Surrogacy Kya Hai: क्या होती है सरोगेसी? भारत में सरोगेसी को लेकर क्या है कानून? महिला जीवन में एक या कितनी बार बन सकती है सरोगेट मदर? जानिए सबकुछ
Surrogacy Kya Hai: क्या होती है सरोगेसी? भारत में सरोगेसी को लेकर क्या है कानून? महिला जीवन में एक या कितनी बार बन सकती है सरोगेट मदर? जानिए सबकुछ
मोना सिंह की रिपोर्ट
Surrogacy Kya Hai: हाल में ही बॉलीवुड एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा सरोगेसी से मां बनीं हैं। ये कोई पहली बार नहीं है जब कोई सेलिब्रेटी सरोगेसी से पैरेंट्स बने हों। इसके अलावा प्रीति जिंटा, सनी लियोनी, शिल्पा शेट्टी, शाहरुख खान, आमिर खान, एकता कपूर, तुषार कपूर, करण जौहर भी सरोगेसी के जरिए माता-पिता बनने का सुख पा चुके हैं। इसे लेकर सरोगसी की काफी चर्चा है। ऐसे में आखिर सरोगेसी है क्या। इसे लेकर भारत में क्या कानून है। क्या कोई भी महिला सरोगेसी से बच्चे पैदा कर सकती है। कोई महिला अपनी जिंदगी में कितनी बार सरोगेसी से बच्चे पैदा करेगी। जानिए पूरा नियम-कानून।
क्या है सरोगेसी
आसान शब्दों में सरगोसी का मतलब है,' किराए की कोख'। जब दंपति बच्चे को जन्म देने के लिए मेडिकली फिट नहीं होते या फिर बच्चे को स्वयं जन्म नहीं देना चाहते तो उस स्थिति में दंपति किसी अन्य महिला की कोख किराए पर लेकर उसके जरिए बच्चे को जन्म दे सकते हैं। इस प्रक्रिया को ही सरोगेसी कहते हैं।
दंपति और सरोगेट मदर के बीच होता है एग्रीमेंट
सरोगेसी की प्रक्रिया में बच्चे के लिए इच्छुक दंपति और सरोगेट मदर के बीच एक कानूनी एग्रीमेंट या समझौता किया जाता है। जिसके तहत बच्चे के जन्म लेने के बाद कानूनी तौर पर बच्चा सरोगेसी के लिए इच्छुक दंपति का होगा, जिसने सरोगेसी करवाई है। और सरोगेट मां को इसके लिए मेहनताने के तौर पर उचित भुगतान के साथ-साथ उसकी गर्भावस्था के दौरान आने वाला खर्च जैसे दवाइयों, खाने-पीने, अस्पताल समेत तमाम जरूरी सुविधाओं पर होने वाले खर्च को देना पड़ता है।
इसलिए सरोगेसी की प्रक्रिया शुरू करने के पहले दोनों पक्षों द्वारा जांच पड़ताल और कानूनी एग्रीमेंट जरूरी होता है। दोनों पक्ष अपने-अपने वकील हायर करते हैं, जिससे भविष्य में कोई परेशानी ना हो। दोनों पक्षों की रजामंदी के बाद ही एग्रीमेंट कंप्लीट माना जाता है। और सरोगेसी की प्रक्रिया शुरू की जाती है।
किन स्थितियों में सरोगेसी जरूरी है
किसी भी महिला द्वारा स्वयं अपने बच्चे को अपनी कोख में पालना और जन्म देना सुखद अनुभव होता है। पर किन्हीं खास मेडिकल कारणों से सरोगेसी जरूरी हो जाती है। वे वजहें कौन सी हैं, ये जान लेते हैं।
- जब किसी महिला का बार-बार गर्भपात हो रहा हो।
- महिला के गर्भ में किसी तरह की विकृति हो जाए।
- महिला में जन्म से ही गर्भाशय ना हो या विकसित ना हो।
- महिला के अंडाशय यानी एग को लेकर कोई मेडिकली समस्या हो।
- महिला के गर्भाशय में भ्रूण प्रत्यारोपित ना हो पा रहा हो।
- महिला को दिल की बीमारी, हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो।
- महिला किसी और वजह से खुद बच्चा पैदा ना करना चाहती हो।
- महिला की उम्र बच्चे जन्माने की उम्र से ज्यादा हो गई हो।
