क्रांति के बाद भी नेपाल की राजनीति में हाशिए पर क्यों धकेली जा रहीं महिलायें
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काठमांडु से श्रीस्टी कार्की की रिपोर्ट
जैसे-जैसे नेपाल की राज़नीति में वर्चस्व कायम करने का संघर्ष एक नए और अनिश्चित दौर में प्रवेश कर रहा है वैसे-वैसे देश की महिला राजनेताओं की उपस्थिति ग़ायब होती जा रही है। चाहे संसद में प्रधानमंत्री ओली द्वारा संभावित अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने का सवाल हो,उनकी पार्टी में ही उनके विरोधी पुष्प कमल दहाल द्वारा इस्तेमाल किये जा सकने वाले दांव-पेंच हों, या नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों के पाला बदलने की अटकलें हों या फिर नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा का किंग-मेकर की भूमिका में आना हो, महिला नेताएं परिदृश्य से पूरी तरह गायब हैं।
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की सांसद बिन्दा पांडे कहती हैं,"अगर दोनों गुटों के नेताओं ने अपने पारस्परिक मतभेद तार्किक और सही ढंग से निपटाए होते तो पार्टी का विभाजन होता ही नहीं। जैसा कि आम बात है सभी सम्बंधित पक्षों द्वारा कमज़ोरियों को स्वीकार करने की बजाय और अधिक दोषारोपण किया जा रहा है।
संसदीय समितियों में जोर-शोर से लैंगिक और विकास से जुड़े मुद्दों को उठाने वाली बिन्दा पांडे कहती हैं कि महिलाओं और नई पीढ़ी के नेताओं को मौका दिया जाना चाहिए।
वे कहती हैं,"यह एक बहुत अच्छी बात होती अगर नेताओं को यह समझ होती कि एक बार प्रधानमंत्री या पार्टी अध्यक्ष बनने के बावजूद कुर्सी से चिपके रहना किसी के भी हित में नहीं है।उनका यह वक्तव्य नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी और नेपाली कांग्रेस के उन पुरुष नेताओं को अप्रिय लग सकता है जो कई बार प्रधानमंत्री बनने के बावजूद एक बार फिर प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं।
पहले माओवादी रह चुकीं जनता समाजबादी पार्टी की नेता हिसिला यामी कहती हैं कि राजनीतिक उथल-पुथल के लिए ओली और प्रचंड दोनों ही ज़िम्मेदार हैं। नेपाली टाइम्स को भेजे एक ई-मेल में यामी कहती हैं,"एनसीपी का नेतृत्व सत्ता के लिए ऐसे झगड़ रहा है जैसे कोई स्वार्थी विवाहित जोड़ा अपने बच्चों की परवाह किये बिना संपत्ति के एक टुकड़े के लिए झगड़ता है। यहां बच्चों से तात्पर्य नागरिकों से है।"
वे कहती हैं,"समय आने पर क्षमता और शक्ति पर आधारित (जो हमारा संविधान है) एक नए गठबंधन का निर्माण होना चाहिए। इसे संभव बनाने के लिए ओली को त्यागपत्र दे देना चाहिए ताकि देश इस राजनीतिक संकट से उबर सके।"
महिला नेताओं ने इस रिपोर्टर को बताया कि अगर राजनीतिक चर्चाओं में वे पुरुष दिग्गजों से असहमत होती हैं तो उन्हें दर किनार कर दिया जाता है। जनता समाजवादी पार्टी नेता कहती हैं कि वर्तमान राजनीतिक संकट नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की अन्तर्कलह का परिणाम है लेकिन वे ओली द्वारा त्यागपत्र देने के पक्ष में नहीं हैं।
सरिता गिरी पूछती हैं,"उन्हें त्यागपत्र देने की ज़रुरत क्यों है ? मैं दलगत राजनीति का शिकार हो चुकी हूँ इसलिए मैं समझ सकती हूँ कि वे किस पीड़ा से गुजर रहे है।" पिछले साल जुलाई में गिरी को तत्कालीन समाजवादी पार्टी-नेपाल से उस समय निकाल दिया गया था जब उन्होंने लिपुलेख को ले कर भारत के साथ मनमुटाव के बाद जुलाई में लाये गए संवैधानिक संशोधन के पक्ष में मत डालने से इंकार कर दिया था। उन्होंने बताया कि उनकी पार्टी के पुरुष सहकर्मियों का ज़रा सा भी सहयोग उन्हें नहीं मिला।
वो आगे कहती हैं,"मुझे अपने सिद्धांतों पर खड़े रहना था। महिलाएं यह मान कर नहीं चल सकतीं कि नियमित चैनलों से उनकी बात सुनी जाएगी। इसलिए उन्हें तय ढांचों से बाहर निकल कर अपनी आवाज़ उठानी होगी।"
