Hindu Minority Status : क्या है हिंदू अल्पसंख्यक का मुद्दा? जानिए- याची, केंद्र और राज्य सरकारों की राय एक-दूसरे से अलग क्यों?
Hindu Minority Status : क्या है हिंदु अल्पसंख्यक का मुद्दा? जानिए- याची, केंद्र और राज्य सरकारों की राय एक-दूसरे से अलग क्यों?
Hindu Minority Status को लेकर जारी बहस पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट
Hindus Minority Status : संविधान ( Indian constitution ) में समानता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है। इसके बावजूद सियासी कारणों से अल्पसंख्यक ( minority ) शब्द अस्तित्व में बने हुए हैं। इस बीच कुछ राज्यों में जनसांख्यिकीय बदलाव ( demographic change ) की वजह से यह मसला नये सिरे से बहस का विषय बन गया है। कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) में याचिका ( Writ ) दायर कर देश के नौ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा ( Hindu minority status ) देने की मांग की है। साथ ही अल्पसंख्यक शब्द को परिभाषित करने पर जोर दिया है। ताकि इस विवाद का अंत हो सके और यह तय हो जाए कि वास्तव में किसी समुदाय को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक माना या राज्य स्तर पर।
फिलहाल, केंद्र सरकार ( Central government ) ने शीर्ष अदालत में दो दिन पहले हुई सुनवाई के बाद इस मसले को संवेदनशील बताते हुए अपनी अंतिम राय देने के लिए और समय देने की मांग की है। आइए, हम आपको बतातें हैं कि कम आबादी वाले राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक ( minority ) दर्जा देने का मसला लंबा क्यों खिंचता जा रहा है।
दरअसल, 23 अक्टूबर 1993 को एक अधिसूचना जारी करके राष्ट्रीय स्तर पर आबादी के आधार पर पांच समुदायों मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किया गया है। करीब तीन दशकों में देश का धार्मिक आधार पर जनसांख्यिकीय ढांचा बदल गया है। कई राज्यों में जो पहले अल्पसंख्यक अब बहुसंख्यक हो चुके हैं और जो बहुसंख्यक थे वो अल्पसंख्यक हो गए हैं। जो अब अल्पसंख्यक हो गए हैं उन्हें उसका लाभ नहीं मिल रहा है।
गैर बराबरी के इस मुद्दे को उठाते हुए कुछ लोगों ने अदालत के सामने याचिका दायर की थी। इन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। याचिकाकर्ताओं की मांग है कि जिन नौ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्य हैं उन्हें उसका लाभ मिले। 31 अक्टूबर 2022 को भाजपा नेता एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय और देवकी नंदन ठाकुर व अन्य याचिकाओं पर सुनवाई हुई।
केंद्र ने शीर्ष अदालत से मांगा और समय
केंद्र सरकार ने दायर अपने चौथे हलफनामे में शीर्ष अदालत से कहा कि उसे इस मुद्दे पर अब तक 14 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों से टिप्पणियां मिली हैं। 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से अभी सुझाव नहीं मिले हैं। कुछ राज्य सरकारों केंद्र शासित प्रदेशों ने इस मामले पर अपनी राय बनाने से पहले सभी हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श करने के लिए अतिरिक्त समय का अनुरोध किया है। हमने सभी से तेजी से इस मसले पर काम करने को कहा है।
17 राज्यों और यूटी ने केंद्र के सामने पेश की अपनी राय
केंद्र ने शीर्ष अदालत को जानकारी दी है कि पंजाब, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, ओडिशा, उत्तराखंड, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, गोवा, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और 3 केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव और चंडीगढ़ ने केंद्र को अपनी राय नहीं दी है।
इन राज्यों-यूटी से है केंद्र को सुझाव का इंतजार
कुल 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से केंद्र को इस मसले पर सुझाव मिलने का इंतजार हैं इन राज्यों में बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, एमपी, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, पुद्दूचेरी, हरियाणा, राजस्थान, असम, जम्मू—कश्मीर, दिल्ली व अन्य शामिल हैं।
सिर्फ राज्यों को न मिले इस पर फैसला लेने का अधिकार
इससे पहले यानि 28 मार्च 2022 को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि जिन राज्यों में हिंदुओं की संख्या कम है, वहां की सरकारें उन्हें अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं। वहां पर हिंदू अपने शिक्षण संस्थानों को स्थापित और संचालित कर सकते हैं। ऐसा राज्य सरकारों ने किया भी है। जैसे महाराष्ट्र सरकार ने यहूदियों को अल्पसंख्यक घोषित किया। कर्नाटक सरकार ने उर्दू, तेलुगु, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमणी, हिंदी, कोंकणी और गुजराती भाषाओं को अपनी सीमा में अल्पसंख्यक भाषा अधिसूचित किया।
केंद्र ने ये भी कहा था कि सिर्फ राज्यों को अल्पसंख्यकों के विषय पर कानून बनाने का अधिकार नहीं दिया जा सकता क्योंकि ये संविधान और सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों के विपरीत होगा। केंद्र ने अनुच्छेद 246 का हवाला देते हुए कहा था कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक्ट 1992 को कानून बनाया है। अगर ये मान लिया जाए कि सिर्फ राज्यों को ही अल्पसंख्यकों के विषय में कानून बनाने का हक़ है तो संसद की शक्ति का हनन होगा और ये संविधान के खिलाफ भी माना जाएगा।
केंद्र ने अपनी दलील में टीएमए पाई और बाल पाटिल के केसों का जिक्र किया। इसके उलट याचिकाकर्ताओं ने परामर्श प्रक्रिया की कानूनी पवित्रता पर संदेह व्यक्त करते हुए कहा कि मामले में फैसले के बाद केंद्र अब किसी को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित नहीं कर सकता है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 के तहत जो भी विचार-विमर्श किया जा सकता है वह किसी राज्य में किसी को भी अल्पसंख्यक दर्जा की पुष्टि नहीं कर सकता।
याचिकाकर्ताओं की मांग क्या है?
सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में वकील अश्विनी उपाध्याय ने अदालत से कहा था कि वे केंद्र राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने के लिए निर्देश जारी करे क्योंकि दस राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं लेकिन उन्हें अल्पसंख्यकों के लिए दी जानी वाली सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। कई धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक पूरे भारत में फैले हुए हैं। उन्हें किसी राज्य या केंद्र शासित राज्य में सीमित नहीं किया जा सकता है। संविधान में नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन का ज़िक्र है, और वो सबके लिए बना हुआ है। जब एनएचआरसी सबके लिए है तो फिर एक अलग से धार्मिक आधार पर कमीशन की क्या ज़रूरत है? अश्विनी कुमार की याचिका में अल्पसंख्यकों को 'अल्पसंख्यक संरक्षण' दिये जाने तथा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2(c) को रद्द किये जाने की मांग की गई है क्योंकि यह धारा मनमानी, अतार्किक और अनुच्छेद 14, 15 तथा 21 का उल्लंघन करती है। इस धारा में केंद्र सरकार को किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने के असीमित और मनमाने अधिकार दिए गए हैं। याचिका में कहा गया है कि हिंदू जो राष्ट्रव्यापी आंकड़ों के अनुसार एक बहुसंख्यक समुदाय है, वह पूर्वोत्तर के कई राज्यों और जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक है। उक्त राज्यों में हिंदू समुदाय उन लाभों से वंचित है जो कि इन राज्यों में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए मौजूद हैं। साथ ही अल्पसंख्यक पैनल को इस संदर्भ में 'अल्पसंख्यक' शब्द की परिभाषा पर पुन: विचार करने पर भी जोर दिया है।
जून 2022 में देवकीनंदन ठाकुर ने भी जनहित याचिका दायर कर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 और शैक्षिक संस्थान अधिनियम, 2004 के प्रावधान को चुनौती दी थी। देवकीनंदन की याचिका में कहा गया है कि लद्दाख में सिर्फ 1%, मिजोरम में 2.75%, लक्षद्वीप में 2.77%, कश्मीर में 4%, नगालैंड में 8.74%, मेघालय में 11.52%, अरुणाचल प्रदेश में 29%, पंजाब में 38.49% और मणिपुर में 41.29% हिंदू हैं। इसके बावजूद वहां की सरकारों ने उन्हें अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया है।
हिंदुओं को अल्पसंख्यक का लाभ मिलने पर अपत्ति क्यों
याचिकाकर्ताओं की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) ने केंद्र सरकार से पूछा था कि आखिर जिन राज्यों में जो हिंदू समुदाय आबादी में कम है, उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा क्यों नहीं दिया जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट से याचिका खारिज करने का आग्रह किया कि यह न तो आम लोगों और न देश के हित में है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 11 फरवरी 2022 को सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को निर्देश दिया था कि वह तीन महीने के भीतर अल्पसंख्यकों की परिभाषा तय करे। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के TMA पाई मामले में दिये गए संविधान पीठ के फैसले को आधार बनाकर मांग की गई थी कि अल्पसंख्यकों की पहचान राज्य स्तर पर की जाए, न कि राष्ट्रीय स्तर पर। शीर्ष अदालत ने यह आदेश इस बात को ध्यान में रखते हुए दिया कि कई राज्यों में जो वर्ग बहुसंख्यक हैं उन्हें अल्पसंख्यक का लाभ मिल रहा है।
अल्पसंख्यक इतिहास
1947 में देश के विभाजन के दौरान मुस्लिम समुदाय के लगभग सभी लोग पाकिस्तान चले गए थे और भारत में इनकी संख्या बहुत कम रह गई थी। हमारे संविधान निर्माताओं के मस्तिष्क में यह आशंका थी कि ऐसा न हो कि हिंदुओं की बहुसंख्यक आबादी के कारण यहां केवल उन्हीं की सरकार बने और वह अल्पसंख्यकों के त्योहारों या उनके रीति-रिवाज़ का पालन करने पर कोई रोक लगा दें। इस बात को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद 29 और 30 में कहा गया कि भारत में जो अल्पसंख्यक हैं उनको अपने रीति-रिवाज़ तथा धर्म का पालन करने और शैक्षिक संस्थान चलाने का अधिकार होगा।
यूएन की नजर ये हो सकते हैं अल्पसंख्यक
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक ऐसा समुदाय जिसका सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक रूप से कोई प्रभाव न हो और जिसकी आबादी नगण्य हो, उसे अल्पसंख्यक कहा जाएगा।
संविधान में अल्पसंख्यक शब्द परिभाषित नहीं
