प्रधानमंत्री जी के सपनों का न्यू इंडिया और आत्मनिर्भर भारत यही है
मोदी सरकार ने कोरोना महामारी को दूसरी लहर के दौरान नरसंहार में तब्दील कर दिया
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
जैसे ही राजनैतिक निष्क्रियता का सामना कोविड 19 की दूसरी लहर से हुआ, दुनिया के सामने मोदी जी के सपनों का भारत आ गया। इसी सपनों के भारत के लिए मोदी सरकार पिछले 6 वर्षों से अधिक समय से काम कर रही थी, जहां लाशों के ढेर पर बैठे प्रधानमंत्री जिन्दा और मुर्दा लाशों को मन की बात सुना रहे हों। प्रधानमंत्री जी ने नोटबंदी से नरसंहार का सिलसिला शुरू किया था, जो अब कोविड 19 के दौर में पूरे शबाब में नजर आने लगा है। प्रधानमंत्री जी के सपनों का भारत बनाने में मीडिया, न्यायपालिका, सभी जांच एजेंसियां और यहाँ तक की चुनाव आयोग ने भी अपनी पूरी ताकत झोंकी है।
इस दौर में जब पूरे देश की जनता अस्पतालों में बेड की कमी और ऑक्सीजन की कमी से और श्मशानघाट और कब्रिस्तान अंतिम संस्कार की जगह से जूझ रहे हैं, तब देश के प्रधानमंत्री गर्व से पंचायत पुरस्कारों और पश्चिम बंगाल चुनावों के द्वारा कोविड 19 के मामलों को नियंत्रित कर रहे हैं। मार्च 2021 के शुरू में ही प्रधानमंत्री जी ने बड़े गर्व के साथ इतराते हुए कोविड 19 के लगभग खात्मे का दावा किया था, और अब डेढ़ महीने बाद विदेशी मीडिया भारत की तुलना नरक से करने लगा है। भांड मीडिया और कंगना जैसे लोग इसे मोदी सरकार की महान उपलब्धि बता रहे हैं। जाहिर है, प्रधानमंत्री जी का यही न्यू इंडिया है, जिसके लिए वे हरेक दिन 18 से 20 घंटे तक काम करते रहे और कभी छुट्टियां भी नहीं लीं। कुछ वर्ष पहले तक न्यायपालिका से कुछ उम्मीद रहती थी, पर अब न्यायपालिका क़ानून मंत्रालय से अधिक कुछ नहीं है, और मंत्रालय वही बोलता है जो आका चाहते हैं।
अब तो लगता है की अपने देश के मंत्री और अफसरशाह मनुष्य की श्रेणी से परे हैं, क्योंकि मनुष्य जैव-विज्ञान के अनुसार रीढधारी जानवर होता है, पर मंत्रियों और अफसरशाह तो रीढविहीन हैं। दरअसल वे कठपुतली हैं जो धागे के सहारे अपने आका के इशारों पर नाचते हैं। अमेरिका, इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका, इटली और भी अनेक देशों में जब स्वास्थ्य मंत्रियों को लगा कि सरकार कोविड 19 को रोकने या नियंत्रित करने के लिए जरूरी कदम नहीं उठा रही है, उन्होंने त्यागपत्र दिया और सरकार से अलग हो गए।
दरअसल त्यागपत्र देने का साहस आपकी दक्षता और योग्यता से आता है, जिन्होंने त्यागपत्र दिया उन्होंने दूसरे तरीकों से कोविड 19 से लड़ाई लड़ी। दूसरी तरफ, अपने देश में सभी मंत्रियों और नौकरशाहों को पता है की वे सभी नकारा है, किसी नौकरी योग्य नहीं हैं – इसीलिए जनता को मरता छोड़कर भी अपनी कुर्सी बचा रहे हैं। कोविड 19 की ऐसी बाढ़ दुनिया के किसी भी लोकतंत्र में आती तो निश्चित तौर पर स्वास्थ्य मंत्री पर नरसंहार का मुकदमा दर्ज हो जाता, पर अपने देश में तो वे शान से कोरोनिल का प्रचार करते हैं, हवन की सलाह देते हैं और काढा भी प्रचारित करते हैं।
