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दुनिया

अमेरिका में अश्वेतों पर लगातार बढ़ रहे हमले, ट्रंप शासनकाल के बाद नफरत में हुआ इजाफा

Janjwar Desk
8 May 2021 6:49 PM IST
अमेरिका में अश्वेतों पर लगातार बढ़ रहे हमले, ट्रंप शासनकाल के बाद नफरत में हुआ इजाफा
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वर्ष 2021 के जनवरी से मार्च के बीच जितनी हिंसा एशियाई-अमेरिकन लोगों ने झेली है, वह संख्या पूरे वर्ष 2019 के आंकड़ों से भी अधिक है...

वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। हाल में ही सैन फ्रांसिस्को में एशियाई मूल की दो बुजुर्ग महिलाओं पर एक 54 वर्षीय पैट्रिक थोम्पसन ने चाक़ू से हमला किया और उन्हें घायल कर दिया। दोनों महिलायें उस समय बस स्टॉप पर बैठकर अपनी बस का इंतज़ार कर रहीं थीं। इससे पहले न्यूयॉर्क में एक 31 वर्षीय एशियाई महिला पर दूसरी श्वेत महिला ने हथौड़े से हमला किया था।

टाइम्स स्क्वायर पर फिलीपींस के एक 65 वर्षीय व्यक्ति को किसी ने पीची से धक्का दिया जिससे वे रोड पर ही गिर पड़े और उन्हें गंभीर चोटें आयीं। ईस्ट हार्लेम में भी ऐसी ही घटना में एक 61 वर्षीय चीनी मूल के व्यक्ति की मृत्यु हो गयी। थाईलैंड के एक बुजुर्ग की हमले के बाद मृत्यु हो गयी, फिलीपींस के एक व्यक्ति के चहरे पर चाक़ू से वार किये गए और एक चीनी महिला पर हमला कर उसे आग के हवाले कर दिया गया।

अमेरिका में एशियाई-अमेरिकन नागरिकों की जनसंख्या लगभग 6 प्रतिशत है, पर वर्ष 2019 से उन पर श्वेतों द्वारा हमले के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। यह एक शासक द्वारा नफरत फैलाने का जीवंत उदाहरण है, और इससे यह भी पता चलता है कि समाज में नफरत की जड़ें सामाजिक समरसता की तुलना में जल्दी और अधिक गहराई तक फैलती हैं।

अमेरिका में ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने तक एशियाई-अमेरिकन मूल के लोग आराम से रहते थे, और उनके पार्टी द्वेष की भावना श्वेत आबादी में नहीं थी। पर ट्रम्प के छद्म राष्ट्रवाद लगातार अमेरिका में नस्लवाद भड़काता रहा और ट्रम्प ऐसी हिंसा को लगातार जायज करार देते रहे। फिर, कोविड 19 का दौर आया और ट्रम्प ने इसके बाद चीन के विरुद्ध खूब जहर उगला।

ट्रम्प ने कोविड 19 को चाईनीज वायरस और कुंग फ्लू खुलेआम कहा। राष्ट्रवाद और दक्षिणपंथी विचारधारा में विचारधारा तो नदारद रहती है, पर इसमें हिंसा की खुली छूट मिल जाती है, और यही अमेरिका में हो रहा है। उम्मीद थी कि अमेरिका मी पहली एशियाई-अमेरिकन मूल की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के बाद स्थितियां सुधारेंगी, पर वास्तविकता इसके विपरीत है और ऐसे हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं।

हमारे देश में ऐसी ही सरकार-प्रायोजित हिंसा के समाचार रोज आते हैं। देश में 1947 के बाद जो हिन्दू-मुस्लिम द्वेष पैदा हुआ, वह 1990 तक समाज से कुछ कम होने लगा था, पर उसके बाद आडवाणी की रथयात्रा, बाबरी मस्जिद को गिराना और इसके बाद गोधरा काण्ड ने समाज को फिर 1947 वाली मानसिकता में धकेल दिया।

वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनाने के बाद तो मुस्लिम और दूसरे अल्पसंख्यकों का उत्पीडन पुलिस और प्रशासन का राष्ट्रीय कर्तव्य बन गया। भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिन्दू परिषद्, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्, श्रीराम सेना, बजरंग दल और दूसरे कट्टरपंथी हिन्दू संगठन समाज में हिंसा के लिए उन्मुक्त कर दिए गए।

प्रधानमंत्री समेत सभी बड़े नेता और मंत्री ने हिंसक भाषा और वक्तव्यों को राष्ट्रीय भाषा बना दिया और मीडिया सत्कार के तलवे चाटने लगी। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि हमारे देश में अल्पसंख्यकों पर हिंसा के मामले कई गुना बढ़ गए, पर सजा हत्यारे को नहीं मिलती। हाँ, पीड़ित यदि जिंदा रह जाता है तो उसके मुहं को बंद कराने में पुलिस, मीडिया और सरकार सभी शामिल हो जाते हैं। अमेरिका के उदाहरण से इतना तो स्पष्ट है कि यदि अगले चुनावों में बीजेपी सत्ता में नहीं भी आती है तब भी जिस घृणा और हिंसा का बीज उसने समाज में बोया है, वह अगले अनेक दशकों तक चलता रहेगा।

कैलिफ़ोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ हेट एंड एक्सट्रीमिस्म की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के सबसे बड़े 16 शहरों में 2021 के जनवरी से मार्च के बीच एशियाई-अमेरिकन लोगों पर हिंसा के मामले वर्ष 2020 की तुलना में 164 प्रतिशत बढ़ गए हैं। इस शहरों की पुलिस वर्ष 2020 के इसी अवधि के दौरान ऐसे 36 मामलों की जांच कर रही थी, पर वर्ष 2021 में यह आंकड़ा 95 पर पहुँच चुका है। यही नहीं, वर्ष 2021 के जनवरी से मार्च के बीच जितनी हिंसा एशियाई-अमेरिकन लोगों ने झेली है, वह संख्या पूरे वर्ष 2019 के आंकड़ों से भी अधिक है।

न्यूयॉर्क जैसे शहर में तो ऐसी हिंसा के मामले एक वर्ष के भीतर ही 223 प्रतिशत तक बढ़ चुका है। न्यूयॉर्क में वर्ष 2021 के मार्च तक ऐसे 42 मामले दर्ज किये गए थे, पर इसके बाद अप्रैल के पहले तीन सप्ताह में ही 24 नए मामले सामने आ गए। अमेरिका में पनपी इस घृणा से कनाडा भी अछूता नहीं है। वैंकोवर की कुल आबादी में 42 प्रतिशत आबादी एशियाई-अमेरिकन मूल की है, और यहाँ एक वर्ष के भीतर ही ऐसी हिंसा के मामलों में 700 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है।

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