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विमर्श

Wheat Export Ban : कहीं देश की खाद्य संप्रभुता भेड़ियों के हवाले तो नहीं कर रही है सरकार?

Janjwar Desk
16 May 2022 3:30 PM IST
Wheat Export Ban : कहीं देश की खाद्य संप्रभुता भेड़ियों के हवाले तो नहीं कर रही है सरकार?
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Wheat Export Ban : कहीं देश की खाद्य संप्रभुता भेड़ियों के हवाले तो नहीं कर रही है सरकार?

Wheat Export Ban : भारत अपने सकल गेहूं उत्पादन (Gross Wheat Production) को 90% अपने उपयोग के लिए बचाकर रखता है, बाकी का 10% वह अपने पड़ोसी देशों को निर्यात करता है, जो कि खाद्यान्न के मामले में हम पर निर्भर करते हैं.....

सौमित्र रॉय का विश्लेषण

Wheat Export Ban : गेहूं निर्यात पर 48 घंटे में यू-टर्न (Wheat Export Ban) लेने के बाद केंद्र सरकार ने रविवार को एक बार फिर कहा कि वह दो दिन पहले लगाई गई पाबंदियों के बावजूद निजी निर्यातकों (Private Exporters) के माध्यम से उन देशों में गेहूं के निर्यात की खिड़की खुली रखेगी, जहां खाद्यान्नों की कमी (Food Shortage) है। यह देश की खाद्य संप्रभुता को उन भेड़ियों के हवाले करने जैसा है, जिन्होंने देश में गेहूं के 20 प्रतिशत कम उत्पादन के बावजूद 10 लाख टन गेहूं अप्रैल में ही बेच दिया।

इन हालात के बावजूद वाणिज्य सचिव बीवीआर सुब्रह्मण्यम (BVR Subramanyam) ने रविवार को मीडिया से कहा कि भारत जुलाई तक 40 लाख टन गेहूं के निर्यात (Wheat Export From India) का अपना वादा पूरा करेगा। बीते साल भारत ने 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था। लेकिन इस साल भारत में ही गेहूं का उत्पादन (Wheat Production In India) सरकारी लक्ष्य 10.6 करोड़ टन से 20 प्रतिशत से ज्यादा कम होने की आशंका है।

इसके बावजूद अप्रैल से लेकर 14 मई को गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगाने तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से लेकर तकरीबन पूरी सरकार यह बताने की कोशिश में थी कि भारत पूरी दुनिया को रोटी खिला सकता है। नतीजा यह हुआ कि घरेलू बाजार में गेहूं के दाम 20-40% तक बढ़ चुके हैं। भारत पर वैश्चिक बाजार में खाद्यान्न के दाम बढ़ाने के आरोप लग रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें (Wheat Price In International Market) सोमवार को 6% और बढ़ गई। गेहूं के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस साल 60% तक बढ़े हैं।


कहां बड़ी गलती की है सरकार ने

सबसे बड़ी गलती यह है कि भारत अपने सकल गेहूं उत्पादन (Gross Wheat Production) को 90% अपने उपयोग के लिए बचाकर रखता है। बाकी का 10% वह अपने पड़ोसी देशों को निर्यात करता है, जो कि खाद्यान्न के मामले में हम पर निर्भर करते हैं। सरकार ने इसी को देखते हुए साल 2022-23 के लिए एक करोड़ टन गेहूं के निर्यात का लक्ष्य (Wheat Export Goal) रखा था।

सुब्रह्मण्यम के मुताबिक सरकार को उम्मीद थी कि देश में गेहूं का उत्पादन 10.9 करोड़ टन होगा लेकिन मार्च-अप्रैल के महीने में रिकॉर्ड गर्मी (Heat Wave In India) के चलते उत्पादन में 30 लाख टन से ज्यादा की कमी आई है। हालांकि, यह सरकार का एक मोटा अनुमान है।

हालात इस कदर खराब हैं कि पंजाब-हरियाणा में गेहूं की 20% फसल भीषण गर्मी के कारण तबाह हो गई है। अगर गेहूं की बालियों में प्रोटीन की बात करें तो असमय गर्मी के कारण उनका आकार छोटा हो गया है। कम वजन के कारण किसानों को नुकसान हुआ है। केवल मध्यप्रदेश में गेहूं की फसल पर गर्मी का ज्यादा असर इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि वहां फसल मार्च के महीने में तकरीबन काट ली जाती है।

अब सरकार के रातों-रात यू-टर्न लेने पर विश्व व्यापार संगठन (WTO) और जी-7 देशों समेत रूस ने भी भारत की जमकर आलोचना की है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के गेहूं निर्यात पर पाबंदी लगाने का फैसला लेने से पहले वैश्विक बाजार में खाद्य संकट (Food Crisis In Global Market) और बाकी देशों द्वारा भी इसी तरह की पाबंदी लगाने की आशंका के बारे में भी सोचना चाहिए था।

हालांकि, इससे पहले भारत को दुनिया की खाद्य समस्या (Food Security) हल करने का दावा करने से पहले घरेलू उत्पादन और भंडारण के गणित का ठीक तरह से हिसाब लगाना चाहिए था, जो नहीं लगाया गया। अंतरराष्ट्रीय दबाव में वाणिज्य मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय कुछ यूं उलझा कि जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास से घरेलू राशन उपभोक्ताओं को गेहूं के बजाय चावल देकर दुनिया के बाजारों के गेहूं पहुंचाने का दावा कर दिया।


