The Kashmir Files : हर कश्मीरी मुसलमान को कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के लिए कठघरे में खड़ा करना सही नहीं
संजय के टिक्कू का आलेख
The Kashmir Files : तमाम चर्चाओं के बीच मैंने कश्मीरी पंडितों के विस्थापन पर बनी फिल्म कश्मीर फाइल्स देखी है। फिल्म देखने के बाद मेरा सबसे पहला सवाल यह है कि कश्मीरी पंडितों का दर्द दिखाने में किसी फिल्मकार को 32 साल क्यों लग गए। फिल्म में वाकये जो वाकए दिखाए गए हैं वे सच हैं। पर उन घटनाओं के जिस तरह से फिल्म में फिल्माया गया है वह फिल्म को नकारात्मकता की तरफ ले जा रहा है। मुसलमानों के सामने कश्मीरी पंडितों को मारा गया यह गलत है। 1996 से 2003 तक जो घटनाएं हुई वे रात के साढ़े दस से साढ़े ग्यारह बजे के बीच हुए। कश्मीरी मुसलमानों के सामने कश्मीरी पंडितों की हत्या की गयी यह तथ्य सही नहीं है। जिस तरह से इसे पोट्रेट किया गया कि सारे कश्मीरी मुसलमान जेहादी है, आतंकवादी है। ये भी सरासर गलत है। यदि ये ऐसा होता तो 1998 में कश्मीर से एक भी कश्मीरी पंडित जम्मू नहीं पहुंचता। कश्मीरी पंडितों की मदद करने वालों में कश्मीरी मुसलमान तांगेवाले, टैक्सी ड्राइवर, आटोवाले थे। कुछ ट्रक वाले थे। ये श्रीनगर की बात ही नहीं है। उत्तर कश्मीर में कंडीखास जगह है। वह कुपवाड़ा से 25 किमी दूर है। उन दिनों उत्तर में आतंकवाद का असर पीक पर था।
कश्मीर फाइल्स फिल्म ने आग में घी का काम किया है। आज जो लोग कश्मीरी पंडितों की मदद और उनके समर्थन में नारे लगा रहे हैं वे 1990 में कश्मीरी पंडितों को बचाने क्यों आगे नहीे आए। विदेशों में या सिनेमाघारों में फिल्म देखकर नारे लगाना आसान है। उस समय आरएसएस और बीजेपी के लोग कहां थे। 30-35 लाख आरएसएस के स्वयंसेवक उस समय भी थे वे क्यों नहीं आए कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए। फिर आज सिर्फ कश्मीरी मुसलमानों को लेकर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं। कश्मीर पुलिस में फिलहाल 60 प्रतिशत पुलिस जवान मुसलमान हैं जो आज भी देश के लिए कुर्बान हो रहे हैं। ऐसे में हर मुसलमान को कठघरे में खड़ा करना सही नहीं है।
बीते साल कश्मीर में हुए पंचायत चुनाव में पंच और सरपंच जो मुस्लिम हैं उन्होंने भी बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ा है। उन्होंने अपनी जान को जोखिम में डालकर चुनावों में उतने का फैसला लिया था। उनमें कई को चुनावों के बाद अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। ऐसे में कश्मीरी मुसलमान पर ही सारा दोष मढ़ देना तर्कसंगत नहीं है। 1990 में मेरी मासी रहती थी किराए के मकान में डाउनटाउन में रहती थी जब यह पलायन शुरू हुआ था। हमने उनके पास जाकर कहा कि आपके मकान मालिक भी चले गए तो आप हमारे यहां आ जाइए। अगर निकलना ही पड़ा तो हम साथ में ही निकलेंगे। उन्होंने मान लिया। वो 20-25 दिन हमारे यहां रहे। एक दिन शाम को साढ़े 10 बजे के करीब एक कश्मीरी मुसलमान ने थोड़ी खांसी की क्योंकि वो डरे हुए थे, मैंने उनकी आवाज पहचान ली और अपने डैडी को बताया। मेरे पिताजी का नाम था पंडित काशीनाथ। उन्होंने कहा पंडित जी क्या आपके घर में कोई रिश्तेदार है। उन दिनों पोस्टर पोस्टर लगाए जाते थे हिट लिस्ट के जिनकी हत्या की जानी थी। उसमें कश्मीरी पंडित भी थे और राजनीतिक दलों के लोग भी। उस कश्मीरी मुसलमान ने ऐसे ही एक हिट लिस्ट में हमारे रिश्तेदार का नाम देखा था उसमें सिर्फ इतना लिखा था पंडित काशीनाथ के रिश्तेदार। इसे देखते ही उन्होंने समय गंवाए बिना हमें इसकी इत्तिला दी। उनकी सूचना पर ही उस रात को तीन बजे हमने वहां से एसआरटीसी के बस से उन्हें निकाला। एक कश्मीरी मुसलमान ने हमारे मासी की जान बचाने में हमारी मदद की थी। फिर ऐसी घटनाओं को इस फिल्म मे क्यों नहीं दिखाया गया।
