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विमर्श

गालियां महिलाओं पर ही केंद्रित क्यों होती हैं? Why are all abuses female-oriented?

Janjwar Desk
20 Jan 2022 11:21 AM IST
गालियां महिलाओं पर ही केंद्रित  क्यों होती हैं? Why are all abuses female-oriented?
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गालियां महिलाओं पर ही केंद्रित क्यों होती हैं? Why are all abuses female-oriented?

Why are all abuses female-oriented?: यह केवल भारत की बात नहीं है। हालांकि भारत में यह कुछ ज्यादा ही है कि लोग जब भी किसी को गालियां देते हैं तो जिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, उनका संबंध महिलाओं से ही होता है। मतलब मां, बहन और बेटी को लगाकर गालियां देना तो जैसे हर पुरुष का जन्मसिद्ध अधिकार है।

नवल किशोर कुमार की टिप्पणी

Why are all abuses female-oriented?: यह केवल भारत की बात नहीं है। हालांकि भारत में यह कुछ ज्यादा ही है कि लोग जब भी किसी को गालियां देते हैं तो जिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, उनका संबंध महिलाओं से ही होता है। मतलब मां, बहन और बेटी को लगाकर गालियां देना तो जैसे हर पुरुष का जन्मसिद्ध अधिकार है। हालांकि इसके लिए देश में कानून है और इसके तहत यदि मुकदमा दर्ज हो तो आरोपी को तीन महीने की सजा हाे सकती है। हालांकि मेरी जानकारी में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है कि गाली देने के लिए किसी को सजा हुई हो। वैसे चाहें तो यदि कोई हमें गालियां देता है तो उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 294 के तहत मामला दर्ज कराया जा सकता है।

लेकिन यह केवल कहने की बात है। एक उदाहरण यह कि कल मेरे एक परिचित की गाड़ी चोरी हो गई। वह बेचारा थाना फरियाद करने पहुंचा। वहां मौजूद एक दारोगा ने जिस अंदाज में उससे बात की, बेचारे ने मुझे फोन कर दिया कि मैं यहां अपनी गाड़ी चोरी किए जाने की रपट दर्ज कराने आया हूं और यहां का दारोगा मुझे गालियां दे रहा है।

मुझे यह बात अजीब लगी। मैंने अपने परिचित से पूछा कि दारोगा कह क्या रहा है। जवाब मिला कि दारोगा पहले गाड़ी के दस्तावेज और वाहन चलाने का लाइसेंस मांग रहा है। जब यह कहा कि सारे दस्तावेज गाड़ी की डिक्की में ही रखा था तो दारोगा ने गालियां दी।

हालांकि बाद में मैंने संबंधित थाना के प्रभारी को फोन किया तो मेरे परिचित की रपट दर्ज कर ली गयी। लेकिन तबसे मैं सोच रहा हूं कि पुलिस थानों में जहां कि आदमी इस विश्वास के साथ जाता है कि उसके साथ हुई ज्यादती पर कार्रवाई होगी, वहां उसे गालियां क्यों सुनने को मिलती है? क्या यह इस वजह से है कि पुलिस के पास बहुत काम है और संसाधन बहुत कम? हालांकि यह संभव है कि काम का दबाव बहुत अधिक हो जाने पर पुलिसवालों का दिमाग खराब रहता हो और वे गालियां देते रहते हों। अभी हाल ही में एक युवती का मोबाइल चोरी हो गया और वह जब पटना के सचिवालय थाना पहुंची तो वहां मौजूद दारोगा ने गालियां देते हुए उसे पहले अपने बाप को बुलाने को कहा। ऐसे उदाहरण अनेकानेक हैं।

