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विमर्श

Godi Media: बिकाऊ मीडिया के जमाने में जनता के लिए समाचार लिखने वाले मर चुके

Janjwar Desk
11 April 2022 2:04 PM IST
Government Advisory to Media : दिल्ली हिंसा और भारत-यूक्रेन युद्ध के टीवी कवरेज पर केन्द्र सरकार ने जतायी नाराजगी, जानिए टीवी चैनलों को क्या हिदायत दी गयी?
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Government Advisory to Media : दिल्ली हिंसा और भारत-यूक्रेन युद्ध के टीवी कवरेज पर केन्द्र सरकार ने जतायी नाराजगी, जानिए टीवी चैनलों को क्या हिदायत दी गयी?

Godi Media: जब किसी देश का मीडिया बिक जाता है तब वह मीडिया नहीं रहता बल्कि उद्योग बन जाता है| फिर समाचार आने बंद हो जाते हैं क्योंकि कोई भी उद्योग जनता की मांग के अनुसार नहीं बल्कि अपने मुनाफे के अनुसार अपने उत्पाद बाजार में उतारता है|

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

Godi Media: जब किसी देश का मीडिया बिक जाता है तब वह मीडिया नहीं रहता बल्कि उद्योग बन जाता है। फिर समाचार आने बंद हो जाते हैं क्योंकि कोई भी उद्योग जनता की मांग के अनुसार नहीं बल्कि अपने मुनाफे के अनुसार अपने उत्पाद बाजार में उतारता है। जब मीडिया बिक जाता है तब वह देश भी अपना मौलिक स्वरुप खो देता है। हमारा देश भी अब केवल एक धर्म विशेष के कुलीन और उच्चवर्ग की धरोहर के साथ ही पुलिसिया राज और कट्टर उन्मादी गिरोहों की जागीर बन कर रहा गया है। मेनस्ट्रीम मीडिया भी केवल अपने मुनाफे के उत्पाद को समाचार बना कर पेश करती है। मीडिया का मुनाफा, यानि सत्ता और सत्ता-प्रायोजित कट्टर उन्मादी और हिंसक गिरोहों की भक्ति। यही सब न्यू इंडिया और इसके तथाकथित अमृत काल की पहचान बन चुका है। सब मिलकर संविधान, सामाजिक समरसता और देश के मौलिक स्वरुप की धज्जियां उड़ा रहे हैं और अपने आप को राष्ट्रभक्त घोषित करते जा रहे हैं।

पूरे के पूरे मेनस्ट्रीम मीडिया के बिकने का असर व्यापक है – देश जीवंत प्रजातंत्र से आंशिक लोकतंत्र और निरंकुश शासन के साथ ही अब एक संगठित हिंसक गिरोह की धरोहर में तब्दील हो गया है। जनता के मुद्दे पूरी तरह से मीडिया से गायब हैं और 24X7 चलने वाले समाचार चैनलों या फिर समाचार पत्रों की वेबसाइट झूठ, अफवाह, अल्पसंख्यकों के प्रति घृणा और फरेब से लदे पड़े हैं। सभी मनोवैज्ञानिक इससे सहमत होंगें कि झूठ को लगातार प्रस्तुत करने वालों का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और यह मेनस्ट्रीम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एंकरों को देखकर स्पष्ट भी होता है। कुर्सी पर बंदरों की तरह उछलते कूदते, चीखते-चिल्लाते एंकर और गढ़े गए विषयों पर चर्चाओं में पैनलिस्ट के मुंह में अपना वाक्य ठूंसते एंकर इस मनोवैज्ञानिक संतुलान के बिगड़ने की गवाही लगातार देते रहते हैं।

देश में परिभाषा के अनुसार पत्रकारिता करने वाले पत्रकार बहुत कम रह गए हैं और इनमें भी अधिकतर किसी हवालात में, किसी जेल में बंद हैं या फिर पुलिस और प्रशासन द्वारा गढ़े गए देशद्रोह जैसे संगीन आरोप झेल रहे हैं। अब तो पूंजीपतियों, सत्ता के अदने विधायक या फिर महंगाई और बेरोजगारी जैसे विषयों पर समाचार प्रकाशित करना भी देशद्रोह हो गया है। जाहिर है, पुलिस, प्रशासन और सत्ता की नजर में देश का मतलब बदल गया है, और वही देश बन गए हैं और उनका विरोध देश से विद्रोह के तौर पर परिभाषित किया जाने लगा है। सत्ता, मीडिया के साथ मिलकर देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं को दीमक की तरह नष्ट कर चुकी है और न्यायपालिका में बैठे लोग जनता को न्याय दिलाने के लिए नहीं बल्कि कहीं के राज्यपाल या फिर राज्य सभा में एक अदद सीट पाने के लिए जीतोड़ मिहनत कर रहे हैं।

अब देश में वास्तविक समाचार जुटाना और लिखना उसी तरह का खतरनाक हो चला है जिस तरह आजादी से पहले अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाना था। 2 अप्रैल से लगातार सोशल मीडिया पर मध्य प्रदेश के सिधी के पुलिस थाणे में पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और रंगकर्मियों की तस्वीरें वायरल हो रही हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि इन तस्वीरों पर अधिकतर लोगों के कमेन्ट मेनस्ट्रीम बिकाऊ पत्रकारों के सम्बन्ध में किये गए हैं और लोगों ने लिखा है कि ऐसा तो मेनस्ट्रीम पत्रकारों के साथ किया जाना चाहिए था। पुलिस ने इन पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर डंडे बरसाए और उनके कपडे इसलिए उतरवाए थे क्योंकि ये सभी स्थानीय विधायक का विरोध कर रहे थे। जाहिर है, विधायक जी स्थानीय पुलिस के सेवा-पानी का पूरा ख्याल रखते होंगें, और पुलिस इसी सेवापानी के कारण बिकाऊ बन गए।

देश के राजधानी की बहादुर पुलिस का हाल तो दिल्ली दंगों के समय से ही पूरी दुनिया देख रही है। यह वह पुलिस है जिसे भड़काऊ और हिंसक भाषण तो प्रवचन लगते हैं और इन्हें जनता के सामने वाले उजागर करने वाले पत्रकार देशद्रोही। 3 अप्रैल को दिल्ली के बुराड़ी में तथाकथित हिन्दू महापंचायत का आयोजन किया गया था, इसमें देश के अल्पसंख्यकों और एक धर्म-विशेष के खिलाफ खूब जहर उगला गया, हिंसक बातें कहीं गईं और पुलिस तालियाँ बजाती रही। इसी के अंतर्गत रिपोर्टिंग करने पहुंचे 5 पत्रकारों के साथ महापंचायत में उपस्थित हिंसक समूह ने हिंसा की, इन्हें जान से मारने की धमकी दी और एक महिला पत्रकार के साथ बदसलूकी की। शुरू में पुलिस ने ऍफ़आईआर दज करने से भी मना कर दिया था, पर बाद में ऍफ़आईआर दर्ज की गयी। महापंचायत में वक्ता हिंसा भड़काते रहे पर खामोश पुलिस ने एक पत्रकार मीर फैजल को गिरफ्तार कर लिया। फैजल का गुनाह इतना था कि उन्होंने इस महापंचायत की घटनाओं से सम्बंधित एक ट्वीट किया था, जिसमें बताया गया था कि एक धर्म विशेष के लोगों ने उनके एक धर्मविशेष के होने के कारण हमला किया।

7 अप्रैल को खबर आई थी कि ओडिशा के बलासोर में एक पत्रकार के निष्पक्ष समाचारों से क्रोधित पुलिस ने एक स्थानीय पत्रकार को हथकड़ी डालकर उसे अस्पताल के बेड पर चेन से बाँध दिया था। इससे पहले उत्तर प्रदेश पुलिस ने बलिया में तीन पत्रकारों को केवल इसलिए गिरफ्तार कर लिया क्योंकि इन पत्रकारों ने उत्तर प्रदेश बोर्ड की बारहवीं की परीक्षा में अंगरेजी के पेपर लीक होने की खबर प्रकाशित की थी।

पुलिस, प्रशासन और सत्ता निष्पक्ष पत्रकारों के विरुद्ध हमेशा खडी इसलिए नजर आती है क्योंकि देश की मेनस्ट्रीम मीडिया बिक चुकी है और उसने जनता से जुडी सामान्य खबरें भी दिखाना बंद कर दिया है। अब मीडिया सरकार समर्थित खबरें गढ़ता है और वही दिखाता है। म्यांमार, पाकिस्तान, हांगकांग और पोलैंड जैसे देशों में भी तमाम खतरों के बाद भी मीडिया पूरी तरह बिकी नहीं है, पर न्यू इंडिया के अमृत काल की मीडिया तो सरकार के साथ एकाकार हो चली है। इसके बाद जाहिर है, सरकार की नजर में हरेक सच समाचार खटकता है और फिर बहादुर पुलिस और सरकार प्रायोजित हिंसक भीड़ पत्रकारों पर हमले करने को तत्पर रहती है।

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