मोदी जी ने मार्च में भारत को दुनिया की फार्मेसी करार दिया था, बताया था दुनिया में सबसे अधिक टीका हमारे देश में बन रहा है और लगभग पूरी दुनिया हमारे यहाँ बने टीके के इंतज़ार में है। यही नहीं देश में दवा उद्योग से जुड़े उद्योगपतियों का सार्वजनिक तौर पर महिमामंडन किया था। तथ्य यह है कि इस दौर में चीन और अमेरिका भारत से कहीं अधिक टीके बना रहे हैं। अमेरिका बड़ी संख्या में टीके बनाने के बाद भी उसका निर्यात नहीं कर रहा है, और ना ही इसके कच्चे माल को निर्यात कर रहा है क्योंकि सबसे पहले अपनी आबादी सुरक्षित करना चाहता है। इसी कच्चे माल के निर्यात पर प्रतिबन्ध के कारण देश का टीका उद्योग संकट में आ गया है, जाहिर है हम टीके बनाकर विदेशों को बाँटते रहे, और जब विपक्षी दलों ने इसपर सवाल किया तो उन्हीं को सवालों के घेरे में खड़े करते रहे। मोदी जी ने और माडिया ने देश को टीके के संदर्भ में विश्वगुरु करार दिया, आज यूनाइटेड किंगडम के अनेक संस्थानों ने इसी विश्वगुरु को टीके दान में देने की बात कही है।
इसी विश्वगुरु बनने की चाह और छद्म राष्ट्रवाद की राह ने देश को यहाँ तक पहुंचा दिया है। इसमें मीडिया की भूमिका बहुत बड़ी है। दरअसल तमाम समाचार चैनलों पर उछलते कूदते, चिल्लाते और अफवाह फैलाते जो न्यूज़ एंकर दिखते हैं, उन्हें भी मालूम है की उन्हें पत्रकारिता या कोई भी दूसरा काम नहीं आता है, इसलिए अपनी कुर्सियों से चिपके हैं और वही कर रहे हैं जिसके लिए उनके मालिक इशारा करते हैं। हाल में ही टाइम्स नाउ के भूतपूर्व और वर्त्तमान कर्मचारियों ने अपने प्रबंधन को एक खुला पत्र भेजा है, जिसमें कहा गया है की यहाँ जो हो रहा है वह पत्रकारिता के मौलिक सिंद्धांतों के विपरीत है।
मेनस्ट्रीम मीडिया तो शुरू से ही प्रधानमंत्री जी के इस मुहीम में साथ थी, पर सोशल मीडिया पर कुछ लोग देश की वास्तविक स्थिति का आकलन करते रहे हैं। अब ताजा खबर यह है कि प्रधानमंत्री ने ट्विटर को देश में कोविड 19 की वास्तविक स्थिति और भयावहता बताने वाले ट्वीट हटाने का सरकारी फरमान जारी कर दिया है। ट्विटर के अनुसार 23 अप्रैल को यह आदेश देश के इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 के तहत जारी किया गया है, और ट्विटर इसे मानने को बाध्य है।
ट्विटर इस तरह के फरमान के बाद आकलन करता है – ट्विटर की नीतियों पर खरे न उतरने वाले ट्वीट पूरी दुनिया से हटा दिए जाते हैं, जबकि किसी देश के कानूनों का पालन न करने वाले ट्वीट को केवल उस देश में हटाया जाता है। मोदी सरकार कितनी भी कोशिश कर ले, पर इतना तो तय है की पूरी दुनिया का मीडिया उनकी भर्त्सना कर रहा है और उनकी असफलता पर बड़े लेख और सम्पादकीय लिख रहा है। पिछले वर्ष जिस तरह की भर्त्सना मीडिया ने ट्रम्प, बोरोस जॉनसन और बोल्सेनारो की गयी थी, वही हाल आज मोदी जी का है। मोदी जी शुरू से ही सूचना और समाचारों को दबाकर अपने आप को महान साबित करते रहे हैं, वही हथकंडा इस बार भी अपना रहे हैं।
ऐसे समय जब भारत में कोविड 19 के मामले रोज नए रिकॉर्ड बना रहे हैं, 24 अप्रैल को दुनिया भर में लगाए गए टीकों का आंकड़ा 1 अरब को पार कर गया। इस समय दुनिया के 207 देशों में टीके लगाने का काम किया जा रहा है। यूनाइटेड किंगडम ऐसा पहला देश बन गया जिसने अपनी आधी से अधिक आबादी को टीका दे दिया। 24 अप्रैल को दुनिया में कोविड 19 के 893000 नए मामले दर्ज किये गए, जिसमें एक-तिहाई से अधिक भारत में थे। कोविड 19 से अबतक दुनिया में 30 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। दुनिया में अब तक जितने टीके लगाए गए हैं उसमें से 47 प्रतिशत अमीर देशों में लगे हैं और सबसे गरीब देशों में महज 0।2 प्रतिशत टीके ही लगे हैं।