रबी फसलों का घटता उत्पादन और बढ़ता निर्यात

कृषि मंत्रालय के बीते पांच साल के आंकड़े देखें तो 2017-19 में उत्पादन करीब 10 करोड़ टन के आसपास हुआ था, जिसमें अगले तीन साल, यानी 2020-21 तक थोड़ी बढ़ोतरी होती रही। 2021-22 के चालू सीजन में रबी का उत्पादन 9.6 करोड टन से भी कम होने की आशंका है, जिसमें से करीब 2 करोड़ टन का ही सरकारी भंडारण अभी तक हो सका है, जबकि पिछले सीजन में देश के गोदामों में करीब 3 करोड़ गेहूं का स्टॉक उपलब्ध था।

अगर सरकारी खरीद की बात करें तो अभी तक 1.8 करोड़ टन गेहूं की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की गई है, जो कि बीते सीजन के 4.3 करोड़ टन के मुकाबले लगभग 42% है। यानी सरकार अभी तक सरकारी खरीद का आधा गेहूं भी नहीं खरीद पाई है, क्योंकि सरकार के बंपर गेहूं निर्यात के ऐलान ने किसानों को मंडियों से दूर निजी कंपनियों के खरीदारों के हवाले कर दिया, जिन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य से कुछ अधिक दाम देकर उपज खरीद ली। अब सरकार के यू-टर्न ने किसानों को फिर मंडियों के हवाले कर दिया है।


गेहूं का स्टॉक (Wheat Stock in India) कम होने और उत्पादन में बड़ी गिरावट के बावजूद गेहूं का निर्यात (Wheat Export From India) लगातार बढ़ता रहा है और वह भी देश की खाद्य सुरक्षा को ताक पर रखकर। 2018-19 में सरकार ने करीब 2 लाख टन गेहूं का ही निर्यात किया था, जो कि पिछले सीजन में बढ़कर 70 लाख टन हो गया और इस सीजन में सरकार का इरादा निजी कंपनियों के माध्यम से 40 लाख टन से अधिक गेहूं विदेशों में बेचने का है।

बढ़ती महंगाई और अभूतपूर्व खाद्य संकट

अप्रैल में जारी हुए सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में खुदरा महंगाई की दर शहरों में 7.09% और ग्रामीण इलाकों में 8.38% हो गई है। अगर उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के जारी आंकड़ों को देखें तो पिछले 6 साल में अनाज के दाम में 21-32%, खाद्य तेलों के दाम 41-128%, फल-सब्जियों के दाम 65-155% और अन्य जरूरी चीजों के दाम 25-41% तक बढ़े हैं। इस साल जनवरी से लेकर अभी तक रसोई गैस के दाम में 128% की बढ़ोतरी हुई है।


इस भयंकर महंगाई में वाराणसी की रीता बनवासी को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PM Garib Kalyan Yojana) के तहत मिलने वाले 10 किलो अनाज का ही आसरा है तो वल्लभगढ़ की वीणा को अंत्योदय योजना के तहत हर महीने 25 किलो राशन मिलता है। दोनों परिवारों की कमाई एक व्यक्ति की दिहाड़ी पर निर्भर है। महीने में कुछ ही दिन जब परिवार के एक सदस्य को दिहाड़ी मिलती है तो घर में तेल-सब्जियां आ पाती हैं। वरना नमक-रोटी या कभी तो सूखी रोटी खाने की नौबत है। इस पर भी केंद्र सरकार ने गरीब कल्याण योजना में गेहूं के बदले चावल देने का ऐलान किया है।

भयंकर भुखमरी- 10 में से 8 लोगों के पास पर्याप्त खाने को नहीं

देश के 14 राज्यों में हंगर वॉच ने इसी साल जनवरी तक करीब 6700 लोगों का सर्वे कर यह बताया था कि 79% आबादी किसी न किसी रूप में खाद्य असुरक्षा की शिकार है। इनमें 73% ग्रामीण और 27% लोग शहरी इलाकों के हैं, जिन्होंने कहा कि उन्हें या उनके परिवार के किसी सदस्य को भोजन के अभाव में भूखे सोना पड़ रहा है।

सर्वे में केवल 27% लोगों ने कहा कि उन्होंने बीते 3 महीने में दूध, अंडा या इन जैसा कोई पोषण खाद्य पदार्थ खाया है। सबसे ज्यादा खराब हालत बच्चों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं की है, जिन्हें मध्यान्ह भोजन में पका हुआ खाना या इसके बदले में नकद हस्तांतरण या फिर पोषण आहार नहीं मिल रहा है।

इन परिस्थितियों के बावजूद देश का गेहूं विदेशों में बेचने जा रही केंद्र सरकार असल में अनाज की जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाली कंपनियों को बढ़ावा देने जा रही है। देश की खाद्य संप्रभुता को इन भेड़ियों के हाथ करना, यानी अनाज के दाम में बेतहाशा वृद्धि को न्योता देना और यह महंगाई के रूप में नजर आ रहा है।

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