नेहा सिंह राठौर के यूपी में का बा गाने को वैमनस्यता और तनाव फैलाने वाला ठहराना किसी भद्दे चुटकुले से कम नहीं
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Freedom of speech and expression is the biggest cause of inequality in today's world : जी-20 समूह के अध्यक्ष देश का अमृत काल है और इस अमृत काल का दौर ऐसा है जिसमें बोलने, सुनने और देखने की आजादी केवल सत्ता के पास है। यदि आपने कुछ सटीक कहा तो फिर निश्चय ही पुलिस आपके घर पर दस्तक दे चुकी होगी, या फिर रास्ते में होगी। यदि किसी मीडिया संस्थान ने ऐसा किया तो जाहिर है ईडी, इनकम टैक्स या फिर सीबीआई का दल कार्यालय पर धमकाने वाला होगा।
एक निरंकुश सत्ता से डरपोक कुछ नहीं होता, उसे आवाज से, शब्दों से और हवा के रुख से भी डर लगता है। पुलिस का काम पहले कभी शांति व्यवस्था कायम रखना रहा होगा – अब तो पुलिस का काम बस यही रह गया है कि सत्ता की हकीकत उजागर करने वालों को पकड़ना।
आज के दौर में एक हत्यारा भरी दोपहर में हजारों लोगों के सामने किसी ही हत्या करने के बाद जय श्री राम, सनातन धर्म, हिन्दू राष्ट्र, टुकड़े—टुकड़े गैंग या फिर मोदी जिंदाबाद के नारे लगा दे तो फिर पुलिस, प्रशासन, मीडिया और समाज की नज़रों में हत्यारा नायक बन जाएगा, और नेता भी। दूसरी तरफ एक भला आदमी यदि बिखरते समाज, बेरोजगारी या गरीबी की बात कर दे तो पुलिस, प्रशासन और न्यायपालिका भी मिलकर साबित कर देंगे कि उसने समाज में वैमनस्व और तनाव पैदा किया है। प्रधानमंत्री जी हवा में हाथ लहराकर भले ही हर दिन विपक्षी नेताओं पर फब्तियां कसते हों, उनकी नक़ल उतारते हों, पर किसी की बेइज्जती नहीं होती, पर प्रधानमंत्री के विरुद्ध कहा गया एक वाक्य भी उनके बेइज्जती कर जाता है।
हमारे देश में हरेक तरह की असमानताएं हैं, पर आज के दौर में सबसे बड़ी असमानता अभिव्यक्ति की आजादी के सन्दर्भ में है। एक बेहद लोकप्रिय गीत, यूपी में का बा के कारण गायिका नेहा सिंह राठौर को पुलिस द्वारा बेशर्मी से नोटिस दिया जाता है। पुलिस ने जो आरोप लगाए हैं, इस गीत से समाज में वैमनस्व और तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई है – अपने आप में किसी बेहद भद्दे चुटकुले से कम नहीं है।
इस पूरे प्रसंग पर कुमार विश्वास ने कहा है कि जब किसी जनकवि के गीत गाने भर से पुलिस प्रशासन सरकार विचलित होने लगे, तो समझ लेना सरस्वती तुम्हारे कंठ में सही शब्द उतार रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस के पवन खेड़ा भी पुलिस के शब्दों में बयान से माहौल खराब कर रहे हैं। आसाम पुलिस का तो बस यही काम रह गया है कि देशभर में घूम कर प्रधानमंत्री के विरोध में कुछ कहने वालों को पकड़ कर आसाम पहुंचाओ।
शशि थरूर ने इस मामले पर कहा है कि किसी को मजाक के लिए जेल भेजने का कोई कारण नहीं है – हमारे यहाँ ऐसा क़ानून नहीं है कि आप पीएम का मजाक नहीं बना सकते। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के बाद आयकर विभाग अपनी वफादारी निभाते हुए तथाकथित सर्वे करने पहुँच जाता है। अब तो संसद में भी अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है। राहुल गांधी के भाषण के कुछ अंश ही रिकॉर्ड में रखे जाते हैं।
अभिव्यक्ति को गुलाम बनाने की समस्या केवल भारत में ही नहीं है, बल्कि यह विश्व्यापी समस्या बन गया है। जाहिर है पूरी दुनिया में सत्ता में बैठे लोगों की विचारधारा एक जैसी ही हो चली है। अभिव्यक्ति कुचलने के सन्दर्भ में सभी देश एक दूसरे से सबक ले रहे हैं। हाल में ही बांग्लादेश में विपक्षी दल, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी, के सबसे प्रमुख बंगला भाषा के समाचारपत्र दैनिक दिनकाल के प्रकाशन को बंद करा दिया गया है।
बांग्लादेश का स्थान प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 162वां है। वर्ष 2018 से ही वहां डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट लागू है जिसके तहत सोशल मीडिया पर सरकार के विरोध में लिखने वाले सैकड़ों लोगों को जेल में बंद किया जा चुका है। बांग्लादेश की निरंकुश प्रधानमंत्री शेख हसीना के सम्बन्ध हमारे देश की सत्ता के साथ बहुत अच्छे हैं। हाल में बांग्लादेश में 14 अन्दिर तोड़े गए हैं, पर हमारे देश में कोई चर्चा नहीं है। दूसरी तरफ पाकिस्तान या कनाडा में किसी मंदिर की एक ईंट भी टूटती है तो यहाँ का मीडिया और सरकार दोनों ही भर्त्सना करने लगते हैं।
हाल में तुर्की में आये विनाशकारी भूकंप के बाद सबसे पहले मदद भेजने वाले देशों में भारत था, पर भारत ने सीरिया में मदद नहीं भेजी। पिछले वर्ष पड़ोसी देश पाकिस्तान जब बाढ़ से डूब रहा था, तब भी उसे मदद करने की कोई चर्चा नहीं थी। जाहिर है तुर्की की निरंकुश सत्ता और हमारी सत्ता के बीच गहरा तालमेल है। प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में तुर्की 149वें स्थान पर है, जबकि हमारा स्थान 150वां है। तुर्की में भूकंप की तथ्यात्मक रिपोर्टिंग के कारण तीन टीवी न्यू चैनलों पर जुर्माना लगाया गया है। तीनों चैनल – हलक टीवी, टेली 1 और फॉक्स – सरकार का आलोचना के लिए जाने जाते हैं। इन तीनों ने ही भूकंप से तबाही और बाद में राहत कार्यों में सरकार की नाकामियाँ उजागर की थीं। पिछले वर्ष अक्टूबर में राष्ट्रपति एरदोगन ने एक ऐसा क़ानून बनाया जिसके तहत सरकार विरोधी खबरें फेक न्यूज़ करार दी जा सकती हैं और इस पर तीन वर्षों की कैद भी हो सकती है।