- कई बार पुरुष शुक्राणुओं में समस्या होने पर भी सरोगेसी होती है।
सरोगेसी का खर्च
भारत में सरोगेसी का खर्च 10 से 25 लाख रुपए के करीब आता है। जबकि विदेशों में सरोगेसी का खर्च 50 से 60 लाख रुपए आता है।
- सरोगेसी के प्रकार
- सरोगेसी मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है।
पारंपरिक सरोगेसी
पिता या डोनर के शुक्राणुओं को सरोगेट मदर के अंडाणु से मिलाया जाता है। इस प्रक्रिया में बच्चे की जैविक मां (बायोलॉजिकल मदर) सरोगेट मां ही होती है। हालांकि बच्चे पर पूरा कानूनी अधिकार सरोगेसी करवाने वाले दंपति का ही होता है। इसमें होने वाला बच्चा अपनी सरोगेट मां से मिलता जुलता हो सकता है।
जेस्टेशनल सेरोगेसी (gestestional sarogesi)
पिता के शुक्राणुओं को माता के अंडाणु से मिलाकर आईवीएफ तकनीकी द्वारा सरोगेट मदर की बच्चेदानी में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में सरोगेट मदर बच्चे की जैविक मां या बायोलॉजिकल मदर नहीं होती। वह सिर्फ बच्चे को कोख में पालकर जन्म देती है। बच्चे का सरोगेट मदर से कोई जेनेटिक संबंध नहीं होता। सरोगेसी करवाने वाले दंपति ही बच्चे के जैविक माता-पिता होते हैं। इस तरीके से जन्मे बच्चे में सरोगेट मां का कोई डीएनए मौजूद नहीं होता इसलिए बच्चा अपने जैविक माता पिता की तरह ही दिखता है।
सरोगेसी की प्रक्रिया
सरोगेट महिला को प्रेग्नेंसी के लिए तैयार करने के लिए, डॉक्टर महिला के शरीर में पर्याप्त हार्मोन का स्तर बनाए रखने के लिए उसे प्रोजेस्ट्रोन के कुछ इंजेक्शन देते हैं। ये इंजेक्शन 12 हफ्ते तक दिए जाते हैं। जब भ्रूण आईवीएफ तकनीक से पूरी तरह से तैयार हो जाता है, तब उसे महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इसे प्रत्यारोपित करने के एक हफ्ते बाद डॉक्टर सरोगेट मदर के गर्भवती होने की और उसके हार्मोन स्तर की जांच करते हैं। सफलतापूर्वक गर्भधारण करने के पश्चात आने वाले 9 महीनों तक समय-समय पर गर्भ में पल रहे बच्चे का अल्ट्रासाउंड, हृदय गति और अन्य आवश्यक जांच करवाई जाती है। जन्म के बाद बच्चे को इच्छुक दंपति को सौंप दिया जाता है।
कौन बनती है सरोगेट मां
गरीबी, किसी काम का ना मिलना या किसी अन्य जरूरतों की वजह से आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की 18 से 35 वर्ष की महिलाएं दूसरे के बच्चे को अपनी कोख में पालने के लिए यानी सरोगेसी के लिए तैयार हो जाती हैं। कोरोना काल में जब रोजगार की कमी हुई तब देखने को मिला कि महिलाएं इस कार्य के लिए आसानी से तैयार हो गईं। इस कार्य के लिए उन्हें दवाइयां खाने पीने और डॉक्टरी सुविधा के लिए दिए गए खर्च के अतिरिक्त 5 से 6 लाख रुपए मेहनताने के तौर पर दिए जाते हैं।
सरोगेसी में विवाद भी होते हैं
कई बार सरोगेट मां का बच्चे से भावनात्मक लगाव हो जाता है। ऐसा ज्यादातर ट्रेडिशनल सरोगेसी में देखने को मिलता है। जब बच्चे को जन्म देने वाली सरोगेट मां उसकी जैविक मां भी होती है। सरोगेट मां बच्चे को उसके कानूनी माता-पिता को देने से इंकार कर देती है। ऐसे में विवाद की स्थिति बन जाती है। दूसरी तरफ जब सरोगेसी से जन्म लेने वाला बच्चा यदि शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग पैदा होता है तो सरोगेसी करवाने वाले दंपति उसे लेने से इनकार कर देते हैं।
