Supreme Court On Hate Speech: सरकार कोर्ट की इन 3 बातों पर अमल करे तो थम जाएगा नफरत का सैलाब
Supreme Court On Hate Speech: सरकार कोर्ट की इन 3 बातों पर अमल करे तो थम जाएगा नफरत का सैलाब
सौमित्र राय का विश्लेषण
Supreme Court On Hate Speech: उत्तराखंड के रूढ़की में प्रस्तावित धर्म संसद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार एक बार फिर उसी राजधर्म को अपनाने की सलाह दी, जो कोर्ट ने चार साल पहले दिए गए आदेश में एक गाइडलाइन को लागू करने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को यह सुनिश्चित करने को कहा कि रूढ़की में होने वाले धर्म संसद में किसी तरह के आपत्तिजनक और भड़काऊ, नफरती बयान न दिए जाएं।
भारत की शीर्ष अदालत ने इस तरह की धर्मसंसद के आयोजन को लेकर उत्तराखंड के साथ हिमाचल सरकार को भी फटकारा है, जहां के ऊना में धर्मसंसद के दौरान विवादित बयान सामने आए थे। सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल पहले देश की सभी राज्य सरकारों को नोटिस भेजकर 2018 की गाइडलाइन के अनुपालन की रिपोर्ट भी मांगी थी, लेकिन तब से आज तक बात वहीं की वहीं अटकी है। सुप्रीम कोर्ट ने लिंचिंग के खिलाफ तहसीन पूनावाला वि. भारत सरकार के एक मामले की सुनवाई करते हुए 3 बिंदुओं का एक गाइडलाइन लागू करने का आदेश दिया था। लेकिन अभी तक 4 राज्यों को छोड़कर बाकी किसी भी राज्य ने कोर्ट के गाइडलाइन पर अमल नहीं किया है। साफ है कि अगर कोर्ट की इन तीन बातों को सरकारें गंभीरता से लागू करतीं तो इस साल रामनवमी पर देश के पांच राज्यों और हनुमान जयंती पर दिल्ली के जहांगीरपुरी में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं नहीं होतीं।
जानिए क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने
तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने अपने आदेश में लिंचिंग और भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए 3 बातों पर अमल करने को कहा था। रोकथाम के कदम: राज्य सरकार को देश के हर जिले मे एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी। उनके कामकाज को लेकर भी निर्देश जारी किए गए हैं। इसके साथ ही पुलिस को धारा 129 के तहत हिंसक भीड़ को तितर-बितर करने और आरोपियों के खिलाफ 153 ए के तहत एफआईआर करने को कहा गया है। केंद्र और राज्य सरकारों से कहा गया कि वे लिंचिंग और भीड़ की हिंसा को भड़काने वाली सूचनाओं का प्रसार रोके।
निवारक कदम: लिंचिग या भीड़ की हिंसा के किसी भी मामले में एफआईआर दर्ज की जाए और इसकी सूचना जिले के नोडल अधिकारी को दी जाए। मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो और पीड़ित को मुआवजे के साथ निशुल्क न्याय उपलब्ध कराया जाए।
सजा दिलाने वाले कदम: इन उपायों का पालन न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाए, जो कि दुराचरण और लापरवाही के प्रकरण होंगे, जिन पर 6 माह के भीतर कार्रवाई करनी ही होगी। सुप्रीम कोर्ट ने भारत की संसद से भी लिंचिंग के खिलाफ एक अलग कानून बनाने की सिफारिश की थी, जिसमें पर्याप्त सजा का प्रावधान हो।
कितना अमल हुआ सु्प्रीम कोर्ट की 3 बातों का?
सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने 19 जुलाई 2019 को एक अवमानना याचिका को सुनने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि अभी इसकी कोई फौरी जरूरत नहीं है। बेंच तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में बनी थी। बेंच के यह कहने पर कि तहसीन पूनावाला की याचिका पर सामान्य रूप से ही सुनवाई जारी रहेगी, सारे जोश ठंडे पड़ गए। याचिका में उन राज्यों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करने की मांग की गई थी, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट की 2018 की गाइडलाइन का पालन नहीं किया।
राजस्थान सरकार ने सबसे पहले 2019 में लिंचिंग विरोधी बिल पारित किया था, लेकिन सरकार ने अभी तक कानून को मंजूरी नहीं दी है। यही हाल मणिपुर विधानसभा से पारित कानून का है। एक आरटीआई के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसी साल फरवरी में बताया कि पश्चिम बंगाल विधानसभा से पारित कानून उसे अभी तक नहीं मिला है, जबकि झारखंड विधानसभा से पारित कानून फिलहाल राज्यपाल के पास ही अटका हुआ है।
कोर्ट की सुस्त चाल और सरकार पर सवाल
इसी साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व राज्यसभा सांसद मुहम्मद अदीब की उस अवमानना याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया था, जिसमें हरियाणा के गुरुग्राम में सड़क पर नमाज पढ़ने पर हिंदू संगठनों की आपत्ति के बाद हरियाणा सरकार ने रोक लगा दी थी। याचिका में हरियाणा सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के ही 2018 की गाइडलाइन का पालन न करने के एवज में अवमानना की कार्रवाई करने की मांग की गई है।
कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट अपनी ही गाइडलाइन को देश में लागू नहीं करवा पा रहा है। इस बीच नफरत भरे, भड़काऊ बयानों, भीड़ की हिंसा, कानून बपने हाथ में लेने और अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपमानजनक और झूठे दुष्प्रचार वाले पोस्ट से लेकर टेलीविजन चैनलों पर कार्यक्रम भी धड़ल्ले से हो रहे हैं।
मंगलवार को रूढ़की धर्मसंसद मामले में सुप्रीम कोर्ट की उत्तराखंड सरकार को फटकार का असर यह हुआ कि प्रशासन को रातों-रात धर्मसंसद के लिए लगे तंबू उखाड़ने पड़े थे। लेकिन कोर्ट ने निर्देश ने गाहे-बगाहे चार साल पुरानी उसी गाइडलाइन की फिर याद दिला दी, जिस पर अमल न तो केंद्र सरकार करना चाहती है और न ही राज्य सरकारें। यहां तक कि देश की संसद ने भी सु्प्रीम कोर्ट की उस सिफारिश से मुंह फेर रखा है, जिसमें लिंचिंग और भीड़ की हिंसा के खिलाफ अलग से कानून बनाने को कहा गया था। गृह मंत्रालय का कहना है कि भारतीय दंड संहिता में लिंचिंग के खिलाफ कोई विशेष प्रावधान नहीं हैं। इसके लिए हत्या की धारा, यानी 302 के तहत मामला दर्ज कर देना ही काफी है। फास्ट ट्रैक कोर्ट का सुप्रीम कोर्ट का सुझाव भी गृह मंत्रालय शायद भूल गया है।