भारत के संविधान में 'अल्पसंख्यक' ( minority ) शब्द का प्रयोग किया गया है लेकिन इसकी परिभाषा कहीं नहीं दी गई है। अनुच्छेद 29 में 'अल्पसंख्यक' शब्द का प्रयोग किया गया है जिसमें कहा गया है कि भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा। अनुच्छेद 30 में बताया गया है कि धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा, संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा। अनुच्छेद 350A और 350B केवल भाषायी अल्पसंख्यकों से संबंधित हैं।
1992 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2(c) के तहत 23 अक्तूबर, 1993 को सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में पांच समुदायों मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, पारसी तथा बौद्ध को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में मान्यता दी गई। 2014 में जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यक की श्रेणी में शामिल किया गया। गुजरात सरकार ने जैन समुदाय को अलग से अल्पसंख्यक घोषित किया है। 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया उस समय भी 'अल्पसंख्यक' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया। वर्ष 2006 में अल्पसंख्यक मामले मंत्रालय का गठन हुआ तब भी 'अल्पसंख्यक' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया। आज़ादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी अल्पसंख्यक कौन हैं, न तो संविधान में परिभाषित किया गया और न ही किसी अन्य कानून में।
अल्पसंख्यकों की स्थिति बदलने में समस्या क्या है?
नौ राज्यों में हिंदु अल्पसंख्यक हैं, लेकिन वो अल्पसंख्यक सुविधाओं व अधिकारों से वंचित हैं। लक्षद्वीप में मात्र 2% हिंदू हैं लेकिन वे वहां अल्पसंख्यक न होकर बहुसंख्यक हैं और 96% प्रतिशत आबादी वाले मुसलमान अल्पसंख्यक हैं। यूपी के एससी को राजस्थान में एससी नहीं माना जाता। प्रदेश बदलने के साथ उस व्यक्ति की SC, ST, OBC स्थिति बदल जाती है तो अल्पसंख्यक की स्थिति को बदलने में क्या समस्या है?
Hindus Minority Status : अल्पसंख्यक के मुद्दे पर कब-कब आये फैसले
1. केरल शिक्षा बिल, 1958 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अल्संख्यक का निर्धारण किस आधार पर हो, यह बड़ा सवाल है। देश में ऐसा संभव है कि कोई समुदाय किसी राज्य में बहुसंख्यक है, लेकिन पूरे देश के अनुपात में वह अल्पसंख्यक हो जाए। कोई समुदाय किसी शहर में बहुसंख्यक हो, लेकिन राज्य में अल्पसंख्यक हो जाए।
2. साल 1971 के डीएवी कालेज मामले में कोर्ट ने फैसला दिया था कि पंजाब में हिंदुओं को अल्पसंख्यक माना जाए लेकिन पंजाब और हरियाणा ने यह नहीं माना, जबकि वहां सिख बहुसंख्यक हैं।
3. गुरु नानक यूनिवर्सिटी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक समुदाय को पूरे देश की आबादी के अनुपात में अल्पसंख्यक नहीं माना जाएगा। किसी समुदाय को उस क्षेत्र के कानून के हिसाब से अल्पसंख्यक तय किया जाएगा, जिस पर उसका प्रभाव पड़ेगा। अगर राज्य के कानून पर असर पड़ता है, तो राज्य की आबादी के अनुपात में समुदाय का अल्पसंख्यक होना या न होना तय किया जाएगा।
4. साल 2002 के टीएमए पई फाउंडेशन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य की आबादी के अनुपात में ही किसी समुदाय को अल्पसंख्यक मानने या ना मानने का फैसला हो। नगालैंड, मिजोरम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर और पंजाब में हिंदुओं की संख्या के हिसाब से उन्हें अल्पसंख्यक माना जाना चाहिए।
5. अहमदाबाद सेंट जेवियर्स कालेज बनाम गुजरात सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कि भले ही किसी शिक्षण संस्थान को किसी खास समुदाय ने स्थापित किया है और संचालित कर रहा है, लेकिन वह संस्थान किसी दूसरे समुदायों के छात्रों को दाखिला देने से मना नहीं कर सकता।
6. जब जैन सुदाय ने केंद्र सरकार से अल्पसंख्य का दर्जा मांगा तो 2005 के बाल पाटिल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय का सिद्धांत बनाते समय संविधान निर्माताओं ने इस बारे में ज्यादा सोच विचार नहीं किया। हमारा समाज समानता को मौलिक अधिकार मानता है। ऐसे में अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक और तथाकथित अग्रणी और पिछड़ी जातियों को खत्म कर दिया जाना चाहिए। इसके बाद जब सच्चर कमेटी ने मुस्लिमों के गैर-प्रभावी अस्तित्व की बात की तो इलाहाबाद कोर्ट ने 2006 में फैसला दिया कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं।