Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

विरोधी आवाजों को कुचलने के लिए देशद्रोह कानून का इस्तेमाल कर रही निरंकुश मोदी सरकार, CJI ने की अहम टिप्पणी

Janjwar Desk
16 July 2021 7:58 AM GMT
विरोधी आवाजों को कुचलने के लिए देशद्रोह कानून का इस्तेमाल कर रही निरंकुश मोदी सरकार, CJI ने की अहम टिप्पणी
x

(सीजेआई रमण ने कहा कि वे किसी सरकार या राज्य को दोषी नहीं ठहरा रहे, लेकिन इसका दुरुपयोग हो रहा है और कोई जवाबदेही नहीं है।)

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमण ने कहा कि जिस तेजी से इस कानून के दुरुपयोग के मामले बढ़ रहे हैं, उसकी तुलना उस बढ़ई के साथ की जा सकती है, जिसके हाथ में कुल्हाड़ी दी गई हो एक पेड़ को काटने के लिए लेकिन उसने पूरा जंगल ही काट डाला हो....

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण

जनज्वार। किसी भी आदर्श लोकतंत्र (Democracy) में विरोधी आवाजों का आदर करने की परंपरा होती है। लेकिन पिछले सात सालों से भारत में लोकतंत्र को मोदी सरकार (Modi Govt.) ने निरंकुश सत्ता का पर्यायवाची बना दिया है। वह विरोध में उठने वाली हरेक आवाज को कुचल देना चाहती है और इसके लिए वह अंग्रेजों के जमाने के एक अप्रासंगिक बन चुके देशद्रोह कानून (Sedition Law) का बात बात पर इस्तेमाल करते हुए विरोधियों के मन में भय का संचार करने की कोशिश कर रही है।

एक ऐसे भयावह माहौल में सुप्रीम कोर्ट ने 15 जुलाई को देशद्रोह के कानून की जरूरत पर अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि इस कानून के बारे में विवाद ये है कि ये औपनिवेशिक कानून है, जो आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी समेत बाकी लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों द्वारा प्रयोग किया जाता था। क्या देश की आजादी के 75 साल बाद भी इसकी जरूरत है? चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमण ने कहा कि जिस तेजी से इस कानून के दुरुपयोग के मामले बढ़ रहे हैं, उसकी तुलना उस बढ़ई के साथ की जा सकती है, जिसके हाथ में कुल्हाड़ी दी गई हो एक पेड़ को काटने के लिए लेकिन उसने पूरा जंगल ही काट डाला हो।

सीजेआई रमण ने कहा कि वे किसी सरकार या राज्य को दोषी नहीं ठहरा रहे, लेकिन इसका दुरुपयोग हो रहा है और कोई जवाबदेही नहीं है। 66 (ए) का ही उदाहरण लें, उसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया लेकिन बावजूद उसके उस कानून के तहत लोगों की गिरफ्तारी होती रही है। इन सभी मुद्दों को देखना होगा। हमारी चिंता ये है कि कानून का दुरुपयोग नहीं हो और इनका प्रयोग करने वाली एजेंसियों की जवाबदेही हो। इस मामले को देखना ही होगा। 73 साल बाद भी इस तरह के कानूनों का जारी रहना दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार कई कानूनों को रद्द कर रही है, वो क्यों नहीं इसके बारे में देखती।

सीजेआई ने कहा, 'स्थिति कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि अगर किसी सरकार या पार्टी विशेष को कोई आवाज नहीं सुननी, तो वो इस कानून के तहत लोगों को गिरफ्तार कर लेते हैं।' अदालत ने पुराने कानूनों को निरस्त कर रहे केंद्र से सवाल किया कि वह इस प्रावधान को समाप्त क्यों नहीं कर रहा।

सीजेआई ने कहा कि वे इस मामले को देखेंगे। केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया और आगे इसकी सुनवाई होगी। इस मामले में सेना के एक रिटायर्ड मेजर जनरल एसजी वामबाटकेरे ने सुप्रीम कोर्ट में देशद्रोह की धारा 124 (ए) को चुनौती दी थी। उनका कहना था कि ये बोलने की आजादी को प्रभावित करती है।

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124 ए में देशद्रोह की परिभाषा के अनुसार अगर कोई व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है, ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124 ए में राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है। इसके अलावा अगर कोई शख्स देश विरोधी संगठन के खिलाफ अनजाने में भी संबंध रखता है या किसी भी प्रकार से सहयोग करता है तो वह भी राजद्रोह के दायरे में आता है।

देशद्रोह एक गैर जमानती अपराध है। देशद्रोह के मामले में दोषी पाए जाने पर आरोपी को तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। इसके अतिरिक्त इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है। देशद्रोह के मामले में दोषी पाए जाने वाला व्यक्ति सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता है। इसके अतिरिक्त उसका पासपोर्ट भी रद्द हो जाता है। जरूरत पड़ने पर उसे कोर्ट में उपस्थित होना पड़ता है।

मोदी सरकार ने जुलाई 2019 में संसद में कहा था कि वह आईपीसी की धारा-124 (ए) यानी राजद्रोह कानून को खत्म नहीं करेगी। सरकार का कहना था कि राष्ट्र-विरोधी, पृथकतावादी और आतंकवादी तत्वों से प्रभावकारी ढंग से निपटने के लिए इस कानून की जरूरत है। स्पष्ट है कि वह अपने मनपसंद हथियार को छोडने के लिए तैयार नहीं थी।

यह कानून 1870 में बना था। क्लाइमेट एक्टिविस्ट दिशा रवि, डॉ. कफील खान से लेकर शफूरा जरगर तक ऐसे कई लोग हैं जिन्हें देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार किया जा चुका है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये कानून अब अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट रहा है? सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस (रिटायर्ड) मदन बी लोकुर का कहना है कि सरकार बोलने की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए देशद्रोह कानून का सहारा ले रही है।

साल 2020 में ही राजद्रोह के 70 से अधिक मामले सामने आए। देश के विभिन्न भागों में साल 2019 के दौरान राजद्रोह के 93 मामले दर्ज किए गए जिनमें 96 लोगों को गिरफ्तार किया गया। गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को यह जानकारी दी। सबसे अधिक 22 ऐसे मामले कर्नाटक में दर्ज किए गए जहां 18 लोगों की गिरफ्तारी की गयी।

1962 में सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ बनाम बिहार राज्य के वाद में महत्वपूर्ण व्यवस्था दी थी। अदालत ने कहा था कि सरकार की आलोचना या फिर प्रशासन पर कामेंट करने से देशद्रोह का मुकदमा नहीं बनता। देशद्रोह का केस तभी बनेगा जब कोई भी वक्तव्य ऐसा हो जिसमें हिंसा फैलाने की मंशा हो या फिर हिंसा बढ़ाने का तत्व मौजूद हो।

Next Story

विविध