देश में पिछले आठ साल से जो सरकार चल रही है वे पहले तो ब्लेम करते थे कि कांग्रेस कुछ नहीं कर रही है खासकर कश्मीरी पंडितों के लिए। मैं उनसे यह पूछना चाहता हूं कि आज जब वो खुद सत्त में हैं तो उन्होंने आज तक कंश्मीरी पंडितों के लिए कुछ क्यों नहीं किया। फिर आज जैसे हालात बनाए जा रहे हैं उससे स्थिति बिगड़ सकती है। आज उनके साथ बहुमत है। जिस हिसाब से यह चल रहा है वह संतोषजनक नहीं हैं। इश्वर ना करे पर आने वाला समय सिर्फ कश्मीरियों के लिए खराब नहीं है, मुझे लगा रहा है पूरे भारतवर्ष के लिए खराब है। अगर आज कश्मीर जलेगा तो पूरा भारतवर्ष जलेगा। वर्तमान सरकार ने विकास की और सबको साथ लेने की बात कही है। जम्हूरियत और कश्मीरियत की बात कर रहे है। पर क्या यही है सबको साथ लेने का सच। एक कौम को निशाना बनाया जा रहा है। केपीएसएस ने पिछले सात-आठ साल में प्रधानमंत्री से मिलने की। पर उनको हमसे मिलने का समय नहीं मिला। पर कश्मीरी पंडितों पर फिल्म बनाने वालों से मिलने का उनके पास समय है। आप ये बातइए अभी तक उन्होंने कितनों को सजा दी है जिन्होंने कश्मीरी पंडितों को मारा। कश्मीरी पंडितों के मौत के मामले में भी ये अभी तक वहीं 219 पर ही अटके हुए हैं। अभी तक इन्होंने यह डाटा अपने इंटेलिजेंस और प्रशासन से कलेक्ट नहीं किया कि कितने कश्मीरी पंडितों की मौत हुई। असल में हमारे रिसर्च के अनुसार 677 कश्मीरी पंडितों की मौत हुई है। इसकी लिस्ट हमारे पास है। लेकिन अभी भी सरकार कह रही है कि 219 लोगों की ही मौत हुई।
35ए और 370 हटने के बाद अभी तक भी कश्मीरी पंडितों की वापसी नहीं हुई है। हां कुछ लोगों की जमीनें वापस मिल गयी है। जिनके उपर कुछ लोगों ने नाजायज कब्जा कर लिया था। सरकार का यह दावा कि धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में हालात सामान्य हो रहे हैं पर यह भी गलत है। अगर ऐसा होता तो बीते दिनों में इतने लोगों की मौत क्यों हुई। स्कूल के अंदर घुस के शिक्षकों क्यों मारा गया। डाउनटाउन में गोलगप्पे बेचने वाले बिहार के युवक को क्यों मारा गया। एक आरटीआई किसी ने किया था जिसमें वे कश्मीरी पंडितों की किलिंग सिर्फ 89 दिखा रहे हैं। दरअसल ये आहिस्ता-आहिस्ता हमारे साथ जो ज्यादती हुई हैं, जो रेप हुए हैं उसको ये आहिस्ता, आहिस्ता लोगों के दिमाग से निकालने की कोशिश कर रहे हैं। एक समय ऐसा भी आ जाएगा वे कहेंगे कि कश्मीर में तो कोई पलायन ही नहीं हुआ। राजनीति तो इस बात पर भी चल रही है। बदकिस्मती की बात यह है कि जिस कौम ने देश के लिए अपनी जान दी है उन्हें भी ढंग से चित्रित नहीं किया जा रहा है। मैं ये नहीं कर रहा हूं कि सिर्फ कश्मीर में बल्कि पूरे मुस्लिम समाज में एक लावा जैसा बन रहा है यह देश के लिए ठीक नहीं है।
कश्मीरी पंडित पिछले 30-32 साल से हम मर-मर के जी रहे हैं। चाहे कश्मीरी पंडितों का मरना, कश्मीरी मुसलमानों का मरना, सुरक्षा बलों का मरना यह सब देखना काफी दर्दनाक है। हम जीना चाहते हैं। हम अमन चाहते हैं। हम अपने यार-दोस्तों के साथ दुख बांटना चााहते हैं। हां कुछ लोग हैं जो कि हरेक कम्यूनिटी में होते हैं गलत होते हैं। हमारी यह कोशिश होनी चाहिए कि उस सेगमेंट को नजरअंदाज किया जाए। पर ऐसा देखा गया है कि वो छोटी कम्यूनिटी ही 85 प्रतिशत कम्यूनिटी पर भारी पर जाती है। पर समाज में कहीं पर भी बहुमत का फर्ज होना चाहिए कि वो एक माइनॉरिटी को सुरक्षित रखे।
-लेखक कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष हैं।