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दुनिया

तानाशाही और निरंकुशता का दूसरा नाम रहा चिली आज बन गया है जीवंत लोकतंत्र की सबसे बड़ी मिसाल

Janjwar Desk
20 May 2021 9:59 AM IST
तानाशाही और निरंकुशता का दूसरा नाम रहा चिली आज बन गया है जीवंत लोकतंत्र की सबसे बड़ी मिसाल
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चिली में नया संविधान लिखने वालों को चुना जनता ने और संविधान लिखने वाली कमेटी में महिलाओं-पुरुषों की संख्या है बराबर

एक ऐसे दौर में जब दुनिया के लगभग हरेक तथाकथित लोकतंत्र निरंकुशता, सरकारी अराजकता और तानाशाही में तब्दील हो रहे हैं और लोकतंत्र, मानवाधिकार, महिला और श्रम अधिकारों की परिभाषा ही बदलने में लगे हैं, चिली में लोकतंत्र का नए सिरे से उदय भविष्य के लिए दुनिया को एक नया सन्देश है...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। दक्षिण अमेरिकी देश चिली को कभी तानाशाही के लिए, कभी निरंकुश शासकों के लिए जाना जाता था, पर अब यह देश जीवंत लोकतंत्र की नई परिभाषा गढ़ रहा है। चिली में नया संविधान लिखा जाने वाला है, जिसकी बागडोर घिसेपिटे राजनेताओं के हाथ में नहीं बल्कि युवाओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और लैंगिक समानता समर्थकों के हाथ में है। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि संविधान लिखने वालों को भी जनता ने चुना है, और संविधान लिखने वाली कमेटी में महिलाओं और पुरुषों की संख्या बराबर है, और इसमें स्थानीय जनजातियों के प्रतिनिधि भी सम्मिलित हैं।

चिली दक्षिण अमेरिका का एक देश है, जो बोलीविया, पेरू, अर्जेंटीना और प्रशांत महासागर से घिरा है। प्रशांत महासागर के किनारे लगभग 4300 किलोमीटर लम्बाई में और इसकी औसत चौडाई 200 किलोमीटर से भी कम है| इसका पूरा क्षेत्रफल 75606 वर्गकिलोमीटर है। यहाँ की जनसंख्या 1,81,49,000 है और जनसंख्या घनत्व 24 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। यहाँ प्रति 100 महिलाओं पर पुरुषों की संख्या 97 है, और शिक्षादर लगभग 99 प्रतिशत है। चिली की राजधानी सैंटियागो है। यहाँ की 88 प्रतिशत आबादी शहरी है। चिली की दूसरे दक्षिण अमेरिकी देशों की तरह केवल कृषि और खनन पर नहीं टिकी है, बल्कि उद्योग पर टिकी अर्थव्यवस्था है। यहाँ की भाषा स्पैनिश है। चिली में राष्ट्रपति प्रणाली का शासन है और सदन के दो हिस्से हैं – सेनेट और चैम्बर ऑफ़ डेपुटीज। राष्ट्रपति और सदन के सदस्यों का चुनाव जनता मतदान द्वारा करती है।

दुनियाभर की तरह चिली में भी वर्तमान में दक्षिणपंथी विचारधारा वाली सरकार है और इसके खिलाफ वर्ष 2019 में बड़े प्रदर्शन किये गए थे। शुरुआत में प्रदर्शन मानवाधिकार, लैंगिक समानता और सरकारी निरंकुशता के खिलाफ थे, पर बाद में इसमें जनता को प्रभावित करने वाले हरेक मुद्दे जुड़ते चले गए। आन्दोलन का और उनकी मांगों का दायरा इतना बड़ा हो गया कि सारी बहस स्थानीय शासनतंत्र, सरकार और संविधान को बदलने तक पहुँच गयी। इसके बाद सरकार ने नए संविधान के समर्थन को परखने के लिए वर्ष 2020 के अक्टूबर में एक जनमत संग्रह कराया, जिसमें 79 प्रतिशत लोगों ने नए संविधान का समर्थन किया। इस जनमत संग्रह में लोगों ने केवल नए संविधान का समर्थन ही नहीं किया था, बल्कि इस काम के लिए एक एलेक्टेड सिटीजन असेंबली की सिफारिश भी की थी, जिसके 155 सदस्यों में से महिला और पुरुषों की संख्या बराबर होगी।

इसके बाद वर्ष 2021 में 15-16 मई को सिटीजन असेंबली के 155 सदस्यों के लिए चुनाव आयोजित किये गए, जिसके नतीजों के अनुसार इसमें अधिकतर युवाओं की जीत हुई है, जो मानवाधिकार कार्यकर्ता, श्रमिकों के प्रतिनिधि, जनजातियों के प्रतिनिधि या फिर लैंगिक समानता की आवाज उठा रहे थे। इन चुनावों में दक्षिणपंथी विचारधारा वाले राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा का समर्थन लिए उम्मीदवार भी थे, पर महज 37 ऐसे सदस्य चुने गए हैं, जो दक्षिणपंथी राजनीति से जुड़े हैं और जिनकी विचारधारा रुढीवादी है। पर, इन रुढ़िवादी सदस्यों के असेम्बली में रहने से भी ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि चिली के क़ानून के हिसाब से संविधान की हरेक धारा को शामिल करने के लिए दो-तिहाई बहुमत की ही आवश्यकता है।

