जब चुभेगी रेत और उसकी किरकिरी का एहसास होगा, हमें फिर उन्हीं समुद्रों की याद में ले जाएगा....

युवा कवि शशांक शेखर की कविता 'अंडमान'
आ गई रेत
अंडमान की घर तक
जूते चप्पलों और कपड़ों के साथ
अभी कुछ दिन तक अब
ये सिलसिला चलेगा
जब चुभेगी रेत और उसकी
किरकिरी का एहसास होगा
हमें फिर उन्हीं समुद्रों की
याद में ले जाएगा
जिनसे हम गुज़रे इस बीच
जिनके पानी में हमने हाथ फेरा
ठीक वैसे जैसे नाराज़ प्रेमिका के
बालों पर फेरा जाता है
दिल्ली और आसपास
के दुनियावी लोगों द्वारा
या कहें तो समूची दुनिया में यही
रस्म शाया होती रही है सालों से
हम भी इस डर में थे
समुद्र हमसे नाराज़ न हो
जितने रोज़ हम रुके वहाँ
समुद्र के किनारे बगीचों में टहले
उन पर लगे झूलों में हमने धूप सेकी
और नारियल पानी पीकर अपने अंदर
पत्थर हो चुके सीने को अपने भीगने दिया
आह... बौछारें जो आती हैं?
हवाओं के साथ
किसी वक्त भी बारिश का
आलम हो आता है
और समुद्र और आसमान के अलावा
किसी में हिमाकत नहीं यहाँ गरजने की
आदमी कितना निरर्थक जीव है
और आदमी के भी तो यहाँ
पितामह पुरुष हैं
इतने पुराने मानव, ये आदिवासी
क्या है इसने पुराना हमारा पास?
जिसे संजो लिया जाए
कौनसा ग्रंथ कौनसे ईश्वर हमारे
इनसे पुराने हैं?
मिस्र के पिरामिड भी तो धूप सेक रहे
क्या इन आदिवासियों के
धूप से सिके हुए बदन से पुराने हैं?
हम चले समुद्र के किनारे रोज़
और चल चलकर थके भी
फिर यहीं लेटकर आराम फ़रमा भी हुए
सच समुद्र के पास दवा है थकाने
और राहत देने की भी
मैं जब अपने समुद्री जहाज़ से
झाँककर बाहर देखता
उस वक्त जब हम टापुओं की सैर पर थे
मुझे लगता आख़िर हम कौनसे
कर्तव्य-पथ पर हैं
हम किस राह के पथिक हैं और क्या ही
योगदान है हमारा
लेश मात्र भी इनके जीवन में
मसलन हम न रहें तो
इन टापुओं के जीवन पर क्या असर होगा
एक हरी चादर ओढ़े ये टापू
बड़ी गंभीर मुद्रा में बैठे रहते हैं
इंतज़ार में की पानी पर सरकता
कोई जहाज़
उनसे आलिंगन करे,
पर हम हर जगह रुकते नहीं
हम इनके बगल से
आहिस्ता से निकल जाते हैं
न हम उनके न वो हमारे नाम जानते हैं
मुझे याद है
जब मैंने देखा समुद्र की विराटता
और जिसका न ओर नज़र आया
था न छोर
कुछ था मेरे भीतर
जो पिघलना शुरू हुआ था
बहुत छोटा दुनियावी आदमी ही तो हूँ मैं
और ये समुद्र देवता है पुराणों का
और पुराणों से भी पुरानी
सभ्यता रच बस रही है यहाँ
कौन किससे पुराना है?
क्या पुरातन होना ही
सार्थकता का पैमाना है?
मैंने देखा जहाज़ में बैठे हुए समुद्र में
कहानियाँ, सभ्यता, पुराण वेद, देवता, मानव, जीव जंतु
सब विलीन हो रहे थे
दूर साहिल पर नज़र पड़ी अचानक
तो सूरज शाम के आगोश में
डूबने की तैयारी कर रहा था।