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विमर्श

UP Investors Summit 2022: योगी सरकार के लिए 1 ट्रिलियन की डगर बहुत कठिन है, सवाल केवल निवेश का नहीं है

Janjwar Desk
3 Jun 2022 2:06 PM IST
UP Investors Summit 2022: योगी सरकार के लिए 1 ट्रिलियन की डगर बहुत कठिन है, सवाल केवल निवेश का नहीं है
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UP Investors Summit 2022: योगी सरकार के लिए 1 ट्रिलियन की डगर बहुत कठिन है, सवाल केवल निवेश का नहीं है

UP Investors Summit 2022 Latest Updates: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को उत्तरप्रदेश के दौरे पर हैं। इस दौरान वे उत्तरप्रदेश सरकार के तीसरे इन्वेस्टर मीट में शामिल होंगे और 80 हजार करोड़ रुपए की योजनाओं की आधारशिला रखेंगे।

सौमित्र रॉय का विश्लेषण

UP Investors Summit 2022 Latest Updates: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को उत्तरप्रदेश के दौरे पर हैं। इस दौरान वे उत्तरप्रदेश सरकार के तीसरे इन्वेस्टर मीट में शामिल होंगे और 80 हजार करोड़ रुपए की योजनाओं की आधारशिला रखेंगे। यूपी सरकार ने इस साल के बजट में राज्य को 2027 तक 1 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने का लक्ष्य रखा है और इस रास्ते में इन्वेस्टर मीट बहुत अहम है। लेकिन क्या योगी सरकार के लिए 1 ट्रिलियन की डगर आसान है?

राज्य योजना केंद्र की सितंबर में जारी रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच साल के योगी राज में उत्तरप्रदेश की इकोनॉमी सालाना 2% से कम (1.95%) दर से बढ़ती रही है। इससे राज्य की प्रति व्यक्ति सालाना आय में भी 0.43% की ही बढोतरी हो सकी है। सरकार की कुल इकोनॉमी (GSDP) ही इस समय 17.05 लाख करोड़ या 240 बिलियन डॉलर के आसपास है। सरकार ने अगले पांच साल में इसे एक ट्रिलियन डॉलर करने का लक्ष्य रखा है। कोविड काल में जब भारत की अर्थव्यवस्था 7.3% सिकुड़ गई थी, तब उत्तरप्रदेश की अर्थव्यवस्था में भी 6.4% की गिरावट आई थी। अर्थशास्त्री राजेश शुक्ला का कहना है कि अगर यूपी सरकार को 1 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनना है तो उसे 45% की सालाना दर से बढ़ना होगा, जो इसलिए नामुमकिन सा है, क्योंकि सकल घरेलू उत्पाद में निर्माण क्षेत्र का हिस्सा 15% गिरा है।




कहां कितनी बढ़ोतरी की जरूरत ?

फिलहाल राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में सबसे बड़ा हिस्सा सेवा क्षेत्र का है, जो 50% के करीब है। कृषि क्षेत्र 23% और निर्माण का हिस्सा 27% है। एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था को छूने के लिए निर्माण क्षेत्र को 40% के दर से बढ़ना होगा। इसका मतलब है मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर अभी जितना सामान बनाता है, उससे करीब 5 गुना ज्यादा उत्पादन करना होगा। इससे उसका हिस्सा मौजूदा 5.6 लाख करोड़ से बढ़कर लगभग 28 लाख करोड़ हो जाएगा। इसी तरह कृषि क्षेत्र को ढाई गुनी रफ्तार से दौड़ने की जरूरत होगी, जिससे GSDP में उसका हिस्सा 4.7 लाख करोड़ से 12 लाख करोड़ तक पहुंच जाए। इसी तरह सेवा क्षेत्र को भी चार गुना तेजी से भागकर मौजूदा 10.3 लाख करोड़ से 40 लाख करोड़ तक पहुंचना पड़ेगा। इन आंकड़ों को छू पाना इसलिए आसान नहीं है, क्योंकि कोविड काल में गिरी इकोनॉमी अभी भी पूरी तरह से पटरी पर नहीं आ सकी है।



एमएसएमई पर इतना जोर क्यों ?

यूपी के पक्ष में तीन बातें बहुत लाभदायक हैं- एक बड़ा और विविध बाजार, दूसरा मानव संसाधन और तीसरा इसका नॉलेज कैपिटल के रूप में आगे आना। इसी को देखते हुए योगी सरकार ने एक जिला, एक उत्पाद (One District One Product-ODOP) का नारा दिया है और इस नारे को सार्थक करने में छोटे और मझोले उद्योग (MSME) की बड़ी भूमिका है। यह मजदूर केंद्रित उद्योग है। हालांकि चौंकाने वाली बात यह भी है कि योगीराज के पांच साल में श्रम प्रतिभागिता 46.32% से घटकर 34.45% पर आ गई है। उत्तरप्रदेश में कामकाजी आयु के लोगों की संख्या पांच साल में 2.2 करोड़ बढ़ी है, लेकिन जब रोजगार की बात आती है तो कोविड काल के बाद 11 लाख लोगों के रोजगार छिने हैं। फिर भी पांच साल के दौरान MSME में 2.5 लाख करोड़ का निवेश हुआ है, जिससे राज्य के निर्यात में 40% की बढ़ोतरी हुई है। इसमें MSME सेक्टर का योगदान 86% रहा है। हालांकि, इस योगदान में सूक्ष्म और छोटी इकाईयों का हिस्सा 76% है। इसे देखते हुए यह कहना ठीक होगा कि केवल MSME सेक्टर में निवेश से ही बात नहीं बनेगी। सरकार को सूक्ष्म और छोटी इकाईयों में भी पैसा लगाना होगा। एक अनुमान के अनुसार, इस क्षेत्र में 2.5 लाख करोड़ के निवेश की जरूरत होगी।


बढ़ती बेरोजगारी

योगी राज के पांच साल के पहले कार्यकाल में सकल बेरोजगारी दर 2.5 गुना बढ़ी है और युवाओं में यह 2012 से तुलना करने पर 5 गुना बढ़ी है। राज्य में सेकंडरी पास युवाओं में तीन गुना, हायर सेकंडरी तक शिक्षित युवाओं में 4 गुना और स्नातक स्तर के युवाओं में 21-51% तक बेरोजगारी है। अगर तकनीकी कुशल डिप्लोमी धारी या स्नातकों की बात करें तो उनमें बेरोजगारी 13-66% तक है। इस हद तक बेरोजगारी के बीच कुशल मानव संसाधन को निवेश के साथ जोड़ना सबसे बड़ी चुनौती है, जिससे निपटने के लिए फर्जी आंकड़ों के साथ प्रचार की नहीं, जमीन पर योजनाओं को तेजी से अंजाम देने की जरूरत है।

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