Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

क्या रंगभेद का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय बनेगा, क्या कभी जी-7 देशों का यह एक एजेंडा बनेगा?

Janjwar Desk
16 Jun 2021 12:57 PM GMT
क्या रंगभेद का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय बनेगा, क्या कभी जी-7 देशों का यह एक एजेंडा बनेगा?
x
माइकेल होल्डिंग के अनुसार अश्वेत खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जगह बनाने के लिए श्वेत खिलाड़ियों की तुलना में अधिक मेहनत करनी पड़ती है। अश्वेत खिलाड़ियों की बहुत सारी ऊर्जा तो रंगभेद से निपटने में ही व्यर्थ हो जाती है......

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

जी-7 देशों का अधिवेशन ख़त्म हो गया और एक लम्बा-चौड़ा साझा बयान भी पत्रकारों को दिया गया। ऐसे अधिवेशन लगातार आयोजित किये जाते हैं, जिसमें दुनिया के पूंजीवादी देशों के शासक शिरकत करते हैं, पार्टियां करते हुए और पिकनिक मनाते हुए दुनिया की समस्याएं हल करने का बयान जारी करते हैं और फिर वापस दूसरे जलसे की तैयारी करने वापस चले जाते हैं। इसे अधिवेशनों में भारत जैसे कुछ निरंकुश शासकों का भासन भी आयोजित किया जाता है, जो दुनिया को प्रवचन सुनाते हैं और फिर मीडिया भावविभोर होकर उनकी वैश्विक छवि की चर्चा में जुट जाता है। पर, दुनिया की हरेक समस्या वहीं खड़ी रहती है और पहले से विकराल होती जाती हैं। यह सब पूंजीवाद का करिश्मा है। पूंजीवाद को पनपने के लिए एक विभाजित समाज चाहिए। तभी तो दुनिया के सभी पूंजीवादी देशों में समाज रंगभेद की चपेट में है और इसके बारे में जी7 देश एक वाक्य भी नहीं कहते। हमारे देश में भी जात, धर्म का बंटवारा गहरा होता जा रहा है।

रंगभेद का जहर खेलों में खूब भरा है, भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी भी इससे लगातार जूझते रहते हैं। हाल में ही क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने स्वीकार किया है कि भारतीय खिलाड़ियों पर ऑस्ट्रेलिया दौरे के समय कुछ खिलाड़ियों ने रंगभेद से सम्बंधित टिप्पणियाँ की थीं। यह समस्या बहुत व्यापक है और अधिकतर अश्वेत खिलाड़ी इसका सामना करते हैं। पर, अपने खेल जीवन के दौरान अधिकतर खिलाड़ी इसका विरोध नहीं कर पाते क्योंकि इसके विरोध के बाद खेल जीवन के अंत की संभावना रहती है।

माइकल होल्डिंग वेस्ट इंडीज के दिग्गज खिलाड़ी रह चुके हैं, और 1970 और 1980 के दशक में दुनियाभर के बल्लेबाज इनकी गेंदों पर खौफ में रहते थे। इन्होने 60 टेस्ट मैचों में 249 विकेट और 102 एक-दिवसीय मैचों में 142 विकेट झटके थे। अब होल्डिंग 67 वर्ष के हो चुके हैं और स्काई स्पोर्ट्स पर क्रिकेट की कमेंट्री करते हैं। पिछले वर्ष जुलाई से पहले, होल्डिंग ने रंगभेद का सामना लगातार किया, पर कभी शिकायत नहीं की थी।

पिछले वर्ष जुलाई में इंग्लैंड में वेस्टइंडीज और इंग्लैंड का मैच चल रहा था, और स्काई स्पोर्ट्स की तरफ से कमेंट्री बॉक्स में होल्डिंग और महिला क्रिकेट खिलाड़ी एबोनी रैन्फोर्ड ब्रेंट कमेंट्री कर रहे थे। अचानक से बारिश के कारण खेल रुक गया और इस दौरान रैन्फोर्ड ब्रेंट ने होल्डिंग से अमेरिका से दुनियाभर में फैले आन्दोलन "ब्लैक लाइव्स मैटर" से सम्बंधित सवाल पूछ लिया।