जबकि राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहस के लिए एक लोकप्रिय मुद्दा है, लेकिन सच्चाई यह है कि महिला नेताओं को अक्सर पुरुष नेताओं द्वारा खुले रूप में जनता के सामने उपहास का सामना करना पड़ता है। उनकी राजनीतिक क़ाबलियत पर शक करने के अलावा उनके लिए उपेक्षापूर्ण भाषा का भी इस्तेमाल किया जाता है। और साथ ही उन पर औरत से नफ़रत करने वाली फब्तियाँ भी कसी जाती हैं। बदले में यह नेतृत्व में महिलाओं के बारे में जनता के विचारों को सूचित करता है जो एक ऐसे भ्रष्ट चक्र को बनाये रखता है जो उनके सामाजिक और राजनीतिक मंचों को अवैध बना देता है।
एनसीपी नेशनल असेम्बली की सदस्य कोमल ओली ने एनसीपी दहाल-नेपाल के वफ़ादार रघुजी पंता द्वारा हाल में उनके गायिका और राजनेता होने को ले कर औरतों से नफ़रत करने वाली टिप्पणी का जवाब देते हुए ट्विटर पर लिखा,"रघुजी पंता ने अपनी घटिया मानसिकता दिखा दी है। मैं पंता जी से पूछना चाहती हूँ कि आपकी पार्टी में कौन ऐसी महिला नेतायें हैं जिन्होंने अपने शरीर से समझौता कर पद हासिल किया है ?हमारे देश में जो कोई महिला सत्ता के शीर्ष में पहुँची है उसे आप जैसे पुरुषों की घटिया मानसिकता का शिकार होना पड़ा है।"
बिबेकशील साझा पार्टी की रंजू दर्शना ने भी पंता की टिप्पड़ी पर प्रतिक्रिया देते हुए इंस्टाग्राम में एक वीडियो पोस्ट किया। इस वीडियो में दर्शना ने बताया कि सोशल मीडिया पर उन्हें नियमित रूप से औरत होने को ले कर भद्दी टिप्पड़ियां भेजी जाती हैं। उन्होंने इस बात की भी चर्चा की कि महिला राजनेताओं और महिला नेताओं को पुरुष नेताओं का विरोध और औरत जात से नफ़रत करने वाली टिप्पणियों को भी झेलना पड़ता है।
दर्शना बोलीं,"हम महिलाओं पर अधिकार जमाने,उन्हें कम करके आंकने और नीचा दिखाने वाली टिप्पणियां कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे। पुरुषों,महिलाओं और लैंगिक अल्पसंख्यकों -सभी को अपने-अपने समुदाय के प्रतिनिधित्व का समान अवसर मिलना चाहिए।"
आम तौर पर देखा गया है कि महिला नेताओं और महिला से जुड़े मुद्दों का इस्तेमाल अभियानों और आंदोलनों के दौरान आसानी से उपलब्ध राजनीतिक हथियारों के रूप में तो कर लिया जाता है लेकिन जैसे ही यह बात उठती है कि निर्णय कौन लेगा तो इन्हें पीछे धकेल दिया जाता है।
पांडे कहती हैं,"महिला राजनीति में भी सक्रीय हैं लेकिन महिला नेताओं को तभी तक पार्टी के प्रति समर्पित माना जाता है जब तक वे अपनी-अपनी पार्टियों के नज़रिये को स्वीकार करती रहती हैं। जब कभी वे किसी तरह की असहमति दिखाने की हिम्मत करती हैं तो उनकी लैंगिकता और स्त्रीत्व पर सवाल खड़े कर दिए जाते हैं और यह माना जाने लगता है कि वे महिला समर्थक एजेंडे को आगे बढ़ा रही हैं।"
गिरी और पांडे यह स्वीकार करती हैं कि नेपाल की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है,और ऐसा तब हो रहा है जबकि महिलाओं के लिए मतभेद ज़ाहिर करने को सुगम बनाने वाला माहौल है ही नहीं। लेकिन हिसला यामी का मानना है कि राजनीति में महिलाओं का भविष्य उज्ज्वल है।
यामी कहती हैं,"समय का तक़ाज़ा है कि एक समतामूलक समाज की दिशा में बढ़ने के लिए विभिन्न महिला समूहों को एकजुट होना होगा। और ऐसा तभी संभव हो सकता है जब नागरिक समाज के सक्रीय कार्यकर्ता लैंगिक समर्थक सांसदों के पक्ष में खड़े हों जैसा कि हालिया विरोध प्रदर्शन के दौरान देखा भी गया।"
1959 में द्वारिका देवी ठकुरानी नेपाल की पहली महिला मंत्री बनी थीं। अब तक केवल 137 महिलाएं ही मंत्री पद पा सकी हैं। वर्तमान में मंत्रिमंडल में 3 महिलाएं हैं। इस बात को ले कर काफी तारीफ की गई है कि अमेरिका से भी पहले नेपाल में एक महिला को राष्ट्रपति का पद मिला और नेपाल यह भी दावा कर सकता है कि संसद में महिलाओं को सबसे ज़्यादा प्रतिनिधित्व देने वाले देशों में वो भी शामिल है लेकिन हक़ीक़त यही है कि ये सब प्रतीकात्मक ही है।
(श्रीस्टी कार्की की यह रिपोर्ट साभार नेपाली टाइम्स से ली गई है।)