दरअसल, सवाल यही है कि पुलिसकर्मी गालियां क्यों देते हैं? मेरा अपना मत है कि हरवे-हथियार से लैस होने के बाद हर पुलिसकर्मी अपने आपको ताकतवर समझता है और वह इसी ताकत के कारण गालियां देता है। वह जानता है कि यदि उसने गालियां दी और किसी ने विरोध किया तो वह विरोध करनेवाले की हड्डियां भी तोड़ दे तब भी उसके खिलाफ कोई मामला नहीं बनेगा। गालियां देना तो वैसे भी बहुत हल्की बात है। पुलिसकर्मी यही सोचते हैं कि किसी की मां-बहन-बेटी को गाली देने से क्या हो जाएगा। यह मुमकिन है कि वे भारतीय दंड संहिता की धारा 294 को नहीं जानते हों। वैसे भी हमारे पुलिसकर्मियों को कानून इतना ही बताया जाता है जितने से कि राज-काज चल सके।

गालियों से एक घटना की याद आयी। शायद यह परसों की घटना है भागलपुर जिले की। वहां एक उत्पाद निरीक्षक (आप शराब का दारोगा समझिए) को शराब तस्कर ने अगवा कर लिया। हुआ यह कि वह हाई-वे पर गाड़ियों की जांच कर रहा था कि कहीं कोई शराब की ढुलाई तो नहीं कर रहा है। इसी कम में दिल्ली नंबर की एक गाड़ी आयी और उसने जब गाड़ी दिखाने की बात कही तो तस्करों ने उसे जबरन गाड़ी में बिठा लिया। करीब पांच-दस किलोमीटर दूर जाने के बाद तस्करों ने उसे यह कहते हुए उतार दिया कि जाइए सर, अब आप ड्यूटी करिए। मुझे विश्वास नहीं हो रहा है इस घटना पर। हालांकि अविश्वास की भी कोई वजह नहीं। शराब के दारोगा ने खुद को अगवा किए जाने का जो मामला संबंधित थाने में दर्ज करवाया है, उसमें उसने इन्हीं शब्दों में अपनी बात कही है।

शराब के उपरोक्त दारोगा की बात पर यकीन केवल इस बात नहीं हो रहा है कि तस्करों ने उसे आदर और सम्मान के साथ कहा होगा कि जाइए सर, अब आप ड्यूटी करिए। तस्करों ने उसे मारा-पीटा होगा। जबरन बिठाने का मतलब यह कि उसके उपर पिस्तौल ताना होगा और गालियां देते हुए अंदर बैठने को कहा होगा। गाड़ी में बिठाने पर उसके साथ मारपीट की होगी और गालियां भी दी होगी। लेकिन यह बात शराब के दारोगा ने छिपा ली। हालांकि वह चाहता तो अपनी एफआईआर में 294 का उल्लेख भी कर सकता था, जैसे कि उसने 307 का किया।

दरअसल, यह केवल पुलिसकर्मी अथवा शराब के उपरोक्त दारोगा का मामला नहीं है। यह मामला हम सभी का है। कोई हमारी मां-बहन-बेटी को लगाकर गालियां देता है तो भी हम शिकायत नहीं दर्ज कराते हैं। मैं तो प्रधानमंत्री तक की बात कहता हूं और दावे के साथ कहता हूं कि यदि कोई भारत के प्रधानमंत्री को भी सार्वजनिक तौर पर गालियां देगा तब भी भारत की पुलिस उसके खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं करेगी। मुख्यमंत्री और मंत्री आदि तो बहुत छोटी चीज हैं। साहित्य के संदर्भ में कहूं तो काशीनाथ सिंह जो कि 'काशी का अस्सी' लिखकर गालियों को साहित्यिक मंजूरी दिला दी है। अब तो वही फिल्में रियल मानी जाती हैं, जिनमें मां-बहन-बेटियों को गालियां दी जाती हैं। लेकिन यह गलत है। गालियां देने से कोई ताकतवर नहीं हो जाता है। लेकिन इतना जरूर है कि गालियां सुनकर भी मुकदमा दर्ज नहीं करानेवाला कायर जरूर होता है।

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