होल्डिंग ने चन्द शब्दों में रंगभेद, आन्दोलन, और भविष्य में रंगभेद कम करने के लिए लोगों को जागरूक करने के लिए क्या किया जा सकता है पर अपनी बात रखी। होल्डिंग का विश्लेषण इतना सटीक और लीक से हट कर था कि इसे पूरी दुनिया में सराहा गया। अगले दिन होल्डिंग को स्काई न्यूज़ चैनेल पर इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। इसमें बात करते-करते पुरानी घटनाओं की याद कर होल्डिंग रोने लगे थे – और यह क्लिपिंग दुनियाभर में सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर बहुत अधिक लोकप्रिय हो गयी। पर, इसके आगे होल्डिंग का कोई इरादा नहीं था, उन्हें लगा कि बहुत सारे लोग रंगभेद के खिलाफ बोलते हैं, थोड़ी चर्चा होती है – इससे आगे कुछ नहीं होता।

पर, माइकल होल्डिंग के साथ ऐसा नहीं हुआ, उनके कुछ अलग विश्लेषण और इसके समाधान के तरीकों ने पूरी दुनिया के लोगों को प्रभावित किया और उन्हें कुछ उदाहरणों ने लोगों को झकझोर दिया। इसके बाद उनके पास श्वेतों के और अश्वेतों के बहुत सारे फोन और मैसेज आने शुरू हो गए। टेनिस खिलाड़ी नाओमी ओसाका, फूटबाल खिलाड़ी थिएरी हेनरी, धावक युसैन बोल्ट, धावक माइकल जॉनसन, ऑस्ट्रेलियन फूटबाल खिलाड़ी आदम गूड़ेस, फुटबॉल खिलाड़ी होप पॉवेल समेत अनेक अश्वेत खिलाड़ियों ने भी होल्डिंग को इसके लिए बधाई दी और इसके साथ ही इनमें से अधिकतर ने होल्डिंग को कहा की अब वे यहाँ अपनी बात छोड़ नहीं सकते और इसके आगे कुछ करना ही होगा।

इसके बाद होल्डिंग को रंगभेद पर एक परम्परागत तरीके से नहीं बल्कि नए तरीके से किताब लिखने का ख्याल आया, जिसमें केवल उनके ही नहीं बल्कि अन्य खिलाड़ियों के भी अनुभव हों, रंगभेद केवल अश्वेतों के प्रति ही नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए अपराध है यह बताया जाए और नई पीढी को अनेक विरोधों के बाद भी लक्ष्य तक पहुँचाने का हौसला दिया जाए। इसी वेश 24 जून को यह पुस्तक प्रकाशित हो जायेगी और इसका नाम है, WHY WE KNEEL, HOW WE RISE। इसके प्रकाशक यूनाइटेड किंगडम के प्रकाशक साइमन एंड स्चुस्टर हैं। प्रकाशकों के अनुसार यह एक विश्वव्यापी समस्या से सम्बंधित शिक्षाप्रद पुस्तक है।

होल्डिंग से जब यह पूछा गया कि उन्होंने इस समस्या को जब बचपन से देखा है तब फिर अब तक चुप क्यों रहे, तब उन्होंने जवाब दिया कि मैं अपने स्वार्थ की वजह से चुप था, क्योंकि खिलाड़ियों के इस विषय पर मुंह खोलने का या विरोध का नतीजा मैं देख चुका था। उन्होंने उदाहरण के तौर पर 1968 के मेक्सिको ओलिंपिक का जिक्र किया, इसमें दो अश्वेत अमेरिकी खिलाड़ियों ने रंगभेद के विरोध स्वरुप काले ग्लव्स हवा में लहराए थे, और इसके बाद इन पदक विजेता खिलाड़ियों को अमेरिकी टीम में कभी जगह नहीं मिली।

