौर पर अधिकतम तीन सप्ताह पहले की तारीख होगी जिस दिन इस निर्वाचन के संबंध में अधिसूचना जारी होने की संभावना है।
7. केन्द्र या राज्य सरकार के मंत्री बतौर अभ्यर्थी या मतदाता या प्राधिकृत अभिकर्ता की हैसियत के अतिरिक्त किसी मतदान केन्द्र या मतगणना के स्थान में प्रवेश नहीं करेंगे।
वर्ष 2014 के बाद से शायद ही कोई ऐसा बिंदु होगा जिसकी प्रधानमंत्री जी ने या बीजेपी ने हरेक चुनाव में अवहेलना नहीं की हो। प्रधानमंत्री जी तो आगामी चुनावों की तैयारी में अलग-अलग राज्यों में तथाकथित सौगात लेकर सरकारी यात्राएं कर रहे हैं और बीजेपी की चुनावी तैयारियों वाली सभाओं में शिरकत कर रहे हैं, कार्यकर्ताओं को जीतने के मूलमंत्र सिखा रहे हैं, गाडी के दरवाजे पर लटककर रोड शो कर रहे हैं – क्या यह सब सरकारी खर्चे पर नहीं होता? नितिन गडकरी जी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि चलती गाडी के दरवाजे पर लटककर खड़ा रहना क्या परिवहन विभाग के कानूनों के अंतर्गत सही है?
चुनाव आयोग यदि प्रधानमंत्री, तमाम मंत्रियों और बीजेपी के प्रचारकों से आदर्श चुनाव संहिता का पालन नहीं करा सकता है तब निश्चित तौर पर इसे अपनी वेबसाइट से हटा देना चाहिए, या फिर स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया जाना चाहिए कि यह संहिता बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों पर लागू नहीं होती। कम से कम चुनाव आयोग इतनी तो हिम्मत दिखा ही सकता है।