दुनियाभर में कुचली जा रही है प्रेस की आजादी | Press Suppression in January 2022
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
Press Freedom Index: मीडिया हमेशा जनता के मुद्दे उजागर करती है और इस कार्य के दौरान जाहिर है सरकार की नीतियों की आलोचना भी करती है – इस सन्दर्भ में हमारे देश का मेनस्ट्रीम मीडिया सही मायने में मीडिया है ही नहीं क्योंकि वह सरकार द्वारा प्राप्त खबरों को केवल सरकार के लिए प्रचारित करती है| जनता आज भी मीडिया की तरफ बड़े विश्वास से ताकती है पर देश की मेनस्ट्रीम मीडिया जनता को नकारा और दुश्मन समझती है| दुश्मन से निपटने का सबसे कारगार तरीका उसपर हमला कर उसे चित करना है और भारतीय मीडिया बस यही कर रहा है, या स्पष्ट शब्दों में कहें तो कर चुका है| जाहिर है जिस सरकार के गुलामों की तरह मीडिया व्यवहार करती हो, उस सरकार को स्वतंत्र और निष्पक्ष आवाजों से कितनी चिढ होगी, यह कल्पना से परे नहीं है| मीडिया की स्वतंत्रता और मानवाधिकार का लेखाजोखा रखने वाले सभी प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्थान हमारे देश को स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया के लिए सबसे खतरनाक देश घोषित कर चुके हैं, और सरकार भी लगातार इसे और खतरनाक बनाने के लिए जी तोड़ परिश्रम करती है|
17 जनवरी को केंद्र सरकार के इशारे पर चलने वाले कश्मीर प्रशासन ने कश्मीर प्रेस क्लब (Kashmir Press Club) पर ताला जड़ दिया, प्रेस क्लब का पंजीकरण रद्द कर दिया, इसका अस्तित्व ख़त्म कर दिया और जिस जमीन पर यह स्थित था, उसे सरकार ने वापस ले लिया| 17 जनवरी को प्रेस क्लब की तालाबंदी से दो दिन पहले सरकार समर्थित पत्रकारों का एक छोटा समूह पुलिस के आला अधिकारियों के साथ प्रेस क्लब पर हमला करता है, प्रेस क्लब के अधिकारियों के साथ बदसलूकी करता है और पत्रकारों को प्रेस क्लब के भीतर जाने से रोकता है| एक स्वतंत्र पत्रकार, सज्जाद गुल (Sajjad Gul), ने हाल में ही अपने अनेक लेखों द्वारा पुलिस और अर्धसैनिक बलों द्वारा किये जा रहे "फेक एनकाउंटर" को उजागर किया था| जाहिर है, सब कुछ ठीक है का नारा लगाने वाले प्रशासन और केंद्र सरकार को यह समाचार पसंद नहीं आया होगा और अब सजाद गुल पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (Public Satety Act), जिसके तहत आतंकवादियों पर कार्यवाही की जाती है, के तहत मुक़दमा दायर किया गया है और कहा गया है कि वे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए खतरा हैं| सज्जाद गुल के अलावा एक अन्य पत्रकार भी इसी महीने कश्मीर पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया है| छत्तीसगढ़ में भी सरकार की आलोचना करने के कारण इसी महीने एक पत्रकार को गिरफ्तार किया गया है|
पिछले वर्ष यानि 2021 को पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक वर्ष माना गया था क्योंकि दुनियाभर में उस वर्ष रिकॉर्ड संख्या में पत्रकारों को जेल भेजा गया और उनकी हत्याएं की गईं| इस वर्ष में अबतक केवल एक महीना बीता है, और इस महीने में ही पत्रकारों पर जितने हमले किये जा रहे हैं उससे तो लगता है कि यह वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में अधिक खतरनाक रहने वाला है| अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) में दिसम्बर 2021 से अबतक 6 पत्रकारों की ह्त्या की गयी है, जिसमें से 2 पत्रकार जनवरी में मारे गए हैं| म्यांमार (Myanmar) में इस वर्ष अब तक 3 स्वतंत्र पत्रकार जेल में डाले जा चुके हैं|
