Begin typing your search above and press return to search.
दुनिया

कौन थे डॉक्टर आई ए रहमान, जो अपने मानवीय दृष्टिकोण के कारण दुनियाभर में थे चहेते

Janjwar Desk
17 April 2021 10:32 PM IST
कौन थे डॉक्टर आई ए रहमान, जो अपने मानवीय दृष्टिकोण के कारण दुनियाभर में थे चहेते
x
विस्थापन और उस वक़्त के बँटवारे की यादें रहमान साहब के लिए हमेशा एक ऐसी विषय वस्तु के रूप में काम करती रहीं, जिसने रहमान को सामजिक मुद्दों, न्यायप्रियता, बराबरी और अन्य मानवाधिकारों के करीब बनाये रखा....

डॉ. आईए रहमान को याद कर रहे हैं रवि नितेश

जनज्वार। आई ए रहमान अब नहीं रहे। 12 अप्रैल को वो इस दुनिया को छोड़कर कहीं और चले गए पर उनके जाते ही संवेदनाओं का जो सैलाब उमड़ा, उसने दिखा दिया कि इंसानियत और इंसानी अधिकारों के लिए दिल से और निरपेक्ष भाव से काम करने वालों के लिए सरहद, धर्म-जाति या क्षेत्र की दीवारें सचमुच ख़त्म हो जाती हैं।

पाकिस्तान के रहने वाले रहमान साहब के लिए सबसे अधिक संवेदनाएं पाकिस्तान के बाद उसके पड़ोसी मुल्क भारत और तमाम और देशों से सामाजिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार में यक़ीन रखने वाले लोगों और कई प्रख्यात व्यक्तियों द्वारा आना और कई संगठनों, संस्थानों द्वारा उनकी याद में कार्यक्रम आयोजित किया जाना वाकई में एक मिसाल है।

भारत और पाकिस्तान के बँटवारे से भी पहले 1 सितम्बर 1930 को डॉक्टर रहमान का जन्म पलवल (हरियाणा) में हुआ था। पलवल के मॉडल हाईस्कूल से पढाई के बाद वो अलीगढ वकालत की पढाई के लिए गए, लेकिन फिर भारत पाकिस्तान का बँटवारा हुआ और रहमान साहब का परिवार नवम्बर 1947 में पाकिस्तान चला गया। बताते हैं कि उनके पिता वकील थे और भारत से विस्थापित होकर पहले पाकिस्तान के शुजाबाद और फिर बाद में उनका परिवार लाहौर में रहने लगा।

शायद विस्थापन और उस वक़्त के बँटवारे की यादें रहमान साहब के लिए हमेशा एक ऐसी विषय वस्तु के रूप में काम करती रहीं, जिसने रहमान को सामजिक मुद्दों, न्यायप्रियता, बराबरी और अन्य मानवाधिकारों के करीब बनाये रखा। रहमान शुरुआत में मूलतः एक पत्रकार थे और बाद में एक सामजिक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में वो हमेशा मानवधिकारों के पक्ष में खड़े रहे।

1970 के दौरान पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ खड़े होने की बात हो या फिर ज़िआउल हक़ के वक़्त कट्टरता के खिलाफ खड़े होने की बात हो, रहमान हर जगह खड़े मिले। 1989 में वो पाकिस्तान टाइम्स नामक अखबार के मुख्य सम्पादक बने। उसी वक़्त अस्मा जहाँगीर के साथ मिलकर पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (ह्यूमन राइट्स कमीशन ऑफ़ पाकिस्तान-HRCP) की नींव रखी गयी और रहमान मानवाधिकारों के लिए अपनी आवाज़ बुलंद किये रहे।

उनका ये विश्वास रहा कि भारत और पाकिस्तान के अच्छे सम्बन्ध ही दक्षिण एशिया में शांति और एकजुटता के आधार हैं। पाकिस्तान इंडिया पीपल्स फोरम फॉर पीस एंड डेमोक्रेसी के संस्थापक सदस्यों में रहे और साथ ही तमाम और संगठनों, संस्थाओं, अभियानों के रहनुमा भी।

रहमान साहब के लिए लोगों के बहोत कुछ लिखा, कुछ ने अपने अनुभव साँझा किये तो कुछ ने उनके चले जाने पर अपना दर्द। अमन की आशा की संपादक बीना सरवर ने लिखा कि कैसे रहमान साहब का जाना सबके लिए एक बड़ा नुकसान है।

PIPFPD के महासचिव एम जे विजयन कहते हैं कि असल में दक्षिण एशियाई शान्ति आंदोलनों में से अधिकाँश या तो उनके साथ शुरू हुए या फिर उन्होंने ऐसे आंदोलनों को एक दिशा देने में सहयोग किया।

प्रख्यात सामजिक कार्यकर्ता डॉक्टर सईदा हमीद ने कहा कि रहमान साहब का जाना ऐसा है जैसे ध्रुव तारे का चले जाना। मशहूर लेखक मोहम्मद हनीफ ने ज़िक्र किया कि कैसे एक बार जब रज़ा भट्टी ने न्यूज़लाइन के लिए लिखे गए रहमान साहब के पहले लेख के लिए एक चेक भेजा तो उन्होंने चेक को एक नोट के साथ वापिस भेजा, जिस पर लिखा था कि आप चेक देना शुरू कर दीजियेगा, जब आप अपने दस लाख बना लें।