चिली में इस समय जो संविधान है, उसे 1980 में तानाशाह पिनोचेट के शासन में लिखा गया था। इसमें तानाशाही, सामाजिक उपेक्षा और पून्जीवाद की भरपूर झलक थी। इस संविधान में महिलाओं, श्रमिकों और मानवाधिकारों की पूरी तरह से उपेक्षा की गयी थी। इसके बाद समय-समय पर चिली में बड़े आन्दोलन होते रहे, पर वर्ष 2019 में पहली बार सभी वर्ग एक साथ आन्दोलन में शामिल हो गए। इसके बाद ही पूरी राजनीतिक व्यवस्था और संविधान को बदलने की चर्चा शुरू हुई थी।

चिली के प्रजातंत्र की यह खूबी है कि एक निरंकुश राष्ट्रपति के दौर में भी चुनाव कराने वाली संस्था, मीडिया और न्यायालय सरकार के तलवे चाटने के बदले अपना काम पूरी इमानदारी से करते रहे। जनता चिली की पूरी व्यवस्था को बदलने के लिए किस हद तक तत्पर है, इसकी बानगी चुनाव के नतीजों में झलकती है। सिटीजन असेंबली में 47 स्वतंत्र उम्मीदवार और जनजातियों से सम्बंधित 17 उम्मीदवार चुने गए। परम्परागत और राष्ट्रपति समर्थित राजनीतिक दक्षिणपंथी विचारधारा के उम्मीदवार 37 चुने गए और शेष साम्यवादी विचारधारा के उम्मीदवारों की जीत हुई। चिली के नागरिक और मानवाधिकार संगठन इसे प्रजातंत्र का पुनर्जन्म बता रहे हैं।

इन चुनावों के साथ ही स्थानीय निकायों के चुनाव भी कराये गए थे, इन चुनावों में भी अधिकतर जगहों पर सत्ता में बैठे दलों के प्रतिनिधियों की करारी हार हुई है, और स्वतंत्र या फिर आन्दोलनों से जुड़े कार्यकर्ता बड़ी संख्या में जीत कर आये हैं। जीतने वाले प्रतिनिधियों में महिलाओं की संख्या अधिक है। राजधानी शहर सेंटियागो की नवनिर्वाचित मेयर, इराकी हैसलर, भी लैंगिक समानता के लिए किये गए आन्दोलनों की अगुवाई कर चुकी हैं। जीतने के बाद उन्होंने कहा कि चुनावी नतीजे सामाजिक और राजनैतिक बदलाव की तरफ स्पष्ट इशारा कर रहे हैं। हमारी परम्परागत राजनीति में बड़े बदलाव की यह सिर्फ शुरुआत है।

राष्ट्रपति सेबेस्टियन पिनेरा ने चुनावी नतीजों के बाद कहा कि यह स्पष्ट है कि परम्परागत राजनीति और जनता की अपेक्षाओं में बहुत अंतर आ गया है। राष्ट्रपति के लिए भी चुनावी नतीजे खतरे की घंटी की तरह है, क्योंकि इसी वर्ष नवम्बर में ही राष्ट्रपति और संसद सदस्यों के चुनाव होने वाले हैं, और जनता पूरी तरह दक्षिणपंथी विचारधारा और जनता से विमुख राजनीति के विरुद्ध खड़ी हो चुकी है। सिटीजन असेंबली को नए संविधान बनाने के लिए 12 महीने का समय दिया गया है।

अमेरिका स्थित लेखिका नानको तमारू ने अनेक पुस्तकें लिखीं हैं, पर एक पुस्तक, A Women's Guide to Constitution Making के बाद से पूरी दुनिया में जानी जाती हैं। इन्होंने चिली के बारे में कहा है कि यहाँ प्रजातंत्र की नई परिभाषा लिखी जा रही है। यहाँ व्यापक राजनैतिक और संवैधानिक बदलाव, मानवाधिकार, लैंगिक समानता, श्रमिकों के अधिकार और जनजातियों का विकास किसी एक वर्ग का विषय नहीं रह गया है, बल्कि यह पूरी आबादी का विषय बन गया है।

दुनिया के बहुत से देश लैंगिक समानता की बड़ी बातें तो करते हैं, पर महिलाओं के अधिकारों के विषयों पर भी महिलाओं से विमर्श नहीं करते। दुनिया के किसी भी देश में संविधान बनाने वाली कमिटी में आजतक महिलाओं की बराबर भागीदारी नहीं रही है, हालांकि वर्ष 2013 में ज़िम्बाब्वे में और 2014 में तुनिशिया में नया संविधान लिखा गया और लागू भी किया गया, पर संविधान बनाने वाली कमेटियों में महिलाओं की भागीदारी नगण्य ही रही। चिली में महिलाओं की बराबर की भागीदारी हरेक स्तर पर सुनिश्चित की गयी है, और यह यहाँ की जनता की परिपक्वता दर्शाता है क्योंकि महिलाओं की बराबर की भागीदारी केवल लैंगिक समानता ही सुनिश्चित नहीं करता, बल्कि मानवाधिकार और हरेक प्रकार के सामाजिक विकास भी सुनिश्चित करता है।

एक ऐसे दौर में जब दुनिया के लगभग हरेक तथाकथित लोकतंत्र निरंकुशता, सरकारी अराजकता और तानाशाही में तब्दील हो रहे हैं और लोकतंत्र, मानवाधिकार, महिला और श्रम अधिकारों की परिभाषा ही बदलने में लगे हैं, चिली में लोकतंत्र का नए सिरे से उदय भविष्य के लिए दुनिया को एक नया सवेरा का सन्देश तो देता ही है। प्रश्न यह है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दम भरने वाले देश के निवासी अपने डूब चुके लोकतंत्र को बचाने के लिए कब गोता लगाते हैं।

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