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दुनिया

क़तर में पत्रकार और मीडिया बंधक, मगर मानवाधिकार और स्वतंत्र मीडिया पर प्रवचन देने वाले किसी भी देश की नहीं खुलती जुबान

Janjwar Desk
19 Oct 2022 10:03 AM IST
क़तर में पत्रकार और मीडिया बंधक, मगर मानवाधिकार और स्वतंत्र मीडिया पर प्रवचन देने वाले किसी भी देश की नहीं खुलती जुबान
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श्रमिकों की बदहाली उजागर करने वाले विदेशी मीडिया संस्थानों के रिपोर्टर और फोटोग्राफर को ही बंधक बना शुरू कर दिया (photo : social media)

FIFA World Cup 2022 : निरंकुश शासक केवल अपनी छवि सुधारने के लिए बड़े अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों का इस्तेमाल करते हैं, और इसके लिए वे जिम्मेदार संस्थाओं और व्यक्तियों को भारी-भरकम रिश्वत और सुविधाएं भी देते हैं....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Autocratic rulers and dictators use large sporting events for suppression of political opponents and human rights defenders. इस वर्ष नवम्बर में क़तर में फीफा (इन्टरनेशनल फेडेरशन ऑफ़ एसोसिएशन फुटबाल) द्वारा फुटबाल वर्ल्ड कप का आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन का विरोध मानवाधिकार संगठन लगातार करते रहे हैं, और वहां स्टेडियम निर्माण और वर्ल्ड कप के लिए आवश्यक दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में श्रमिकों के शोषण का मुद्दा लगातार उठाते रहे हैं।

मानवाधिकार संगठन क़तर में मानवाधिकारों के सरेआम हनन की चर्चा भी करते रहे हैं, पर ना तो फीफा को और ना ही मानवाधिकार की आवाज बुलंद करने वाले किसी देश को कोई फर्क पड़ा। इन सबसे क़तर के हौसले इस कदर बुलंद हुए कि श्रमिकों की बदहाली उजागर करने वाले विदेशी मीडिया संस्थानों के रिपोर्टर और फोटोग्राफर को ही बंधक बना शुरू कर दिया।

इन रिपोर्टरों को तब तक हवालात में रखा गया, जब तक कि उन्होंने रिपोर्टिंग के दौरान लिए गए चित्र, इंटरव्यू के ऑडियो और विडियो और यहाँ तक कि हाथ से लिखे गए नोट भी क़तर के अधिकारियों को वापस नहीं कर दिया। वर्ष 2015 में इसी सन्दर्भ में बीबीसी के रिपोर्टर और फोटोग्राफर को दो दिनों तक हवालात में रखने के बाद क़तर छोड़ने का निर्देश सुनाया गया। वर्ष 2021 के नवम्बर में यही घटनाक्रम नोर्वे के पत्रकारों के साथ दुहराया गया।

हाल में ही क़तर सरकार ने वर्ल्ड कप के दौरान रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों और फोटोग्राफरों के लिए दिशा-निर्देश जारी किया है। क़तर सरकार ने कहा है कि केवल उन्हीं पत्रकारों और मीडिया घरानों को यहाँ आने की इजाजत मिलेगी जो लिखित तौर पर इन दिशा-निर्देशों को स्वीकार करेंगे और स्वीकार करने के बाद इनकी अवहेलना करने पर सख्त कार्यवाही की जायेगी।

इन दिशा—निर्देशों के अनुसार फुटबॉल के मैचों और राजधानी दोहा के तीन पर्यटन स्थलों के अतिरिक्त किसी अन्य विषय से सम्बंधित ना तो रिपोर्टिंग की जा सकती है और न ही तस्वीरें खींची जा सकती हैं। निर्माण श्रमिकों के आवास स्थलों के आसपास भी जाने की इजाजत नहीं है। किसी सरकारी इमारत, विश्विद्यालय, प्रार्थना स्थल और अस्पताल के पास या अन्दर कोई रिपोर्टिंग, ऑडियोग्राफी और फोटोग्राफी प्रतिबंधित है।

आश्चर्य यह है कि किसी निजी स्वामित्व वाली जमीन या भवन से भी कोई भी रिपोर्टिंग या फोटोग्राफी नहीं की जा सकती है, और ना ही किसी से बातचीत की जा सकती है। इस दिशानिर्देश से इतना स्पष्ट है कि क़तर में पत्रकार और मीडिया लगातार बंधक बना रहेगा, पर मानवाधिकार और स्वतंत्र मीडिया पर प्रवचन देने वाली किसी भी देश ने क़तर सरकार के इस निर्णय का कोई विरोध नहीं किया है। जाहिर है, निरंकुश शासन को इससे अपनी तानाशाही का दायरा पहले से भी अधिक बढाने की प्रेरणा मिलेगी।

निरंकुश शासकों और तानाशाहों के लिए कोई भी अंतर्राष्ट्रीय आयोजन अपनी निरंकुशता और मानवाधिकार हनन को ढकने का एक मौका होता है, और इस मौके का फायदा ऐसी सरकारें अपने विरोधियों के दमन के लिए करती हैं। हमारे देश में भी अगले वर्ष सितम्बर में आयोजित किये जाने वाले जी-20 सम्मलेन की तैयारियां जोर-शोर से की जा रही हैं, और उस समय तक इस सम्मेलन को सुचारू रूप से आयोजित करने के नाम पर सरकार की नीतियों के विरोधी और मानवाधिकार कार्यकर्ता अलग-अलग बहानों से खामोश किये जा चुके होंगें। जम्मू-कश्मीर में विरोध के स्वर का दमन तो पूरी दुनिया देख रही है।