दक्षिण अमरीकी देश हैती (Haiti) में विद्रोहियों ने इसी महीने 2 पत्रकारों को गोलियों से भून दिया और फिर उन्हें आग के हवाले कर दिया| मेक्सिको (Mexico) में इसी महीने 3 पत्रकारों की ह्त्या कर दी गयी है| इसमें से एक महिला पत्रकार, मल्दोनाल्दो (Maldonaldo), ने कुछ समय पहले ही एक प्रेस कांफ्रेंस में राष्ट्रपति को बताया था कि उसे लगातार धमकियां दी जा रही हैं| इसी तरह, प्रशांत क्षेत्र में स्थित फिजी और पापुआ न्यू गिनी में भी इसी महीने कुछ पत्रकारों को सरकारों की आलोचना करने के कारण गिरफ्तार किया गया है|
टर्की (Turkey) की एक महिला पत्रकार को इसी महीने जेल भेजा गया है| सदफ कबास (Sedef Kabas) नामक एक प्रतिष्ठित टीवी पत्रकार का कसूर केवल इतना है कि उसने अपने कार्यक्रम के दौरान निरंकुश राष्ट्रपति रेसेप तय्यिप एर्दोगान के सन्दर्भ में एक पुरानी कहावत को याद किया था| टर्की की एक मशहूर कहावत के अनुसार, एक बैल जब महल में जाता है तब वह राजा नहीं बन जाता बल्कि महल एक चारागाह बन जाता है| अनेक विपक्षी सांसदों ने राष्ट्रपति से इस मामले में पत्रकार पर कोई कार्यवाही नहीं करने की मांग की है, और प्रेस की स्वतंत्रता के बारे में दिए गए राष्ट्रपति के बयानों को याद दिलाया है| इसपर राष्ट्रपति ने कहा है कि इस मामले में पत्रकार को सजा जरूर मिलेगी और इस मामले का प्रेस की आजादी से कोई लेना देना नहीं है| इस मामले में 1 से 4 वर्ष तक कैद की सजा का प्रावधान है|
अब पुरानी कहावत और लम्बे समय से प्रचलित अनेक शब्द भी सत्ता को चुभने लगे हैं और यह एक नई तरह की तानाशाही है जहां शब्दों का चयन भी सत्ता की स्वीकृति की मोहताज है. याद कीजिये, दो वर्ष पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने फरमान जारी किया था कि जो कि भी "आजादी" शब्द का प्रयोग करेगा, उसके विरुद्ध कार्यवाही की जायेगी|
संकट में केवल पत्रकार ही नहीं हैं, बल्कि लेखक और कवि भी हैं| यूगांडा की चर्चित महिला कवि और प्रोफ़ेसर स्टेला न्यान्ज़ी (Stella Nyanzi) को राश्रपति के विरुद्ध बोलने और लिखने के बाद दो बार जेल भेजा गया है| इससे तंग आकर वे अब तीन वर्षों के लिए जर्मनी में बस गयी हैं| पहली बार उन्हें 1 महीने की सजा और दूसरी बार 16 महीने की सजा दी गयी थी| यहीं के एक उपन्यासकार 33 वर्षीय कक्वेन्ज़ा रुकिराबशैजा (Kakwenza Rukirabashaija) को हाल में ही राष्ट्रपति के विरुद्ध लिखने के लिए 2 सप्ताह से हवालात में रखा गया है|
होन्गकोंग में अब सभी निष्पक्ष मीडिया आउटलेट बंद हो गए हैं या फिर बंद हो रहे हैं. इस वर्ष के आरंभ में ही एक सप्ताह के भीतर ही तीन मीडिया संस्थानों पर ताका लग गया है| इसमें सिटीजन न्यूज़ और मैड डॉग डेली बहुत लोकप्रिय थे, पर अब इतिहास का हिस्सा हो चुके हैं| इन मीडिया संस्थानों के अनेक पत्रकारों, अधिकारियों और संपादकों को चीन के विरुद्ध लिखने के कारण हवालात भेज दिया गया है|
दुनियाभर में मीडिया की स्थिति एक जैसी हो चुकी है – पत्रकारों को सरकारें खरीदती हैं, और जो बिकते नहीं वे जेल में डाले जाते हैं या मारे जाते हैं| इसके बावजूद पत्रकारों ने मीडिया का वजूद बचा रखा है, यह और बात है कि हमारे पत्रकारों ने बिकने का रास्ता चुना है|