माइकेल होल्डिंग के अनुसार अश्वेत खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जगह बनाने के लिए श्वेत खिलाड़ियों की तुलना में अधिक मेहनत करनी पड़ती है। अश्वेत खिलाड़ियों की बहुत सारी ऊर्जा तो रंगभेद से निपटने में ही व्यर्थ हो जाती है। यह पुस्तक खेलों में रंगभेद से अधिक समाज के रंगभेद पर केन्द्रित है और इस पुस्तक ने बहुत सारे खिलाड़ियों को इस विषय पर अपनी बेबाक राय रखने का मौका दिया है। रंगभेद कोई राजनैतिक मसला नहीं है, बल्कि यह मानवता का मसला है।

नाओमी ओसाका ने कहा है कि एक टेनिस खिलाड़ी के तौर से पहले उनकी पहचान एक अश्वेत महिला के तौर पर है और समाज उन्हें इसी नजरिये से देखता है। ओसाका रंगभेद आन्दोलन से बहुत गहराई से जुडी हैं। अमेरिका में अश्वेत जार्ज फ्लायेड की एक श्वेत पुलिस अधिकारी द्वारा सार्वजनिक तौर पर ह्त्या के बाद, उपजे ब्लैक लाइवज मैटर आन्दोलन का केंद्र रहे मिनियापोलिस में उन्होंने आन्दोलन में हिस्सा भी लिया था और इसकी तस्वीर इन्स्टाग्राम पर पोस्ट की थी। उसके बाद से उन्हें ट्रोल किया जाने लगा था। ओसाका ने बताया कि ऐसी प्रतिक्रिया का अंदेशा उन्हें पहले से ही था, पर शांत रहने से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता और हर किसी को ऐसे मामलों में आवाज उठानी चाहिए।

युसैन बोल्ट ने बताय कि अपने शुरुवाती दिनों में वे लन्दन किसी प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेने आये थे, और उनकी घड़ी खराब हो गयी। वे किसी बड़े स्टोर में घड़ी खरीदने गए और एक घड़ी पसंद की। इसे पसंद करने के बाद उनसे श्वेत सेल्स गर्ल ने मजाकिया अंदाज में पूछा था, क्या इसका दाम चुकाने के लिए आपके पास पैसे हैं, या फिर केवल समय व्यर्थ कर रहे हैं। बोल्ट ने कहा है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की आप अरबपति हैं या साधारण आदमी – कुछ भी हैं, पर अश्वेत हैं तो फिर समाज आपकी उपेक्षा जरूर करेगा।

होल्डिंग के अनुसार उनकी पुस्तक में बताया गया है कि रंगभेद किस तरह से किसी को अमानवीय बना देता है, इसके प्रभाव क्या हैं, कैसे इतिहासकारों द्वारा इस विषय की लगातार उपेक्षा की गयी है, किस तरीके से इसके चलते देशों का वास्तविक इतिहास ही बदल दिया गया है और रंगभेद के चलते सामाजिक उपेक्षा का परिणाम क्या होता है। यह पुस्तक भविष्य के लिए एक आशा भी जगाती है और इसमें सामाजिक बदलाव के पहलू भी शामिल हैं।

पर सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या रंगभेद का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय बनेगा, क्या कभी जी7 देशों का यह एक एजेंडा बनेगा? जवाब है नहीं, इस चरम पूंजीवाद का, जिसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लिया है, का पहला मन्त्र ही है सामाजिक विभाजन। कहीं श्वेत-अश्वेत का विभाजन, कहीं धार्मिक विभाजन, कहीं जातीय विभाजन तो कहीं अमीर-गरीन का विभाजन – और यही विभाजन पूंजीवाद की खाद है। समाज में विभाजन जितना गहरा होता है, समस्याएं जितनी बड़ी होती हैं, पूंजीवाद उतना ही अधिक फलता-फूलता है और यही दुनिया में आज हो रहा है।

Next Story

विविध