हाल में ही अमेरिकन पोलिटिकल साइंस रिव्यू नामक जर्नल में इसी विषय से सम्बंधित यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोपेनहेगेन और कार्नेगी मेलों यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के एक संयुक्त दल द्वारा किया गया अध्ययन प्रकाशित किया गया है। इसके अनुसार निरंकुश शासक अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजनों की आड़ में अपने राजनैतिक विरोधियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या और दमन करते हैं। यह दमन ऐसे आयोजनों से पहले, आयोजनों के समय और आयोजनों के बाद भी किया जाता है। दुखद तथ्य यह है कि शीत युद्ध का दौर ख़त्म होने के बाद से निरंकुश शासकों वाले देशों में ऐसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय खेलों के आयोजन में चार-गुना बृद्धि हो गयी है।

वर्ष 1978 में अर्जेंटीना में सैन्य तानाशाही थी, और इसी दौरान फुटबॉल विश्व कप का आयोजन किया गया था। इन आयोजनों से पहले सैन्य तानाशाही का विरोध करने वाले हजारों कार्यकर्ता रातों-रात सेना द्वारा अगवा कर लिए गए और इनमें से अनेकों की ह्त्या कर दी गयी थी। इसकी जानकारी दुनिया को वर्ष 1983 में मिली जब अर्जेंटीना में प्रजातंत्र बहाल हुआ और सेना की ज्यादतियों की जांच के लिए अर्जेंटीनी ट्रुथ कमीशन की स्थापना की गयी और इसने जांच की। खेलों के दौरान सेना ने फिर से विरोधियों का दमन किया। इस दमन के लिए सबसे निरंकुश शासक की नजर में सबसे अच्छा समय मैचों के दौरान होता है, इस समय पूरी दुनिया के मीडिया की निगाहें मैच पर होती हैं और मैच के बीच में की गयी किसी भी दमन-कार्यवाही की भनक किसी को नहीं होती।

खेलों के आयोजन के दौरान निरंकुश शासक विदेशी मीडिया का भरपूर लाभ उठाते हुए उदारवादी, सत्कारी और मानवाधिकार समर्थक वाली छवि प्रस्तुत करता है। दूसरी तरफ ऐसे समय ही विदेशी मीडिया की उपस्थिति में मानवाधिकार कार्यकर्ता मानवाधिकार हनन और सत्ता द्वारा जनता के दमन की आवाज बुलंद करते हैं। इसीलिए मैचों के दौरान जब पूरी दुनिया खेल में रामी रहती है, तब निरंकुश शासक अपने विरोधियों की ह्त्या करते हैं, जेलों में डालते हैं या फिर उनका दमन करते हैं। ऐसे खेल आयोजनों के बाद, जब सभी विदेशी पत्रकार अपने देशों में वापस चले जाते हैं, तब फिर एक बार दमन का सिलसिला चलता है।

वर्ष 1936 के बर्लिन ओलिंपिक खेलों के समय भी हिटलर की अगुवाई में नाजियों द्वारा विरोधियों के साथ ऐसा ही किया गया था। हिटलर को इस वर्ष अपने विरोधियों के दमन के दो मौके मिले थे – फरवरी में शीत ओलिंपिक और अगस्त में सामान्य ओलिंपिक जर्मनी में ही आयोजित किये गए थे। वर्ष 2008 में बीजिंग ओलंपिक्स, वर्ष 2018 में रूस में आयोजित फुटबॉल विश्व कप और वर्ष 2022 में बीजिंग शीत ओलंपिक्स के दौरान भी निरंकुश सत्ता ने विरोधियों का लगातार दमन किया था।

जाहिर है निरंकुश शासक केवल अपनी छवि सुधारने के लिए बड़े अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों का इस्तेमाल करते हैं, और इसके लिए वे जिम्मेदार संस्थाओं और व्यक्तियों को भारी-भरकम रिश्वत और सुविधाएं भी देते हैं। वर्ष 2021 में अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट ने पूरे सबूत प्रस्तुत करते हुए खुलासा किया था कि वर्ष 2018 के फुटबॉल विश्व कप के आयोजन के लिए रूस ने और वर्ष 2022 के आयोजन के लिए क़तर ने फीफा के सदस्यों को भारी-भरकम रिश्वत दी थी।

केवल खेलों के आयोजन ही नहीं, बल्कि दूसरे बड़े और प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन भी निरंकुश शासकों द्वारा कराये जा रहे हैं। भारत में वर्ष 2023 का जी-20 का शिखर सम्मलेन आयोजित किया जाएगा, वर्ष 2022 में जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज का अधिवेशन ईजिप्ट में आयोजित किया जाने वाला है। वर्ष 2020 में जी-20 का सम्मलेन सऊदी अरब में आयोजित किया गया था। जाहिर है ऐसे आयोजन अब निरंकुश शासक एक रणनीति के तहत महज अपनी छवि सुधारने के लिए कराते हैं, और दुनिया के सभी देश जनता के दमन और मानवाधिकार हनन में अपनी भूमिका निभाते हैं।

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