भारत में सरोगेसी
भारत की दुग्ध कैपिटल (अमूल ब्रांड की दूध फैक्ट्री) के नाम से मशहूर आणद भारत में सरोगेसी का सबसे बड़ा केंद्र है। यहां 150 से भी ज्यादा फर्टिलिटी सेंटर हैं। जो सरोगेसी सर्विसेज से जुड़े हैं। गुजरात के अलावा मुंबई भी भारत में सरोगेसी का बड़ा केंद्र है। रिसर्च के अनुसार दुनिया में सरोगेसी के सबसे ज्यादा मामले भारत में होते हैं। उदाहरण के लिए अगर दुनिया में 1 साल में 500 सरोगेसी के मामले होते हैं तो उनमें से तीन सौ सिर्फ भारत में होते हैं।
भारत में सरोगेसी से जुड़े नियम
क्या है सेरोगेसी रेगुलेशन बिल-2019
ये बिल लोकसभा में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्षवर्धन द्वारा 2016 में पेश किया गया था। सरोगेसी का दुरुपयोग रोकने के लिए इसके नए प्रारूप को सरोगेसी रेगुलेशन बिल-2019 के नाम से लागू किया गया। इस बिल के अनुसार महिला अब किराए पर यानी पैसे लेकर अपनी कोख नहीं दे सकेगी। कोई भी महिला जीवन में सिर्फ एक बार सरोगेट मदर बन सकती है।
इसके अलावा, विदेशियों, तलाकशुदा जोड़ो, लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल, सिंगल और होमोसेक्सुअल एलजीबीटी समुदाय के जोड़ों को सरोगेसी के द्वारा बच्चा पैदा करने की इजाजत नहीं है। सरोगेट मदर में महिला को धूम्रपान शराब की बुरी लत नहीं होनी चाहिए। सेरोगेट महिला की उम्र 25 से 35 वर्ष होनी चाहिए।
लेकिन इसके लिए शर्त है कि पहले से उस महिला का खुद का बच्चा होना चाहिए। सरोगेट महिला के पास फिट होने का मेडिकल प्रमाण पत्र होना चाहिए। शादीशुदा दंपति को ही सरोगेसी के द्वारा बच्चा पैदा करने की इजाजत मिल सकती है। शादीशुदा दंपति के पास मेडिकली इन्फर्टाइल होने का प्रमाण पत्र होना चाहिए। सरोगेट महिला दंपति की करीबी रिश्तेदार होनी चाहिए।
2015 से पहले भारत में कमर्शियल या वाणिज्यिक सरोगेसी कानूनी था। भारत में सरोगेसी में विदेशों की तुलना में कम खर्च आने की वजह से भारत नि:संतान विदेशी जोड़ों के लिए आकर्षक प्रजनन पर्यटन स्थल बन चुका था। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, इस माध्यम से पैदा हुए बच्चे की नागरिकता यानी सरोगेट मदर की नागरिकता होगी। सरोगेसी को इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च द्वारा नियंत्रित किया जाता है। 2019 में भारत सरकार ने कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा दिया है।
क्योंकि ज्यादातर गरीब महिलाएं गरीबी की वजह से क्या एक से ज्यादा बार सरोगेट मदर बनने के लिए तैयार हो जाती थी। अब सिर्फ मदद करने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। अल्ट्रिस्टिक सरोगेसी को लेकर नियम कायदों में भी सख्ती बरती गई है। सेरोगेसी रेगुलेशन बिल 2020 में कई सुधार किए गए हैं। जिसके तहत किसी भी इच्छुक महिला जो सारे नियम शर्तों को पूरा करती हैं, उन्हें सरोगेसी की अनुमति दी जा सकती है। भारत के अलावा फ्रांस नीदरलैंड, नार्वे में भी कमर्शियल सरोगेसी वैध नहीं है।