मोदीराज में पिछले साल 9 माह में पुलिस कस्टडी में 147, न्यायिक हिरासत में 1882 और पुलिस एनकाउंटर में 119 लोगों की मौत: रिपोर्ट में हुआ खुलासा
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
The Annual Report of Amnesty International tells that South Asia is epicenter of deteriorating human rights. एमनेस्टी इन्टरनेशनल ने हाल में ही वार्षिक रिपोर्ट 2022/23 : द स्टेट ऑफ़ वर्ल्डस ह्यूमन राइट्स, प्रकाशित की है। इसमें भारत के बारे में बताया गया है कि बिना बहस और बिना कानूनी जानकारों के सलाह के ही नए क़ानून और नीतियाँ लागू कर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कुचला जा रहा है। सरकार धार्मिक अल्पसंख्यकों पर लगातार प्रहार कर रही है, और सत्ता में बैठे नेता, समर्थक और सरकारी अधिकारी अल्पसंख्यकों के विरुद्ध खुले आम नफरती बयान देते हैं, नारे लगाते हैं और इन्हें कोई सजा नहीं मिलती। मुस्लिम परिवारों और उनके व्यापार को सजा देने के नाम पर किसी कानूनी प्रक्रिया के बिना ही बुलडोज़र से ढहा दिया जाता है और इसमें किसी को सजा नहीं होती।
एमनेस्टी की रिपोर्ट के अनुसार अल्पसंख्यकों की मांगों को उठाते आन्दोलनों को सत्ता और मीडिया देश के लिए ख़तरा बताती है और उन्हें इसके अनुरूप ही सजा भी दी जाती है। विरोध की हरेक आवाज को दबाने के लिए आतंकवादियों के लिए बनाये गए कानूनों का व्यापक दुरूपयोग किया जाता है। निष्पक्ष पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को खामोश करने के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी के साथ ही अवैध तरीके से उनकी निगरानी की जाती है। आदिवासियों और दलित जैसे हाशिये पर खड़े समुदायों के विरुद्ध हिंसा और भेदभाव देश में सामान्य है। इस रिपोर्ट में जिन विषयों का विस्तार से वर्णन है, वे हैं – अभिव्यक्ति और विरोध की आजादी, गैर-कानूनी हिरासत, गैरकानूनी हमले और हत्याएं, सुरक्षा बलों का अत्यधिक उपयोग, धार्मिक आजादी, भेदभाव और असमानता, आदिवासियों के अधिकार, जम्मू और कश्मीर, निजता का अधिकार, महिलाओं का अधिकार, जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में विफलता और पर्यावरण विनाश।
इस रिपोर्ट के अनुसार केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरा दक्षिण एशिया ही मानवाधिकार हनन का गढ़ बन चुका है। इस पूरे क्षेत्र में सत्ता के विरोध की आवाजों को कुचला जा रहा है, महिलाओं के अधिकार छीने जा रहे हैं और अल्पसंख्यक भेदभाव का शिकार हो रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण दक्षिण एशिया का वैश्विक आर्थिक गतिविधियों और राजनैतिक ताकतों की वैश्विक धुरी बनना है, जिसके कारण मानवाधिकारों की उपेक्षा की जा रही है और दुनिया का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है। किसी भी अंतरराष्ट्रीय या क्षेत्रीय वार्ता में मानवाधिकार कोई मुद्दा ही नहीं रहता। सत्ता से त्रस्त जनता तमाम खतरों के बाद भी पिछले वर्ष अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, भारत, नेपाल, मालदीव्स, म्यांमार, पकिस्तान और श्री लंका में सडकों पर प्रदर्शन करती रही। भारत, अफ़ग़ानिस्तान, म्यांमार और बांग्लादेश में सत्ता द्वारा प्रेस की आजादी को कुचला जा रहा है।
भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, निष्पक्ष पत्रकारों और विपक्षी नेताओं के विदेश जाने पर पाबंदी लगाई जाती है, जिससे मानवाधिकार को कुचलने की खबरें विदेशों तक नहीं पहुंचे। भारत में विरोध की आवाज कुचलने के लिए बिना मुकदमा चलाये ही मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में लम्बे समय तक बंद करने का एक नया चलन शुरू हो गया है। विरोधियों और निष्पक्ष पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर अचानक से मनीलाउनडरिंग की जांच शुरू कर दी जाती है। एमनेस्टी इन्टरनेशनल में दक्षिण एशिया के मामलों की उपनिदेशक दिनुशिखा दिसानायके के अनुसार इस पूरे क्षेत्र में मानवाधिकार डगमगाते हुए हाशिये पर पहुँच गया है, जहां सामने हिंसा है और भेदभाव है।