हनीफ कहते हैं कि न्यूज़ लाइन दस लाख बना नहीं पाया, और रहमान साहब ने लिखना नहीं छोड़ा। ऐसे ही फ़ातिमा फैसल लिखती हैं कि कैसे जब एक बार उन्हें इस बात का निर्णय लेना था कि वो प्रतिष्ठित LUMS विश्वविद्यालय में नौकरी ज्वाइन करें या पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग में काम करें तो उनके एक प्रोफेसर ने उनसे कहा कि HRCP में आई ए रहमान के साथ काम करने का अनुभव हर किसी को नहीं मिलता।

नजम सेठी ने लिखा कि हमारे समय की रोशनी चली गयी। तमाम राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों जिनमे कुछ प्रमुख नाम मरयम नवाज़ शरीफ, बिलावल भुट्टो ज़रदारी, अहसान इक़बाल, शेरी रहमान, फ़रहतुल्लाह बाबर, शाह महमूद कुरैशी आदि है, ने भी अपनी संवेदनाएं व्यक्त की।

भारत के नौ सेना प्रमुख रह चुके एडमिरल रामदास और प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता ललिता रामदास भी रहमान साहब के करीबी लोगों में से थे और एक ख़ास बात और कि रामदास और रहमान दोनों को मेग्सेसे पुरस्कार साथ ही मिला था। एडमिरल रामदास ने बताया कि कैसे रहमान उम्मीदों से भरे एक इंसान थे और उन्हें हमेशा ये विश्वास रहा कि भारत और पाकिस्तान के आम लोग मिलकर बदलाव ला सकते हैं। ऐसे न जाने कितने लोगों के अनुभव हैं जो आई ए रहमान के साथ खुद को जोड़ पा रहे हैं और आज उनके चले जाने से खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं।

बहुत से सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित डॉक्टर रहमान प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय न्यूरेम्बर्ग मानवाधिकार पुरस्कार और शांति के लिए रैमन मैग्सेसे पुरस्कार से भी सम्मानित किये जा चुके हैं, मगर पुरस्कारों की चमक उन पर कभी भारी नहीं हुई। रहमान साहब की खासियत ये भी थी कि वो इतने सहज स्वभाव के इंसान थे कि बच्चों से भी उतनी ही शिद्दत और उत्साह के साथ मिलते और बात करते थे जितना साथ काम करने वालों और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से।

कुछ साल पहले 2017 में लाहौर के फैज़ घर में (फैज़ घर दरअसल मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़ का ऐतिहासिक घर है ) हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बच्चों के बीच एक दुसरे को भेजे गए पत्रों की आग़ाज़ ए दोस्ती अभियान द्वारा लगाई गयी एक प्रदर्शनी में उन्होंने बच्चों से खूब बात की और फिर डॉन अखबार में इस पर लिखे एक लेख में उन्होंने विस्तार से इस बारे में लिखा।

उन्होंने लिखा कि लाहौर में ईस्टर के बाद हुए बम विस्फोट के बाद कैसे एक बच्चे ने अपने खत में लिखा कि वो सोचता था कि एक अच्छे खिलौने के साथ रहने वाला बच्चा किस्मत वाला है, लेकिन अब उसको लगता है कि किस्मत वाला बच्चा वो है जो सुबह स्कूल जाए और शाम को सलामत घर वापिस आ पाए। डॉक्टर रहमान ने लिखा कि आज दोनों मुल्कों में बच्चों और युवाओं के बीच आपसी संवाद और समझ को बढ़ाने की ज़रूरत है।

एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में पाकिस्तान में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ वो लगातार डटे रहे। पाकिस्तान में अल्पसंख़्यकों के अधिकारों की बात हो या फिर सामाजिक समानता का मुद्दा, रहमान हमेशा आगे रहे। यही नहीं, पाकिस्तान से अलग भी दुनियाभर में चल रहे मुद्दों पर उनकी समझ और उसके प्रति मानवीय दृष्टिकोण की वजह से वो दुनियाभर में लोगों के चहेते बने रहे।

कुछ दिनों पहले ही 25 मार्च की शाम आग़ाज़ ए दोस्ती अभियान के साथ 'बात तो करो' नामक कार्यक्रम के प्रथम संस्करण के अतिथि वक्ता की भूमिका में रहमान साहब ने लगभग आधे घंटे तक बातचीत की, जिसे कई लोगों ने ऑनलाइन देखा। इस बातचीत के दौरान उन्होंने आसान शब्दों में ये कहा कि पाकिस्तान और भारत के लोग एक दूसरे से जो संस्कृति, इतिहास और विरासत साँझा करते हैं वह दक्षिण एशियाई शान्ति कार्यक्रम का एक मजबूत आधार हो सकता है, जिस पर काम किये जाने की ज़रूरत है।

डॉक्टर आई ए रहमान का जाना सिर्फ एक शान्ति एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता का जाना नहीं है, बल्कि एक ऐसे इन्सान का जाना है जिसे बहुत से सामजिक कार्यकर्ता अपनी छत मानते थे। मेरी उनसे व्यक्तिगत मुलाक़ात कभी नहीं हो पायी पर ईमेल के जरिये कुछ बार संपर्क रहा।

हालाँकि हमारे कई पाकिस्तानी दोस्त और आग़ाज़-ए-दोस्ती के सदस्य उनसे हमेशा मिलते रहे और उनकी उपस्थिति हमेशा कार्यक्रमों में बनी रही। रहमान हमारे बीच न भी रहे हों तो भी उनकी यादें पाकिस्तान, हिंदुस्तान और अन्य देशों के कार्यकर्ताओं के बीच हमेशा रहेंगी और उनको हौंसला देती रहेंगी।

(लेखक भारत पाक दोस्ती अभियान आग़ाज़ -ए - दोस्ती के संस्थापक हैं और शांति, मानवाधिकार के विषयों पर स्वतन्त्र लेखन से जुड़े हैं।)

Next Story

विविध