एमनेस्टी इन्टरनेशनल से पहले ह्यूमन राइट्स वाच ने ग्लोबल एनालिसिस 2023 को प्रकाशित किया था, जिसमें वर्ष 2022 में वैश्विक मानवाधिकार की स्थिति का आकलन प्रस्तुत है। वैश्विक स्तर पर मानवाधिकार की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। अफगानिस्तान और म्यांमार में मानवाधिकार के साथ ही जीने के अधिकार का भी हनन किया जा रहा है, पर दुनिया खामोश है। चीन में लाखों उगियार और तुर्किक मुस्लिमों को गुलामों जैसी स्थिति में रखा जा रहा है।
ह्यूमन राइट्स वाच की प्रमुख टिराना हसन के अनुसार कुछ देशों में जहां निरंकुश सत्ता के विरुद्ध कभी जनता खडी नहीं होती थी, वहां भी बड़े आन्दोलन और प्रदर्शन होते रहे। चीन में ही जीरो-कोविड के नाम पर लगाए गए सख्त प्रतिबंधों के खिलाफ अनेक शहरों में सडकों पर बड़े प्रदर्शन किया गए। इरान में 22 वर्षीय मेहसा अमिनी की पुलिस द्वारा ह्त्या के बाद लगभग पूरी आबादी सडकों पर उतर गयी। इरान जैसे निरंकुश देश में आन्दोलन की बात सोची भी नहीं जा सकती थी, पर इस आन्दोलन में महिलायें, पुरुष और बच्चे भी शामिल रहे, खिलाड़ियों और कलाकारों ने भी सक्रिय हिस्सा लिया।
टिराना हसन के अनुसार कुछ घटनाओं के बाद आन्दोलन और प्रदर्शन किये जाते हैं, पर पूरी तरीके से मानवाधिकार की बहाली के लिए ऐसे आन्दोलनों को वैश्विक सहायता की जरूरत होती है, पर दुनिया इन आन्दोलनों को अनदेखा करती है। आज भी अफगानिस्तान, म्यांमार, फिलिस्तिन और इथियोपिया जैसे देशों में मानवाधिकार के बड़े पैमाने पर हनन के बाद भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय चुपचाप बैठकर तमाशा देखता है। वर्ष 2022 महिला अधिकारों के लिए बहुत ही खराब रहा। अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं से सारे अधिकार छीन लिए गए और अमेरिका में गर्भपात सम्बंधित क़ानून को निरस्त कर दिया गया। पर, दूसरी तरफ मेक्सिको, अर्जेंटीना और कोलंबिया जैसे अनेक दक्षिण अमेरिकी देशों में गर्भपात से सम्बंधित क़ानून का दायरा बढाया भी गया।
इस रिपोर्ट में भारत के बारे में बताया गया है कि बीजेपी सरकार लगातार अल्पसंख्यकों को कुचलने का काम कर रही है और इसके समर्थक बिना किसी भय के अल्पसंख्यकों पर हमले करते हैं। बीजेपी की धार्मिक और छद्म राष्ट्रीयता की भावना अब न्याय व्यवस्था और नॅशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन जैसे संवैधानिक संस्थाओं में भी स्पष्ट होने लगी है। न्याय व्यवस्था भारी-भरकम बुलडोज़र के नीचे दब गयी है और अल्पसंख्यकों पर बुलडोज़र चलाने के समर्थन में जनता और मीडिया खडी रहती है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और स्वतंत्र पत्रकारों की आवाज को पुलिस और प्रशासन कुचल रहे हैं।
देश में एक पुलिस राज स्थापित हो गया है, और वह कभी भी किसी की भी हत्या करने के लिए स्वतंत्र है। वर्ष 2022 के पहले 9 महीनों के दौरान ही पुलिस कस्टडी में 147 मौतें, न्यायिक हिरासत में 1882 मौतें और पुलिस द्वारा तथाकथित एनकाउंटर में 119 मौतें दर्ज की गयी हैं। जम्मू कश्मीर में अभिव्यक्ति की आजादी और आन्दोलनों के अधिकार को कुचलने के लिए क्रूरता का पैमाना बढ़ गया है। लम्बे से से कश्मिरी पंडितों के साथ खड़े होने का दावा करने वाले नेता और राजनैतिक दल इन्ही पंडितों की ह्त्या के बाद इन्हें धमकाने लगे हैं। जनवरी 2022 में बीजेपी समर्थित कुछ तथाकथित पत्रकारों ने कश्मीर प्रेस क्लब पर हमला कर उस पर अधिकार जमा लिया। अगस्त 2019 के बाद से अब तक 35 से अधिक पत्रकारों पर हिंसा की गयी है या उन्हें पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया गया है और अनेक पत्रकार जेलों में बंद हैं। देश में मानवाधिकार हनन करने वाली भारत सरकार ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी मानवाधिकार हनन करने वाली सरकारों के साथ एकजुटता दिखाई है।
निरंकुश सत्ता के विरुद्ध वर्ष 2022 में कुछ आवाजें तो उठीं, पर क्या इस वर्ष भी ऐसा होगा और विरोध का सिलसिला चलता रहेगा, यह तो समय ही बताएगा, पर भारत जैसे पारंपरिक प्रजातंत्र में जब लोकतंत्र द्वारा बार-बार निरंकुश सत्ता की वापसी होती है, तब निश्चित तौर पर यह खतरे का संकेत है।